ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार जैसे दुर्गुणों से ऋषि , मुनि , देवता भी नहीं बचे हैं l लेकिन वे श्रेष्ठ इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने अपनी गलतियों को समझा , उन्हें स्वीकार किया और फिर से उन गलतियों को न दोहराने का संकल्प लेकर प्रायश्चित भी किया , तब कहीं जाकर वे राजर्षि , महर्षि जैसे सम्मान के अधिकारी बने l पुराण की कथा है ---- ब्रह्मर्षि वसिष्ठ के पास नंदिनी गौ थी , उसकी सामर्थ्य से वे अपने आश्रम की , आश्रम में आने वाले आगंतुकों आगंतुकों की और आश्रम में विद्या अध्ययन करने वाले छात्र -छात्राओं की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे l जब विश्वामित्र राजा थे और अपनी विशाल सेना के साथ ऋषि वसिष्ठ के आश्रम में पहुंचे थे तब ऋषि वसिष्ठ ने उनका भी भव्य स्वागत -सत्कार किया था l विश्वामित्र ने देखा की एक तपस्वी ने इतना भव्य स्वागत कैसे किया , उन्हें ज्ञात हुआ कि यह सब नंदिनी गौ की कृपा से है l तब उन्होंने ऋषि वसिष्ठ से कहा कि नंदिनी को आप हमें दे दो l ऋषि वसिष्ठ ने साफ इनकार कर दिया , तब तो विश्वामित्र का हठ और अहंकार उनके सिर चढ़ गया l उन्होंने नंदिनी गौ को प्राप्त करने की ठान ली और पहले अपने सैन्य बल का प्रयोग किया , उसमें असफल हुए l फिर तप किया , अनेक दिव्यास्त्र प्राप्त किए , लेकिन ऋषि वसिष्ठ के ब्रह्म दंड के आगे उनकी एक न चली , बुरी तरह असफल हुए l इसके बाद उन्होंने तप के अनेक प्रयोग किए , न जाने कितनी तरह की विद्याएँ प्राप्त कीं और सभी का एक साथ उन्होंने ऋषि वसिष्ठ पर प्रयोग किया , लेकिन उन्हें असफलता ही मिली l जितना वे असफल हो रहे थे उनका वैर , हठ और अहंकार उतना ही बढ़ता जा रहा था l उन्होंने ऋषि वसिष्ठ के सौ पुत्रों का विनाश किया l ऋषि वसिष्ठ में गजब का धैर्य और सहनशीलता थी , वे विश्वामित्र से रुष्ट नहीं हुए और बड़े धैर्य के साथ इस महाशोक को सहन किया l विश्वामित्र का वैर नहीं मिटा और एक पूर्णिमा की रात्रि को वे ऋषि वसिष्ठ की हत्या करने उनके आश्रम पहुंचे l विश्वामित्र ने महान तप किया था , लेकिन हठ और अहंकार की वजह से वे हत्या जैसा दुष्कृत्य करने को उतारू थे l जब वे ऋषि वसिष्ठ के आश्रम में पहुंचे , उस समय ऋषि अपनी पत्नी अरुंधती से कह रहे थे --- " देवी ! देखो आज चंद्रमा सब ओर निर्मल , धवल प्रकाश फैला रहा है l इस प्रकाश की निर्मलता , शीतलता , धवलता ऋषि श्रेष्ठ विश्वामित्र के महान तप की तरह है l " यह सुनकर विश्वामित्र का ह्रदय ग्लानि से भर गया l ऋषि वसिष्ठ पर उन्होंने इतने वार किए , उन्हें कष्ट दिया , वे उनकी प्रशंसा कर रहे हैं l विश्वामित्र चमकती कृपाण लेकर ऋषि वसिष्ठ के सम्मुख आए और कृपाण सहित उनके चरणों चरणों में गिर पड़े l ऋषि वसिष्ठ ने उनको उठाते हुए कहा ---- " हे ब्रह्मर्षि ! उठो l " गायत्री महामंत्र के ऋषि विश्वामित्र हैं l अपने महान तप के कारण वे ब्रह्मर्षि के पद पर पहुंचे l
19 September 2024
18 September 2024
WISDOM ------
