30 March 2025

WISDOM -----

  मनुष्य  यदि  सुधरना  चाहे   और  सुख  शांति  से  जीवन  जीना  चाहे  तो  प्रत्येक  धर्म  में  उनके पवित्र  ग्रन्थ  हैं , प्रेरक  कथाएं  हैं   लेकिन  यदि   उसमें  विवेक  नहीं  है   तो  वह  हर  अच्छाई  में  से  बुराई  ढूंढकर  ,   उस  बुराई  को  ही  अपने  व्यवहार  में  लाकर  उसे  सत्य  सिद्ध  करने  की  हर  संभव  कोशिश  करता  है  l  जैसे  रामायण  पढ़कर  , सीरियल  देखकर   भगवान  राम   की  मर्यादा , भरत  का  आदर्श  किसी  ने  नहीं  सीखा  l   रावण  के  भी  दुर्गुण  सबने   सीखे  लेकिन  उसके  जैसा  ज्ञानी  और  विद्वान  कोई  नहीं  बना  l   इसी तरह  महाभारत  से  अर्जुन  जैसी  वीरता , युधिष्ठिर  का  सत्य  और  धर्म  का  आचरण   को  अपने  जीवन व्यवहार  में  लाना  सबको  ही  कठिन  लगता  है   लेकिन  दुर्योधन  का  षड्यंत्र , शकुनि  की   कुटिल  चालें   और   सात  महारथियों  का  मिलकर  अभिमन्यु  को  मारना  सबको  सरल  लगता  है  l  ऐसी  विवेकहीनता  ने  ही   कलियुग  को  अत्याचार  और  पाप  के  चरम  शिखर  पर  पहुंचा  दिया  है  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अधर्म  के  नाश  के  लिए  जो  नीति  अपनायी   उसका  अपने  स्वार्थ  के  लिए  इस्तेमाल   बहुत  बड़े  पैमाने  पर  होता   है  l   महाभारत  का  प्रसंग  है  कि --- शल्य  पांडवों  के  मामा  थे  , वे  पांडवों  के  पक्ष  में  ही  युद्ध  करने  के  लिए  आ  रहे  थे  l  जब  दुर्योधन  को  इस  बात  का  पता  चला  तो  उसने  मार्ग  में  उनका  स्वागत  सत्कार  कर   अपनी  कुटिलता  से  उनको  अपने  पक्ष  में  कर  लिया  l  महाराज  शल्य  पांडवों  के  पास  अफ़सोस  व्यक्त  करने  आए  कि  अब  वे  विवश  हैं  और  दुर्योधन  के  पक्ष  में  रहकर  ही  युद्ध  करेंगे  l  तब  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  उनसे  कहा  --जब  आप  युद्ध  में  कर्ण  के  सारथी  बनो  तब  अपने  शब्दों  के  मायाजाल  से  हर पल  उसका  मनोबल  कम  करते  रहना  l  भगवान  श्रीकृष्ण  जानते  थे  कि  कर्ण   को  पराजित  करना  असंभव  है  ,  यदि  उसका  मनोबल  कम  हो  जायेगा  ,  उसका  आत्मविश्वास  कम  हो  जायेगा  तो  उसे  पराजित  किया  जा  सकता  है  l  शल्य  ने  यही  किया   l  भगवान  श्रीकृष्ण  की  यह  नीति  सफल  हुई  l  कर्ण  अधर्म  और  अन्याय  के  साथ  था  इसलिए  उसे  पराजित  करना  अनिवार्य  था   l  अब   इस  युग  में  यह  नीति  लोगों  को  बहुत  सरल  लगती  है  l  इसे  सीखकर  अब  लोग  अपनी  सफलता  के  लिए  कठिन  परिश्रम  नहीं  करते  ,  उनसे  जो  श्रेष्ठ  है   उसको  हल  पल  अपमानित  कर  के  ,  जो  बुराइयाँ  , जो  कमियां  उसमें  नहीं  हैं , उन्हें  भी  उस  पर  थोपकर  ,  चारों  तरफ  उनका  डंका  पीटकर   उसे  बदनाम  करने  की  हर  संभव  कोशिश  करते  हैं   ताकि  उसका  मनोबल  कम  हो  जाए , वो  परिस्थितियों  से  हार  जाए    और  वे  हा -हा  कर  के  हँसते  हुए  स्वयं  को  सफल  और  श्रेष्ठ   बताकर  सम्मान  खींच  लें  l  हिटलर  ने  भी  कहा  है  --एक  झूठ  को  सौ  बार  बोला  जाए  तो  वह  सत्य  लगने  लगता  है  l  कलियुग  में  ऐसे  ही  झूठ  बोलने  वालों  की  श्रंखला  है  l  इस  युग  की  सारी  समस्याएं   दुर्बुद्धि  और  विवेकहीनता  के  कारण  हैं  l  आज  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  सद्बुद्धि  की  है  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  कहा  है  --- 'गायत्री  मन्त्र '  सद्बुद्धि  प्रदान  करता  है  , जैसे  भी  संभव  को   इस  मन्त्र  का    वैश्विक  स्तर  पर  जप  होना  चाहिए  l  तभी  संसार  में  सुख -शांति  होगी  l  

