पुराण की विभिन्न कथाएं हमें जीवन जीना सिखाती हैं l मनुष्यों में ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , स्वार्थ , लालच , बदले की भावना आदि ऐसे दुर्गुण हैं जिनके वशीभूत होकर वह लोगों को पीड़ा , दुःख देने वाला व्यवहार करता है l लेकिन जो इस सत्य को समझता है कि जिसके पास जो है वह वही देगा , इसलिए हमें मान -अपमान में तटस्थ रहना चाहिए , उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है तभी हम शांति से जी सकेंगे l ----- राजा उत्तानपाद के दो रानियाँ थीं , सुनीति और सुरुचि l राजा छोटी रानी सुरुचि को चाहते थे और उसकी अनुचित बातों का भी समर्थन करते थे l एक दिन सुरुचि का पुत्र उत्तम राजसभा में महाराज की गोद में बैठा था , उसी समय बड़ी रानी सुनीति का पांच वर्षीय पुत्र ध्रुव भी खेलते हुए आए और महाराज की गोद में बैठ गए l यह देखकर सुरुचि को बहुत ईर्ष्या हुई , उसने तुरंत ध्रुव को राजा की गोद से खींचकर उतार दिया और फटकारते हुए कहा --- " महाराज की गोद में बैठना है तो मेरी कोख से जन्म लेना होगा l " महाराज और सारी सभा चुप देखती रही और ध्रुव अपमानित होकर रोते हुए अपनी माँ सुनीति के पास गए और सब बात कही l तब माँ ने समझाया ----- " पुत्र ! पिता की गोद से सौतेली माँ तुम्हे उतार सकती है लेकिन जो परम पिता की गोद में बैठता है उसे उनकी गोद से कोई नहीं उतार सकता l इस स्रष्टि के राजा भगवान हैं , उन्ही परम पिता को तुम पुकारो , प्रार्थना करो l वे तुम्हारी प्रार्थना अवश्य सुनेंगे l माता की प्रेरणा से पांच वर्षीय बालक ध्रुव तपस्या के लिए वन की ओर चल पड़े , सारे महल में हाहाकार मच गया l राजा ने और सभी ने उन्हें वापस लौटने के लिए बहुत प्रयास किया लेकिन ध्रुव का निश्चय अटल था l मार्ग में उन्हें नारदजी मिल गए l उन्होंने ध्रुव को मन्त्र और ध्यान आदि की सब विधि समझा दी l बालक ध्रुव की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान उनके सामने प्रकट हो गए और ध्रुव को वरदान दिया कि दीर्घकाल तक राज्य भार स्संभालना होगा फिर तुम्हे वह अटल , स्थिर ध्रुव पद प्राप्त होगा जहाँ से तुम्हे कोई हटा नहीं सकेगा और संसार को दिशा प्राप्त होगी l
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