14 December 2025

WISDOM -----

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " संसार  में  बुराई  और  भलाई  का  , हानि -लाभ  का  , प्रिय -अप्रिय  का  और  सुख -दुःख   अस्तित्व  है  और  वह  बना   ही  रहेगा  l  हमें  किसी  का  भी  प्रभाव  अपने  ऊपर  ऐसा  नहीं  पड़ने  देना  चाहिए   जो  मानसिक  संतुलन  बिगाड़  कर  रख  दे  l  यदि  हमारा  द्रष्टिकोण  सकारात्मक  है   तो  विपत्ति  का प्रत्येक  धक्का   हमें  अधिक  साहसी , बुद्धिमान   और  अनुभवी  बनाता  है  l "  आचार्य श्री  कहते  हैं  ---- " जीवन  एक  कला  है   और  इसे  आनंदपूर्वक   सीखना  एवं  जीना  चाहिए  l  जो  जीवन  जीना  जानता  है  वही  सही  मायने  में  कलाकार  एवं  प्रतिभावान है  l  "   विभिन्न  सर्वेक्षणों  से  यह  तथ्य  प्रकट  होता  है   अपने  विषय  के   विद्वान , प्रतिभावान ,  धन-वैभव  संपन्न  , , उच्च पदों  पर  बैठे  व्यक्ति  ---- अनेक  ऐसे  हैं  जिनका  निजी  जीवन  विखंडित  और  विभाजित  है   l  उन्हें  अपनी  सामान्य  सी  जिन्दगी  को  चलाने  के  लिए   नशा , मादक  द्रव्य ------ आदि  का  सहारा  लेना  पड़ता  है  l  कारण  यही  है  कि  लोगों  की  सोच  सकारात्मक  नहीं  है  ,  जो उन्हें  मिला  है  वे  उसमें  खुश  नहीं  हैं  ,  उनका  मन  कामनाओं  , वासना  के  पीछे  भाग  रहा  है   ऐसे  में  दुःख  का  ,  कष्ट    का  एक  छोटा  सा  झटका  भी  उन्हें  विचलित  कर  देता  है  l  हमें  इस  सत्य  को  स्वीकार  करना  होगा  कि  ईश्वर  कभी  किसी  को  पूर्ण  रूप  से   दुःख  नहीं  देते  l  अपने  मन  के  तराजू  में तोल  कर  देखें  कुछ न कुछ  सुख  तो  होता  ही  है  l  और  यदि  हम  ध्यान  से  देखें  तो  उस  दुःख  में  भी  कोई  सुख  अवश्य  छिपा  होता  है  l  यदि  हम  उस  सुख    पर  अपनी  द्रष्टि  केन्द्रित  करेंगे   तो  हमारा  मन  शांत  रहेगा ,  तनाव  नहीं  होगा  l    संत  तुकाराम  ने  लिखा  है ------ "  हे  भगवान  !  अच्छा  ही  हुआ  ,  मेरा  दिवाला  निकल  गया  l  अकाल  भी  पड़   गया  ,  यह  भी  अच्छा  ही  हुआ  l  स्त्री  और  पुत्र  भी  भोजन  के  अभाव  में  मर  गए   और  मैं  भी  हर  तरह  से  दुर्दशा  भोग  रहा  हूँ  ,  यह  भी  ठीक  ही  हुआ  l  संसार  में  अपमानित  हुआ  ,  यह  भी  अच्छा  हुआ  l  ग्राम , बैल , द्रव्य  सब  चला  गया  ,  यह  भी  अच्छा  ही  हुआ  l  लोक -लाज  भी  जाती  रही  ,  यह  भी  अच्छा  हुआ   क्योंकि  इन्ही  सब  कारणों  के  फलस्वरूप   तुम्हारी  मधुरिमामय ,  शांतिपूर्ण  गोद  मुझे  मिली  l  "  

