15 November 2025

WISDOM -----

   संसार  में  अँधेरे  और  उजाले  का संघर्ष  तो   आदिकाल  से  ही  रहा  है    लेकिन  अब  जो  स्थिति  है   उससे  यही  स्पष्ट  होता  है   कि   अंधकार    सम्पूर्ण  धरती  पर  अपना  एकछत्र  साम्राज्य  स्थापित  करने  की  पूरी  तैयारी  में  l  मनुष्य  की  कामना , वासना , महत्वाकांक्षा , स्वार्थ , लालच  ,  ईर्ष्या , द्वेष  अपने  चरम  पर  पहुँच  गया  है    इस  कारण  नकारात्मक  शक्तियों   के  लिए  अपना  काम  करना  बहुत  आसान  हो  गया  है  l   भूत , प्रेत , पिशाच , जिन्न  ------ आदि  के  पास  अपना  शरीर  नहीं  होता   , ये  किसी  न  किसी  प्राणी  के  शरीर  में  प्रवेश  कर  अपना  काम  करती  हैं  l  यदि  ये  नकारात्मक  शक्ति  किसी  परिवार  के  मुखिया  के  शरीर  में  प्रवेश  कर  गईं  तो  वह  अपने  साथ  पूरे  परिवार  को  पतन  की  गर्त  में  धकेल  देगा  l  यदि  ऐसा  कोई  डीमन  किसी  पावरफुल  व्यक्ति  ,  किसी  साम्राज्य  के  अधिपति    में  प्रवेश  कर  गया   , तो   जो  दास्ताँ  सामने  होगी  वह  बहुत  दर्दनाक  होगी  l  ऐसा  कहते  हैं  हिटलर  के   भीतर    कोई   डीमन  था   l   जो  परिणाम  हुआ  वह  संसार  के  सामने  है  l  प्राकृतिक  आपदाएं  तो  आकस्मिक  होंगी  l  मनुष्य  ने  परिस्थितियों  को  सुधारने  का  कोई  प्रयास  नहीं  किया    तो  वह  रोता  हुआ  तो  इस  धरती  पर  आया  है  और  चीखते -चिल्लाते , कराहते   और  पछताते  हुए  धरती  से  जायेगा  l  अंधकार  को  पराजित  करने  के  लिए  यदि  बहुत  छोटे  स्तर  पर  भी  प्रयास  हों  , तो  ऐसे  सामूहिक  प्रयास  से  नकारात्मक  शक्तियों  को  पराजित  किया  जा  सकता  है  l   वर्तमान  समय  लोक कल्याणकारी  राज्य  का  है  l  प्रत्येक  सरकार   अपनी  प्रजा  को  खुश  करने  के  लिए   नि :शुल्क  भोजन , अन्न , शिक्षा , चिकित्सा आदि   विभिन्न  कल्याणकारी  कार्य  करती  है  l  जैसे  कोरोना  का  इंजेक्शन  अनिवार्य  था  ,  वैसे  ही   संसार  में  सभी    सरकारें  यह  अनिवार्य  कर  दें  कि  इन  सुविधाओं  के  लेने  से  पहले  प्रत्येक  व्यक्ति  चाहे  वह  किसी  भी  धर्म  का  हो  ,  अपने  ईश्वर  का  नाम , उनका  कोई  मन्त्र  अनिवार्य  रूप  से  एक  पेज  पर  लिखकर  जमा  करे  l  चाहे  कोई  वेतनभोगी  हो , मजदूर   हो , बुजुर्ग  हो  , कोरोना  इंजेक्शन  की  तरह  यह  लिखकर  जमा  करना  अनिवार्य  हो  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  मन्त्र  को  लिखने  का  प्रभाव   कई  गुना  अधिक  होता  है  और  जब  यह  प्रयास  सामूहिक  होगा   तो  यह  अंधकार  की शक्तियां  बुरी तरह   पराजित  होंगी  l  सारे  पापकर्म  तो  इसी  धरती  पर  होते  हैं , सोचिये  , धरती  माता  को  कितना  कष्ट  होता  होगा  l  ऐसे  छोटे -छोटे  प्रयासों  से   जो लोग  न  चाहते  हुए , मजबूरीवश   विभिन्न  पापकर्मों  में  सम्मिलित  हैं   उनका  कल्याण  होगा  ,  अनेकों  आत्माएं  जो  भटक  रही  हैं  उनकी   मुक्ति  होगी  l  नकारात्मक  शक्तियों  की वजह  से  जो  अद्रश्य    प्रदूषण   होता है ,  वह  सब   साफ़  हो  जायेगा  और  संसार  में  चारों  ओर  खुशहाली  होगी  l  

