महर्षि व्यास के पुत्र शुकदेवजी परम वैरागी थे l जन्म लेते ही तप करने जंगल चल पड़े l पिता ने उन्हें आश्रम परंपरा समझाई l कहा ---- " यह जरुरी है l यह क्रम पूरा कर के ही तप करना l " शुकदेव पांच वर्ष तक गर्भ में रहे l l उन्होंने पिता व्यास जी से तर्क किया कि यदि ब्रह्मचर्य पालन से ही मुक्ति होती तो सभी अविवाहित रहते l यदि विवाह ही जरुरी था तो सभी गृहस्थों को मुक्ति मिलती l यदि वानप्रस्थ ही अनिवार्य था तो सारे पशु , बन्दर , भालू आदि मुक्त हो जाते l यह कहकर वे वन चले गए l व्यास जी ने ऋषियों से परामर्श लिया कि क्या करें , ताकि वह लौटे l सभी ने एक मत से कहा कि जहाँ शुकदेव तपस्या कर रहे हैं , वहां आपके शिष्य जाकर आपके ही द्वारा रचित भागवत कथा का कीर्तन करें l त्रिलोक की कोई भी चीज उनके मन को आकर्षित नहीं करेगी , उन्हें विराम मिलेगा तो भगवान की कथा से l शिष्यों ने मधुर गान किया तो उनकी समाधि टूटी l उन्होंने पूछा ---- " आप लोग कौन हैं और यह कथा किसने लिखी ? इसे सुनकर हमें समाधि से भी अधिक तृप्ति मिली l " शिष्यों ने कहा --- " हमारे गुरु ने ऐसे हजारों श्लोक रचे हैं l " ज्ञान प्राप्ति की इच्छा से वे वापस लौटे तो आश्रम कुछ जाना -पहचाना लगा l अपने पिता को देखा तो ज्ञान प्राप्ति की इच्छा सामने रखी और कहा पिताश्री --- " भागवत कथा सुनने के लिए पढ़ लेंगे लेकिन उसके बाद एक दिन भी नहीं रुकेंगे l ऐसा ही हुआ , शुकदेव जी पुन: जंगल चले गए l
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