11 November 2020

WISDOM ------

   एक  संत   बियाबान  में  झोंपड़ी  बनाकर  रहते   थे l   वे  राह  से  गुजरने  वाले   पथिकों  की  सेवा  करते  और  भूखों  को  भोजन  कराया  करते  l   एक  दिन  एक  बूढ़ा  व्यक्ति  उस  राह  से  गुजरा  l   उन्होंने  हमेशा  की  तरह   उसे  विश्राम  करने  को  स्थान  दिया   और  फिर  खाने  की  थाली  उसके  आगे  रख  दी  l  बूढ़े  व्यक्ति  ने  बिना  प्रभु  का  स्मरण  किए   भोजन  प्रारंभ   कर  दिया  l   जब  संत  ने  उन्हें  याद  दिलाया  तो   वे  बोले  ---- "  मैं  किसी  भगवान  को  नहीं  मानता  l l "  यह  सुनकर  संत  को  क्रोध  आ  गया   और  उन्होंने  बूढ़े  व्यक्ति  के  सामने  से   भोजन  की  थाली  खींचकर    उसे  भूखा  ही  विदा  कर  दिया  l  उस  रात  उन्हें  स्वप्न  में  भगवान  के  दर्शन  हुए  l  भगवान  बोले --- " पुत्र  ! उस  वृद्ध  व्यक्ति  के  साथ  तुमने  जो  व्यवहार  किया  ,  उससे  मुझे  बहुत  दुःख  हुआ  l "  संत  ने  आश्चर्य  से  पूछा  ---- " प्रभु  !  मैंने  तो  ऐसा  इसलिए  किया   कि  उसने  आपके  लिए  अपशब्दों   का  प्रयोग   किया  l  "  भगवान  बोले  ---- "  उसने  मुझे  नहीं  माना   तो  भी  मैंने   आज  तक  उसे  भूखा   नहीं  सोने  दिया   और  तुम  उसे  एक  दिन  का  भी    भोजन   न  करा  सके   l  "   यह  सुनकर  संत  की  आँखों  में  आँसू   आ  गए    और  स्वप्न  टूटने  के  साथ   उनकी  आँखें  भी  खुल  गईं   l 

10 November 2020

WISDOM ------

  एक  बार  साम्यवादी  विचारधारा   के  एक  पाश्चात्य    विद्वान्   महात्मा  गाँधी   के  पास  जाकर  बोले  ---- " महात्मा जी  !  जब  संसार  में  इतना  छल - कपट  ,  अशांति  और  खून - खराबा   चल  रहा  है  ,  तब  भी  आप  धर्म  की  बात  करते  हैं  l  बुराइयाँ   और   रक्तपात  जितनी  तेजी   से बढ़  रहे  हैं  ,  उसे  देखते  हुए   धर्म  निहायत  बेकार  चीज  है  l  "   बापू  ने  कहा ---- " महोदय  !  जरा  सोचिए   तो  सही   कि  जब  धर्म  की  मान्यता  रहते  हुए   लोग  इतनी   अशांति  फैलाए   हुए  हैं  ,  तो  उसके  न  रहने  पर   यह  कल्पना  सहज  ही  की  जा  सकती  है   कि  तब   संसार  की  क्या  दशा  होगी   ?  "  इस  पर  उन  सज्जन  से  कोई  जवाब  देते  न  बन  पड़ा  l 

WISDOM -----

   महर्षि  रमण   के  आश्रम  के  समीपवर्ती  गाँव  में   एक  अध्यापक  रहते  थे  l   एक  बार  अपने  पारिवारिक  जीवन  से  अत्यधिक   क्षुब्ध  होकर   आत्महत्या  करने  की  बात  सोचने  लगे  l   किसी  निर्णय  पर  पहुँचने  से  पहले   उन्होंने  महर्षि   की  सम्मति  जाननी   चाही    और  उनके  आश्रम  में  पहुँच  गए  l   महर्षि  रमण   आश्रमवासियों  के   भोजन  के  लिए  पत्तलें  बना  रहे  थे   l   दिव्यद्रष्टा  ऋषि  ने  अध्यापक  महोदय   के  आने  का  अभिप्राय  समझ  लिया   था  l   प्रणाम  करने  के   उपरांत  अध्यापक  बोले  -- ' भगवन  !   आप  इन  पत्तलों  को   इतने  परिश्रम  के  साथ  बना  रहे  हैं   और  आश्रमवासी   इनमें  खाना  खाकर   फेंक  देंगे  l '  महर्षि  मुसकराते   हुए  बोले  ---- '  सो  तो  ठीक  है  ,  वस्तु   का   पूर्ण  उपयोग  हो  जाने  पर   उसे  फेंक  देना  बुरा  नहीं  है  ,   बुरा  तो  तब  है   जब  उसे  अच्छी  अवस्था  में  ही   ख़राब  कर  के  फेंक  दिया  जाये   l  '   अध्यापक  महोदय  को   महर्षि  का  मर्मस्पर्शी   अभिप्राय   समझ  में  आ  गया    और  उन्होंने  आत्महत्या  करने  का   इरादा  छोड़  दिया  l 

