भगवान बुद्ध अपने ज्ञान का प्रकाश संसार को दे रहे थे l एक सेठ भी उनका प्रवचन नियमित सुनता था l उसने तथागत से कहा --- भगवन ! मैं नियमित प्रवचन सुनता हूँ लेकिन मेरे मन में शांति नहीं है l ईश्वर की कृपा कैसे मिले ? महात्मा बुद्ध ने उस समय तो कुछ नहीं कहा l दूसरे दिन वे उस सेठ के घर पहुंचे , उनके आने की सूचना मिलने पर उसने बड़े प्रेम से उनके लिए खीर बनवाई और उनके कमंडल में देने लगा l उसने आश्चर्य से देखा कि कमंडल में तो गोबर भरा हुआ है l उसने कमंडल उठाया , उसे अच्छी तरह साफ़ किया , फिर उसमें खीर रखी l खीर रखने के बाद वह तथागत से बोला ---- " भगवन ! कहीं भिक्षा हेतु पधारा करें तो अपना कमंडल साफ़ करके ही लाया करें l गंदे पात्र में खीर रखने से आहार की पवित्रता नष्ट हो जाएगी l " भगवान बुद्ध शांत भाव से बोले --- " वत्स ! भविष्य में कभी आऊंगा तो कमंडल साफ कर के ही लाऊंगा l तुम भी अपना कमंडल साफ रखा करो l " सेठ ने आश्चर्य से कहा --- " कौन सा कमंडल ? " तथागत बोले ---- " यह तन रूपी कमंडल ! मन में मलिनता भरी रहने से जीवन भी कलुषित हो जाता है l मन को शांति नहीं मिलती और भगवान की कृपा भी उसमें ठीक से कार्य नहीं करती l " सेठ को बात समझ में आ गई और अब वह भी अपने दोष -दुर्गुणों को मिटाने में जुट गया l
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