30 September 2024

WISDOM ----

   यमराज  ने  एक  बार  मृत्यु  को  एक  क्षेत्र  से  पांच  हजार  आदमी  मारकर  लाने   के  लिए  भेजा  l  जब  वह  झोली  भरकर  लाई   तो  गिनने  पर  वो  पंद्रह  हजार  निकले   l  जवाब  तलब  हुआ   कि  इतने  अधिक  क्यों  ?   मृत्यु  ने  सबूत  सहित   सिद्ध  किया  कि   बीमारी  से  तो   पांच  हजार  ही  मरे  हैं  l  शेष  तो  डर  के  मारे    बिना  मौत  ही  मर  गए   और  परलोक  आने  वाली  भीड़  के  साथ  जुड़  गए   l  

29 September 2024

WISDOM ----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "  कायरता  मनुष्य  का  बहुत  बड़ा  कलंक  है  l  कायर  व्यक्ति  ही  संसार  में  अन्याय , अत्याचार  तथा  अनीति  को  आमंत्रित  किया  करते  हैं  l  संसार  के  समस्त  उत्पीड़न  का  उत्तरदायित्व  कायरों  पर  है  l  "   कलियुग  की   अनेक  विशेषताएं  हैं   लेकिन  यह  एक  ऐसी  विशेषता  है   जिससे  कोई  भी  छोटी  से  छोटी  और  बड़ी  से  बड़ी  संस्था , संगठन , कार्यालय  , कला,   साहित्य , राजनीति ------- आदि  कोई  भी  क्षेत्र  अछूता  नहीं  बचा  है  l  लोग  स्वयं  को  सर्वश्रेष्ठ , सभ्य , संभ्रांत  दिखाने  के  चक्कर  में  भीतर  से  खोखले  हो  गए  हैं  l  ऐसे  लोग  सामने  से , प्रत्यक्ष  रूप  से  कोई  विवाद  नहीं  करते ,  उनका  आचरण   इतना  उच्च  कोटि  का  होगा  कि  आप  यह   समझ  ही  न  पाओगे  कि  उनके  भीतर  कौन  सा  असुर  छिपा  है  l  सामने  मीठा  बोलते  हुए  वे  कायरों  की  भांति  पीठ  में  खंजर  भोंकते  हैं  l  दूसरों  की  योग्यता  से  ईर्ष्या ,  अहंकार  , लालच  ,  योग्यता  न  होने  पर  दूसरों  को  धक्का  देकर  आगे  बढ़ने  की  प्रबल  महत्वाकांक्षा    ---ये  ऐसे  कारण  है   कि   व्यक्ति   धोखा , छल , कपट  षड्यंत्र  रचता  है   जिससे  उसका  असली  चेहरा  समाज  के  सामने  न   आए  और  उसका  उदेश्य  भी  पूरा  हो  जाए  l   आचार्य  श्री  लिखते  हैं  ---- "  सच्चाई  को  छिपाया  नहीं  जा  सकता  l  मनुष्य  के  व्यक्तित्व  में  इतने  छिद्र  हैं  जहाँ  से  होकर  सत्य  बाहर  आ  ही  जाता  है  l  "  कुछ  वर्षों  पहले  जब  डाकुओं  की  समस्या  थी   तब  अनेक  डाकू  ऐसे  थे   जो  यह  घोषणा  कर  के  आते  थे  कि  हम  अमुक  गाँव  में  डाका  डालेंगे  ,  उनके  अपने  सिद्धांत  थे  लेकिन  शिक्षा  के  प्रचार -प्रसार  से    लोगों  को  यह  अच्छा  नहीं  लगा  कि  समाज  और  आने  वाली  पीढियां   उन्हें  ऐसे  अपराधी  के  रूप  में  पहचाने  l  इसलिए  अब  ऐसी  प्रवृत्ति  के  लोगों  ने  अपने  ऊपर  सफ़ेद  पोश   ओढ़  लिया  l  इसका  सबसे  बड़ा  नुकसान  यह  हुआ  कि  पहले  डाकू  एक  निश्चित  क्षेत्र  में  होते  थे  ,  उनकी  पहचान  थी   लेकिन  अब  शराफत  का  आवरण  ओढ़  लेने  के  कारण  वे  सम्पूर्ण  समाज  में  व्याप्त  हो  गए   और  लोगों  को   लूटने  के  भी  नए -नए  तरीके  हो  गए   l  अब  यह  समस्या  कैसे  हल  होगी  ?  यह  तो  समझ  के  बाहर  है  l  कलियुग  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  है  कि  सब  लोग  ईश्वर  से  सद्बुद्धि  की  प्रार्थना  करें  l  

27 September 2024

WISDOM ------

  स्वार्थ , लालच , अहंकार , तृष्णा , कामना , वासना  , लोभ  , ईर्ष्या , द्वेष  , महत्वाकांक्षा  --- ये  बुराइयाँ  थोड़ी - बहुत  तो  सभी  में  होती   हैं  l  अल्प  मात्र  में  इनका  होना  नुकसानदेह  नहीं  होता  ,  इनकी  वजह  से  ही  व्यक्ति  तरक्की  की  राह  पर  आगे  बढ़ता  है   l    यही  बुराइयाँ  जब  किसी   व्यक्ति    में  अति  की  हो   जाती  हैं   तो  उससे  उसका  नुकसान  तो  बहुत  बाद  में  होता  है  ,  ऐसे  दुर्गुणों  से  ग्रस्त  व्यक्ति  अपना  संगठन  बना  लेते  हैं   l  बुराई  में  तुरत  लाभ  के  कारण  इस  क्षेत्र  में  आकर्षण  तीव्र  होता  है   और  ऐसे  लोग  बहुत  जल्दी  एक  बड़ा  संगठन  बनाकर   समाज  में  धोखा , छल , कपट , षड्यंत्र  जैसे  छुपे  हुए  अपराधों  का  हिस्सा  बन  जाते  हैं   l  इन  दुर्गुणों  की  अति   से  व्यक्ति  की  संवेदना  समाप्त  हो   जाती  है  ,  वह  केवल  अपना  स्वार्थ  देखता  है  l  इस  स्वार्थ  पर  किसी  की  भी  जिन्दगी  पर  खतरा  आ  जाए  उन्हें  कोई  फर्क  नहीं  पड़ता  l   भ्रष्टाचार , बड़े -बड़े  घोटाले ,  जघन्य  अपराध , परिवार  में  होने  वाली  हत्याएं , मुकदमे   आदि  इन  दुर्गुणों  की  अति  के  ही  दुष्परिणाम  है   l  सन्मार्ग  पर  चलने  वालों  की  संख्या  बहुत  कम  है , आसुरी  तत्व  उन्हें  चैन  से  जीने  नहीं  देते  l  वे  हमेशा  भयभीत  रहते  हैं  कि  प्रकाश  होगा  तो  अंधकार  का  अस्तित्व  ही  समाप्त  हो  जायेगा   l  आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोगों  की  संख्या  बहुत  अधिक  होने  से   सबसे  बड़ी  समस्या  यह  होती  है  कि  कौन  किसे  दंड  दे ,  किसकी  शिकायत  करे  ?  सब  एक  नाव  में  सवार  हैं  l  ऐसे  में  कोई  ईश्वरीय  चमत्कार  ही  परिवर्तन  ला  सकता  है  l  

