29 May 2024

WISDOM -------

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " कृपणता  ( कंजूसी ) एक  ऐसी  मानसिकता  है  ,  जो  धन  को  संग्रह  तो  करवाती  है , लेकिन   उसका  उपयोग  करना   नहीं  सिखाती  l  कृपणता  एक  ऐसा  असुरक्षा  का  भाव  है  , जिसमें  बैंक  एकाउंट  में   पर्याप्त  धन  होने  के  बावजूद   कहीं  वह  कम  न  हो  जाये  ,  यह  मानकर   व्यक्ति  छोटी -छोटी  चीजों  के  लिए   औरों  के  आगे  हाथ  पसारता  रहता  है  l  कृपण  व्यक्ति   आवश्यकता  की  सभी  वस्तुएं   उपलब्ध  होने  के  बावजूद   उसका  उपभोग  न  तो  स्वयं  करता  है   और  न  ही   औरों  को   उसका  किंचित  अंश  उपलब्ध  कराता  है  l  सारी  सुविधाएँ  होते  हुए  भी   स्वयं  क्षुद्रता  के  साथ  जीता  है     और  किसी  अन्य  का  भी  कोई  लाभ  नहीं  करता  l  "   एक  कथा  है --------- एक  गाँव  में  एक  वृद्ध  महिला   अपने  परिवार  के  साथ  रहती  थी  l  परिवार  में  उसका  बेटा , बहू , पोता -पोती    थे  l  उसके  पास  इतना  खेत  था   कि  एक  वर्ष  की  फसल  तैयार  हो   जाती  थी  l  उस  फसल  से  एक  वर्ष  का  गुजारा  आसानी  से  हो  जाता  था  l  एक  बार  चावल  की  फसल  इतनी  हुई  कि  उससे  364  दिनों  के  भोजन  का  प्रबंध  हो  जाता  केवल  एक  दिन  के  लिए  अन्न  कम  पड़  रहा  था  l  वृद्ध  महिला  को  बड़ी  चिंता  हो  गई  ,  इसी  उधेड़ -बुन  में  लगी  रही   कि  कैसे  क्या  किया  जाए  कि  इस  एक  दिन  की  भी  व्यवस्था  हो  जाए  l   उसने  सोचा  कि  क्यों  न  एक  दिन  धान  की  भूसी   का  भोजन  कर  लिया  जाये  l  उसने  सोचा  कि  क्यों  न  आज  ही  भूसी  खा  ली  जाए  ताकि  शेष  364  दिन  आराम  से  बीतें  l  इस  सोच  में  उसने   भरपेट  भूसी  खाई  और  पानी  पीकर  सो  गई  l  वृद्ध  महिला  के  पेट  में  भूसी  इतनी  फूल  गई  कि   वह  पचा  नहीं  सकी   और  वही  मर  गई  l  कृपणता  एक  ऐसी  ही  बुद्धिहीनता  है  ,  जहाँ  पर  संसाधनों  के  होते  हुए  भी   मनुष्य  अभाव  के  मार्ग  का  चयन  करता  है  l  

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