एक संत बियाबान में झोंपड़ी बनाकर रहते थे l वे राह से गुजरने वाले पथिकों की सेवा करते और भूखों को भोजन कराया करते l एक दिन एक बूढ़ा व्यक्ति उस राह से गुजरा l उन्होंने हमेशा की तरह उसे विश्राम करने को स्थान दिया और फिर खाने की थाली उसके आगे रख दी l बूढ़े व्यक्ति ने बिना प्रभु का स्मरण किए भोजन प्रारंभ कर दिया l जब संत ने उन्हें याद दिलाया तो वे बोले ---- " मैं किसी भगवान को नहीं मानता l l " यह सुनकर संत को क्रोध आ गया और उन्होंने बूढ़े व्यक्ति के सामने से भोजन की थाली खींचकर उसे भूखा ही विदा कर दिया l उस रात उन्हें स्वप्न में भगवान के दर्शन हुए l भगवान बोले --- " पुत्र ! उस वृद्ध व्यक्ति के साथ तुमने जो व्यवहार किया , उससे मुझे बहुत दुःख हुआ l " संत ने आश्चर्य से पूछा ---- " प्रभु ! मैंने तो ऐसा इसलिए किया कि उसने आपके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया l " भगवान बोले ---- " उसने मुझे नहीं माना तो भी मैंने आज तक उसे भूखा नहीं सोने दिया और तुम उसे एक दिन का भी भोजन न करा सके l " यह सुनकर संत की आँखों में आँसू आ गए और स्वप्न टूटने के साथ उनकी आँखें भी खुल गईं l
11 November 2020
10 November 2020
WISDOM ------
एक बार साम्यवादी विचारधारा के एक पाश्चात्य विद्वान् महात्मा गाँधी के पास जाकर बोले ---- " महात्मा जी ! जब संसार में इतना छल - कपट , अशांति और खून - खराबा चल रहा है , तब भी आप धर्म की बात करते हैं l बुराइयाँ और रक्तपात जितनी तेजी से बढ़ रहे हैं , उसे देखते हुए धर्म निहायत बेकार चीज है l " बापू ने कहा ---- " महोदय ! जरा सोचिए तो सही कि जब धर्म की मान्यता रहते हुए लोग इतनी अशांति फैलाए हुए हैं , तो उसके न रहने पर यह कल्पना सहज ही की जा सकती है कि तब संसार की क्या दशा होगी ? " इस पर उन सज्जन से कोई जवाब देते न बन पड़ा l
WISDOM -----
महर्षि रमण के आश्रम के समीपवर्ती गाँव में एक अध्यापक रहते थे l एक बार अपने पारिवारिक जीवन से अत्यधिक क्षुब्ध होकर आत्महत्या करने की बात सोचने लगे l किसी निर्णय पर पहुँचने से पहले उन्होंने महर्षि की सम्मति जाननी चाही और उनके आश्रम में पहुँच गए l महर्षि रमण आश्रमवासियों के भोजन के लिए पत्तलें बना रहे थे l दिव्यद्रष्टा ऋषि ने अध्यापक महोदय के आने का अभिप्राय समझ लिया था l प्रणाम करने के उपरांत अध्यापक बोले -- ' भगवन ! आप इन पत्तलों को इतने परिश्रम के साथ बना रहे हैं और आश्रमवासी इनमें खाना खाकर फेंक देंगे l ' महर्षि मुसकराते हुए बोले ---- ' सो तो ठीक है , वस्तु का पूर्ण उपयोग हो जाने पर उसे फेंक देना बुरा नहीं है , बुरा तो तब है जब उसे अच्छी अवस्था में ही ख़राब कर के फेंक दिया जाये l ' अध्यापक महोदय को महर्षि का मर्मस्पर्शी अभिप्राय समझ में आ गया और उन्होंने आत्महत्या करने का इरादा छोड़ दिया l
9 November 2020
WISDOM ------
संत इब्राहीम ने ईश्वर भक्ति के लिए घर छोड़ दिया और वे भिक्षाटन पर निर्वाह कर के साधनारत रहने लगे l किसी किसान के यहाँ वे भिक्षा मांग रहे थे , तो उसने रोककर कहा --- " आप जवान हैं , परिश्रमपूर्वक निर्वाह करें l बचे समय में साधना करें l समर्थ का भिक्षा माँगना उचित नहीं l " इब्राहीम को बात जँच गई l उनने इस सदुपदेशकर्ता का एहसान माना और कहा ---- " तो फिर इतनी कृपा और करें कि मुझे काम दिला दें , ताकि गुजारे के संबंध में निश्चिन्त रहकर भजन करता रह सकूँ l " किसान का एक आम का बगीचा था l उसकी रखवाली का काम सौंप दिया l निर्वाह का प्रबंध हो गया , दोनों को सुविधा रही l बहुत दिनों बाद आम की फसल के दिनों में किसान बगीचे में पहुंचा और मीठे आम तोड़कर लाने के लिए कहा l इब्राहीम ने बड़े और पके फल लाकर सामने रख दिए l वे सभी खट्टे थे l नाराजी का भाव दिखाते हुए किसान ने कहा --- " इतने दिन यहाँ रहते हुए हो गए , इस पर भी यह नहीं देखा कि कौन पेड़ खट्टे और कौन मीठे फलों का है l " इब्राहीम ने नम्रता पूर्वक कहा --- " मैंने कभी किसी पेड़ का फल नहीं चखा l बिना आपकी आज्ञा के चोरी कर के मैं क्यों चखता ? " किसान इस रखवाले की ईमानदारी और बफादारी पर बहुत प्रसन्न हुआ l उसने कहा --- " आप पूरे समय भजन करें l निर्वाह मिलता रहेगा l रखवाला दूसरा रख लेंगे l इब्राहीम दूसरे दिन बड़े सबेरे ही उठकर अन्यत्र चले गए l चिट्ठी रख गए , उसमे लिखा था --- " आपने आरंभ में कहा था बिना परिश्रम के नहीं खाना चाहिए l आपकी उस अनुशासन भरी शिक्षा से ही मेरी श्रद्धा बढ़ी l अब तो आप ठीक उलटा उपदेश करने लगे l मुफ्त का खाने लगूँ , यह कैसे होगा ? आपकी बदली हुई शिक्षा को देखकर मैंने चला जाना ही उचित समझा l " जिसके संस्कार श्रेष्ठ होते हैं वह कभी अपने पथ से भ्रमित नहीं होता , कोई भी लालच उसे डिगा नहीं पाता l
