26 March 2013

AMBITION

 महत्वाकांक्षा की धुरी पर घूमने वाला जीवन वृत ही नरक है | महत्वाकांक्षाओं का ज्वर जीवन को विषाक्त कर देता है | जो इस ज्वर से पीड़ित हैं ,शांति का संगीत और आत्मा का आनंद भला    उनके भाग्य में कहां ?व्यक्ति जब तक स्वयं की वास्तविकता से दूर भागता है ,तब तक वह किसी न किसी रूप में महत्वाकांक्षा के ज्वर से ग्रसित होता रहता है | स्वयं से दूर भागने की आकांक्षा में वह स्वयं जैसा है ,उसे ढकता है और भूलता है |
महत्वाकांक्षा यों तोप्रगति के लिये अत्यंत आवश्यक है ,पर वह अनियंत्रित होने पर दुःख -शोक का कारण बनती है |इन दिनों महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ी -चढ़ी है कि मनुष्य अधिकाधिक दौलत जुटा लेने ,यश कमा लेने और वाहवाही लूटने की उधेड़बुन में ही हर घड़ी उलझा दिखाई पड़ता है यदि व्यक्ति आधुनिकता के साथ आध्यात्मिकता का समावेश करता चले ,आवश्यकता से अधिक की आकांक्षा और स्तर से ज्यादा की चाह में प्रवृत न रहे ,तो मूड के ख़राब होने जैसी किसी भी कठिनाई से वह बचा रहेगा आत्मज्ञान से ,स्वयं को जानने ,उसमे जीने और जागने के प्रयास से ही महत्वाकांक्षा के रोग से मुक्ति संभव है | 

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