26 September 2024

WISDOM -------

    इस  धरती  पर  अनेक  सभ्यताओं  का  उदय  हुआ  और  अस्त  हुआ  l  ईश्वर  कभी  विनाश  नहीं  चाहते  ,  उन्हें  इस  स्रष्टि  में  धरती  बहुत  प्रिय  है  , वे  इसे  बहुत  सुंदर , खुशहाल  देखना  चाहते  हैं   लेकिन  कभी   ऐसी  परिस्थिति  निर्मित  हो  जाती  हैं  कि  ईश्वर  भी   निर्लिप्त  भाव  से  इस  विनाश  को  देखते  हैं  l  एक  अति  प्राचीन  सभ्यता   जो  बहुत  विकसित  थी  , युगों  तक  कायम  रही  लेकिन  अचानक  कुछ  हुआ  कि   उस  सभ्यता  का  नामोनिशान  मिट  गया  l  यह  सब  अचानक  नहीं  हुआ  , उसकी  किवदंती  है  ------   उस  प्राचीन  सभ्यता  में  सब  लोग  बहुत  खुश  थे  , स्वस्थ  थे  l  प्रेम  था , भाईचारा  था  l  शिक्षा , कला , साहित्य ----- जीवन   का  प्रत्येक  क्षेत्र   बहुत  विकसित  , सुंदर , सुहावना  था  l  लोग  इस  सत्य  को  जानते  थे  कि   ये  धरती , ये  मिटटी , हवा ,   जल , आकाश  को  हम  नहीं  बना  सकते  ,  कोई  अज्ञात  शक्ति  है   जिसने  यह  सब  बनाया  , वो  सर्वसमर्थ  है   इसलिए  हमें  उस  अज्ञात  शक्ति  के  आगे  अपना  शीश  झुकाना  चाहिए  l  तब  उस  सभ्यता  के  जो  बुद्धिजीवी  थे  उन्होंने  अपने -अपने  विचारों  के  अनुसार   उस  अज्ञात  शक्ति  को  एक  रूप  दिया  l   अनेक  रूप  थे  और  जिसको  जो  अच्छा  लगा , वह  उसके  आगे  शीश  झुकाने  लगा  l  वह  सभ्यता  अति  संपन्न  थी ,  जैसे  लोग  बड़े  महलों  में  सुखपूर्वक  रहते  थे  वैसे  ही  उन्होंने   उस   अज्ञात   शक्ति  के  लिए  भी  बड़े -बड़े  महल  बना  दिए  l  बड़ा  मोहक  वातावरण  था  l  इस  अति  की  सुख -शांति   की  खबर  आसुरी  शक्तियों  को   मिल  गई  ,  सीधे  रास्ते  बात  बन  नहीं  रही  थी  , उन्होंने  अपने  तरीकों  से  लोगों  के  मन  और  विचारों  में  गंदगी  भरनी  शुरू  कर  दी  l  विचारों  की  इस  गंदगी  को  व्यवहारिक  रूप  देना  था   और  संसार  में  स्वयं  को  सर्वश्रेष्ठ  भी  दिखाना  था  , इसके  लिए  उन्होंने   अज्ञात  शक्ति  के  लिए  जो  बड़े -बड़े  महल  बने  थे  , उन्हें  निशाना  बनाया  l  सामान्य  जन  तो  अभी  भी  वहां  श्रद्धा  से  अपना  शीश  झुकाने  जाता  था  , उसके  प्रति  अपना  आभार  व्यक्त  करता   कि  हे  धरती  माँ , जल  ,वायु , आकाश   हम  आपके  ऋणी  है   लेकिन  आसुरी  प्रवृति  के  लोगों  ने  उन  विशाल  महलों  की   अपनी  कामना , वासना , लालच , स्वार्थ , महत्वाकांक्षा   और  अतृप्त  इच्छाओं  की  पूर्ति  का  स्थान  बना  लिया  l  सामान्य  जन  को  उनकी  इन  करतूतों  की  भनक  न  लग  जाए  इसकी  भी  पर्याप्त  व्यवस्था  की ,  और  यदि  जनता  को  खबर  लग  जाये  तो  उन्हें  कंट्रोल  करने  के  साधन  भी  एकत्रित  कर  लिए   l  सामान्य जन  तो  बेखबर  था   लेकिन  ईश्वर  तो  सब  देख  रहे  थे   l  पाप  , अनाचार  की  अति  हो  गई   , प्रकृति  से  यह  सब  सहन  नहीं  हुआ  l  भयंकर   आँधी  , तूफ़ान , वर्षा ,   प्रलय  की  स्थिति  आ  गई   और  एक  भयानक  भूकंप  के  साथ  वह  सभ्यता  धरती  में  समा  गई   l  कुछ  लोग  जो  बच  गए  वे  आकाश  की  ओर  देखकर   बार -बार  पूछ  रहे  थे , प्रार्थना  कर  रहे  थे  कि  आखिर  ऐसा  क्यों  हुआ   ?   उनकी  आँखों  से  निरंतर  आँसू  गिर  रहे  थे  , ऐसा  क्यों  हुआ  ?   क्या    कुसूर  था  ?  ब्रह्माण्ड  से  एक  ही  आवाज  आई  --- ईश्वर  को  धोखा  दिया  , धोखा --- ---- उनकी  पवित्रता  को  नष्ट  किया  , सामान्य  जन  भी  जागरूक  नहीं  था  l  '  

24 September 2024

WISDOM ------

   आज  संसार  की  सबसे  बड़ी  समस्या  यह  है  कि  मनुष्य  की  चेतना  सुप्त  हो  गई  है  l  प्रत्येक  व्यक्ति  केवल  धन  के  पीछे  दौड़  रहा  है  ,  कितना  धन  कमा  ले , उससे  कितना  ऐश  कर  ले , कितना  आगे  की  पीढ़ियों  के  लिए  छोड़   दे  l  यह  छोड़ना  भी  एक  मज़बूरी  है , व्यक्ति  का  वश  चले  तो  वह  भी  बांधकर  ले  जाए  l   इस  तृष्णा  ने  सारी  सीमाएं  तोड़  दी  हैं  l  जो  हथियार  बनता  है  , वह  चाहता  है  कितने  युद्ध  हों  ताकि  उसका  धन  का  भंडार  बढ़ता  जाए  l  दवाई , इंजेक्शन  बनाने  वाले  की  इच्छा  है   कि  कितने  ज्यादा  लोग  बीमार  हो , बीमारी , महामारी  हो  जिससे  वह  अपनी  अमीरी  की  छाप  छोड़  सके l  बिल्डिंग  आदि  निर्माण  से   जुड़ा   व्यक्ति  सोचता  है   , जल्दी  टूटने  वाली  हो  जिससे  आमदनी  का  स्रोत  बना  रहे  l  शिक्षक , कलाकार , व्यापारी  हर  व्यक्ति   अपनी  बुद्धि    से   अपने  क्षेत्र  में  अतिरिक्त   धन  कमाने  के     उचित -अनुचित  किसी  भी  तरीके  से   अमीर   बनने  के  रास्ते  खोज  लेता  है   l  केवल  जीवन  का  यही  उदेश्य  रह  गया  है  l  धन  जीवन  के  लिए  बहुत  जरुरी  है , , सभी  आवश्यकताएं  धन  से  ही  पूरी  होती  हैं   लेकिन  अपनी  अनंत  आवश्यकताओं  के  लिए  व्यक्ति  अनैतिक , अमानवीय  तरीके  इस्तेमाल  करता  है , वह  गलत  है   l  धन  के  बल  पर  व्यक्ति  कानून  से  भी  बच  जाता  है ,  गलत  रास्ते  पर  चलकर  भी  सम्मानित  जीवन  जीता  है  l  लेकिन  ईश्वर  का  न्याय  तो  होता  है  l   इस  युग  में  मनुष्य  की  चेतना  सुप्त  इसलिए  कही   जाती  है  क्योंकि  ऐसे  लोगों  के  जीवन  में  कोई  बड़ा  दुःख  आ  जाये ,  भयंकर  बीमारी  आ  जाये   तब  भी  वे  लोग   सुधरते  नहीं  l   उनके  अहंकार  के  कारण  यह  बात  उनके   चिन्तन  में  ही  नहीं  आती  कि  उनके  गलत  कार्यों  की  वजह  से  ही  प्रकृति  उन्हें  दंड  दे  रही  है  l   l  मरणासन्न  स्थिति  में  पहुंचकर   यदि  पुन:  थोड़े  भी  स्वस्थ  हो  जाएँ  तो  फिर  से  पाप  कर्म  में  जुट  जाते  हैं  l  कलियुग  की  यही  सबसे  बुरी  बात  है  कि  व्यक्ति  सुधरना  ही  नहीं  चाहता   l  संसार  में  ऐसे  लोगों  की  अधिकता  है  l  सन्मार्ग  पर  चलने  वाले  बहुत  कम  हैं  l  यह  युग  का  असर  है  कि   सन्मार्ग  पर  चलने  वालों  को  आसुरी  शक्तियां  अपने  दलदल  में  घसीटने  की   जी -तोड़  कोशिश  करती  हैं  l  असत्य  का  बोलबाला  है , सत्य  उपेक्षित  है  l  