' अनेक लोग पीठ पीछे बुराई करने और सम्मुख आवभगत दिखलाने में बड़ा आनंद लेते हैं l वे समझते हैं कि संसार इतना मूर्ख है कि उनकी इस दोहरी नीति को समझ नहीं सकता l वे इस दोहरे व्यवहार पर भी समाज में बड़े ही शिष्ट एवं सभ्य समझे जाते हैं l अपने को इस प्रकार बुद्धिमान समझना बहुत बड़ी मूर्खता है l वास्तविकता छिपी नहीं रह सकती l इतिहास ऐसे अनेक उदाहरणों से भरा है l सामने से अच्छा व्यवहार करना और पीठ में खंजर भोंकना , ये सोच समझ कर किया गया ऐसा अपराध है जिसके लिए ईश्वर कभी क्षमा नहीं करते l महाभारत में ऐसे कई प्रसंग हैं जहाँ दुर्योधन ने अपने ही भाइयों पांडवों के विरुद्ध अनेक षड्यंत्र रचे , लाक्षाग्रह में भेजकर तो वे पांडवों के जलकर मर जाने की ख़ुशी मन -ही-मन मना रहे थे l लेकिन ऐसी कुटिल नीति का अंत अच्छा नहीं होता l अपने भीतर की असुरता को मनुष्य संसार से चाहे कितना भी छुपा ले , लेकिन ईश्वर सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान है l उनसे कुछ नहीं छुपा , कर्म का फल अवश्य मिलता है l
15 September 2024
WISDOM ------
अनंत ब्रह्माण्ड पर आधिपत्य जमाने की मनुष्य की व्यर्थ चेष्टा पर उसे चेताते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार बट्रेंड रसेल ने लिखा है ----- " अच्छा होता कि हम अपनी धरती ही सुधारते और बेचारे चंद्रमा को उसके भाग्य पर छोड़ देते l अभी तक हमारी मूर्खताएं धरती तक ही सीमित रही हैं l उन्हें ब्रह्माण्डव्यापी बनाने में मुझे कोई ऐसी बात प्रतीत नहीं होती , जिस पर विजय उत्सव मनाया जाए l चंद्रमा पर मनुष्य पहुँच गया तो क्या ? यदि हम धरती को ही सुखी नहीं बना पाए तो यह प्रगति बेमानी है l " पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " प्रगति के नाम पर विकृति को अपने जीवन का लक्ष्य बनाए चल रहे इनसान के लिए बट्रेंड रसेल की यह पंक्तियाँ आज बहुत सार्थक प्रतीत होती हैं l विज्ञानं ने हमारे जीवन को सुख -सुविधा और विलासिता की चीजों से भर दिया है l भौतिक प्रगति तो हुई है लेकिन हम आंतरिक रूप से कंगाल हो चुके हैं l मनुष्य भावनाओं और संवेदनाओं से रहित एक रासायनिक यंत्र बन गया है l l विज्ञान का प्रभाव क्षेत्र कितना ही व्यापक और उपलब्धियां कितनी ही चमत्कारी क्यों न हों , इसके अलावा भी जीवन में भावनात्मक संतुष्टि , मानवीय संवेदना जरुरी है , जिसके अभाव में जिंदगी पंगु हो जाएगी l " विज्ञान की उपलब्धियों के संबंध में बंट्रेंड रसेल का कथन है ----- " हम एक ऐसे जीवन प्रवाह के बीच हैं , जिसका साधन है मानवीय दक्षता और साध्य है मानवीय मूर्खता l मानव जाति अब तक जीवित रह सकी तो अपने अज्ञान और अक्षमता के कारण ही , परन्तु यदि ज्ञान व क्षमता मूढ़ता के साथ युक्त हो जाएँ तो उसके बचे रहने कोई संभावना नहीं है l अत: विज्ञानं के साथ विवेक एवं औचित्य पूर्ण क्रियाकुशालता की भी आवश्यकता है l "
13 September 2024
WISDOM -----
11 September 2024
WISDOM -----
