लघु कथा ----- चारुदत्त एक सज्जन व्यक्ति था , जिसकी ईमानदारी एवं सत्यता पर हर एक को विश्वास था l उसकी प्रमाणिकता की कथाएं पूरे नगर में विख्यात थीं l एक बार इसी विश्वास के आधार पर एक व्यक्ति अपने बहुमूल्य रत्न उसके पास धरोहर के रूप में रख गया l दुर्भाग्यवश चारुदत्त के घर चोरी हो गई और वे रत्न चोरी चले गए l चोर बहुत सा सामान चारुदत्त का भी ले गया था , पर उसके जाने से ज्यादा दुःख चारुदत्त को उन रत्नों के चोरी होने का था l उसने अपना दुःख अपने मित्र से साझा किया तो उसके मित्र ने उससे पूछा ---- ' जब वह व्यक्ति जो रत्नों का मालिक था , अपने रत्न तुम्हारे पास रखकर गया तो उसका साक्षी कौन था ? " चारुदत्त ने उत्तर दिया --- " साक्षी तो कोई नहीं था , वह तो मात्र विश्वास के आधार पर ही मेरे यहाँ रत्न रख गया l " चारुदत्त के मित्र ने कहा ---- " तो फिर इतना परेशान होने की क्या बात है ? जब वह पूछने आए तो मुकर जाना और कह देना कि तुमने मेरे पास कोई रत्न नहीं रखे थे l " यह सुनकर चारुदत्त ने उत्तर दिया ---- " चाहे मुझे भीख मांगनी पड़े , पर मैं धरोहर के रत्नों के बराबर धन उत्पन्न कर के उसे लौटा दूंगा , किसी भी स्थिति में चरित्र को कलंकित करने वाले असत्य का प्रयोग नहीं करूँगा , झूठ नहीं बोलूँगा l " चारुदत्त के इस वार्तालाप को जिसने भी सुना सब उसकी ईमानदारी और सत्यता से बहुत प्रभावित हुए l व्यक्ति की प्रमाणिकता ऐसे विषम समय में ही सिद्ध होती है l
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