पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " ईर्ष्या वह काली नागिन है जो समस्त पृथ्वी -मंडल में जहरीली फुफकारें छोड़ रही है l यह गलतफहमियों की एक गर्म हवा है , जो शरीर के अंदर ' लू ' की तरह चलती है और मानसिक शक्तियों को झुलसाकर राख बना देती है l " आज सम्पूर्ण संसार में युद्ध , तनाव , धक्का -मुक्की की जो विकट स्थिति है , उसका कारण ईर्ष्या का रोग है l व्यक्ति धन संपन्न हो , उच्च पद पर हो ईर्ष्या के रोग से उसका पीछा नहीं छूटता l ईर्ष्या की आग इतनी भयंकर है कि इससे ईर्ष्यालु व्यक्ति का तो सुख -चैन समाप्त हो ही जाता है और जिससे वह ईर्ष्या करता है उसका सुख -चैन छीनने में वह कोई कसर बाकी नहीं रखता l पारिवारिक झगड़े , मुकदमे , संस्थाओं में अशांति , दूसरे को धक्का देकर आगे बढ़ने की होड़ , इन सबका कारण परस्पर ईर्ष्या ही है l जीवन जीने की कला कहती है कि जो ईर्ष्या करता है उसे उसका काम करने दो l यदि वह ईर्ष्यावश तुम्हारी ओर पत्थर फेंकता है , तो उन पत्थरों से सीढ़ी बनाकर ऊपर चढ़ जाओ l अपनी प्रगति पर , अपने जीवन को व्यवस्थित बनाने पर ध्यान केन्द्रित करो l अपने मन को इतना मजबूत बनाओ कि दूसरे हमारे लिए क्या कहते हैं , हमारे विरुद्ध क्या षड्यंत्र रचते हैं , उससे जरा भी विचलित न हो l वे अपनी ऊर्जा व्यर्थ के कार्यों में बरबाद कर रहे हैं तो इसमें उनका ही नुकसान है l यदि स्वयं की सोच सकारात्मक हो तो नकारात्मक शक्तियों का आक्रमण एक चुनौती बन जाता है l चुनौती का सकारात्मक तरीके से सामना करने में ही मनुष्य की भलाई है l
Omkar....
8 December 2025
6 December 2025
WISDOM ------
पुराणों में अनेक कथाएं हैं , जिनमें प्रत्येक युग और प्रत्येक परिस्थिति के लिए मार्गदर्शन है l ---- दुष्ट और जहरीले व्यक्तियों से मित्रता या ऐसे लोगों को आश्रय देना या किसी भी तरह का संबंध स्वयं उसके लिए ही कितना घातक होता है , यह इस कथा से स्पष्ट है ----- राजा जनमेजय को जब यह ज्ञात हुआ कि उनके पिता महाराज परीक्षित की तक्षक नाग के डसने से मृत्यु हुई , तो उन्होंने संकल्प लिया कि वे ' सर्प यज्ञ ' कर के इस सम्पूर्ण जाति को ही नाश कर देंगे l सर्प यज्ञ आरम्भ हुआ , प्रत्येक आहुति के साथ दूर -दूर से नाग -सर्प आकर उस यज्ञ अग्नि में भस्म होने लगे l तक्षक नाग को जब यह पता चला तो वह स्वर्ग के राजा इंद्र के सिंहासन से लिपट गया , कहने लगा -रक्षा करो l इंद्र ने बिना सोचे -समझे उसे शरण दी और उसकी रक्षा का वचन दिया l उधर जब यज्ञ में तक्षक नाग के नाम की आहुति दी जाने लगी तो मन्त्र शक्ति के प्रभाव से सिंहासन पर विराजमान इंद्र के साथ ही वह तक्षक नाग उस यज्ञ की ओर खिंचा जाने लगा l सम्पूर्ण स्रष्टि में हाहाकार मच गया कि क्या तक्षक नाग के साथ देवराज इंद्र की भी आहुति हो जाएगी l सभी देवी -देवता वहां एकत्र हो गए और जनमेजय से निवेदन किया कि वह इस यज्ञ को अब समाप्त कर दे l देवताओं के दखल से इंद्र और तक्षक दोनों, की ही रक्षा हुई l कथा कहती है कि कलियुग में जब असुरता अपने चरम पर है तब परिवार हो , समाज हो या कोई भी सरकार या संगठन हो यदि असुरता को शरण दी है , उससे मित्रता की है तो परिणाम घातक होगा l इस युग की मानसिकता ऐसी है कि सत्संग का असर चाहे न हो दुष्टता अपना रंग दिखा ही देती है l
2 December 2025
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " मनुष्य की अंतरात्मा उसे ऊँचा उठने के लिए कहती है लेकिन सिर पर लदी दोष दुर्गुणों की भारी चट्टानें और दुष्प्रवृत्तियों उसे नीचे गिरने को बाधित करती हैं l स्वार्थ सिद्धि की ललक उसकी बुद्धि को भ्रमित कर देती है l वह लाभ को हानि और हानि को लाभ समझता है l आचार्य श्री कहते हैं ----- ' भूल समझ आने पर उलटे पैरों लौट आने में कोई बुराई नहीं है l मकड़ी अपने लिए अपना जाल स्वयं बुनती है l उसे कभी -कभी बंधन समझती है तो रोती - कलपती भी है , किन्तु जब भी वस्तुस्थिति की अनुभूति होती है तो वह समूचे मकड़जाल को समेटकर उसे गोली बना लेती है और पेट में निगल जाती है और अनुभव करती है कि सारे बंधन कट गए और वेदनाएं सदा -सदा के लिए समाप्त हो गईं l इसी तरह मनुष्य भी अपने स्तर की दुनिया अपने हाथों रचता है , वही अपने हाथों गिरने के लिए खाई खोदता है l वह चाहे तो उठने के लिए समतल सीढ़ियों वाली मीनार भी चुन सकता है l "
