पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' भागवत पुराण की कथा , सत्य नारायण कथा , एकादशी कथा आदि धार्मिक कथाएं इस उदेश्य से लिखी गईं हैं कि उन कथाओं की शिक्षा को व्यक्ति अपने जीवन में उतार कर श्रेय पथ पर चले , ईश्वर ने जो शक्तियां दीं हैं उनका सदुपयोग करे l किन्तु आज कथा को लोग मनोरंजन के लिए अथवा धर्म लाभ के लिए सुनते हैं l " ------------- एक बार संत ज्ञानेश्वर कथा सुना रहे थे कि ज्ञान , भक्ति , विवेक और शक्ति परमात्मा सत्पात्रों को देता है l संत ज्ञानेश्वर के ऐसा कहने पर एक महिला नाराज हो उठी और बोली ----- " तो इसमें भगवान की क्या विशेषता ? उन्हें तो सबको समान अनुदान देने चाहिएं l ' संत उस समय तो चुप हो गए l दूसरे दिन प्रात:काल संत ने मोहल्ले के एक मूर्ख व्यक्ति को बुलाकर कहा कि अमुक स्त्री से जाकर आभूषण मांग लाओ l मूर्ख व्यक्ति गया और आभूषण मांगे तो उस स्त्री ने उसे झिड़क कर भगा दिया , उसे कुछ न दिया l थोड़ी देर बाद संत ज्ञानेश्वर स्वयं उस महिला के यहाँ पहुंचे और बोले ---- ' आप एक दिन के लिए अपने आभूषण दे दें l आवश्यक काम कर के लौटा देंगे l " महिला ने बिना कोई प्रश्न पूछे संदूक खोला और सहर्ष आभूषण सौंप दिए l आभूषण हाथ में लिए संत ज्ञानेश्वर ने उस महिला से पूछा ---- " अभी -अभी दूसरा व्यक्ति आया था आपने उसे आभूषण क्यों नहीं दिए ? ' महिला बोली ---- " उस मूर्ख को कैसे अपने मूल्यवान आभूषण दे देती l " संत ज्ञानेश्वर ने कहा ---- " बहन ! जब आप अपने सामान्य से आभूषण बिना सोचे -विचारे कुपात्र को नहीं दे सकतीं , तो फिर परमात्मा अपने दिव्य अनुदानों को कुपात्रों को कैसे सौंप सकता है ? वह तो बारंबार इस बात की परीक्षा करता है कि जिसको अनुदान दिया जा रहा है , उसमें पात्रता है अथवा नहीं , वह इस अनुदान का सदुपयोग कर रहा है अथवा नहीं l '
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