इस धरती पर अनेक सभ्यताओं का उदय हुआ और अस्त हुआ l ईश्वर कभी विनाश नहीं चाहते , उन्हें इस स्रष्टि में धरती बहुत प्रिय है , वे इसे बहुत सुंदर , खुशहाल देखना चाहते हैं लेकिन कभी ऐसी परिस्थिति निर्मित हो जाती हैं कि ईश्वर भी निर्लिप्त भाव से इस विनाश को देखते हैं l एक अति प्राचीन सभ्यता जो बहुत विकसित थी , युगों तक कायम रही लेकिन अचानक कुछ हुआ कि उस सभ्यता का नामोनिशान मिट गया l यह सब अचानक नहीं हुआ , उसकी किवदंती है ------ उस प्राचीन सभ्यता में सब लोग बहुत खुश थे , स्वस्थ थे l प्रेम था , भाईचारा था l शिक्षा , कला , साहित्य ----- जीवन का प्रत्येक क्षेत्र बहुत विकसित , सुंदर , सुहावना था l लोग इस सत्य को जानते थे कि ये धरती , ये मिटटी , हवा , जल , आकाश को हम नहीं बना सकते , कोई अज्ञात शक्ति है जिसने यह सब बनाया , वो सर्वसमर्थ है इसलिए हमें उस अज्ञात शक्ति के आगे अपना शीश झुकाना चाहिए l तब उस सभ्यता के जो बुद्धिजीवी थे उन्होंने अपने -अपने विचारों के अनुसार उस अज्ञात शक्ति को एक रूप दिया l अनेक रूप थे और जिसको जो अच्छा लगा , वह उसके आगे शीश झुकाने लगा l वह सभ्यता अति संपन्न थी , जैसे लोग बड़े महलों में सुखपूर्वक रहते थे वैसे ही उन्होंने उस अज्ञात शक्ति के लिए भी बड़े -बड़े महल बना दिए l बड़ा मोहक वातावरण था l इस अति की सुख -शांति की खबर आसुरी शक्तियों को मिल गई , सीधे रास्ते बात बन नहीं रही थी , उन्होंने अपने तरीकों से लोगों के मन और विचारों में गंदगी भरनी शुरू कर दी l विचारों की इस गंदगी को व्यवहारिक रूप देना था और संसार में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ भी दिखाना था , इसके लिए उन्होंने अज्ञात शक्ति के लिए जो बड़े -बड़े महल बने थे , उन्हें निशाना बनाया l सामान्य जन तो अभी भी वहां श्रद्धा से अपना शीश झुकाने जाता था , उसके प्रति अपना आभार व्यक्त करता कि हे धरती माँ , जल ,वायु , आकाश हम आपके ऋणी है लेकिन आसुरी प्रवृति के लोगों ने उन विशाल महलों की अपनी कामना , वासना , लालच , स्वार्थ , महत्वाकांक्षा और अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति का स्थान बना लिया l सामान्य जन को उनकी इन करतूतों की भनक न लग जाए इसकी भी पर्याप्त व्यवस्था की , और यदि जनता को खबर लग जाये तो उन्हें कंट्रोल करने के साधन भी एकत्रित कर लिए l सामान्य जन तो बेखबर था लेकिन ईश्वर तो सब देख रहे थे l पाप , अनाचार की अति हो गई , प्रकृति से यह सब सहन नहीं हुआ l भयंकर आँधी , तूफ़ान , वर्षा , प्रलय की स्थिति आ गई और एक भयानक भूकंप के साथ वह सभ्यता धरती में समा गई l कुछ लोग जो बच गए वे आकाश की ओर देखकर बार -बार पूछ रहे थे , प्रार्थना कर रहे थे कि आखिर ऐसा क्यों हुआ ? उनकी आँखों से निरंतर आँसू गिर रहे थे , ऐसा क्यों हुआ ? क्या कुसूर था ? ब्रह्माण्ड से एक ही आवाज आई --- ईश्वर को धोखा दिया , धोखा --- ---- उनकी पवित्रता को नष्ट किया , सामान्य जन भी जागरूक नहीं था l '
No comments:
Post a Comment