संसार में आज इतना पाप , अनर्थ , अनीति , अत्याचार बढ़ रहा है , इसका मुख्य कारण यही है कि मनुष्यों ने कर्म फल और पुनर्जन्म पर विश्वास करना छोड़ दिया है l विद्वानों के इस सन्देश को कि ' वर्तमान में जिओ ' लोगों ने गलत ढंग से ले लिया l अब लोग इस तरह सोचने लग गए हैं कि नैतिक - अनैतिक , सही -गलत किसी भी तरीके से जितना सुख , ऐशो -आराम भोग लो , चाहे जितना छल -कपट , षड्यंत्र कर लोगों को उत्पीड़ित कर लो , अगला जन्म किसने देखा ? जो होगा सो देखा जायेगा l ---इस तरह की सोच होने के करण ही समाज में पाप अपराध बढ़ रहे हैं l थोड़ी सी भी शक्ति आ जाए तो व्यक्ति अपने को सर्वसमर्थ , भगवान समझने लगता है , उसे लगता है कि वही सबका भाग्य -विधाता है l कर्मफल विधान को समझाने वाले अनेक प्रसंग , कथाएं हैं लेकिन अपने ही मानसिक विकारों में फँसा हुआ व्यक्ति समझता नहीं है l -------- आचार्य महीधर अपने शिष्यों के साथ तीर्थयात्रा पर थे l रात्रि में जंगल में रुक गए l रात्रि में ही उन्हें समीप के अंधे कुएं से करुण क्रंदन सुनाई पड़ा l वे वहां पहुंचे तो देखा पांच व्यक्ति औधेमुँह पड़े बिलख रहे हैं l आचार्य ने उनसे पूछा --- 'आप कौन हैं , इस कुएं में क्यों गिरे हैं ? ' उनमें से एक ने कहा --- " हम पांच प्रेत हैं , कर्मफल भोग रहे हैं l ' आचार्य ने उनसे उनकी ऐसी दुर्गति का कारण पूछा , तब उनमें से एक ने कहा ---- " वह पूर्वजन्म में ब्राह्मण था l दक्षिणा बटोर कर विलासिता में खर्च करता था l उपासना कभी नहीं की l " दूसरे ने कहा ---- " वह क्षत्रिय था , पर दुःखियों को पीड़ा देता , मांस - नशा , आदि विभिन्न कुकृत्य में निरत रहा l " तीसरा बोला --- " मैं वैश्य था l हमेशा अपने ही लाभ की सोचता , बिक्री में हेराफेरी करता , कभी दान नहीं किया l " चौथे ने कहा --- " मैं शूद्र था , अहंकारी , आलसी , दुर्व्यसनी l कभी जिम्मेदारी का पालन नहीं किया l " पांचवां प्रेत किसी को अपना मुँह नहीं दिखाता था , निरंतर रोता जा रहा था l बहुत पूछने पर वह बोला --- " मैं पूर्वजन्म में साहित्यकार था , पर अपनी कलम से मैंने अश्लीलता और फूहड़पन फ़ैलाने वाला साहित्य लिखा l मैंने वासना भड़काई और सारे समाज को भ्रष्ट किया l इसलिए मुझे ब्रह्म राक्षस बनकर इस स्थिति में भटकना पड़ रहा है l " उन पाँचों प्रेतों ने आचार्य से प्रार्थना की कि वे समाज में उनकी ( प्रेतों ) की दुर्गति का कारण सभी को बता दें , ताकि वे लोग ऐसी भूल न करें l
10 September 2024
WISDOM -----
इंद्र का वैभव नष्ट हो रहा था l वे बड़े चिंतित हुए और राजर्षि प्रह्लाद के पास जाकर उसका कारण पूछा l प्रह्लाद ने बताया --- राजन तुमने अहिल्या जैसी सती -साध्वी का शील नष्ट किया है l जब तक उसका प्रायश्चित कर पुन: शील संग्रह नहीं करोगे , अपने वैभव को भी बचा नहीं सकोगे l लोभी इंद्र ने अपने को प्रह्लाद का अतिथि बताकर , उन्ही का शील मांग लिया l प्रह्लाद ने अपना शील उन्हें दान कर दिया l ऐसा करते ही उनके शरीर से तीन ज्योति पुरुष निकले और बोले --- हम सत्य , धर्म और वैभव हैं , जहाँ चरित्र ( शील ) नहीं रहता , वहां हम भी नहीं रहते l प्रह्लाद ने कहा --- मैंने इंद्र को नेक सलाह देकर सत्य का तथा अतिथि को याचित वास्तु दान कर धर्म का ही पालन किया है l अत: आपका जाना उचित नहीं है l फिर मैंने शील दान ही तो किया है l जिस जीवन देवता की आराधना से मैंने शील अर्जित किया था , उसे मैं पुन: संग्रह कर लूँगा l प्रह्लाद की यह बात सुनकर जाते हुए सत्य , धर्म और वैभव के चरण रुक गए और प्रह्लाद को अपने खोये हुए चारों देव वापस मिल गए l महामानव हर स्थिति में इस बहुमूल्य जीवन संपदा को नष्ट नहीं करते इस कारण उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में दैवी अनुदान भी मिलते हैं l
8 September 2024
WISDOM -----
अरब देश में एक प्रसिद्ध सुल्तान रहा करते थे l वे बड़े न्याय प्रिय एवं प्रजावत्सल थे l एक बार सुल्तान जंगल की सैर को निकले l उन्हें शिकार अत्यंत प्रिय था l एक बार संध्या के समय वे सूर्यास्त का द्रश्य देख रहे थे , तभी उन्हें लगा कि टीले पर कोई जानवर बैठा है तो उन्होंने तुरंत निशाना साध कर उस पर तीर छोड़ा l तीर लगते ही एक जोर की चीख सुनाई पड़ी l चीख सुनकर सुल्तान काँप उठे क्योंकि यह एक मनुष्य की चीख थी l उन्होंने पास जाकर देखा कि एक बालक तीर से घायल होकर पीड़ा से छटपटा रहा था l कुछ ही समय में उसका मजदूर पिता भी वहां आ गया l अपने पुत्र की यह हालत देखकर , वह बहुत बेहाल हो गया l सुल्तान ने बालक का शीघ्र उपचार कराया और उसके बाद दो थाल बालक के पिता के लिए मंगवाए l एक में अशर्फियाँ और दूसरे में तलवार रखी थी l सुल्तान मजदूर से बोले ---- " मैंने जानवर समझ कर तीर छोड़ा था , परन्तु गलती से तुम्हारे पुत्र को लगा l किन्तु तब भी तीर चलाने के कारण दोष तो मेरा ही है l तुम चाहो तो अशर्फियाँ लेकर इस भूल को माफ़ कर दो अन्यथा यदि मुझे माफ़ी का हक़दार न पाओ तो मेरा सिर तलवार से कलम कर दो l " सुल्तान की न्यायप्रियता देखकर मजदूर दांग रह गया l उसने कहा ---- " हुजुर ! मुझे दोनों में से कुछ नहीं चाहिए l केवल आप यह भूल दोबारा न करें l आप निरीह प्राणियों का वध करना छोड़ दें l " बादशाह ने उस दिन के बाद से शिकार करना छोड़ दिया l
6 September 2024
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4 September 2024
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इस संसार में असुरता स्रष्टि के आरम्भ से ही रही है l ईश्वर ने इतने अवतार लिए असुरों के नाश के लिए लेकिन असुर समाप्त नहीं हुए l असुरता के संस्कार ऐसे हैं कि वे पीढ़ी -दर -पीढ़ी बढ़ते ही जा रहे हैं l अंतर केवल इतना है कि पहले संसार में असुर स्पष्ट दिखाई देते थे जैसे रावण और उसके एक लाख पूत , सवा लाख नाती और विभिन्न सहयोगी , उन सबकी असुर के रूप में स्पष्ट पहचान थी l वे ऋषियों को मारते , सताते थे , सत्कार्यों में बाधा डालते थे l द्वापर युग में भी दुर्योधन आदि कौरवों का अधर्मी और षड्यंत्रकारी होना सबके सामने स्पष्ट था l ------ लेकिन कलियुग में स्थिति इतनी खतरनाक इसलिए हो गई है क्योंकि अब असुरता लोगों के भीतर , उनके ह्रदय में , उनके अस्तित्व