21 September 2024

WISDOM ------

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  की  अमृतवाणी   के  कुछ  अंश ------   तप  का  अर्थ  है  --आत्म परिष्कार  के  लिए  तितिक्षा  करना  , कष्ट  सहना  l  तपाने  से  ईंट  मंदिर  की  नींव  में  लगती  है  l  तपाने  से   भस्म  खाने  योग्य  बनती  है  l  हमें  अपना  जीवन  मुसीबतों  से  खिलवाड़  करने  वाला  बनाना  चाहिए   l  शक्तियों  का  बिखराव  हम  रोकें   एवं  उन्हें  सृजन  में  नियोजित  करें   l  व्यावहारिक  जीवन  जीते  हुए  , संघर्ष  करते  हुए  , दुःखों  का  सामना  करते  हुए   जो  तपकर  कुंदन  की  तरह  दमकता  है  , वही  सही  अर्थों  में  तपस्वी  है  l  '                                                      ' मनुष्य  जीवन  पानी  का  बुलबुला  है  l  वह  पैदा  भी  होता  है   और  मर  भी  जाता  है  l  किन्तु  शाश्वत  रहते  हैं   उसके  कर्म  और  विचार  l  सदविचार  ही  मनुष्य  को   सत्कर्म  करने  के  लिए  प्रेरित  करते  हैं   और  सत्कर्म  ही  मनुष्य  का  मनुष्यत्व  सिद्ध  करते  हैं   l  मनुष्य  के  विचार  ही  उसका  वास्तविक  स्वरुप  होते  हैं  l  ये  विचार  ही  नए -नए  मस्तिष्कों  में  घुसकर   ह्रदय  में  प्रभाव  जमाकर   मनुष्य  को  देवता  बना  देते  हैं    और  राक्षस  भी  l  जैसे  विचार  होंगे   मनुष्य  वैसा  ही  बनता  जायेगा  l '                                                                                              '  मानव  जीवन  दुबारा  नहीं  मिलता   l  वह  क्षय  हेतु  नहीं  ,   गरिमा  के  अनुरूप  शानदार  जीवन   जीने  को  मिला  है  l  यह  हमें  स्वयं  ही  निश्चित  करना  है  कि  पतन  अभीष्ट  है   या  उत्कर्ष   ?   असुरता  प्रिय  है   या  देवत्व  ?   क्षुद्रता  चाहिए  या  महानता  ?   इसके  निर्माता  तुम  स्वयं  हो   l  पतन  के  पथ  पर   नारकीय  मार  सहनी  पड़ेगी  ,  उत्कर्ष  के  पथ  पर    स्वर्ग  जैसी  शांति  की  प्राप्ति  होगी   l  '                                                                               '  कहाँ  छिपा  बैठा  है   सच्चा  इनसान  ,  ढूंढते  जिसे  स्वयं  भगवान  l  '  

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