28 March 2025

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  हर  युग  की  कहानी    अलग  है  l  उनकी  तुलना  संभव  नहीं  है  l  श्री राम  और  रावण  का  युद्ध   धर्म  और  अधर्म  का  युद्ध  था  , रावण  के  अन्याय  और  अत्याचार   का  अंत  करने  के  लिए  था  l  लेकिन  इसमें  एक  खास  बात  थी   कि  भगवान  राम  के  पक्ष  में  कहीं  से  भी  कोई  राजा  युद्ध  करने  नहीं  आया  l  उन्होंने  रीछ , वानर , भालुओं , बंदरों  की  मदद  से  यह  युद्ध  लड़ा  और  रावण  का  अंत  किया  l  भगवान  श्रीराम  ने   इन  प्राणियों  की  मदद  से  युद्ध  कर  संसार  को  यह  सन्देश  दिया  कि   स्रष्टि  का  प्रत्येक  प्राणी  महत्वपूर्ण  है  ,  प्रकृति  का  प्रत्येक  कण  उपयोगी  है   और  मानव  की  मदद  के  लिए  है   इसलिए  हमें  स्रष्टि  के  प्रत्येक  कण  के  साथ  संतुलन  बनाकर  चलना  चाहिए   तभी  हम  जीवन  में  सफल  हो  सकते  हैं  l  महाभारत  का  महायुद्ध   भी  अधर्म  , अन्याय , अत्याचार  का  अंत  कर  धर्म  और  न्याय  की  स्थापना  के  लिए    हुआ  था  l  इस  युद्ध  के  माध्यम  से  भगवान  ने संसार  को   कर्मफल  विधान  को  समझाया  l   इस  युद्ध  से  यह    स्पष्ट  हुआ  कि  छल , कपट , षड्यंत्र , धोखा  करने  वालों  का  कैसा  अंत  होता  है  l  व्यक्ति  सबसे  छिपकर  छल , षड्यंत्र , धोखा  करता  है   और  सोचता  है  कि  उसे  किसी  ने  नहीं  देखा  , किसी  ने  नहीं  जाना  l  लेकिन  ईश्वर  हजार  आँखों  से  देख  रहा  है   और  ऐसे  छिपकर  अपराध  करने  वालों  को  कभी  क्षमा  नहीं  करते  l  कलियुग  की  तो  बात  ही  अलग  है  l  यहाँ  सत्य  और  धर्म  पर  चलने  वाले  बहुत  कम  है  ,  उन्हें  भी   नकारात्मक  शक्तियां  चैन  से  जीने  नहीं  दे  रहीं  l  इसलिए  जब  अधिकांश  आसुरी  प्रवृत्ति  के  हों  तो  धर्म  और  अधर्म  की  लड़ाई  संभव  ही  नहीं  है  l  कौन  किस को  मारे  , सब  एक  नाव  में  सवार  हैं  l  इसलिए  कलियुग  में  प्राकृतिक  आपदाएं , बाढ़ , भूकंप , सुनामी , महामारी    आदि  सामूहिक  दंड  के  रूप  में  आती  हैं  किसी  न  किसी  रूप  में  सभी  पापकर्म  में  लिप्त  हैं  इसलिए  सामूहिक  दंड  तो  भोगना  ही  पड़ेगा   जैसे  एक  मांसाहारी   मांस  खाकर  पाप  करता  है  तो   उस  मांस  के  लिए  प्राणी  का  वध  करने  वाला , उसे  बेचने  वाला , उसे  बेचने  की  अनुमति  देने  वाला ,  फिर  उसे  खरीदने  वाला ,  यह  सब  देखने  वाला  , और  देखकर  चुप  रहने  वाला   और  ऐसे  ही  विभिन्न  पापकर्मों  में  बहती  दरिया  में  हाथ  धोने  वाला  सभी   पाप  के  भागीदार  हैं  l  इसलिए  उचित  यही  है  कि  सामूहिक  दंड  के  लिए  तैयार  रहें  l  और  ईश्वर  से  प्रार्थना  करें  , उनका  नाम  स्मरण  करें   ताकि  मुक्ति  तो  मिले   अन्यथा   इस  युग  में  ऐसे   विभिन्न  प्रकार  के  पाप  करके    भूत , -प्रेत , पिशाच  और  न  जाने  किन -किन  योनियों  में  भटकना  पड़े  ,  ईश्वर  का  विधान  कौन  जान  सकता  है  l  कहते  हैं   जब  जागो  , तभी  सवेरा  l  अब  भी  मनुष्य  सुधर  जाए  ,  धर्म  का  नाटक  करने  के  बजाय  सन्मार्ग  पर  चले  ,  अपनी  गलतियों  को  सुधारे   l  फिर  ईश्वर  तो  सब  पर  कृपा  करते  हैं  l  