14 November 2025

WISDOM ------

पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- ' अच्छे -बुरे वातावरण  से  अच्छी -बुरी  परिस्थितियां  जन्म  लेती  हैं   और  वातावरण  का  निर्माण   पूरी  तरह  मनुष्य  के  हाथ  में  है  ,  वह  चाहे  तो   उसे  स्वच्छ , सुन्दर  और  स्वस्थ  बनाकर   स्वर्गीय  परिस्थितियों  का  आनंद  ले  सकता  है   अथवा  उसे  विषाक्त  बनाकर   स्वयं  अपना  दम  तोड़े  l  "   आज  संसार  में  जितनी  अशांति , युद्ध  , अस्थिरता  और  तनाव    है   उसके  लिए   स्वयं  मनुष्य  ही  दोषी  है  l  मनुष्य  ने  अपनी   अनंत  इच्छाओं  , कामना  और  सुख -भोग  की  लालसा  के  लिए   भूमि , जल , वायु  सम्पूर्ण  प्रकृति  को  प्रदूषित  कर  दिया  है  l  इच्छाएं , महत्वाकांक्षा  एक  ऐसा  नशा  है   जो  कभी  समाप्त  नहीं  होता   l  उम्र  चाहे  ढल  जाए   लेकिन  मन  ललचाता  ही  रहता  है  l  और जब  प्रत्यक्ष  उपलब्ध  साधनों  से    संतुष्टि  नहीं  मिलती  तब  मनुष्य  अपनी   दमित  इच्छा  , महत्वाकांक्षा , कामना ----- आदि  की  पूर्ति  के  लिए  नकारात्मक  शक्तियों  की  मदद  लेता  है  l  तंत्र -मन्त्र ,  भूत  -प्रेत , पिशाच  आदि  को  सिद्ध  कर  अपने  मनोरथ  पूरे  करना   ,  प्राणियों  की  ऊर्जा  का  गलत  इस्तेमाल  करना  ----- इन  सबसे  अद्रश्य  वातावरण  प्रदूषित  हो  जाता  है  l  नकारात्मक  शक्तियों  को  भी  अपनी  खुराक  चाहिए  l  और  यही  कारण  है  कि  हत्याएं , दुर्घटनाएं  , युद्ध , ह्रदयविदारक  घटनाएँ   , प्राकृतिक  आपदाओं   की  तीव्रता बढ़  जाती है  l  इन  नकारात्मक  शक्तियों  की  मदद  से  व्यक्ति   अपनी  इच्छाओं  को  पूरा  कर  लेता  , बहुत  सुख -भोग  और  धन  लाभ  भी    हो  जाता  है   लेकिन  यह  कभी  भी  स्थायी  नहीं  होता  l  एक  निश्चित  समय  तक  ही  इनसे  लाभ  उठाया  जा  सकता  है   ,  ईश्वर  से  बड़ा  कोई  नहीं  है   l  किसी     का  अहित  करने  के  लिए   जब  इन  शक्तियों  का  इस्तेमाल  किया  जाता  है  ,  तब  निश्चित  समयानुसार   इनका   स्वत:  ही   पलटवार  भी  होता  है  l    आचार्य श्री  कहते  हैं  ---- ' गलत  रास्ते  से  प्राप्त  की  गई  सफलता  कभी  स्थायी  नहीं  होती  ,  यह  अंत  में  कलंकित  हो  जाती  है  l '  सच्ची  सफलता   जिसके  साथ  व्यक्ति में  उदारता , करुणा ,  भाईचारा  हो  ,  अहंकार  न  हो  ,  तब  व्यक्ति   को  जो  सम्मान  मिलता है  , वह  बड़ी  कठिन  तपस्या  से  संभव  है  l   

