पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " स्वर्ग और नरक कोई स्थान नहीं , बल्कि मन: स्थितियां हैं , जिनके कारण मनुष्य के जीवन में सुखद या दुःखद परिस्थितियां बनती हैं l " मनुष्य के जीवन में ऐसा संभव नहीं है कि हमेशा पूर्ण रूप से वह सुखी रहे l कोई न कोई कष्ट , कठिनाइयाँ निरंतर बनी रहती हैं l यदि हमारी सोच सकारात्मक है तो हम उन दुःख और कष्टों में भी सुख की कोई किरण खोजकर अपने मन को शांत रख सकेंगे लेकिन यदि मन नकारात्मक विचारों से घिरा हुआ है तो थोडा सा कष्ट भी मनुष्य को विचलित कर देता है और अपनी नकारात्मक सोच से वह उस कष्ट को और अधिक विशाल बना देता है , जीवन कष्टप्रद हो जाता है l इसलिए जरुरी है कि हम दुःख और कष्ट को नहीं उसके पीछे छुपे सुख को ढूंढें , देखें l ईश्वर ने हमें जो दिया है उसके लिए ईश्वर को हर पल धन्यवाद दें , इससे जीवन धीरे -धीरे सुखमय होता जायेगा l एक कथा है ----- भगवान के तीन सच्चे भक्त मंदिर में भगवान को धन्यवाद दे रहे थे l एक ने कहा --- " प्रभु ! आप आप बड़े कृपालु हैं l आप का लाख -लाख धन्यवाद कि मेरी पत्नी बहुत धार्मिक है , वह मेरे पूजा , पाठ , यज्ञ , हवन , सत्संग में कभी बाधक नहीं बनती l मैं एकाग्र होकर पूजा , ध्यान , दान -पुण्य सब करता हूँ और आनंद पूर्वक जीवन जीता हूँ l " दूसरा भक्त कह रहा था --- " हे प्रभु ! आपने मेरे ऊपर बड़ा उपकार किया कि मुझे कर्कशा पत्नी मिली l वो इतनी कर्कशा है की मुझे विरक्ति हो गई और मैं आपके ध्यान , चिन्तन में लीन हो सका l यदि पत्नी प्रेम करने वाली होती तो मैं उसकी आसक्ति में डूब जाता और आपसे दूर हो जाता l इसलिए हे प्रभु आपका बारंबार धन्यवाद , आपने मुझे सद्बुद्धि दी कि मैं अपनी पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए आपका ध्यान कर सकूँ l ध्यान से मुझे सच्चा आनंद मिलता है l " तीसरा भक्त भगवान से कह रहा था --- हे प्रभु ! आप ने मुझ पर बड़ी कृपा की l मेरे तो बीबी -बच्चे ही नहीं हैं , जो आपके और मेरे बीच दीवार बनते l मेरा मन और जीवन आप के चरणों में समर्पित है l आपकी पूजा और ध्यान से मुझे जो आत्मिक सुख मिलता है , वह बीबी -बच्चों और धन -दौलत से नहीं मिल पाता l " ---- महात्मा जी ने लोगों को समझाया कि देखो ! अलग -अलग परिस्थितियों में रहते हुए भी ये तीनों प्रसन्नचित , ईश्वर के प्रति कृतज्ञ और भक्ति में लीन हैं l इनके मन में ईश्वर के प्रति या परिस्थिति के प्रति कोई शिकायत नहीं है l आचार्य श्री कहते हैं --- ' परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों , हमें अपनी मन: स्थिति ठीक और सकारात्मक रखना चाहिए l "
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