25 March 2025

WISDOM -----

  विधाता  ने  इस  स्रष्टि  में  अनेक  प्राणियों  की  रचना  की  l   इन  सब  में  मानव  सर्वश्रेष्ठ  है   क्योंकि  मनुष्य  के  पास  बुद्धि  है  ,  उसके  पास  अपनी  चेतना  को  परिष्कृत  करने  के  पर्याप्त  अवसर  हैं   लेकिन  अन्य  प्राणियों  को  यह  सुविधा  नहीं  है  l  मनुष्य  शरीर  में  हम  विभिन्न  रिश्तों  में  बंधे  हैं  l  ये  सब  रिश्ते  हमारे  विभिन्न  जन्मों  में किए  गए  कर्म  हैं   जिनका  हिसाब  हमें  चुकाना  पड़ता  है  l  यदि  हमारे  पूर्व  के  कर्म  अच्छे  हैं  तो  उन  रिश्तों  से  हमें  सुख  मिलेगा  l  जब  विभिन्न  सांसारिक  रिश्तों  को  लेकर  जीवन  में   दुःख  मिलता  है  l  अपमान , तिरस्कार , धोखा , षड्यंत्र  , धन , संपदा  और  हक़  छीन  लेना  जैसे   दुःख  जब  इन  रिश्तों  में  मिलते  हैं  , तब  हमें    इस  कष्टपूर्ण  समय  का  सकारात्मक  ढंग  से  सामना  करना  चाहिए  l  इन  दुःखों  के  लिए   हम  ईश्वर  को  दोष  देते  हैं  कि हमारे  जीवन  में  ही  ऐसा  क्यों  हुआ  ?  यदि  ईश्वर  को  दोष  देने  के   बजाय   हम  इस  सत्य  को  समझें   कि  यह  हमारे  पूर्व  जन्मों  में  किए  गए  विभिन्न  कर्मों  का  हिसाब  होगा  ,  जो  इस  जन्म  में   हमें  इन  विभिन्न  तरीकों  से  चुकाना  पड़  रहा  है   तो  हमारे  मन  को  शांति  मिलेगी   l  सुख  का  समय  तो  बड़ी  आसानी  से  बीत  जाता  है   लेकिन  जब  दुःख  आता  है   तो  सामान्य  मनुष्य  यही  कहता  है  कि  यदि  ईश्वर  हैं  तो  वे  आकर   संसार  के  कष्ट  क्यों  नहीं  दूर  कर  देते  l  यह  संसार  कर्मफल  के  आधीन  है  l  ईश्वर  सर्वगुण  संपन्न   और  श्रेष्ठता  का  सम्मुचय  हैं  ,  यदि  हमारी  पीठ  पर  पाप  कर्मों  की  गठरी   लदी  है   तो  ईश्वर  कैसे  आयेंगे   ?  ईश्वर  को  पाने  के  लिए  हमें  अपने  मन  और  आत्मा  को  परिष्कृत  करना  होगा  l  यदि  हम  अपनी  चेतना  को  परिष्कृत  करने  का  संकल्प  लेते  हैं  और  उस दिशा  में   आगे  बढ़ने  का  निरंतर  प्रयास  करते  हैं   तो  समय -समय  पर   इस  मार्ग  पर  आने  वाली  कठिनाइयों  से  हमारी  रक्षा  करने  के  लिए  ईश्वर  अवश्य  आते  हैं  l  ईश्वर  की  सत्ता  को  केवल  अनुभव  किया  जा  सकता  है  l  