10 November 2025

WISDOM -----

 रामकृष्ण  परमहंस  कहते  हैं  ---- भक्त  तीन  तरह  के  होते  हैं  l  एक  तमोगुणी  भक्त  ,  जो  आज  बहुतायत  में  पाए  जाते  हैं  ,  जोर -जोर  से  चिल्लाते  हैं   भगवान  का  नाम  ,  लेकिन  जीवन  में  भगवान  कहीं  भी  नहीं  l  2 . दूसरे  रजोगुणी  भक्त  --जो बहुत  सारे  पूजा  उपचार  करता  है  , दिखाता  भी  है  , खरच  भी  करता  है  ,  पर  जीवन  में  अध्यात्म  कम  है  l  3.  तीसरे हैं  ---सतोगुणी  भक्त  --वे  जो  भी  कर  रहे  हैं   वह  पूजा  है  l  वे  ढेरों  अच्छे  काम   करते  हैं , परमार्थ  के  कार्यों  में  उनकी  भागीदारी  है  लेकिन  दंभ  जरा  भी  नहीं   करते  हैं  l  वे  अहंकार  करना  ही  नहीं  चाहते  l  वे  मात्र  प्रभु  के  विनम्र  भक्त  बने  रहना  चाहते  हैं  l                                             भक्ति  के  लिए  जाति  का  कोई  महत्व  नहीं  है  l  निषादराज , शबरी   सदन  कसाई , रसखान , रैदास  --- इनकी  जाति  भगवान  ने  नहीं   देखी  l  भगवान  कहते  हैं  --भक्त  का  कल्याण  तो  मेरी  भक्ति  से  हो  जाता  है  l  भक्त  के  लिए  रूपवान  होना , न  होना  महत्वहीन  है  l  विभीषण  बदसूरत  थे , राक्षस  थे  l  श्री  हनुमानजी  , सुग्रीव  वानर  थे  ,  पर  सभी  ईश्वर  के  भक्त  थे  l  

8 November 2025

WISDOM ------

 ऋषियों का  वचन  है  --- 'सत्य  बोलो , प्रिय  बोलो  l  लेकिन  ऐसा  सत्य  कभी  न  बोलो  जिससे  किसी का  अहित  होता  है  l  क्योंकि  जिस  सत्य  को  बोलने  से   दूसरों  का  अहित होता  है ,  उस सत्य  का  पुण्य  फल  प्राप्त  नहीं  होता   l  एक  कथा  है  ----प्राचीन  काल  में  एक  सत्यनिष्ठ  ब्राह्मण  रहा  करते  थे  l  एक बार  वे  नदी  के  किनारे  बैठकर  तपस्या  कर  रहे  थे  l  उसी  समय  कुछ  व्यक्ति  भागते  हुए  आए  उन्होंने  उस  ब्राह्मण  से  कहा   कि  डाकू   हमें  लूटने  के  लिए  हमारा पीछा  कर रहे  हैं  ,  हम  यहाँ  झाड़ियों  के  पीछे  छुप  रहे  हैं  l  यदि  कोई  हमारे  बारे  में  पूछे  तो  बताना  नहीं  l  कुछ  समय  बाद   डाकू  वहां  आए  और  ब्राह्मण  से उन  व्यक्तियों   के  विषय  में  पूछा  l  अपने  सत्य  बोलने  की  प्रतिज्ञा   को  ध्यान  में  रखते  हुए   ब्राह्मण  ने  डाकुओं  को   उन  व्यक्तियों  की  ओर  भेज  दिया  l  डाकुओं  ने  उन  व्यक्तियों  को  लूटकर  उनकी    वहीं  हत्या  कर  दी   l   कुछ  समय  बाद  ब्राह्मण  की  भी  मृत्यु  हो  गई   और  वे  यमलोक  पहुंचे   l   यमराज  ने  उन्हें  देखकर  कहा ------ " महाराज  आपने  एक  धर्मपरायण  व्यक्ति  का जीवन  जिया  l  आपके  पूरे  जीवन का  पुण्य  तो  बहुत  है  ,  लेकिन   एक   अप्रिय   सत्य  बोलने  के  कारण  आप     पाप  के  भागीदार  बने  l  इस  कारण  आपको  नरक  में  निर्धारित   समय  व्यतीत  करना  होगा  l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                              