22 September 2024

WISDOM -------

  इस  धरती  पर  एक -से -बढ़कर  एक  महान  ऋषि -मुनि , योगी , तपस्वी  हुए  हैं  ,  जिनका  ईश्वर  से  साक्षात्कार  हुआ  l  इन  महान  आत्माओं  ने  संसार  को  जो  दिया   वह     अमूल्य  है   और  आज  भी  वे  अप्रत्यक्ष  रूप  से  इस  धरा  को  बचाने  के  लिए  प्रयत्नशील  हैं  l  आज  स्थिति  भयावह  है  क्योंकि  मनुष्य   इतना  बुद्धिमान  हो  गया  है  कि  अब  मनुष्य  , मनुष्य  से  ही  भयभीत  है  l  कलियुग  की  यही  सबसे  बड़ी  विशेषता  है  कि  इस  युग  में  मनुष्य  इतना  चतुर  हो  गया  है  कि  वह  भगवान  को  भी  धोखा  दे  सकता  है  ,  फिर  घर -परिवार में , समाज  में   और  संसार  में  धोखा   देना , छल -कपट , षड्यंत्र  रचना  उसके  बांये  हाथ  का  खेल  है  l  रावण  के  तो  दस  शीश  संसार  के  सामने  स्पष्ट  थे   लेकिन  आज  मनुष्य  के  जितने  शीश  हैं  उनकी  तह  तक  पहुंचना  असंभव  है  l  व्यक्ति  सामने  कुछ  है  और  परदे  के  पीछे  उसका  दूसरा  रूप  है  l  यह  स्थिति  समाज  के  लिए  तो  घातक  है  ही  लेकिन  उस  व्यक्ति  के  लिए  महा घातक  है   क्योंकि  अनेक  रूप  होने  से  व्यक्ति  स्वयं  भूल  जाता  है  कि  वह  वास्तव  में  है  कौन  ?  और  यहाँ  से  शुरू  हो  जाता  है   मानसिक  असंतुलन , बीमारी , विकृति  , तनाव  l   मनुष्य  की   अतृप्त  कामनाएं , वासना , तृष्णा , महत्वाकांक्षा   उसे  विभिन्न  रूप  रखने  को  विवश  करती  हैं  l -------  बार -बार  रंग  बदलने  की   अपनी  पटुता  का  प्रदर्शन  करते  हुए   गिरगिट  ने  कछुए  से  कहा  ---- महाशय  !  देखा  मैं  संसार  का  कितना  योग्य  व्यक्ति  हूँ   l "  कछुए  ने  धीरे  से  कहा --- "  महाशय  !  दूसरों  को  धोखा  देने  की   इस  योग्यता  से   तो  तुम   अयोग्य   ही  बने  रहते   तो  अच्छा  था  l  कम -से -कम  लोग  भ्रम   में  तो  न  पड़ते  l 

21 September 2024

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    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  की  अमृतवाणी   के  कुछ  अंश ------   तप  का  अर्थ  है  --आत्म परिष्कार  के  लिए  तितिक्षा  करना  , कष्ट  सहना  l  तपाने  से  ईंट  मंदिर  की  नींव  में  लगती  है  l  तपाने  से   भस्म  खाने  योग्य  बनती  है  l  हमें  अपना  जीवन  मुसीबतों  से  खिलवाड़  करने  वाला  बनाना  चाहिए   l  शक्तियों  का  बिखराव  हम  रोकें   एवं  उन्हें  सृजन  में  नियोजित  करें   l  व्यावहारिक  जीवन  जीते  हुए  , संघर्ष  करते  हुए  , दुःखों  का  सामना  करते  हुए   जो  तपकर  कुंदन  की  तरह  दमकता  है  , वही  सही  अर्थों  में  तपस्वी  है  l  '                                                      ' मनुष्य  जीवन  पानी  का  बुलबुला  है  l  वह  पैदा  भी  होता  है   और  मर  भी  जाता  है  l  किन्तु  शाश्वत  रहते  हैं   उसके  कर्म  और  विचार  l  सदविचार  ही  मनुष्य  को   सत्कर्म  करने  के  लिए  प्रेरित  करते  हैं   और  सत्कर्म  ही  मनुष्य  का  मनुष्यत्व  सिद्ध  करते  हैं   l  मनुष्य  के  विचार  ही  उसका  वास्तविक  स्वरुप  होते  हैं  l  ये  विचार  ही  नए -नए  मस्तिष्कों  में  घुसकर   ह्रदय  में  प्रभाव  जमाकर   मनुष्य  को  देवता  बना  देते  हैं    और  राक्षस  भी  l  जैसे  विचार  होंगे   मनुष्य  वैसा  ही  बनता  जायेगा  l '                                                                                              '  मानव  जीवन  दुबारा  नहीं  मिलता   l  वह  क्षय  हेतु  नहीं  ,   गरिमा  के  अनुरूप  शानदार  जीवन   जीने  को  मिला  है  l  यह  हमें  स्वयं  ही  निश्चित  करना  है  कि  पतन  अभीष्ट  है   या  उत्कर्ष   ?   असुरता  प्रिय  है   या  देवत्व  ?   क्षुद्रता  चाहिए  या  महानता  ?   इसके  निर्माता  तुम  स्वयं  हो   l  पतन  के  पथ  पर   नारकीय  मार  सहनी  पड़ेगी  ,  उत्कर्ष  के  पथ  पर    स्वर्ग  जैसी  शांति  की  प्राप्ति  होगी   l  '                                                                               '  कहाँ  छिपा  बैठा  है   सच्चा  इनसान  ,  ढूंढते  जिसे  स्वयं  भगवान  l  '  