WISDOM -----
गाँधी जी से एक मारवाड़ी सेठ मिलने आए l वे मारवाड़ी वेशभूषा में थे और बड़ी पगड़ी बाँधे थे l बातचीत में उन्होंने पूछा ---- " गांधीजी आपके नाम पर लोग देश भर में गाँधी टोपी पहनते हैं और आप इसका इस्तेमाल नहीं करते , ऐसा क्यों ? " गाँधी जी बोले ---- " आप बिलकुल ठीक कहते हैं , पर आप अपनी पगड़ी को उतार कर तो देखिए l इसमें बीस टोपियाँ बन सकती हैं l जब उतना कपड़ा आप जैसे व्यक्ति अपनी पगड़ी में लगा सकते हैं तो बेचारे उन्नीस आदमियों को नंगे सिर रहना पड़ेगा l उन्ही उन्नीस आदमियों में से मैं भी एक हूँ l " गाँधी जी का उत्तर सुनकर सेठ को शर्मिंदगी महसूस हुई l गाँधी जी बोले --- " अपव्यय , संचय की वृत्ति अन्य व्यक्तियों को अपने हिस्से से वंचित कर देती है तो मेरे जैसे अनेक व्यक्तियों को टोपी से वंचित रहकर उस संचय की पूर्ति करनी पड़ती है l "
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पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- ' हम सब के भीतर खुशियों का खजाना छिपा हुआ है l खुशियाँ चाहते हो तो सबसे पहले अपने अन्तस् में खोजो l जो यहाँ खोजने की कोशिश न कर के बाहर खोजता है , वह सदा खोजता ही रहता है , किन्तु पाता कुछ भी नहीं l "--------- एक भिखारी था , वह जिंदगी भर एक जगह पर बैठकर भीख मांगता रहा l उसकी ख्वाहिश थी कि वह भी धनवान बने , इसलिए वह दिन में ही नहीं , रात में भी भीख मांगता था l जो कुछ उसे भीख में मिलता उसे खरच करने के बजाय जोड़ता रहता l अपनी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए उसने दिन - रात भरपूर कोशिश की , लेकिन वह कभी भी धनवान न हो सका l वह भिखारी की तरह ही जिया और भिखारी की तरह मरा l जब वह मरा तो कफ़न के लायक भी पूरे पैसे उसके पास नहीं थे l उसके मर जाने के बाद आस - पास के लोगों ने उसका झोंपड़ा तोड़ दिया l फिर सबने मिलकर वहां की जमीन साफ की l सफाई करने वाले इन सभी को तब भारी अचरज हुआ जब उन्हें उस जगह पर बड़ा भारी खजाना गड़ा हुआ मिला l यह ठीक वही जगह थी , जिस जगह पर बैठकर वह भिखारी भीख माँगा करता था l जहाँ पर वह बैठता था , उसके ठीक नीचे यह भारी खजाना गड़ा हुआ था l ---- जो खुशियों की तलाश में बाहर भटकते हैं , उनकी हालत भी कुछ ऐसी ही है l आचार्य श्री लिखते हैं --- बड़े से बड़े खोजियों ने , यात्रियों ने सारी दुनिया में , सारी उम्र भटक कर अंतत: यह खुशियों का खजाना अपने ही अन्तस् में पाया है l
7 November 2020
WISDOM -----
राजा भोज ने युद्ध में विजय के उपलक्ष्य में सारे नगर को भोज दिया l नाना प्रकार के व्यंजन इसमें बनाए और परोसे गए l खाने वालों ने राजा भोज की उदारता की भरपूर प्रशंसा की , जिसे सुनकर राजा भोज का सिर अहंकार से ऊपर उठ गया l और अधिक प्रशंसा सुनने के उद्देश्य से वे वेश बदल कर नगर भ्रमण को निकले l मार्ग में एक लकड़हारा मिला , जो अपने कंधे पर लकड़ियों का एक बड़ा गट्ठर लिए चला जा रहा था l राजा भोज उसे रोककर बोले --- " क्यों भाई ! आज के दिन तो राजा ने बड़ा भोज दिया था , फिर इतनी ज्यादा मेहनत किसलिए कर रहे हो ? क्या तुम्हे भोज का आमंत्रण नहीं मिला था ? " सुनकर लकड़हारा बोला ------- " नहीं भाई ! निमंत्रण तो मिला था , पर मैंने सोचा कि यदि बिना परिश्रम के खाने की आदत पड़ गई तो जीवन भर ऐसे ही निमंत्रणों की प्रतीक्षा करता रहूँगा और परिश्रम करने की प्रवृति गँवा बैठूंगा l आत्मगौरव अपने परिश्रम का खाने में ही है , दूसरों की प्रदत्त सहायता में नहीं l " राजा भोज का अहंकार लकड़हारे की बात सुनकर विगलित हो गया , पर साथ ही उन्हें इस बात का गर्व भी हुआ कि उनके राज्य में इतने नैष्ठिक नागरिक भी निवास करते हैं l