4 November 2025

WISDOM -------

 संत  एकनाथ  जिस  रास्ते  स्नान  को  जाया  करते  थे  , एक  उद्दंड  व्यक्ति  का  घर  उधर  ही  था  l  वह  छत  पर  खड़ा  ताकता  रहता  , जैसे  ही  संत  एकनाथ  उधर  से  गुजरते  , वह  व्यक्ति  ऊपर  से  कूड़ा  पटककर  उन्हें  गन्दा  कर  देता  l  उन्हें  दुबारा  नहाने  के  लिए  विवश  करने  में   उसे  बहुत  मजा  आता  था  l  बहुत  दिन  ऐसे  ही  बीत  गए  l  संत  बहुत  सहनशील  थे  ,  उन्होंने  कभी  क्रोध  नहीं  किया  l  इसके  बाद  अचानक  परिवर्तन  आया  , कूड़ा  गिरना  बंद  हो  गया  l  संत को  चिंता  हुई  l  उन्होंने  इधर -उधर  पूछताछ  की   तो  मालूम  हुआ  कि  वह  व्यक्ति  बीमार  पड़ा  है  l  संत  ने  कहा  ---- 'मित्र  !  तुम  मेरा  रोज  ध्यान  रखते  थे  l  तुम्हारे  प्रयास  से  मुझे   दिन  में कई  बार  नहाने  का  मौका  मिला  l  अब  मेरी  बारी  है  कि  इस  कठिन  समय  में  मैं  तुम्हारा  ध्यान  रखूं  l  '  जब  तक  वह  व्यक्ति  बीमार  रहा  ,  संत   उसकी  सहायता  करते  और  आवश्यक  साधन  जुटाते  l  जब  वह  व्यक्ति  बीमारी  से  उठा   तो  उसका  स्वभाव बिलकुल  बदल  गया  l  

1 November 2025

WISDOM -------

 