WISDOM ----

 राजा  रणजीत  सिंह  का  शासन  काल  था  l  प्रजा  सुखी  थी  l  उनके  पराक्रम  व  न्यायप्रियता   की  ख्याति  सर्वत्र  थी  l  एक  दिन  वे  नगर  भ्रमण  को  निकले   कि  एक  पत्थर  उनके  सिर  पर  आकर  लगा  l  खून  की  धारा  बह  निकली  l  सैनिकों  ने   अपराधी  को  पकड़ा   तो  पता  चला  कि  वह  एक  गरीब  विधवा  महिला  थी  l  उसे  राजा  के  सम्मुख  प्रस्तुत  किया  गया  l  राजा  रणजीत  सिंह  ने  उससे  पत्थर  फेंकने  का  कारण  पूछा   तो  वह  महिला  महिला  बोली ---- " महाराज  !  मैं  विधवा  हूँ  l  मेरे  दो  छोटे -छोटे  बच्चे  हैं  l  आमदनी  का  मेरे  पास  कोई  साधन  नहीं  है  l  मेरे  बच्चों  को  भूख  लगी  थी  l  सामने  बेर  के  पेड़  पर   पके  बेर  देखकर   उन  पर  निशाना  लगाकर   पत्थर  फेंका  ,  पर  वह  भूलवश  आपको  लग  गया  l  यदि  मुझे  पता  होता  कि  आप  यहाँ  से  निकल  रहे  हैं  ,  तो  मैं  कदापि  ऐसा  नहीं  करती   l  मुझे  मेरे  इस  जघन्य  अपराध  के  लिए   मृत्यु  दंड  दिया  जाए  ,  परन्तु  मेरे  दोनों  बच्चों  को  माफ  कर   इन्हें  आप  अपनी  शरण  में  रख  लें  l  "    उस  विधवा  की   बातें  सुनकर   राजा  रणजीत   सिंह   बोले  ---- "  इस  घटना  में  दो  अपराधी  हैं  l  पत्थर  फेंकने  का  अपराध  महिला  का  है   और  उसे  पत्थर  फेंकने  के  लिए   विवश  करने  का  अपराध  मेरा  है  l  मैं  राजा  हूँ ,  मेरे  रहते  प्रजा  में  किसी  को   भूखे  नहीं  रहना  चाहिए  l  मेरे  अपराध  का  दंड  यह  पत्थर  मुझे  दे  चुका  l  इस  महिला  के  अपराध  के  एवज   में  मैं  इसके  पूरे  परिवार  के  भरण -पोषण  की  पूरी  जिम्मेदारी  लेता  हूँ  l "  महाराजा  रणजीत  सिंह  के  वचनों  को  सुनकर  वह  महिला  भावविभोर  हो  गई   और  समस्त  नागरिक  महाराज  की  प्रशंसा  करने  लगे  l  

19 September 2024

WISDOM ----

   ईर्ष्या  , द्वेष , अहंकार   जैसे   दुर्गुणों  से  ऋषि , मुनि , देवता  भी  नहीं  बचे  हैं  l   लेकिन    वे  श्रेष्ठ  इसलिए  हैं   क्योंकि  उन्होंने  अपनी  गलतियों  को  समझा , उन्हें  स्वीकार  किया   और  फिर  से  उन  गलतियों  को  न  दोहराने  का  संकल्प  लेकर   प्रायश्चित  भी  किया  ,  तब  कहीं  जाकर  वे  राजर्षि , महर्षि  जैसे सम्मान  के  अधिकारी  बने  l  पुराण  की  कथा  है  ---- ब्रह्मर्षि  वसिष्ठ  के  पास   नंदिनी  गौ  थी  ,  उसकी  सामर्थ्य  से  वे  अपने  आश्रम  की ,  आश्रम  में  आने  वाले  आगंतुकों आगंतुकों  की   और  आश्रम  में  विद्या अध्ययन  करने  वाले  छात्र -छात्राओं  की   अनिवार्य  आवश्यकताओं  की  पूर्ति  करते  थे  l  जब  विश्वामित्र  राजा  थे   और   अपनी  विशाल  सेना  के  साथ  ऋषि  वसिष्ठ  के  आश्रम  में  पहुंचे  थे   तब  ऋषि  वसिष्ठ  ने  उनका  भी  भव्य  स्वागत -सत्कार  किया  था  l   विश्वामित्र  ने  देखा  की  एक  तपस्वी  ने  इतना  भव्य  स्वागत   कैसे  किया  ,  उन्हें  ज्ञात  हुआ  कि  यह  सब  नंदिनी  गौ  की  कृपा  से  है  l  तब  उन्होंने  ऋषि  वसिष्ठ  से  कहा  कि  नंदिनी  को  आप  हमें  दे  दो  l  ऋषि  वसिष्ठ  ने  साफ  इनकार  कर  दिया  , तब  तो  विश्वामित्र  का  हठ  और  अहंकार  उनके  सिर  चढ़  गया  l  उन्होंने  नंदिनी  गौ  को  प्राप्त  करने  की  ठान  ली  और   पहले  अपने  सैन्य बल  का  प्रयोग  किया  , उसमें  असफल  हुए   l  फिर  तप  किया  , अनेक  दिव्यास्त्र  प्राप्त  किए  ,  लेकिन   ऋषि  वसिष्ठ  के  ब्रह्म दंड  के  आगे  उनकी  एक  न  चली , बुरी  तरह  असफल  हुए  l  इसके  बाद  उन्होंने  तप  के   अनेक  प्रयोग  किए ,  न  जाने  कितनी  तरह  की  विद्याएँ  प्राप्त  कीं   और  सभी  का  एक  साथ  उन्होंने  ऋषि  वसिष्ठ  पर  प्रयोग  किया ,  लेकिन  उन्हें  असफलता  ही  मिली  l  जितना  वे  असफल  हो  रहे  थे  उनका  वैर , हठ    और  अहंकार  उतना  ही  बढ़ता  जा  रहा  था  l  उन्होंने  ऋषि  वसिष्ठ  के  सौ  पुत्रों  का  विनाश  किया  l   ऋषि  वसिष्ठ  में  गजब  का  धैर्य  और  सहनशीलता  थी  ,  वे  विश्वामित्र  से  रुष्ट  नहीं  हुए  और  बड़े  धैर्य  के  साथ  इस  महाशोक  को  सहन  किया  l  विश्वामित्र  का  वैर  नहीं  मिटा   और  एक  पूर्णिमा  की  रात्रि  को  वे  ऋषि  वसिष्ठ  की  हत्या  करने  उनके  आश्रम  पहुंचे  l  विश्वामित्र  ने  महान  तप  किया  था  , लेकिन  हठ  और  अहंकार  की  वजह  से   वे    हत्या  जैसा  दुष्कृत्य  करने  को  उतारू  थे  l  जब  वे  ऋषि  वसिष्ठ  के  आश्रम  में  पहुंचे  , उस  समय   ऋषि  अपनी  पत्नी  अरुंधती  से  कह  रहे  थे  --- "  देवी  !  देखो   आज  चंद्रमा   सब  ओर  निर्मल  , धवल  प्रकाश  फैला  रहा  है  l  इस  प्रकाश  की  निर्मलता ,  शीतलता , धवलता  ऋषि श्रेष्ठ  विश्वामित्र  के   महान    तप  की  तरह  है  l  "  यह    सुनकर  विश्वामित्र  का  ह्रदय  ग्लानि  से  भर  गया  l  ऋषि  वसिष्ठ  पर  उन्होंने  इतने  वार  किए , उन्हें  कष्ट  दिया  , वे  उनकी  प्रशंसा  कर  रहे  हैं   l  विश्वामित्र  चमकती  कृपाण  लेकर  ऋषि  वसिष्ठ  के  सम्मुख  आए  और   कृपाण  सहित  उनके  चरणों चरणों  में  गिर  पड़े  l  ऋषि  वसिष्ठ  ने  उनको  उठाते  हुए  कहा  ---- " हे  ब्रह्मर्षि !  उठो  l "    गायत्री  महामंत्र  के  ऋषि  विश्वामित्र  हैं   l  अपने  महान  तप   के  कारण  वे   ब्रह्मर्षि  के  पद  पर  पहुंचे  l  

