4 August 2025

WISDOM -----

   संसार  के  लगभग  सभी  देशों  में   धर्म , जाति , रंग ,  ऊँच -नीच , अमीर -गरीब  आदि  के  आधार  पर   भेदभाव   प्राचीन  काल  से  ही  रहा  है   और  इस  वैज्ञानिक  युग  में  भी   इस  प्रकार  के  भेदभाव  समाप्त  नहीं  हुए  l  ऐसी  बेवजह  की  बातों  पर  विवाद , युद्ध , दंगे  आदि  कर  के  मनुष्य  ने   बहुत  कुछ  खोया  है  l  भौतिक  प्रगति  तो  हो  गई   लेकिन  चेतना  के  स्तर  पर   आज  मनुष्य  कहाँ  पर  है   इसे  संसार  में  होने  वाले  युद्ध , हत्याकांड , आत्महत्या , और  धन  कमाने  की  अंधी  दौड़  को  देखकर  समझा  जा  सकता  है  l  यदि  मनुष्य  की  चेतना  विकसित  हो  , उसमें  अहंकार  न  हो  तो  वह  जीवन  में   घटने  वाली  अनेक  घटनाओं  के  पीछे  की  वजह  समझ  जाता  है   और  उनसे  लाभान्वित  होता  है  l ---------- महाभारत  में  जब  चौसर  के  खेल  में  पराजित  होने  पर  पांडवों  को  वनवास  हुआ  l  उस  समय  दिव्य  अस्त्रों   को  प्राप्त  करने  के  लिए  अर्जुन  ने  महादेव  को  प्रसन्न  करने  के  लिए  तप  किया  l  ईश्वर  से  कुछ  प्राप्त  करना  हो  तो  बड़ी  परीक्षाएं  देनी  पड़ती  हैं  l  अर्जुन  जिस  वन  में  तप  कर  रहा  था  वहीँ  महादेव  जी  व्याध  के  रूप  में  शिकार  करने   उसी  वन  में  पहुंचे  l  वे   एक  जंगली  सुअर  का  पीछा  कर  रहे  थे  l  सामने  अर्जुन  को  देख   सुअर  उस  पर  झपटा  l  अर्जुन  चौंक  गया  और  तुरंत  अपने  गांडीव  से  बाण  चला  दिया  l  उसी  समप  व्याध  रूप  धारी  महादेव  ने  भी  सूअर  पर  तीर  चला  दिया  l  दोनों  के  तीर  एक  साथ  लगे  l  अपने  शिकार  पर  एक  शिकारी  को  हमला  करते  देख  अर्जुन  को  क्रोध  आया   उसने  शिकारी  से  कहा --- ' तुमने  मेरे  शिकार  पर  अपना  तीर  चलाने  की  हिम्मत  कैसे  की  ?  '   दोनों  में  बहुत  विवाद  हुआ  कि  किसका  तीर  पहले  लगा  ?   विवाद  इतना  बड़ा  कि  यह  निश्चय  हुआ  कि  आपस  में  लड़कर  निश्चय  हो  कि  किसके  तीर  से  शिकार   मरा  है  l  अर्जुन  ने  व्याध  पर   बाणों   की  वर्षा  की  l  जितने  भी  उसके  पास  बाण  थे  , सब  चला  दिए  लेकिन  व्याध  पर  कोई  असर  नहीं , वह  हँसता  रहा  और  उसने  हँसते  हुए  अर्जुन  के  हाथ  से  उसका  धनुष  छीन  लिया  l  अर्जुन  ने  तलवार  से  मारा  तो  तलवार  टूट  गई ,  अब  अर्जुन  ने  घूंसे  मारना  शुरू  किया   लेकिन  व्याध  पर  कोई  असर  नहीं  , वह  मुस्कराता  रहा  l  अर्जुन  का  दर्प  चूर -चूर  हो  गया , अपना  घमंड  छोड़कर  उसने  देवाधिदेव  महादेव  का  ध्यान  किया  , ईश्वर  की  शरण  ली  तो  उसके  मन  में  ज्ञान  का  प्रकाश  फ़ैल  गया  , वह  समझ  गया  कि  ये  व्याध  नहीं  साक्षात्  महादेव  हैं  , अर्जुन  उनके  चरणों  में  गिर  गया  , उनसे  क्षमा  मांगी  l  महादेव  ने  प्रसन्न  होकर  अर्जुन  को  पाशुपत  अस्त्र  और  अनेक  दिव्य  अस्त्र  तथा  अनेक  वरदान  दिए  l     यहाँ  अर्जुन  ने  अपने  अहंकार  को  छोड़ा  और  ईश्वर  के  