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  -----' ईर्ष्या  एक  प्रकार  की  मनोविकृति  है  l  इससे  भौतिक  क्षेत्र  में  विफलता   और  आध्यात्मिक  क्षेत्र  में  अवगति  प्राप्त  होती  है  l  जो  इस  मानसिक  बीमारी  से  ग्रस्त  हो  गया  , समझा  जाना  चाहिए  कि   उसने   अपनी  प्रगति  के  सारे  द्वार  बंद  कर  लिए  l  "    जिसके  पास  सभी  भौतिक  सुख -सुविधाएँ  है  ,  वह  भी  अपने  जीवन  से  संतुष्ट  नहीं  है  l  उसे  दूसरे  को  सुखी  देखकर  ईर्ष्या  होती  है   l  जो  बहुत  ईर्ष्यालु  हैं  , उनकी  बुद्धि  काम  करना  बंद  कर  देती  है   l  उन्हें  अपनी  आगे  की  तरक्की  का  कोई  रास्ता  नहीं  दीखता   इसलिए  वे  अपनी  सारी  ऊर्जा  दूसरों  की  जिंदगी  में  झाँकने  में  लगा  देते  हैं   l  कोई  खुश  है  तो  क्यों  खुश  है  ?  कोई  हँस  रहा  है  तो  क्यों  ?   वे   हर  संभव  तरीके  से  दूसरे  को  कष्ट  देने  का  हर  संभव  प्रयास करते  हैं  l  ऐसा  करने  से  ही  उनको  सुकून  मिलता  है  l  ईर्ष्या  का  एक  दुःखद   पहलू  भी  है  l  व्यक्ति  जिससे  ईर्ष्या  करता  है  ,  उसे  नीचा  गिराने  के  हर  संभव  प्रयास  भी  करता  है   लेकिन  उसका  प्रतिद्वंदी  उस  पर  कोई  ध्यान  ही  न  दे   और  अपनी  प्रगति  के  पथ  पर  आगे  बढ़ता  जाए   तो   ईर्ष्यालु  व्यक्ति  का  अहंकार  चोटिल  होता  है  ,  घाव  की  भांति  रिसने  लगता  है  l   उसके  सारे  प्रयास  असफल  हो  गए  l  आचार्य जी  ने  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई  है  कि  संसार  से  मिलने  वाले  मान -अपमान , प्रशंसा -निंदा  की  परवाह   न  करो  , उस  पर  कोई  प्रतिक्रिया  न  दो  ,  अपने  पथ  पर  आगे  बढ़ो  l 

