इस संसार में असुरता स्रष्टि के आरम्भ से ही रही है l ईश्वर ने इतने अवतार लिए असुरों के नाश के लिए लेकिन असुर समाप्त नहीं हुए l असुरता के संस्कार ऐसे हैं कि वे पीढ़ी -दर -पीढ़ी बढ़ते ही जा रहे हैं l अंतर केवल इतना है कि पहले संसार में असुर स्पष्ट दिखाई देते थे जैसे रावण और उसके एक लाख पूत , सवा लाख नाती और विभिन्न सहयोगी , उन सबकी असुर के रूप में स्पष्ट पहचान थी l वे ऋषियों को मारते , सताते थे , सत्कार्यों में बाधा डालते थे l द्वापर युग में भी दुर्योधन आदि कौरवों का अधर्मी और षड्यंत्रकारी होना सबके सामने स्पष्ट था l ------ लेकिन कलियुग में स्थिति इतनी खतरनाक इसलिए हो गई है क्योंकि अब असुरता लोगों के भीतर , उनके ह्रदय में , उनके अस्तित्व में समां गई है l अब हम उन्हें देखकर , उनके साथ कार्य कर के , एक थाली में खाना खाकर भी हम पहचान नहीं सकते कि वे कितने बड़े असुर हैं l चेहरे पर इतने नकाब हैं कि उनके भीतर के दानव को समझ पाना असंभव है l ईश्वर की कृपा से जिसका विवेक जाग्रत हो जाए वही उन्हें पहचान सकता है l देवता और असुरों में केवल सोच का फरक है l देवता अपनी शक्तियों का सदुपयोग करते हैं , संसार के कल्याण के लिए कार्य करते हैं और असुर अपनी उन्ही शक्तियों का प्रयोग दूसरों को सताने , उत्पीड़ित करने और प्रकृति को नष्ट करने , मानवता को मिटाने के लिए करते हैं l सच तो यह है कि ये असुर दया के पात्र हैं , सबको मिटाने के चक्कर में वे स्वयं मिट जाएंगे l बड़ी मुश्किल से मिला ये मानव शरीर , युगों -युगों तक प्रेत और पिशाच योनि में फिरेगा l असुर बड़े अहंकारी होते हैं , कभी सुधरते नहीं , लोगों को सताना , छल , कपट षड्यंत्र करना नहीं छोड़ते नहीं इसलिए जो भी देवत्व के मार्ग पर हैं और आसुरी तत्वों से पीड़ित हैं वे स्वयं बदले की भावना न रखें , न्याय के लिए ईश्वर हैं l ईश्वर से उनकी सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें , असुरों की सोच बदल जाये तो धरती पर शांति और सुकून हो l ------ एक संत नाव से नदी पर कर रहे थे l नाव में बैठे शरारती तत्व उन्हें परेशान करने लगे l जब वे रात्रिकालीन प्रार्थना में बैठे , ध्यान करने लगे तो शरारती तत्वों ने उनके सिर पर जूते मारना शुरू कर दिया l तभी आकाशवाणी हुई --- " मेरे प्यारे ! तू कहे तो मैं नाव उलट दूँ l " संत यह सुनकर हैरान हुए और कहा ---- " हे प्रभु ! प्रार्थना के समय यह शैतान की वाणी क्यों सुनाई पड़ने लगी l यदि कुछ उलटने की आवश्यकता है तो इनकी बुद्धि उलट दे l " बुद्धि सन्मार्ग पर आ जाए तो वे ऐसी हरकत करेंगे ही नहीं l परमात्मा ने कहा --- " मैं बहुत खुश हूँ कि तुमने शैतान को पहचान लिया l मैं तो सर्वदा प्रेम में विश्वास करता हूँ , बैर और विध्वंस से मेरा कोई संबंध नहीं है l "
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