18 September 2024

WISDOM ------

  ' अनेक  लोग  पीठ   पीछे  बुराई  करने   और  सम्मुख  आवभगत   दिखलाने  में  बड़ा  आनंद  लेते  हैं  l  वे  समझते  हैं  कि  संसार  इतना  मूर्ख  है  कि  उनकी  इस  दोहरी  नीति  को  समझ  नहीं  सकता  l  वे  इस  दोहरे  व्यवहार  पर  भी   समाज  में   बड़े  ही  शिष्ट  एवं   सभ्य   समझे  जाते  हैं   l  अपने  को  इस  प्रकार   बुद्धिमान  समझना   बहुत  बड़ी  मूर्खता  है     l   वास्तविकता  छिपी  नहीं  रह  सकती  l    इतिहास  ऐसे  अनेक  उदाहरणों  से  भरा  है  l  सामने  से  अच्छा  व्यवहार  करना  और  पीठ  में  खंजर  भोंकना  ,  ये  सोच  समझ  कर  किया  गया  ऐसा  अपराध  है  जिसके  लिए  ईश्वर  कभी  क्षमा  नहीं  करते   l  महाभारत  में  ऐसे  कई  प्रसंग  हैं   जहाँ   दुर्योधन  ने  अपने  ही  भाइयों   पांडवों    के  विरुद्ध  अनेक  षड्यंत्र  रचे  ,  लाक्षाग्रह  में  भेजकर  तो  वे  पांडवों  के  जलकर  मर  जाने   की  ख़ुशी   मन -ही-मन  मना  रहे  थे  l  लेकिन  ऐसी  कुटिल  नीति  का  अंत  अच्छा  नहीं  होता  l  अपने  भीतर  की   असुरता  को  मनुष्य  संसार  से  चाहे  कितना  भी  छुपा  ले  ,  लेकिन  ईश्वर  सर्वव्यापक  और  सर्वशक्तिमान  है   l  उनसे  कुछ  नहीं  छुपा  ,  कर्म  का  फल  अवश्य  मिलता  है  l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                               

15 September 2024

WISDOM ------

  अनंत  ब्रह्माण्ड  पर  आधिपत्य  जमाने  की  मनुष्य  की  व्यर्थ  चेष्टा  पर  उसे  चेताते  हुए  प्रसिद्ध  साहित्यकार  बट्रेंड  रसेल  ने  लिखा  है  ----- " अच्छा  होता  कि  हम  अपनी  धरती  ही  सुधारते   और  बेचारे  चंद्रमा   को   उसके  भाग्य  पर  छोड़  देते   l  अभी  तक  हमारी  मूर्खताएं   धरती  तक  ही  सीमित  रही  हैं  l  उन्हें  ब्रह्माण्डव्यापी  बनाने  में   मुझे  कोई  ऐसी  बात  प्रतीत  नहीं  होती  ,  जिस  पर  विजय उत्सव   मनाया  जाए  l  चंद्रमा  पर  मनुष्य  पहुँच  गया  तो   क्या  ?   यदि  हम  धरती  को  ही  सुखी   नहीं  बना  पाए  तो  यह  प्रगति  बेमानी  है  l  "                        पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   लिखते  हैं ---- "  प्रगति  के  नाम  पर   विकृति  को  अपने  जीवन  का   लक्ष्य  बनाए  चल  रहे  इनसान  के  लिए    बट्रेंड  रसेल  की  यह  पंक्तियाँ   आज  बहुत  सार्थक  प्रतीत  होती  हैं  l    विज्ञानं  ने  हमारे  जीवन  को  सुख -सुविधा  और  विलासिता  की  चीजों  से  भर  दिया  है  l   भौतिक  प्रगति  तो  हुई  है  लेकिन  हम  आंतरिक  रूप  से  कंगाल  हो  चुके  हैं   l  मनुष्य  भावनाओं  और  संवेदनाओं  से  रहित   एक  रासायनिक  यंत्र  बन  गया  है  l  l  विज्ञान  का  प्रभाव  क्षेत्र कितना  ही  व्यापक  और  उपलब्धियां   कितनी  ही  चमत्कारी   क्यों  न  हों  ,  इसके  अलावा  भी  जीवन  में  भावनात्मक   संतुष्टि  , मानवीय  संवेदना  जरुरी  है  , जिसके  अभाव  में  जिंदगी  पंगु  हो  जाएगी   l  "       विज्ञान  की  उपलब्धियों  के  संबंध  में  बंट्रेंड  रसेल  का  कथन  है  ----- "  हम  एक  ऐसे  जीवन  प्रवाह  के  बीच  हैं  , जिसका  साधन  है  मानवीय  दक्षता   और  साध्य  है  मानवीय   मूर्खता  l  मानव  जाति  अब  तक  जीवित  रह  सकी   तो  अपने  अज्ञान  और  अक्षमता  के  कारण  ही  ,  परन्तु  यदि  ज्ञान   व  क्षमता   मूढ़ता  के  साथ   युक्त  हो  जाएँ   तो  उसके  बचे  रहने   कोई  संभावना   नहीं  है   l  अत:  विज्ञानं  के  साथ   विवेक  एवं   औचित्य पूर्ण    क्रियाकुशालता   की  भी  आवश्यकता  है  l  "  