24 March 2025

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    नारद जी  ईश्वर  के  परम  भक्त  हैं  l  तीनों  लोकों  में  वे  भ्रमण  करते  हैं   l  इसी  क्रम  वे  जब  वे  धरती  पर  भ्रमण  कर  रहे  थे  तो  उन्होंने  देखा  कि  पापी  तो  बहुत  सुख  से  जीवन  व्यतीत  कर  रहे  हैं  और  जो  सज्जन  हैं , पुण्यात्मा  हैं  , वे  बड़ा  कष्ट  पा  रहे  हैं  l  उन्होंने  भगवान  विष्णु जी  से   कहा  कि  भगवान !  धरती  पर  तो  अंधेरगर्दी  चल  रही  है  ,  पाप  का  साम्राज्य  बढ़ता  ही  जा  रहा  है  l  ईश्वर  भी  क्या  उत्तर  दें  ?  यह  तो  कलियुग  का  प्रभाव  है l   द्वापर  युग  का  अंत  होने  वाला  था  , तभी  से  कलियुग  ने  अपना  प्रभाव  दिखाना  शुरू  कर  दिया  था  l   युधिष्ठिर  सत्यवादी  थे  , पांचों  पांडव  धर्म  की  राह  पर  चलते  थे  , स्वयं  भगवान  श्रीकृष्ण  उनके  साथ  थे   फिर  भी  सारा  जीवन  उन्हें  कष्ट  उठाना  पड़ा  , वन  में  भटकना  पड़ा , राजा  विराट  के   यहाँ    वेश  बदलकर  नौकर  बनकर  रहना  पड़ा  l  दूसरी  ओर  दुर्योधन  अत्याचारी , अन्यायी  था  l  सारा  जीवन  पांडवों  के  विरुद्ध  षड्यंत्र  करता  रहा  ,  फिर  भी  हस्तिनापुर  का  युवराज  था ,  सारा  जीवन  राजसुख  भोगता  रहा  l  युद्ध  भूमि  में  मारा  गया  तो  मरकर  भी  स्वर्ग  गया  l  पांडवों  ने  जीवन  भर  कष्ट   भोगा  l  महाभारत  के  महायुद्ध  के  बाद  राज्य  भी  मिला  तो  वह  लाशों  पर  राज्य  था  ,  असंख्य  विधवाओं  और  अनाथों  के  आँसू  थे  l  धृतराष्ट्र  और  गांधारी   के  पुत्र  शोक  से  दुःखी  चेहरे  का  सामना  करना  मुश्किल  था  l  पांडवों  ने  मात्र  36 वर्ष  ही  राज्य  किया   फिर  वे  अभिमन्यु  के  पुत्र  परीक्षित  को  राजगद्दी  सौंपकर  हिमालय  पर  चले  गए   l  यह  सब  ईश्वर  का  विधान  है  , इसका  सही  उत्तर  किसी  के  पास  नहीं  है  l  कलियुग  में  भी   भगवान  पापियों  और  अत्याचारियों  का  अंत  करने  , उन्हें  सबक  सिखाने  किसी  न  किसी  रूप  में  अवश्य  आते  हैं   लेकिन  भगवान  बहुत  देर  से  आते  हैं  l   एक  बार  महर्षि  अरविन्द  ने  भी  कहा  था  --भगवान  को  सबसे  अंत  में  आने  की  आदत  है  l  जब  व्यक्ति  का  धैर्य  चुक  जाये  , संघर्ष  करते -करते  हिम्मत  टूट  जाये  , तब  भगवान  आते  हैं  l  किसी  कवि  ने  बहुत  अच्छा  लिखा  है  ---- " बड़ी  देर  भई , बड़ी  देर  भई , कब  लोगे  खबर  मोरे  राम  l  चलते -चलते   मेरे  पग  हारे  , आई  जीवन  की  शाम   l  कब  लोगे  खबर  मोरे  राम  ?  "  कलियुग  में  पाप  का  साम्राज्य  बढ़ने  का  सबसे  बड़ा  कारण  यही  है  कि  ईश्वर  के  न्याय  का  इंतजार  करते -करते  व्यक्ति  का  धैर्य  समाप्त  हो  जाता  है  l  ईश्वर   मनुष्य  के  धैर्य  की  ही  परीक्षा  लेते  हैं  l  इसलिए  हमारे  ऋषियों  ने  , आचार्य  ने   ईश्वर  को  पाने  के  लिए    भक्ति  मार्ग  का  सरल  रास्ता  बताया  है  l  ईश्वर  स्वयं  अपने  भक्तों  की  रक्षा  करते  हैं  ,  भक्त  के  जीवन  में  कठिनाइयाँ  तो  बहुत  आती  हैं  लेकिन  ईश्वर  स्वयं  आकर  उन्हें   उन  कठिनाइयों  से  उबार  लेते  हैं  l  सत्य  के  मार्ग  पर  कठिनाइयाँ  तो  बहुत  हैं  ,  लेकिन  ईश्वर  हमारे  साथ  है  , वे  हमारी  नैया  पार  लगा  देंगे  ,  यह  अनुभूति  मन  को  असीम  शांति  प्रदान  करती  है  ,  जो  अनमोल  है  l  