12 December 2025

WISDOM -----

महान  दार्शनिक  संत  अगस्तीन  के  पास    एक  जिज्ञासु   पहुंचा  l  उसे  अपने  जीवन  के  सत्य  को  समझने  की  बहुत जिज्ञासा  थी  l  उसने  संत  से  कहा  -- आप  मुझे  बहुत  कुछ  कहने -समझाने  की  बजाय  ,  केवल  एक  शब्द  में  उपदेश  दें  l  संत  अगस्तीन  उसकी  ओर  देख  रहे  थे  ,  वह  व्यक्ति  उनसे  कहे जा  रहा  था  कि  आप  मुझे  बहुत  आज्ञाएँ  न  देना  ,  क्योंकि  मैं  भूल  जाऊँगा  l  आप  तो  मुझे  एक  शब्द  में  ही  सार  की  बात  बता  दें  l  मैंने  शास्त्रों  को  भी  नहीं  पढ़ा  है   और  न  ही  पढ़ने  की  इच्छा  है l  संत  अगस्तीन मुस्कराते  हुए  बोले  ---- "  तुम्हारे  लिए  वह एक  शब्द  है  ' प्रेम  ' l  पर  यह  तथ्य  ध्यान  रखना  कि  प्रेम  वही   कर  सकते  हैं  ,  जिन्होंने   स्वार्थ , वासना  और  अहंता  की  क्षुद्रता  का   पूरी  तरह  से  त्याग  कर  दिया  है  l  यदि  तुम  सचमुच  ही  प्रेम  कर  सको  ,  तो  शेष  सब  अपने  आप  ही  हो  जायेगा  l "  

