हमारे धर्म ग्रन्थ हमें बहुत कुछ सिखाते हैं , लेकिन मनुष्य सीखता वही है जैसे उसके संस्कार होते हैं l ईश्वर ने धरती पर अवतार लेकर अपने आचरण से मनुष्य को शिक्षा दी लेकिन मनुष्य ने उन्हें केवल पूजने और कर्मकांड तक ही सीमित कर दिया , उनकी शिक्षा से कोई लेना -देना नहीं है l राम -रावण का युद्ध हो या कौरव -पांडव का महाभारत हो यह धर्म और अधर्म की लड़ाई थी , अनीति और अत्याचार को मिटाकर धर्म और न्याय की स्थापना के लिए यह युद्ध था कहते हैं बुराई का मार्ग सरल और जल्दी लाभ देने वाला होता है इसलिए लोगों ने अपने मन -विचारों में रावण के दुर्गुणों को स्थान दिया , उसके गुणों की उपेक्षा कर दी l यही कारण है कि चारों ओर अनीति , अत्याचार , शोषण है l इसी तरह महाभारत में कर्ण , अर्जुन , युधिष्ठिर , भीम , स्वयं भगवान श्री कृष्ण जैसे महामानव थे जिनसे व्यक्ति बहुत कुछ सीखकर अपना जीवन सुख -शांति से व्यतीत कर सकता है लेकिन लोगों ने दुर्योधन से छल , कपट , षड्यंत्र रचना , धोखा देना , गुट बनाकर निहत्थे को मारना , शोषण करना , उत्पीड़ित करना जैसे पाप कर्म सीख लिए l इससे समाज में तो अशांति होती है , ऐसे व्यक्तियों का जीवन भी दुःख और तनाव से घिर जाता है l महाभारत का एक प्रसंग है ------ अर्जुन ने जब खांडव वन को जलाया , तब अश्वसेन नमक सर्प की माता बेटे को निगलकर आकाश में उड़ गई , लेकिन अर्जुन ने उसका मस्तक बाणों से काट डाला l सर्पिणी तो मर गई पर अश्वसेन बचकर भाग गया l इसी वैर का बदला लेने वह कुरुक्षेत्र की रणभूमि में आया l कर्ण और अर्जुन में युद्ध हो रहा था l अश्वसेन ने कर्ण से कहा ---- " मैं विश्रुत भुजंगों का स्वामी हूँ l जन्म से ही पार्थ का शत्रु हूँ l तेरा हित चाहता हूँ l बस एक बार अपने धनुष पर मुझे चढ़ाकर मेरे महा शत्रु तक मुझे पहुंचा दे l तू मुझे सहारा दे , मैं तेरे शत्रु को मारूंगा l " कर्ण ने कहा ----- " विजय का समस्त साधन नर की बाँहों में रहता है , उस पर भी मैं तेरे साथ मिलकर , सांप के साथ मिलकर मनुज के साथ युद्ध करूँ , निष्ठा के विरुद्ध आचरण करूँ l ऐसा कर के मैं मानवता को क्या मुँह दिखाऊंगा ? " इसी प्रसंग पर रामधारी सिंह ' दिनकर ' ने अपने प्रसिद्ध काव्य ' रश्मिरथी ' में लिखा है ----- ' रे अश्वसेन ! तेरे अनेक वंशज हैं, छिपे नरों में भी , सीमित वन में ही नहीं , बहुत बसते पुर -ग्राम -घरों में भी l ' यह सत्य ही है , आज सर्प रूप में कितने ही अश्वसेन मनुष्यों के बीच , अपने ही परिवारों में और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लीन हैं l
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