22 March 2025

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  देवता  और  असुरों  में  तो  आदिकाल  से  ही संघर्ष  चला  आ  रहा  है  l  देवता  विजयी  होते  हैं   लेकिन  कलियुग  का  यह  दुर्भाग्य  है  कि  इसमें  असुरता  पराजित  नहीं  होती  , असुरता  बढ़ती  ही  जाती  है  l  असुरता  को  पराजित  करने  के  लिए  आध्यात्मिक  बल  की  और  सत्कर्मों  की  पूंजी  की  आवश्यकता  होती  है  l  इसी  के  आधार  पर  दैवी  शक्तियां  मदद  करती  हैं  l  हिरण्यकश्यप  से  डरकर  सबने  उसे  भगवान  मान  लिया   लेकिन  उसी  के  पुत्र  प्रह्लाद  ने  उसे  भगवान  नहीं   माना  l  प्रह्लाद  के  पास  भक्ति  का  बल  था  l   वर्तमान  समय  में  धन -वैभव  के  आधार  पर  मनुष्य  की  परख  है  l  इसलिए  हर  व्यक्ति  धन  कमाने   और  धन  के  बल  पर  समाज  में  अपनी  साख  बनाने  का  हर  संभव  प्रयास  करता  है   l  मात्र  धन  कमाना  है  , उसमें  नैतिकता  मायने  नहीं  रखती   इसलिए  धन  कमाने  और   विलासिता  से  उसका  उपभोग  करने  के  कारण  व्यक्ति  से  अपने  जीवन  में  अनेक  गलतियाँ  हो  जाती  हैं  , जिन्हें  वह  समाज  से  छुपाना  चाहता  है  l  यही  वजह  है  कि  व्यक्ति  में  यह  कहने  का  कि  "  गलत  का  समर्थन  नहीं  करूँगा  "   का  साहस  नहीं  होता  l  अपराधी  और  शक्तिशाली  के  समर्थन  में  अनेकों  खड़े  हो  जाते  हैं  l  जब  स्वयं  में  कमियां  हों  तो   उसका  विरोध  कौन  करे  l  इसलिए  असुरता   दिन  दूनी  रात  चौगुनी  ' गति  से  बढ़ती  जाती  है  l  आसुरी  कर्म  करते  रहने  से  व्यक्ति  की  आत्मा  मर  जाती  है  ,  उनका  मन  रूपी  दर्पण  इतना  मैला  हो  जाता  है  कि  उन्हें  उसे  देखने  की  जरुरत  ही  नहीं  होती  l   उन्हें  समय -समय  पर  प्रकृति  की  मार  भी  पड़ती  है  लेकिन  ऐसे  लोगों  को  पाप कर्म  करने  की  लत  पड़  जाती  है  ,  उन्हें  इसी  में  आनंद  आता  है  l  इसी  का  नाम  संसार  है  l  