11 December 2025

WISDOM ------

  मनुष्य  के  जीवन  में  ' मौन  ' का  बहुत  महत्त्व  है  l  इमर्सन  कहते  हैं --- "  आओ  हम  चुप  रहें  , ताकि  फरिश्तों  के  वार्तालाप  सुन  सकें  l  "   पं . श्रीराम   शर्मा   आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " शांत  और  एकाग्र  मन  से  ही   ईश्वर  से  वार्तालाप  संभव  है  l  मौन  रहकर  ही   अपने  अन्तराल  में  उतरने  वाले  ईश्वर  के  दिव्य  संदेशों  , प्रेरणाओं  को  सुना  समझा  जा  सकता  है  l  "  मानव  जीवन  में  अनेक  समस्याएं  हैं  ,  इन  समस्याओं  का  कभी  अंत  नहीं  होता    क्योंकि  मनुष्य  इनके  समाधान   बाहर  खोजता  है   और  बाहर  के  संसार  में  स्वार्थ  है  , कामनाएं , वासना , लालच , अहंकार  सभी  बुराइयाँ   हैं   l  इन  बुराइयों , विकृतियों  से  घिरा  व्यक्ति  आपको  कभी  सच्चा  समाधान  दे  ही  नहीं  सकता  l  इसलिए  हमारे  आचार्य , ऋषियों  ने  कहा  है  --- यदि  समाधान  चाहिए  तो  उसे  अपने  भीतर  ही  खोजो  l  संसार  में  ऐसी  कोई  समस्या  नहीं ,  जिसका  समाधान  न  हो  l  यदि  अपने  प्रश्नों  का  उत्तर  चाहिए   तो  कुछ  समय  मौन  रहो  ,  सच्चे  ह्रदय  से  ईश्वर  को  पुकारो  ,  प्रत्येक  समस्या  का  समाधान अपने  भीतर  से  ही  आएगा  l  ईश्वर  हमें  कभी  स्वप्न  में या  किन्ही  भी   माध्यम  से  संकेत  देते  हैं   , जब   हमारा  मन  शांत  होगा  तभी  हम  उन  संकेतों  को  समझ  पाएंगे  ,  फिर  उन्हें   उन  संकेतों  को  समझकर  स्वीकार  करना , उसके  अनुरूप  आचरण  करना  हमारी  इच्छा  पर  निर्भर  करता  है  l  ---- महाभारत  का  महायुद्ध  होना  निश्चित  हो  गया  , उसे  रोकने  के  सारे  प्रयत्न  असफल  हो  गए  थे  l  महारथी  कर्ण   दुर्योधन   के  पक्ष  में  था  l   सूर्य  देव  को  अपने  पुत्र  की  चिंता  थी  ,  उस  समय  तक  कर्ण  स्वयं  को  सूत पुत्र  ही  समझता  था  l  लेकिन  पिता  तो  अपनी  संतान  को   नहीं    भूलते  l  एक  रात्रि   सूर्य  देव  कर्ण  के  स्वप्न  में  आए   और  उससे  कहा  ---- 'तुम्हारे  शरीर  पर  जन्मजात  कवच -कुंडल  है  ,  इन  कवच -कुंडल  के  रहते  किसी  भी  अस्त्र -शस्त्र  से  तुम्हारा  अहित  नहीं  होगा  l  कल  देवराज  इंद्र  तुमसे  यह  कवच -कुंडल  मांगने  आयेंगे ,  तुम उनकी  बातों  में  न  आना  l  मैं  जानता  हूँ  तुम  महादानी  हो  लेकिन  इन  कवच -कुंडल  का  दान  मत  करना  l  l इतना  कहकर  सूर्य देव  चले  गए  l    कर्ण  ने  उनकी  बात  नहीं  मानी   और  दूसरे  दिन  जब  ब्राह्मण  वेश  में   देवराज  इंद्र  उसके  पास  आए   तो  वह  यही  सोचकर  खुश  हुआ  कि  आज  स्वर्ग  उसके  द्वार पर  भिक्षा  मांगने  आया  है  ,  उसने  व्यवहारिक  पक्ष  को  समझा  ही  नहीं   और   बड़ी  प्रसन्नता  से   तलवार  से  अपने कवच -कुंडल  को  शरीर  से  अलग  कर  इंद्र  को  सौंप  दिया  l   यह  उसके  अंत  की   एक  और कील  थी  l   इसी  तरह  परम  पिता  परमेश्वर  हम  सभी  को   समय -समय  पर  विभिन्न  संकेत  देते  हैं  ,  हमें  जीवन  जीने  का  सही  मार्ग  सुझाते  हैं  l  ईश्वर  ने  हमें  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है  ,  हम  सही  राह  चुने  या  खाई  में  गिरें , यह  हमारा चुनाव  है  l  आज  जब  घोर कलियुग  है  l  देवत्व  को  मिटाकर ,  असुरता  अपना साम्राज्य स्थापित  करने  को  बेताब  है  ,  ऐसे  में  सुरक्षा  का  एक  ही  मार्ग  है  ---- स्वयं  को  ईश्वर  के  प्रति  समर्पित  करें और  प्रार्थना  करें  कि  वे  हमें  सद्बुद्धि  दें  ताकि  हम  ईश्वर  के  दिए  संकेतों  को  समझ  कर    सही  मार्ग  का  चयन  करें  l  संसार  में  आकर्षण  का  मायाजाल  इतना  घना  है  कि  मनुष्य  उस  आकर्षण  के  पीछे  दिन -रात  भागता  है  l  जब  मौन  रहकर   ईश्वर  से  प्रार्थना  करते  हैं  उस  समय  यदि  पल  भर  के  लिए  भी   यह  माया  का   परदा  हट  जाए   तो   हमारी  आत्मा  , हमारा  ईश्वर  हम  से  क्या  कहना  चाहते  हैं  ,  उसे हम  समझ  सकते  हैं  l  

