26 March 2013

सम्राट वृष मातंग शील -साधुता में श्रेष्ठ थे ,पर उन्हें क्रोध बहुत जल्दी आता था | एक बार उनकी परिचारिका ने उनकी सेवा -परिचर्या करने से इनकार कर दिया ,बोली -"आपके शरीर से दुर्गन्ध आती है | सम्राट क्षण भर को क्रोध से उबल पड़े ,तभी उन्हें अपने आचार्य के ये वचन याद आ गये --"प्रशंसा और निंदा को समभाव से ग्र
हण करने वाला व्यक्ति ही सच्चा योगी होता है | "अत:वे क्रोध को पी गये |
वैद्य से दुर्गन्ध का कारण पूछा -,शरीर की परीक्षा हुई | पता चला उनके दांत में भयंकर रोग हो गया है | यदि एक -दो दिन में चिकित्सा नहीं हुई तो वह असाध्य हो जायेगा | चिकित्सा हो गई ,वे स्वस्थ और दुर्गन्ध रहित हो गये | बड़ों की सीख याद रखने वाला अनर्थ से बच जाता है | 

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