13 September 2024

WISDOM -----

 आज  हम  वैज्ञानिक  युग  में  जी  रहे  हैं  l  विज्ञानं  ने  विभिन्न  क्षेत्रों  में   बड़े  चमत्कार  प्रस्तुत  किए हैं  लेकिन  फिर  भी  जीवन  के  कुछ  क्षेत्र  ऐसे  हैं   जहाँ  विज्ञानं  शून्य  है  ,  ,  वह  क्षेत्र  विज्ञानं  की  पहुँच  से  बाहर  है   और  वह  है --- ' मनुष्य  के  संस्कारों  में  परिवर्तन  करना  l "  यह  विज्ञानं  के  वश  की  बात  नहीं  है  l  मनुष्य  के  विचारों  को  परिष्कृत करना ,  उसे  सन्मार्ग  की  ओर  प्रेरित  करना  ---इसके  लिए  वैज्ञानिकों  के  पास  कोई  उपकरण  नहीं  है  l  यही  कारण  है   कि  अपराध  इतनी  तेजी  से  और  विकृत  रूप  से  बढ़  रहे  हैं  l  मनुष्य  से  गलती  हो  जाए  तो  उसे   सुधारा  जा  सकता  है    l   लेकिन  जो  लोग  सोच  -विचारकर , योजना  बना  कर  पापकर्म  करते  हैं , छल , कपट  , षडयंत्र  करते  हैं  , मनुष्यता  के  स्तर  से  गिरकर  पापकर्म  करते  हैं  --- यदि  ऐसे  लोगों  की  पिछली  तीन -चार  पीढ़ियों  की  जानकारी   निष्पक्ष  भाव  से  ली  जाये   तो  निश्चित  रूप  से  यह  सत्य  सामने  आएगा  कि   उनके  पूर्वजों  में  से  कोई -न-कोई  ऐसे  पापकर्म  में  संलग्न  रहा  है  l  वर्तमान  में  पाप  करने  वाला  अपने  संस्कारों  के  वशीभूत  होकर  ही  यह  कुकर्म  कर  रहा  है  l  आज  विज्ञान  को  अध्यात्म  की  जरुरत  है  l  यदि  मनुष्य  अपने  द्वारा  किए  जाने  वाले  पापकर्मों  के  प्रति  सजग  हो  जाये   और  इस  दलदल  से  उबरना  चाहे  तो   यह  अध्यात्म  से  संभव  है  l   मन्त्र जप  कर  के , दान -पुण्य , नियमित  दिनचर्या , कर्तव्य  पालन   और  स्वयं   में  सुधार  करने  की  तीव्र  इच्छा   और  ईश्वर  के  प्रति  समर्पण  से  रूपांतरण  संभव  है  l  मनुष्य  स्वयं  को  सुधार  कर  अपना लोक -परलोक  सुधार  सकता  है  और  आने  वाली  पीढ़ियों  को  सही  दिशा  दे  सकता  है  l  आज  पृथ्वी  पर   पर्यावरण  प्रदूषण , युद्ध , दंगे , अपराध , दुर्घटनाएं , प्राकृतिक  आपदाएं , बीमारी , महामारी   आदि  प्रत्यक्ष  रूप  से  दिखाई  देने  वाली  समस्याएं  हैं   लेकिन  एक  सबसे  बड़ी  समस्या  जो  दिखाई  नहीं  देती    और  विभिन्न  दुर्घटनाओं , लोगों  में  तनाव  और  अनेक  समस्याओं  का  कारण  है   वह  है  ---- ये  पापकर्म  करने  वाले   स्वयं  तो  अपने  नीच  कर्मों  के  कारण   भूत   -प्रेत , पिशाच  आदि  योनियों  में  भटकते  हैं , ये  लोग  अपने  जीवन  में   अपनी  विकृतियों  के  कारण   बच्चों , महिलाओं  और  अपने  रास्ते  में   बाधा  डालने  वालों  की  हत्या  करते  हैं   और  विभिन्न  कारणों  से  अकाल मृत्यु   जिनकी  हो   जाती  है   वे  भी  अतृप्त  आत्माएं  वातावरण  में  भटकती  हैं  l  इसलिए  इस  धरती  पर  समस्याओं  का  बोझ    प्रत्यक्ष  और  अप्रत्यक्ष   दोनों  है  l  यदि  ज्ञान   , शक्ति , धन -वैभव   के  साथ  विवेक  हो  , सद्बुद्धि  हो  , तभी  उसका  सदुपयोग  संभव  है  l  यह  वैज्ञानिक  प्रगति   एकांगी  है  , जीवन  की  पूर्णता  के  लिए  अध्यात्म  जरुरी  है  l  

11 September 2024

WISDOM -----

  संसार  में  आज  इतना  पाप , अनर्थ , अनीति , अत्याचार  बढ़  रहा  है  , इसका  मुख्य  कारण  यही  है   कि    मनुष्यों    ने   कर्म फल   और  पुनर्जन्म  पर  विश्वास  करना  छोड़  दिया  है  l  विद्वानों  के  इस  सन्देश  को  कि  ' वर्तमान  में  जिओ  '  लोगों  ने  गलत  ढंग  से  ले  लिया  l  अब  लोग  इस  तरह  सोचने  लग  गए  हैं  कि   नैतिक - अनैतिक , सही -गलत  किसी  भी  तरीके  से  जितना  सुख  , ऐशो -आराम  भोग  लो , चाहे  जितना  छल -कपट , षड्यंत्र  कर  लोगों  को  उत्पीड़ित  कर  लो  ,  अगला  जन्म  किसने  देखा  ?   जो  होगा   सो  देखा  जायेगा  l  ---इस  तरह  की  सोच  होने  के  करण  ही  समाज  में  पाप  अपराध  बढ़  रहे  हैं  l  थोड़ी  सी  भी  शक्ति  आ  जाए  तो  व्यक्ति  अपने  को  सर्वसमर्थ , भगवान  समझने  लगता  है  , उसे  लगता  है  कि  वही  सबका  भाग्य -विधाता  है  l  कर्मफल  विधान  को  समझाने  वाले  अनेक प्रसंग , कथाएं  हैं   लेकिन  अपने  ही  मानसिक  विकारों  में  फँसा  हुआ  व्यक्ति  समझता  नहीं  है  l -------- आचार्य  महीधर   अपने  शिष्यों   के   साथ   तीर्थयात्रा  पर  थे  l   रात्रि  में  जंगल  में  रुक  गए  l  रात्रि  में  ही  उन्हें   समीप  के  अंधे  कुएं  से  करुण  क्रंदन  सुनाई  पड़ा  l  वे  वहां  पहुंचे  तो  देखा  पांच  व्यक्ति  औधेमुँह  पड़े  बिलख  रहे  हैं  l   आचार्य  ने  उनसे  पूछा  --- 'आप  कौन  हैं  , इस  कुएं  में  क्यों  गिरे  हैं  ? '   उनमें  से  एक  ने  कहा --- " हम  पांच  प्रेत  हैं  , कर्मफल  भोग  रहे  हैं  l '  आचार्य  ने  उनसे  उनकी  ऐसी  दुर्गति  का  कारण  पूछा  , तब  उनमें  से  एक  ने  कहा ---- " वह  पूर्वजन्म  में  ब्राह्मण  था  l  दक्षिणा  बटोर  कर  विलासिता  में  खर्च  करता  था  l  उपासना  कभी  नहीं  की  l "   दूसरे  ने  कहा  ---- " वह  क्षत्रिय  था  , पर  दुःखियों   को  पीड़ा  देता  ,  मांस - नशा  , आदि  विभिन्न  कुकृत्य  में   निरत  रहा  l "   तीसरा  बोला --- " मैं  वैश्य  था  l  हमेशा  अपने  ही  लाभ  की  सोचता ,  बिक्री  में  हेराफेरी  करता  , कभी  दान  नहीं  किया  l "  चौथे  ने  कहा --- "  मैं   शूद्र   था , अहंकारी , आलसी , दुर्व्यसनी  l  कभी  जिम्मेदारी  का  पालन  नहीं  किया  l "   पांचवां  प्रेत  किसी  को  अपना  मुँह  नहीं  दिखाता   था , निरंतर  रोता  जा  रहा  था  l  बहुत  पूछने  पर  वह  बोला --- " मैं  पूर्वजन्म  में  साहित्यकार  था  ,  पर  अपनी  कलम  से  मैंने   अश्लीलता   और  फूहड़पन  फ़ैलाने  वाला  साहित्य  लिखा  l  मैंने  वासना  भड़काई  और  सारे  समाज  को  भ्रष्ट  किया  l  इसलिए  मुझे  ब्रह्म राक्षस  बनकर  इस स्थिति  में  भटकना  पड़  रहा  है  l "  उन  पाँचों  प्रेतों  ने  आचार्य  से  प्रार्थना  की  कि   वे  समाज  में   उनकी  ( प्रेतों )  की  दुर्गति  का  कारण  सभी  को  बता  दें  , ताकि  वे  लोग  ऐसी  भूल  न  करें  l  