में समां गई है l अब हम उन्हें देखकर , उनके साथ कार्य कर के , एक थाली में खाना खाकर भी हम पहचान नहीं सकते कि वे कितने बड़े असुर हैं l चेहरे पर इतने नकाब हैं कि उनके भीतर के दानव को समझ पाना असंभव है l ईश्वर की कृपा से जिसका विवेक जाग्रत हो जाए वही उन्हें पहचान सकता है l देवता और असुरों में केवल सोच का फरक है l देवता अपनी शक्तियों का सदुपयोग करते हैं , संसार के कल्याण के लिए कार्य करते हैं और असुर अपनी उन्ही शक्तियों का प्रयोग दूसरों को सताने , उत्पीड़ित करने और प्रकृति को नष्ट करने , मानवता को मिटाने के लिए करते हैं l सच तो यह है कि ये असुर दया के पात्र हैं , सबको मिटाने के चक्कर में वे स्वयं मिट जाएंगे l बड़ी मुश्किल से मिला ये मानव शरीर , युगों -युगों तक प्रेत और पिशाच योनि में फिरेगा l असुर बड़े अहंकारी होते हैं , कभी सुधरते नहीं , लोगों को सताना , छल , कपट षड्यंत्र करना नहीं छोड़ते नहीं इसलिए जो भी देवत्व के मार्ग पर हैं और आसुरी तत्वों से पीड़ित हैं वे स्वयं बदले की भावना न रखें , न्याय के लिए ईश्वर हैं l ईश्वर से उनकी सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें , असुरों की सोच बदल जाये तो धरती पर शांति और सुकून हो l ------ एक संत नाव से नदी पर कर रहे थे l नाव में बैठे शरारती तत्व उन्हें परेशान करने लगे l जब वे रात्रिकालीन प्रार्थना में बैठे , ध्यान करने लगे तो शरारती तत्वों ने उनके सिर पर जूते मारना शुरू कर दिया l तभी आकाशवाणी हुई --- " मेरे प्यारे ! तू कहे तो मैं नाव उलट दूँ l " संत यह सुनकर हैरान हुए और कहा ---- " हे प्रभु ! प्रार्थना के समय यह शैतान की वाणी क्यों सुनाई पड़ने लगी l यदि कुछ उलटने की आवश्यकता है तो इनकी बुद्धि उलट दे l " बुद्धि सन्मार्ग पर आ जाए तो वे ऐसी हरकत करेंगे ही नहीं l परमात्मा ने कहा --- " मैं बहुत खुश हूँ कि तुमने शैतान को पहचान लिया l मैं तो सर्वदा प्रेम में विश्वास करता हूँ , बैर और विध्वंस से मेरा कोई संबंध नहीं है l "
2 September 2024
WISDOM ----
महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम की बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए समय -समय पर उनसे बेतुके सवाल किया करते थे l एक दिन उन्होंने तेनालीराम से पूछा ---- " ये बताओ हमारे राज्य में कबूतरों की संख्या कुल कितनी है ? सही संख्या जानने के लिए हम तुम्हे एक सप्ताह का समय देते हैं , यदि तुम गणना नहीं कर पाए तो तुम्हारा सिर कलम कर दिया जायेगा l " तेनालीराम से कुढ़ने वाले दरबारियों ने सोचा कि इस बार तेनालीराम का बच पाना मुश्किल है l एक सप्ताह बाद तेनालीराम फिर दरबार में हाजिर हुए l महाराज के पूछने पर वे बोले ----- " महाराज हमारे राज्य में कुल तीन लाख बाईस हजार चार सौ बीस कबूतर हैं l आप संतुष्ट न हों तो किसी से इनकी गिनती करा लें l यदि गिनती ज्यादा हुई तो ये वो कबूतर हैं जो हमारे राज्य में मेहमान बनकर आए हैं और कम हुई तो उन कबूतरों के कारण जो दूसरे राज्य में मेहमान बन कर गए हैं l "