8 December 2025

WISDOM ----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- "  ईर्ष्या  वह  काली  नागिन  है   जो  समस्त  पृथ्वी  -मंडल  में  जहरीली  फुफकारें  छोड़  रही  है  l  यह  गलतफहमियों   की  एक  गर्म  हवा  है  ,  जो  शरीर  के  अंदर   ' लू ' की  तरह  चलती  है   और  मानसिक  शक्तियों  को  झुलसाकर   राख  बना    देती  है  l "  आज  सम्पूर्ण  संसार  में   युद्ध , तनाव , धक्का -मुक्की  की  जो  विकट  स्थिति है   , उसका  कारण  ईर्ष्या  का  रोग  है  l व्यक्ति  धन संपन्न  हो , उच्च  पद  पर  हो  ईर्ष्या  के  रोग  से  उसका  पीछा  नहीं  छूटता  l  ईर्ष्या  की आग  इतनी  भयंकर  है   कि  इससे ईर्ष्यालु  व्यक्ति   का   तो  सुख -चैन समाप्त  हो  ही  जाता  है    और  जिससे  वह  ईर्ष्या  करता  है   उसका सुख -चैन  छीनने  में  वह  कोई  कसर  बाकी  नहीं  रखता  l पारिवारिक झगड़े , मुकदमे ,  संस्थाओं   में अशांति  , दूसरे  को  धक्का  देकर  आगे  बढ़ने  की  होड़  ,  इन  सबका  कारण  परस्पर  ईर्ष्या  ही  है  l  जीवन  जीने  की  कला कहती  है   कि  जो  ईर्ष्या  करता  है   उसे  उसका  काम  करने  दो  l यदि  वह  ईर्ष्यावश  तुम्हारी  ओर  पत्थर  फेंकता  है  ,  तो  उन  पत्थरों  से  सीढ़ी बनाकर  ऊपर  चढ़  जाओ  l  अपनी  प्रगति  पर , अपने  जीवन  को  व्यवस्थित  बनाने  पर  ध्यान  केन्द्रित  करो  l  अपने  मन  को  इतना  मजबूत  बनाओ  कि  दूसरे  हमारे  लिए  क्या  कहते  हैं  , हमारे  विरुद्ध  क्या  षड्यंत्र  रचते  हैं  , उससे  जरा  भी  विचलित  न  हो  l  वे  अपनी  ऊर्जा  व्यर्थ  के  कार्यों  में  बरबाद कर  रहे  हैं   तो  इसमें  उनका  ही  नुकसान  है  l  यदि  स्वयं  की  सोच  सकारात्मक  हो  तो  नकारात्मक  शक्तियों  का  आक्रमण  एक  चुनौती   बन  जाता है  l  चुनौती  का सकारात्मक  तरीके  से सामना  करने  में  ही   मनुष्य की  भलाई  है  l 

6 December 2025

WISDOM ------

 पुराणों  में  अनेक  कथाएं  हैं  , जिनमें  प्रत्येक  युग  और  प्रत्येक  परिस्थिति  के  लिए  मार्गदर्शन  है  l  ---- दुष्ट  और  जहरीले  व्यक्तियों   से  मित्रता   या  ऐसे  लोगों  को  आश्रय  देना  या  किसी  भी  तरह  का  संबंध   स्वयं  उसके  लिए  ही  कितना  घातक  होता  है  , यह  इस  कथा  से  स्पष्ट  है ----- राजा  जनमेजय  को   जब  यह  ज्ञात  हुआ  कि  उनके  पिता  महाराज  परीक्षित  की  तक्षक नाग  के  डसने  से  मृत्यु  हुई  , तो   उन्होंने  संकल्प  लिया  कि  वे  ' सर्प यज्ञ ' कर  के  इस  सम्पूर्ण  जाति  को  ही  नाश  कर  देंगे  l  सर्प यज्ञ  आरम्भ  हुआ  , प्रत्येक  आहुति  के  साथ   दूर -दूर  से  नाग -सर्प  आकर  उस  यज्ञ  अग्नि  में  भस्म  होने  लगे  l  तक्षक  नाग  को  जब  यह  पता  चला  तो  वह   स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  के  सिंहासन  से  लिपट  गया   , कहने  लगा -रक्षा  करो  l  इंद्र  ने  बिना  सोचे -समझे  उसे  शरण  दी  और  उसकी  रक्षा  का  वचन  दिया  l  उधर  जब  यज्ञ  में  तक्षक  नाग  के  नाम  की  आहुति  दी  जाने  लगी   तो  मन्त्र  शक्ति  के  प्रभाव  से    सिंहासन  पर  विराजमान  इंद्र  के  साथ  ही   वह   तक्षक  नाग  उस  यज्ञ   की  ओर  खिंचा  जाने  लगा  l  सम्पूर्ण  स्रष्टि  में  हाहाकार  मच  गया  कि  क्या   तक्षक  नाग  के  साथ  देवराज  इंद्र  की  भी  आहुति  हो  जाएगी   l  सभी देवी -देवता  वहां  एकत्र  हो  गए   और  जनमेजय  से  निवेदन  किया  कि  वह  इस  यज्ञ  को  अब  समाप्त  कर  दे  l  देवताओं  के  दखल  से  इंद्र  और  तक्षक  दोनों,  की  ही  रक्षा  हुई  l    कथा  कहती  है  कि   कलियुग  में  जब  असुरता  अपने  चरम  पर  है   तब  परिवार  हो , समाज  हो  या  कोई  भी   सरकार या  संगठन  हो   यदि  असुरता  को   शरण  दी  है , उससे  मित्रता  की  है  तो  परिणाम  घातक  होगा  l  इस  युग  की  मानसिकता  ऐसी  है  कि  सत्संग  का  असर  चाहे  न   हो  दुष्टता   अपना  रंग  दिखा  ही  देती  है  l  