10 September 2024

WISDOM -----

   इंद्र  का  वैभव  नष्ट  हो  रहा  था  l  वे  बड़े  चिंतित  हुए   और  राजर्षि  प्रह्लाद  के  पास  जाकर  उसका  कारण  पूछा   l  प्रह्लाद  ने  बताया  --- राजन  तुमने  अहिल्या  जैसी    सती -साध्वी  का  शील  नष्ट  किया  है  l  जब  तक  उसका  प्रायश्चित  कर   पुन: शील  संग्रह  नहीं  करोगे  ,  अपने  वैभव  को  भी  बचा  नहीं  सकोगे   l  लोभी  इंद्र  ने  अपने  को  प्रह्लाद  का   अतिथि  बताकर  ,  उन्ही  का  शील  मांग  लिया  l  प्रह्लाद  ने  अपना  शील  उन्हें  दान  कर  दिया  l  ऐसा  करते  ही  उनके  शरीर  से   तीन  ज्योति  पुरुष  निकले   और  बोले  --- हम  सत्य , धर्म  और  वैभव  हैं  ,  जहाँ  चरित्र  ( शील )  नहीं  रहता  ,  वहां  हम  भी  नहीं  रहते   l  प्रह्लाद  ने  कहा  --- मैंने  इंद्र  को   नेक  सलाह  देकर    सत्य  का     तथा  अतिथि  को  याचित  वास्तु   दान  कर  धर्म  का  ही  पालन  किया  है  l  अत:  आपका  जाना  उचित  नहीं  है  l  फिर  मैंने  शील  दान  ही   तो  किया  है  l  जिस  जीवन  देवता  की  आराधना   से  मैंने  शील  अर्जित  किया  था  ,  उसे  मैं  पुन:  संग्रह  कर  लूँगा  l  प्रह्लाद  की  यह  बात   सुनकर   जाते  हुए  सत्य , धर्म  और  वैभव  के  चरण  रुक  गए   और  प्रह्लाद  को  अपने  खोये  हुए   चारों  देव  वापस  मिल  गए   l  महामानव  हर  स्थिति  में   इस  बहुमूल्य  जीवन  संपदा  को  नष्ट  नहीं  करते   इस  कारण  उन्हें  प्रतिकूल  परिस्थितियों  में  दैवी   अनुदान  भी  मिलते  हैं   l  

8 September 2024

WISDOM -----

    अरब  देश  में  एक  प्रसिद्ध  सुल्तान  रहा  करते  थे  l  वे  बड़े  न्याय प्रिय  एवं  प्रजावत्सल  थे  l   एक  बार  सुल्तान  जंगल  की  सैर  को  निकले  l  उन्हें  शिकार  अत्यंत  प्रिय  था  l  एक  बार  संध्या  के  समय  वे  सूर्यास्त  का  द्रश्य  देख  रहे  थे  , तभी  उन्हें  लगा  कि  टीले  पर  कोई  जानवर  बैठा  है   तो  उन्होंने  तुरंत  निशाना  साध  कर  उस  पर  तीर  छोड़ा  l  तीर लगते  ही  एक  जोर  की  चीख  सुनाई  पड़ी  l  चीख  सुनकर  सुल्तान  काँप  उठे   क्योंकि  यह  एक  मनुष्य  की   चीख  थी  l  उन्होंने  पास  जाकर   देखा  कि  एक  बालक  तीर  से  घायल  होकर  पीड़ा  से  छटपटा  रहा  था  l  कुछ  ही  समय  में  उसका   मजदूर    पिता  भी  वहां  आ  गया   l   अपने  पुत्र  की  यह  हालत  देखकर  ,  वह  बहुत  बेहाल  हो  गया  l   सुल्तान  ने  बालक  का  शीघ्र  उपचार  कराया   और   उसके  बाद   दो  थाल  बालक  के  पिता  के  लिए  मंगवाए  l  एक  में  अशर्फियाँ  और  दूसरे  में  तलवार  रखी  थी  l    सुल्तान  मजदूर  से  बोले  ---- "  मैंने  जानवर  समझ  कर  तीर  छोड़ा  था  , परन्तु  गलती  से  तुम्हारे  पुत्र  को  लगा  l  किन्तु  तब  भी  तीर  चलाने  के  कारण  दोष  तो  मेरा  ही  है  l   तुम  चाहो  तो  अशर्फियाँ  लेकर   इस  भूल  को  माफ़  कर  दो   अन्यथा  यदि  मुझे  माफ़ी  का  हक़दार   न  पाओ  तो  मेरा  सिर  तलवार  से  कलम  कर  दो  l "  सुल्तान  की  न्यायप्रियता   देखकर  मजदूर   दांग  रह  गया  l  उसने  कहा  ---- " हुजुर  !  मुझे  दोनों  में  से  कुछ  नहीं  चाहिए  l  केवल  आप  यह  भूल  दोबारा  न  करें  l  आप  निरीह  प्राणियों  का  वध  करना  छोड़  दें  l  "  बादशाह  ने  उस  दिन  के  बाद  से  शिकार  करना  छोड़  दिया  l  

6 September 2024

WISDOM ------

ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , बदले  की  भावना  ऐसे  दुर्गुण  है   जो  व्यक्ति  की  बुद्धि  भ्रष्ट  कर  देते  हैं  और  उसे  पतन  की  राह  पर  धकेल  देते  हैं  l  ये  दुर्गुण  जब  किसी  पर  हावी  हो  जाते  हैं   और  व्यक्ति  सामने  से , प्रत्यक्ष  रूप  से  अपने  प्रतिद्वंदी   का  मुकाबला  नहीं  कर  सकता  , तब  वह  कायरतापूर्ण  तरीके  अपनाता  है  l  नकारात्मक  शक्तियों  जैसे  तंत्र , ब्लैक मैजिक   आदि  का    का  इस्तेमाल  करता  है  l    अनेक  परिवार  इससे  तबाह  हो  जाते  हैं , और  लोगों  को  इसका  कारण  भी  समझ  में  नहीं  आता   क्योंकि  ये  सब  कार्य  समाज  से  छिपकर  किए  जाते  हैं  l  लेकिन  संसार  में  ईश्वर  का  भी  अस्तित्व  है   यदि  कोई  ईश्वर  का  सच्चा  भक्त  है  तो  भगवान  स्वयं  उसकी  रक्षा  करते  हैं  l  तंत्र  के  भी  अपने  देवी -देवता  हैं  इसलिए   तंत्र  का  भी  ईश्वरीय  विधान  के  अनुरूप  कुछ  असर  तो   भक्त  पर   होता  ही  है  लेकिन  तंत्र  कभी  भक्ति  और  भक्त  से  बड़ा  नहीं  होता  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- तंत्र  आदि  विभिन्न  नकारात्मक  शक्तियों  के  प्रयोग  से   प्रकृति  को  कष्ट  होता  है , कुपोषण  होता  है  l   तांत्रिक  अपनी  विद्या  का  दुरूपयोग  करते  हैं   तो  वे  अपनी  ही  विद्या  के  अपराधी  होते  हैं  l  यही  करण  है  कि  अधिकतर  तांत्रिकों  का  अंत  बड़ा  भयानक  होता  है  l ------ एक  घटना  है ------ जगद्गुरु  शंकराचार्य  पर   एक  कापालिक  ने  भीषण  तंत्र  का  प्रयोग  कर  दिया  l  इसके  प्रभाव  से  उन्हें  भगंदर  हो  गया  l   ऐसा  करने  से  कापालिक  की  आराध्य  एवं  इष्ट  भगवती  उससे  अति  क्र्यद्ध  हुईं और  कहा ---- तूने  मेरे  ही  पुत्र , शिव  के  अंशावतार  पर  अत्याचार  किया  है  l  इसके  प्रायश्चित  के  लिए  तुझे  अपनी   भैरवी  की  बलि  देनी  पड़ेगी  l '  कापालिक  भैरवी  से  अति  प्रेम  करता  था  , परन्तु  उसे  उसको   मारना  पड़ा  l  उसको  मारने  के  बाद  वह  विक्षिप्त  हो  गया   और  अपना  ही  गला  काट  दिया  l  इस  प्रकार  उस  तांत्रिक  का  अंत  बड़ा  भयानक  हुआ  l    ऐसे  पापी  लोग  जीते  जी  दूसरों  का  सुख -चैन   छीनते  हैं   और  मरने  के  बाद   भूत   , प्रेत , पिशाच   की  योनि  में  पहुंचकर    स्वयं  भी  कष्ट  सहते  हैं  ,  और  उनकी  अतृप्त  आत्मा  संसार  को  भी  कष्ट  देती  है  l  