29 October 2025

WISDOM ------

  इस  संसार  में  तंत्र -मन्त्र , ब्लैक मैजिक , भूत =प्रेत , पिशाच आदि  को  सिद्ध  कर  उनका  अपने  स्वार्थ  के  लिए  इस्तेमाल  करना , मनुष्य  आदि  प्राणियों  की  ऊर्जा  का  नकारात्मक  प्रयोग   अर्थात  एक  शब्द  में  कहें  तो  मायावी  विद्याओं  का  प्रयोग   अति  प्राचीन  काल  से  हो  रहा  है  l  रावण  मायावी  विद्याओं    का  जानकार  था , वेश  बदल   लेता  था  l  महाभारत  में  घटोत्कच   ने  अपनी  मायावी  विद्या  से  कौरव  सेना  में  हाहाकार  मचा  दिया  , तब  कर्ण  को  देवराज  इंद्र  द्वारा  प्रदत्त  शक्ति  से  उसका  वध  करना  पड़ा  l  घटोत्कच  भीम  का  पुत्र  था   और  रावण  के  बराबर  ज्ञानी  तो  इस  संसार  में  दूसरा  नहीं  है  लेकिन    तंत्र  आदि  नकारात्मक  शक्तियों  के  प्रयोग  से  प्रकृति  को  कष्ट  होता  है ,  प्रकृति  का   कुपोषण  होता  है   इसलिए ईश्वर  इनका  अंत  कर  देते  हैं  l  इस  विद्या  का  सकारात्मक  प्रयोग  भी संभव  है   लेकिन  इस  कलियुग  में  कायरता  बढ़  जाने  के कारण  अब  लोग  अपने  स्वार्थ  और  महत्वाकांक्षा  की  पूर्ति  के  लिए   और  ईर्ष्यावश  दूसरों  को  कष्ट  पहुँचाने  के  लिए   ऐसी  नकारात्मक  शक्तियों  का  प्रयोग  बड़े  पैमाने  पर  करते  हैं  l  ऐसे  कार्यों  का  कोई  सबूत  नहीं  होता  ,  इसलिए  कानून  भी  इसे   मान्यता  नहीं  देता  l  इसका  सबसे  बड़ा  फायदा  यह  होता  है  कि   बड़े -बड़े  , समर्थ  लोगों  की  कायरता  पर  परदा  पड़ा  रहता  है  लेकिन ईश्वर से  बड़ा  कोई  नहीं  है  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- "  तंत्र  चाहे  कितना  ही  बड़ा  क्यों  न  हो  ,  वह  भक्ति  और  भक्त  से  सदैव  कमजोर  होता  है  l  भक्त की  रक्षा  स्वयं  भगवान  करते  हैं   और  तंत्र  भगवान  से  श्रेष्ठ  कभी  नहीं  हो  सकता  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  ----' तांत्रिक  अपनी  ही  विद्या  के  अपराधी  होते  हैं  ,  यही  वजह  है  कि  अधिकतर  तांत्रिकों  का  अंत  बड़ा  भयानक  होता  है  l  "    तांत्रिकों  को  अपनी  विद्या  का  बड़ा  अहंकार  होता  है  ,   वे  किसी भक्त  पर  इसका  प्रयोग  कर  ईश्वर  से  भी  प्रत्यक्ष  लड़ाई  मोल  ले  लेते हैं  l  इस  संबंध  में  आचार्य श्री  का  कहना  है  कि   तंत्र  का  प्रयोग  भक्त  पर  लगता  तो  है  , परन्तु  वह  विधान  के  अनुरूप  ही  l  "   इसे  हम  सरल  शब्दों  में  ऐसे  भी  कह  सकते  हैं  कि  तंत्र  मन्त्र  आदि  नकारात्मक  शक्तियों  के  भी  देवी  -देवता  होते  हैं  ,  जिन्होंने  बड़ी  तपस्या  कर  उन्हें  सिद्ध  किया  है  ,  उन्हें  उस  तांत्रिक  का  भी  मान  रखना  पड़ता  है  , इसलिए  भक्त  को  विधान  के  अनुरूप थोडा -बहुत  कष्ट  हो  ही  जाता  है  l  लेकिन  ईश्वर  उन्हें  कभी  क्षमा  नहीं  करते  , जन्म -जन्मांतर  तक  उन्हें  इसका  परिणाम  भोगना  पड़ता  है  l  इस  संदर्भ  में  एक  घटना  है  ------जगद्गुरु  शंकराचार्य  पर  एक  कापालिक  ने  भीषण  तंत्र  का  प्रयोग  किया  l  इसके  प्रभाव  से   उनको  भगंदर  हो  गया   और अंत  में  उन्हें  अपनी  देह  को  त्यागना  पड़ा  l  कापालिक  के  इस  पापकर्म  से  उसकी  आराध्या  एवं  इष्ट  भगवती  उससे  अति  क्रुद्ध  हुईं   और  कहा  कि  तूने  शिव  के  अंशावतार   मेरे  ही  पुत्र  पर   अत्याचार  किया  है  l  इसके  प्रायश्चित  के  लिए  तुझे   अपनी  भैरवी  की  बलि  देनी  पड़ेगी  l '  कापालिक  अपनी  भैरवी  से  अति  प्रेम  करता  था  ,  परन्तु  उसे  उसको  मारना  पड़ा  l   उसको  मारने  के  बाद  वह  विक्षिप्त  हो  गया   और  अपना  ही  गला  काट  दिया  l  इस  प्रकार  उस  तांत्रिक  का  अंत  बड़ा  भयानक  हुआ  l     प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  है   l  ईश्वर  ऐसे  पापियों  को  भी  अनेकों  बार  संकेत  भी  देते   हैं  कि  इस  पाप  के  रास्ते  को  छोड़  दो  , सन्मार्ग  पर  चलो  l  परन्तु  अपने  अहंकार  के  आगे  वे  विवश  होते  हैं  ,  जिसने   उनका  जितना  भी  साथ  दिया  है   उसे ईश्वर  के  तराजू  में  तोलकर  उतना  परिणाम  भुगतना  ही  पड़ता  है  l