WISDOM ----
वैष्णव सम्प्रदाय के आचार्य संत रामानुज को गुरु मन्त्र देते हुए उनके गुरु ने सावधान किया कि --'मन्त्र को गोपनीय रखना l संत रामानुज मन्त्र जप के साथ ही यह विचार करने लगे --यह अमोघ मन्त्र मृत्युलोक की संजीवनी है , यह जन -जन की मुक्ति का साधन बन सकता है , तो गुप्त क्यों रहे ? उन्होंने गुरु की अवज्ञा कर के वह मन्त्र सभी को बता दिया l एक स्थान पर गुरु ने अपने शिष्य को सामूहिक पाठ करते हुए सुना तो वे क्रुद्ध हो गए और बोले ---" रामानुज , तूने गोपनीय मन्त्र को प्रकट कर पाप अर्जित किया है l तो नरकगामी होगा l " रामानुज ने गुरु के चरण पकड़ लिए और पूछा --- " देव ! मैंने जिन्हें मन्त्र बताया , क्या वे भी नरकगामी होंगे ? " गुरु ने कहा ---- " नहीं ये तो मृत्युलोक के आवागमन से मुक्त हो जाएंगे l उन्हें तो पुण्य लाभ ही होगा l " रामानुज के मुख -मंडल पर संतोष की आभा चमक उठी " यदि इतने लोग मन्त्र के प्रभाव से मोक्ष प्राप्त करेंगे
30 November 2025
WISDOM ----
सभी प्राणियों में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा है जिसके पास वह क्षमता है कि वह चेतना के उच्च स्तर तक पहुँच सकता है , नर से नारायण l लेकिन दुर्बुद्धि ऐसी हावी है कि उसे नीचे गिरना अधिक सरल प्रतीत होता है और वह विभिन्न पापकर्मों में लिप्त होकर नर से नराधम और नर- पिशाच बनने की दिशा में निरंतर प्रयत्नशील है l खुदाई में मिलने वाले विभिन्न सभ्यताओं के अवशेष यही बताते हैं कि ये पहले कभी बहुत उन्नत सभ्यताएं थीं लेकिन कोई एक ऐसी आपदा आई कि वे धूल में मिल गईं l ये आपदाएं प्राकृतिक और वैज्ञानिक कारणों से ही नहीं आतीं , इसके लिए मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले पापकर्म , अत्याचार , अनाचार , ईश्वरीय नियमों की अवहेलना करना , अनैतिकता , अपराध उत्तरदायी हैं l धरती बेजान नहीं है , यह माँ हैं , सृजन करती हैं l हमें सभी खाद्य पदार्थ , खनिज आदि जीवन के लिए आवश्यक सभी कुछ धरती के गर्भ से ही मिलता है l धरती माँ के सामने ही जब मनुष्य के पापकर्मों की अति हो जाती है तो ये प्राकृतिक आपदाएं उनका क्रोध और रौद्र रूप है l अनेकों सभ्यताओं के अवशेष देखकर भी मनुष्य सुधरता नहीं है , सन्मार्ग पर नहीं चलता , स्वयं ही अवशेष बनने की दिशा में गतिशील है l
24 November 2025
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' आज सबसे बड़ी आवश्यकता आस्था और विचारों को बदलने की है l इन दिनों आस्था संकट सघन है l लोग नीति और मर्यादा को तोड़ने पर बुरी तरह उतारू हैं l अनाचार की वृद्धि से अनेकों संकटों का माहौल बन गया है l न व्यक्ति सुखी है न समाज में स्थिरता है l समस्याएं , विपत्तियाँ निरंतर बढ़ती जा रही हैं l स्थिर समाधान के लिए जनमानस के द्रष्टिकोण में परिवर्तन , चिन्तन का परिष्कार और सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन ,प्रमुख उपाय है l " संसार में विभिन्न देशों की सरकारें सामाजिक सुधार और कल्याण के लिए अनेकों नियम , कानून बनाती हैं लेकिन यदि जनमानस के विचार श्रेष्ठ नहीं हैं , चिन्तन परिष्कृत नहीं है तो उन नियमों से कोई विशेष समाज में परिवर्तन नहीं होता l मानसिकता नहीं बदलने से मनुष्य ऐसे कार्य जो कानून द्वारा प्रतिबंधित हैं , वह उन्हें छिपकर करने लगता है l अच्छाई में बढ़ा आकर्षण होता है इसलिए बड़े से बड़ा पापी भी स्वयं को समाज में बहुत सभ्य और प्रतिष्ठित दिखाना चाहता है l वह अपनी मानसिक विकृतियों और पापकर्मों को समाज और परिवार से छिपकर अंजाम देता है l संचार के साधनों ने पाप और अपराध का भी वैश्वीकरण कर दिया l आचार्य श्री कहते हैं --- ' यदि समस्याओं का समाधान निकालना है तो अपने जीवन का लक्ष्य ' जीवन ' को बनाना चाहिए l व्यक्ति के जीवनक्रम और चरित्र को बनाने के लिए आस्तिकता और ईश्वर भक्ति की आवश्यकता है ताकि मनुष्य जाति का व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन श्रेष्ठ व समुन्नत बना रहे l "