4 September 2024

WISDOM ----

 इस  संसार  में  असुरता  स्रष्टि  के  आरम्भ  से  ही  रही  है  l  ईश्वर  ने  इतने  अवतार  लिए   असुरों  के  नाश  के  लिए   लेकिन  असुर  समाप्त  नहीं  हुए  l  असुरता  के  संस्कार  ऐसे  हैं  कि  वे  पीढ़ी -दर -पीढ़ी   बढ़ते  ही  जा  रहे  हैं  l  अंतर  केवल  इतना  है  कि  पहले   संसार    में  असुर  स्पष्ट  दिखाई  देते  थे   जैसे  रावण  और  उसके  एक  लाख  पूत , सवा  लाख  नाती   और  विभिन्न  सहयोगी  , उन  सबकी  असुर  के  रूप  में  स्पष्ट  पहचान  थी   l   वे  ऋषियों  को  मारते , सताते  थे  , सत्कार्यों  में  बाधा  डालते  थे  l  द्वापर  युग  में  भी   दुर्योधन  आदि  कौरवों  का  अधर्मी  और  षड्यंत्रकारी  होना  सबके  सामने  स्पष्ट  था  l     ------ लेकिन  कलियुग  में  स्थिति  इतनी  खतरनाक  इसलिए  हो  गई  है   क्योंकि  अब  असुरता  लोगों  के  भीतर  , उनके  ह्रदय  में , उनके  अस्तित्व  में  समां  गई  है  l  अब  हम  उन्हें  देखकर ,  उनके  साथ   कार्य  कर  के ,  एक  थाली  में  खाना  खाकर  भी   हम  पहचान  नहीं  सकते  कि   वे  कितने  बड़े  असुर  हैं   l  चेहरे  पर  इतने  नकाब  हैं   कि  उनके  भीतर  के  दानव  को  समझ  पाना  असंभव  है  l    ईश्वर  की  कृपा  से  जिसका  विवेक  जाग्रत  हो  जाए  वही   उन्हें  पहचान  सकता  है  l  देवता  और  असुरों  में  केवल  सोच  का  फरक  है  l  देवता  अपनी  शक्तियों  का  सदुपयोग  करते  हैं  , संसार  के  कल्याण  के  लिए  कार्य  करते  हैं  और  असुर  अपनी  उन्ही  शक्तियों  का  प्रयोग  दूसरों  को  सताने , उत्पीड़ित  करने   और   प्रकृति  को  नष्ट  करने , मानवता  को  मिटाने  के  लिए  करते  हैं   l  सच  तो  यह  है  कि  ये  असुर  दया  के  पात्र  हैं ,  सबको  मिटाने  के  चक्कर  में  वे  स्वयं  मिट  जाएंगे  l   बड़ी  मुश्किल  से  मिला  ये  मानव शरीर  ,  युगों -युगों  तक  प्रेत  और  पिशाच  योनि  में  फिरेगा  l    असुर  बड़े  अहंकारी  होते  हैं ,   कभी  सुधरते  नहीं ,  लोगों  को  सताना , छल , कपट  षड्यंत्र  करना  नहीं  छोड़ते  नहीं    इसलिए   जो  भी  देवत्व  के  मार्ग  पर  हैं   और  आसुरी  तत्वों  से  पीड़ित  हैं   वे  स्वयं  बदले  की  भावना  न  रखें , न्याय  के  लिए  ईश्वर  हैं  l    ईश्वर  से  उनकी  सद्बुद्धि  के  लिए  प्रार्थना  करें  , असुरों  की  सोच  बदल  जाये  तो  धरती  पर  शांति  और  सुकून  हो  l ------ एक  संत  नाव  से  नदी  पर  कर  रहे  थे  l  नाव  में  बैठे  शरारती  तत्व  उन्हें  परेशान  करने  लगे  l  जब  वे  रात्रिकालीन  प्रार्थना  में  बैठे  , ध्यान  करने  लगे   तो  शरारती  तत्वों  ने  उनके  सिर  पर  जूते   मारना   शुरू  कर  दिया  l  तभी  आकाशवाणी  हुई --- " मेरे  प्यारे  !  तू  कहे  तो  मैं  नाव  उलट  दूँ  l "  संत  यह  सुनकर  हैरान  हुए  और  कहा ---- " हे  प्रभु  !  प्रार्थना  के  समय  यह  शैतान  की  वाणी  क्यों  सुनाई  पड़ने  लगी   l  यदि   कुछ  उलटने  की  आवश्यकता  है   तो  इनकी  बुद्धि  उलट  दे  l  "  बुद्धि  सन्मार्ग  पर  आ  जाए  तो  वे  ऐसी  हरकत  करेंगे  ही  नहीं  l  परमात्मा  ने  कहा --- "  मैं  बहुत  खुश  हूँ  कि  तुमने  शैतान  को  पहचान  लिया  l  मैं  तो  सर्वदा  प्रेम  में  विश्वास  करता  हूँ ,  बैर  और  विध्वंस   से  मेरा  कोई  संबंध  नहीं  है  l  "  

2 September 2024

WISDOM ----

  महाराज  कृष्णदेव  राय  तेनालीराम  की  बुद्धि  की  परीक्षा  लेने  के  लिए  समय -समय  पर   उनसे  बेतुके  सवाल  किया  करते  थे  l  एक  दिन  उन्होंने  तेनालीराम  से  पूछा  ---- " ये  बताओ  हमारे  राज्य  में   कबूतरों  की  संख्या  कुल  कितनी  है  ?  सही  संख्या  जानने  के  लिए   हम  तुम्हे  एक  सप्ताह  का  समय  देते  हैं  ,  यदि  तुम  गणना  नहीं  कर  पाए   तो  तुम्हारा  सिर  कलम  कर  दिया  जायेगा   l "  तेनालीराम  से  कुढ़ने  वाले  दरबारियों  ने  सोचा  कि  इस  बार  तेनालीराम  का  बच  पाना  मुश्किल  है  l  एक  सप्ताह  बाद   तेनालीराम  फिर  दरबार  में  हाजिर  हुए  l  महाराज  के  पूछने  पर  वे  बोले  ----- "  महाराज  हमारे  राज्य  में   कुल  तीन  लाख  बाईस  हजार   चार  सौ  बीस   कबूतर  हैं  l  आप  संतुष्ट  न  हों  तो  किसी  से  इनकी  गिनती  करा  लें  l  यदि  गिनती  ज्यादा  हुई  तो   ये  वो  कबूतर  हैं   जो  हमारे  राज्य  में  मेहमान  बनकर  आए  हैं   और  कम  हुई  तो   उन  कबूतरों  के  कारण   जो  दूसरे  राज्य  में  मेहमान  बन  कर  गए  हैं  l "