30 May 2024

WISDOM -----

   यह  संसार  कर्म -फल  विधान  से  चल  रहा  है  l  जिसने  अच्छे -बुरे  जैसे  भी  कर्म  किए  हैं  ,  उनका  फल  उसे  अवश्य  मिलता  है  l  व्यक्ति  संसार  के  किसी  भी  कोने  में  चला  जाये  , अपने  कर्मों  के  परिणाम  से  वह  बच  नहीं  सकता  l  एक  बात  यह  भी  देखने   में  आती  है  कि  जो  लोग  सन्मार्ग  पर  चलते  हैं , सच्चाई  की  राह  पर  हैं  उनके  जीवन  में  अनेक  कष्ट , परेशानियाँ  अवश्य  आती  हैं  ,   इन  कष्टों  के  माध्यम  से  ईश्वर  उन्हें  और  निखारना  चाहते  हैं    ताकि  वे  मजबूत  बनकर  अपने  सत्य  के  प्रकाश  से  संसार  के  अंधकार  को  दूर  करें  l   ईश्वर  को  यह  संसार  रूपी  बगिया  बहुत  प्रिय  हैं  ,  वे  चाहते  हैं  कि  दुष्ट  लोग   अपनी  बुरी  प्रवृत्तियों  को  छोड़कर   देवत्व  की  राह  पर  चलें   l  असुरता    का  देवत्व  में  रूपांतरण  हो   l  यही  कारण  है  कि   आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोगों  के  अनेक  गलतियों  को  ईश्वर  बार -बार   अनदेखा  कर  देते  हैं   l  ऐसा  कर  के  वे  उन्हें  सुधरने  का  मौका  देते  हैं  l  उनकी  हर  गलती  पर  उन्हें  चेतावनी   ईश्वर  की  ओर  से  अवश्य  मिलती  है  कि  ' अब  भी  सुधर  जाओ   l '  जो  इस  चेतावनी  को  समझ  जाते  हैं    वे  बुराई  का  मार्ग  छोड़कर   अच्छाई  की  राह  पर  चलने  लगते  हैं , अपनी  गलतियों  को  सुधारने  के  लिए  साधना  करते  हैं   लेकिन  जो  ईश्वर  की  चेतावनी  को  नहीं  समझते   , एक  के  बाद  एक  अपराध  करते  ही  रहते  हैं   फिर  उनके  लिए   ईश्वर  का  सुदर्शन  चक्र , उनकी  गदा  तैयार  है  या  फिर  शिवजी  का  तृतीय  नेत्र  खुल  जाता  है   l  इस  सत्य  को  समझाने  वाला  महाभारत  का  प्रसंग  है  ----- राजसूय  यज्ञ   के  समय  भगवान  श्री  कृष्ण   को  सबसे  सम्मान  मिलते  देख  शिशुपाल  बहुत    ईर्ष्या  से  भर  गया   और  भरी  सभा  में  भगवान  को  गालियाँ  देने  लगा  l  भगवान  श्रीकृष्ण  मुस्करा  कर  सब  सुनते  रहे   और  बीच -बीच  में  उसे  समझाते  भी  रहे  कि  शिशुपाल  तुम  संभल  जाओ  ,  मैं  तुम्हारे  केवल  सौ  अपराधों  को  क्षमा  करूँगा  l  लेकिन  शिशुपाल  कहाँ  समझने  वाला  था   ' विनाशकाले  विपरीत  बुद्धि  '  l  जैसे  ही  उसकी  सौ  गालियाँ  हुईं   भगवान  श्रीकृष्ण  के  हाथ  में  सुदर्शन  चक्र  आ  गया  ,  फिर  तो  वह  तीनो  लोकों  में  भागता   फिरा  l  किसी  ने  उसे  शरण  नहीं  थी  , उसका  पाप  का  घड़ा  भर   चुका    था  ,  उसकी  मृत्यु  से  ही  उसके  पाप  का  अंत  हुआ  l   यदि  शिशुपाल  80 -90  गालियाँ  देकर  रुक  जाता   तो  उसके  प्राण  बच  जाते  , भगवान  सबको  सुधरने  का  मौका  देते  हैं  , उनका  कहना  है  अपनी  गलतियों  को  सुधारने  का  और  उन्हें  बार -बार  न  दोहराने  का  संकल्प  लो  l  जो  पाप   व्यक्ति  कर  चुका  है  , उनका  प्रायश्चित  तो  करना  ही  पड़ेगा  ,  उन  पापों  का  परिणाम  तो  भोगना  ही  पड़ेगा   लेकिन  जब  व्यक्ति  सन्मार्ग  पर  चलने  का  संकल्प  लेता  है  ,  अच्छाई  के  मार्ग  पर  आगे  बढ़ता  है  तब  सम्पूर्ण  प्रकृति  उसकी  मदद  करती  है  , उसे  पाप  के  गड्ढे  में  गिरने  से  बचाती  है  l  

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