प्रति  शरणागत  हुआ  तब  उसे  ईश्वर  की  कृपा  मिली  l  -------------  एक  दूसरी  कथा  है  ------ उत्तंक  मुनि  मरुभूमि  के  आसपास  घूमने  वाले  तपस्वी  थे  l  जब जब  भगवान  श्रीकृष्ण  पांडवों  से  विदा  लेकर  द्वारका  लौट  रहे  थे  तब  मार्ग  में  उनकी  भेंट  उत्तंक  मुनि  से  हुई  l  उनसे  प्रसन्न  होकर  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  उनसे  कहा  --- 'मुनिवर !  मैं  आपको  कुछ  वरदान  देना  चाहता  हूँ  , जो  चाहें  मांग  लो  l ' उत्तंक  मुनि  ने  कहा --- "  भगवन  आपके  दर्शन  हो  गए  , अब  किसी  वरदान  की  चाह  नहीं  है  l ' भगवान  ने  उनसे  आग्रह  किया  कि कोई  वरदान   मांग  लो  ! '  उत्तंक  मुनि  मरुभूमि  में  घूमते थे  इसलिए  उन्होंने  कहा  ---" प्रभो  !  आप  इतना  वरदान  दें  कि  मुझे  जब  भी  और  जहाँ  कहीं  भी  जल  की  आवश्यकता  हो  , मुझे  वहीँ  जल  मिल  जाए  l '  भगवान  वरदान  देकर  द्वारका  चले  गए  l   बहुत  दिन  बाद  उत्तंक  मुनि  वन  में  फिर  रहे  थे  ,  उन्हें  बड़ी  प्यास  लगी  , उन्होंने   श्रीकृष्ण  का  ध्यान  किया  ,  तुरंत  ही   उन्हें  सामने  एक  चाण्डाल  खड़ा  दिखाई  दिया  ,  उसने  फटे -पुराने  चीथड़े  पहन  रखे  थे  , साथ  में  चार -पांच  जंगली  कुत्ते  थे  और  कंधे  पर  मशक  में  पानी  था  l  चांडाल  बोला  --- "  मालूम  होता  है  आप  प्यास  से  परेशान   हैं  l  यह  लीजिए   पानी  l '   चांडाल  की  गन्दी  सूरत , उसकी  चमड़े  की  मशक   और  कुत्तों  को  देखकर  उन्होंने  नाक -भौं  सिकोड़  ली   और  उसका  पानी  लेने  से  इनकार  कर  दिया    उत्तंक  मुनि  को  बहुत  क्रोध  आया  कि  श्रीकृष्ण  ने  मुझे  झूठा  वरदान  कैसे  दिया ,  मैं  ब्राह्मण  , उस  चांडाल  के  हाथ  का  , मशक  का  गन्दा  पानी  कैसे  पी  सकता  हूँ  ? '  उसी  समय  चांडाल  अचानक  कुत्तों  समेत   आँखों  से  ओझल  हो  गया  l  अब  उत्तंक  मुनि  समझे  कि  यह  तो  उनकी  परीक्षा  थी  ,  उनसे  भारी  भूल  हो  गई  ,  मेरे  ज्ञान  ने  समय  पर  मेरा  साथ  नहीं  दिया  l  थोड़ी  देर  में  भगवान  श्रीकृष्ण   शंख , चक्र  लिए  उनके  सामने  प्रकट  हुए  l  श्रीकृष्ण  ने  कहा --- " मुनिवर  !  आपने  पानी  की  इच्छा  की  थी  तो  मैंने  देवराज  से  आग्रह  किया  कि  मुनि  को  अमृत  ले  जाकर  पिलाओ  l  तब  देवराज  ने  कहा  कि  मैं  चांडाल  के  रूप  में  जाऊँगा  , यदि  मुनि  ने  इनकार  कर  दिया   तो  नहीं  पिलाऊंगा  l  ' कृष्णजी  ने  कहा   मैंने  सोचा  था  कि  आप  ज्ञानी   और  महात्मा  हैं , आपके  लिए  तो  चांडाल  और  ब्राह्मण  समान  होंगे   और  चांडाल  के  हाथ  का  पानी  पीने  में  आप  संकोच  नहीं  करेंगे   लेकिन  स्वयं  को  श्रेष्ठ  समझने  के  कारण  आप  अमृत  से  वंचित  रह  गए  l  "  उत्तंक  मुनि  अपनी  गलती  पर  बहुत  लज्जित  हुए   लेकिन  अब   क्या  हो  सकता  है  ?  देवराज    अमृत  लेकर  वापस  जा  चुके  थे  l  

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