21 March 2025

WISDOM -----

संसार  में  जितने  भी  अहंकारी  हैं  , वे  स्वयं  को  भगवान  समझते हैं   इसलिए  वे  कर्म विधान  को  नहीं  मानते  l  अहंकार  के  मद  में   नित्य  नए  पाप  कर्म  करते  जाते  हैं  l  वर्तमान  युग  का  यह  कटु  सत्य  है  कि  शक्ति  और  वैभव  से  संपन्न  व्यक्ति  कितने  भी  बड़े  अपराध  कर  ले  , वह   दंड  से  बच जाता  है  l  कोई  भी  उससे  बुराई  मोल  लेना  नहीं  चाहता   और  लोगों  के  स्वार्थ  भी  उसी  की  मदद  से  पूरे  होते  हैं  l  ईश्वर  की  अदालत  में  भी  बड़ी  देर  से  न्याय  होता  है  l  सीता जी  को  भी  14  वर्ष  तक  रावण  की  अशोक  वाटिका  में  रहना  पड़ा  l  इतने  दीर्घकाल  तक  इंतजार  के  बाद  रावण  का  अंत  हुआ  l  यही  स्थिति  महारानी  द्रोपदी  की  थी  l  दु :शासन  द्रोपदी  के  केश  पकड़  कर  उन्हें  घसीटते  हुए   भरी  सभा  में  लाया  था  l   भगवान  श्रीकृष्ण  ने  द्रोपदी  की  लाज  रखी  l  उस  समय  अपमानित  द्रोपदी  ने  प्रतिज्ञा  की  कि    दु:शासन  के  खून  से  अपने  केश   धोने  के  बाद  ही  वे  इन  केशों  को  बांधेंगी  l  इसके  बाद  जब  भी  श्रीकृष्ण  से  उनकी  मुलाकात  होती  तो  वे  भगवान  को  अपने  खुले  केश  दिखातीं   और  कहतीं  --भगवान  !  वह  दिन  कब  आएगा  जब  ये  केश  बंधेंगे  ?  भगवान  श्रीकृष्ण  उन्हें  समझाते    और  कहते  कि   द्रोपदी  ,  मैंने  केवल  तुम्हारे  केशों  की खातिर  धरती  पर  अवतार  नहीं  लिया  है  l  अवतार  का  उदेश्य  बहुत  बड़ा  है  ,  अधर्म  का  नाश  और  धर्म  की  स्थापना  l  महाभारत  का  महायुद्ध  कोई  अचानक  होने  वाली  घटना  नहीं  है  ,  इसकी  भूमिका  बहुत  पहले  से बन  रही  थी  l  अधर्मी , अत्याचारी  और  बदले  की  भावना  से  ग्रस्त  सब  कुरुक्षेत्र  के  मैदान  में  एकत्र  हुए  ,  तब  एक -एक  कर  के  सबका  अंत  हुआ  l  यही  स्थिति  वर्तमान  की  है  l   पाप  और  अत्याचार  से  सम्पूर्ण  धरती , प्रकृति  सब  त्रस्त  है  l  ईश्वर  के  यहाँ  अवश्य  ही  कोई  योजना  बन  रही  है  कि  कैसे  इस  धरती  को  पाप  के  बोझ  से  मुक्त  किया  जाए  l  अहंकारी  इस  सत्य  को  समझते  और  स्वीकारते  नहीं  हैं  , वे  स्वयं  ही  अपना  पाप  का  घड़ा  भरते  जाते  हैं   और  ईश्वर  का  काम  सरल  कर  देते  हैं  l  घड़ा  तो  फुल  भरने  के  बाद  ही  फूटता  है  ,  उससे  पहले  उसे  फोड़ने  की   इजाजत  भगवान  को  भी  नहीं  है  l   