2 December 2025

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " मनुष्य  की  अंतरात्मा  उसे  ऊँचा  उठने  के  लिए  कहती  है   लेकिन  सिर  पर  लदी   दोष  दुर्गुणों  की   भारी  चट्टानें   और  दुष्प्रवृत्तियों   उसे  नीचे  गिरने  को  बाधित  करती  हैं  l  स्वार्थ  सिद्धि  की  ललक  उसकी  बुद्धि  को  भ्रमित  कर   देती  है l  वह  लाभ  को  हानि  और  हानि  को  लाभ  समझता  है   l  आचार्य श्री  कहते  हैं ----- ' भूल  समझ  आने  पर   उलटे  पैरों  लौट  आने  में  कोई  बुराई  नहीं  है  l  मकड़ी  अपने  लिए  अपना  जाल  स्वयं  बुनती  है  l  उसे  कभी -कभी  बंधन  समझती  है   तो  रोती - कलपती  भी  है  ,  किन्तु  जब  भी  वस्तुस्थिति   की  अनुभूति  होती  है   तो  वह  समूचे  मकड़जाल  को  समेटकर  उसे  गोली  बना  लेती  है   और  पेट  में  निगल  जाती  है   और  अनुभव  करती  है  कि  सारे  बंधन  कट  गए  और  वेदनाएं सदा -सदा  के  लिए   समाप्त  हो  गईं  l  इसी  तरह  मनुष्य  भी  अपने  स्तर  की  दुनिया   अपने  हाथों  रचता  है  , वही अपने  हाथों  गिरने  के  लिए  खाई  खोदता  है  l  वह  चाहे  तो  उठने  के  लिए    समतल  सीढ़ियों  वाली  मीनार  भी  चुन  सकता  है  l " 

WISDOM ----

 वैष्णव  सम्प्रदाय  के  आचार्य  संत  रामानुज  को  गुरु  मन्त्र  देते  हुए  उनके  गुरु  ने  सावधान किया  कि  --'मन्त्र  को  गोपनीय  रखना  l  संत  रामानुज   मन्त्र जप  के  साथ  ही  यह  विचार  करने लगे  --यह  अमोघ  मन्त्र   मृत्युलोक  की   संजीवनी  है  , यह  जन -जन  की  मुक्ति  का  साधन  बन  सकता  है  , तो  गुप्त  क्यों  रहे  ?   उन्होंने  गुरु  की  अवज्ञा  कर  के  वह  मन्त्र  सभी  को  बता  दिया   l  एक  स्थान  पर  गुरु  ने  अपने  शिष्य  को  सामूहिक  पाठ  करते  हुए  सुना   तो  वे  क्रुद्ध  हो  गए  और  बोले  ---"  रामानुज ,  तूने  गोपनीय  मन्त्र  को  प्रकट  कर  पाप  अर्जित  किया  है  l  तो  नरकगामी  होगा  l "  रामानुज  ने  गुरु  के  चरण  पकड़  लिए   और  पूछा  --- " देव  !  मैंने  जिन्हें मन्त्र  बताया  , क्या  वे  भी  नरकगामी  होंगे  ? "   गुरु ने  कहा  ---- " नहीं  ये  तो  मृत्युलोक  के  आवागमन  से  मुक्त  हो  जाएंगे  l  उन्हें  तो  पुण्य  लाभ  ही  होगा  l "  रामानुज  के  मुख -मंडल  पर  संतोष  की  आभा  चमक  उठी   "  यदि  इतने  लोग   मन्त्र  के  प्रभाव  से  मोक्ष  प्राप्त  करेंगे