8 August 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " संयम  कर  लेना  मनुष्य  जीवन  की  सफलता  का  एक  कदम  है   और  इस  पर  पूरी  तरह  से  अपना  नियंत्रण  कर  लेना  ही  योगमय  जीवन  की  शुरुआत  है  l  संयम  के  माध्यम  से   न  केवल  हमें  शारीरिक  और  मानसिक  स्वास्थ्य  की  प्राप्ति  होती  है  ,  बल्कि  इसके  द्वारा  सदविवेक   का  जागरण  होता  है  ,  जिससे  हम  अपनी  ऊर्जाओं  और  क्षमताओं  का  सदुपयोग  कर  पाते  हैं  l "  -------- भगवान  बुद्ध  के  समय  का  प्रसंग  है -----  एक  सेठ जी  अपने  भारी -भरकम  और  बेडौल  शरीर  के  कारण  सेवकों  की  मदद  से   भगवान  बुद्ध   के  दर्शन  के  लिए  गए  l  शारीरिक  स्थिति  के  कारण  झुककर  प्रणाम  नहीं  कर  पा  रहे  थे  , अत:   खड़े -खड़े  ही  अभिवादन  कर  बोले ---- " भगवन !  मेरा  शरीर  अनेक  व्याधियों  का  घर  बन  चुका  है  l  रात  को  न  नींद  आती  है   और  न  ही  दिन  में  चैन  से  बैठ  पाता  हूँ  l  मुझे  रोग  मुक्ति  का  साधन  बताने  की  कृपा  करें  l '    भगवान  बुद्ध  ने  उसे  करुणा  भरी  द्रष्टि  से  देखा   और  बोले ------ "  भंते  !  प्रचुर  भोजन  करने  से   उत्पन्न  आलस्य  और  निद्रा ,  भोग  व  अनंत  इच्छाओं  की  कामना  , शारीरिक  श्रम  का  अभाव ---- ये  सब  रोग  पनपने  के  कारण  हैं  l  जीभ  पर  नियंत्रण  रखने  , संयमपूर्वक  सादा  भोजन  करने  ,  शारीरिक  श्रम  करने  , सत्कर्म  करने   और  अपनी  इच्छाएं  सीमित  करने  से  ये  रोग  विदा  होने  लगते  हैं  l   असीमित  इच्छाएं  और  अपेक्षाएं  शरीर  को  घुन  की  तरह  जर्जर  बना  डालती  हैं  ,  इसलिए  उन्हें  त्यागो  l "    सेठ  को  भगवान  बुद्ध  की  बातों  का  मर्म  समझ  में  आया   और  उसने  उनके  वचनों  को  जीवन  में  धारण  करने  और  संयमित  जीवन  अपनाने  का  संकल्प  लिया  l   इसके   परिणामस्वरूप   सेठ  के   स्वास्थ्य    में  सुधार  हुआ   और  अब  वह  सेवकों  के  सहारे  के  बिना  अकेले  ही   भगवान  बुद्ध  से  मिलने  गया   और  वहां  पहुंचकर  उसने  झुककर  प्रणाम  किया   और  कहा ---- " शरीर  का  रोग  तो  आपकी  कृपा  से   दूर  हो  गया  l  अब  चित्त  का  प्रबोधन  कैसे  हो  ? "   बुद्ध  ने  कहा ---- "  अच्छा  सोचो , अच्छा  करो  और  अच्छे  लोगों  का  संग  करो  l  विचारों  का  संयम  चित्त  को   शांति  और संतोष  देगा  l "  सेठ  ने  भगवान  बुद्ध  के  बताए  मार्ग  पर  चलकर  अपने  जीवन  को  सार्थक  किया  l   श्रीमद् भगवद्गीता  में  'शांति '  को  मनुष्य  जीवन  का  परम  सुख  कहा  गया  है  l  

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