20 March 2025

WISDOM -----

 इस संसार  में  अँधेरे  और  उजाले  का  निरंतर  संघर्ष  है  l  अंधकार  की  शक्तियां  निरंतर  सामूहिक  रूप  से   उजाले  को  रोकने  का  भरसक  प्रयास  करती  हैं   l  ये  प्रयास  हर  युग  में   हुए  हैं  , बस !  उनका  तरीका  अलग -अलग  है  l  रावण  अपने  राक्षसों  को   आदेश  देता  था  कि  जाओ ,  कहीं  भी  यज्ञ ,  हवन  आदि  पुण्य  कार्य  हो  रहे  हों  तो  उन्हें  नष्ट  करो , उनमें  विध्न , बाधाएं  उपस्थित  करो  ,  ऋषि -मुनियों  को  मार  डालो , कोई  संकोच  नहीं  l  हिरण्यकश्यप  स्वयं  को  भगवान  कहता  था  ,  जो  उसे  न  पूजे  ,  उसे  फिर  अपनी  जिन्दगी  जीने  का  कोई  हक  नहीं  l  महाभारत  काल  में  अत्याचार , अन्याय  और  षड्यंत्रों  की  विस्तृत  श्रंखला   के  रूप  में  अंधकार  की  शक्तियां  प्रबल  रहीं   l  महारानी  द्रोपदी  को  अपमानजनक  शब्दों  का  सामना  करना  पड़ा  l  कलियुग  आते -आते  लोगों  की  मानसिकता  विकृत  होने  लगी  l  वीरता  का  स्थान  कायरता  ने  ले  लिया  l  जो  आसुरी  प्रवृत्ति  के  हैं ,  उनमें  निहित  दुर्गुण  इतने  प्रबल  हो  गए  कि   उन  दुर्गुणों  के  भार  ने  असुरों  के  मनोबल  को  बिलकुल  समाप्त  कर  दिया  ,  उन्हें  कायर  बना  दिया  इसलिए  अब  ऐसे  असुर   उजाले  को  मिटाने  के  लिए  अनेक  कायराना  तरीके  अपनाते  हैं   l  चाहे  भगवान  बुद्ध  हों , स्वामी  विवेकानंद  हों   या  अध्यात्म  पथ  को  कोई  भी  पथिक  हो  ,  उसके  चरित्र  पर  प्रहार  करते  हैं  ताकि  उसका  मनोबल  टूट  जाए  ,  वह  अपने  पथ  से  भटक  जाए  l  उनके  जीवन  में  आँधी -तूफ़ान  लाने  का  भरपूर  प्रयास  करते  हैं  लेकिन  अंत  में  जीत  सत्य  की  होती  है  l  ऐसे  कायर  असुरों   के  प्रहार  से  अपने  आत्म  बल  को  मजबूत  बनाए  रखने  का  एक  ही  तरीका  है   कि  ईश्वर   के  विधान  पर  अटूट  आस्था  और  विश्वास  हो  , वार  चाहे  कितना  ही  गहरा  हो  अपने  मन  को  न  गिरने  दें  l  दुनिया  क्या  कहती  है  , इस  पर  ध्यान  न  दें   l  उस  परम  सत्ता  की  निगाह  में  श्रेष्ठ  बनने  का  प्रयास  करें  l