9 November 2020

WISDOM ------

   संत  इब्राहीम   ने  ईश्वर  भक्ति  के  लिए  घर  छोड़  दिया   और  वे  भिक्षाटन  पर  निर्वाह  कर  के  साधनारत   रहने  लगे  l  किसी  किसान  के  यहाँ  वे  भिक्षा  मांग  रहे  थे  ,  तो  उसने  रोककर  कहा  --- " आप  जवान  हैं  ,  परिश्रमपूर्वक  निर्वाह  करें   l   बचे  समय  में  साधना  करें  l   समर्थ  का  भिक्षा  माँगना  उचित  नहीं  l  "    इब्राहीम   को  बात  जँच   गई  l   उनने  इस  सदुपदेशकर्ता  का  एहसान   माना   और   कहा ---- "  तो  फिर  इतनी  कृपा  और  करें   कि   मुझे  काम  दिला  दें  ,  ताकि   गुजारे   के  संबंध   में  निश्चिन्त  रहकर   भजन  करता  रह  सकूँ  l  "  किसान   का एक  आम  का  बगीचा  था  l   उसकी  रखवाली  का  काम  सौंप  दिया  l   निर्वाह  का  प्रबंध  हो  गया  ,  दोनों   को सुविधा  रही   l  बहुत  दिनों  बाद   आम  की  फसल  के  दिनों  में  किसान   बगीचे  में  पहुंचा   और  मीठे  आम  तोड़कर  लाने  के  लिए  कहा  l   इब्राहीम   ने  बड़े   और  पके  फल  लाकर  सामने  रख  दिए  l   वे  सभी  खट्टे  थे   l   नाराजी  का  भाव  दिखाते   हुए   किसान  ने  कहा --- " इतने   दिन यहाँ  रहते  हुए  हो  गए  ,  इस  पर  भी  यह  नहीं  देखा  कि  कौन  पेड़  खट्टे  और  कौन  मीठे  फलों  का  है  l  "  इब्राहीम   ने  नम्रता पूर्वक  कहा  --- " मैंने  कभी  किसी  पेड़  का  फल   नहीं  चखा  l   बिना  आपकी  आज्ञा  के  चोरी  कर  के  मैं  क्यों  चखता   ? "  किसान  इस  रखवाले  की  ईमानदारी   और  बफादारी  पर  बहुत  प्रसन्न  हुआ  l   उसने  कहा  --- "  आप  पूरे   समय  भजन  करें   l   निर्वाह  मिलता  रहेगा  l   रखवाला   दूसरा  रख  लेंगे   l   इब्राहीम   दूसरे  दिन  बड़े  सबेरे  ही  उठकर   अन्यत्र  चले  गए  l   चिट्ठी  रख  गए    ,  उसमे  लिखा  था --- " आपने  आरंभ   में  कहा  था    बिना  परिश्रम  के  नहीं  खाना  चाहिए   l  आपकी   उस   अनुशासन  भरी  शिक्षा  से  ही  मेरी  श्रद्धा  बढ़ी  l   अब  तो  आप  ठीक  उलटा   उपदेश  करने  लगे  l   मुफ्त  का  खाने  लगूँ ,  यह  कैसे  होगा  ?  आपकी  बदली  हुई   शिक्षा   को देखकर    मैंने  चला  जाना  ही  उचित  समझा   l   "  जिसके  संस्कार  श्रेष्ठ  होते  हैं    वह  कभी  अपने  पथ  से   भ्रमित  नहीं  होता  ,  कोई  भी  लालच  उसे  डिगा   नहीं पाता l 

WISDOM -----

     गाँधी जी  से  एक  मारवाड़ी  सेठ  मिलने  आए  l   वे  मारवाड़ी  वेशभूषा  में  थे   और  बड़ी  पगड़ी  बाँधे   थे   l   बातचीत  में  उन्होंने  पूछा  ---- " गांधीजी  आपके  नाम  पर   लोग  देश  भर  में   गाँधी  टोपी  पहनते  हैं   और  आप  इसका  इस्तेमाल  नहीं  करते  ,  ऐसा  क्यों   ? "   गाँधी जी  बोले  ---- " आप  बिलकुल  ठीक  कहते  हैं  ,  पर  आप  अपनी  पगड़ी  को  उतार कर  तो  देखिए  l   इसमें  बीस  टोपियाँ   बन  सकती  हैं  l   जब  उतना  कपड़ा   आप  जैसे  व्यक्ति   अपनी  पगड़ी  में  लगा  सकते  हैं    तो  बेचारे   उन्नीस  आदमियों  को  नंगे  सिर   रहना  पड़ेगा  l   उन्ही  उन्नीस  आदमियों  में  से   मैं  भी  एक  हूँ  l "  गाँधी जी  का  उत्तर  सुनकर  सेठ  को  शर्मिंदगी  महसूस  हुई  l    गाँधी जी    बोले  ---  " अपव्यय  , संचय  की  वृत्ति   अन्य  व्यक्तियों  को   अपने  हिस्से  से  वंचित  कर  देती  है   तो  मेरे  जैसे  अनेक  व्यक्तियों  को   टोपी  से  वंचित  रहकर   उस  संचय  की  पूर्ति  करनी  पड़ती  है   l  "

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   का  कहना  है ---- ' हम  सब  के  भीतर  खुशियों  का  खजाना  छिपा  हुआ  है  l   खुशियाँ   चाहते  हो  तो   सबसे  पहले  अपने  अन्तस्   में  खोजो  l   जो  यहाँ  खोजने  की  कोशिश  न  कर  के    बाहर  खोजता  है  ,  वह  सदा  खोजता  ही  रहता  है  ,  किन्तु  पाता   कुछ  भी  नहीं   l  "--------- एक    भिखारी  था   ,  वह  जिंदगी  भर  एक  जगह  पर  बैठकर   भीख  मांगता  रहा  l  उसकी  ख्वाहिश   थी  कि   वह  भी  धनवान  बने  ,  इसलिए  वह  दिन  में  ही  नहीं  ,  रात  में  भी  भीख  मांगता   था  l  जो  कुछ  उसे  भीख  में  मिलता  उसे   खरच  करने  के  बजाय  जोड़ता  रहता  l  अपनी  ख्वाहिश  को  पूरा  करने  के  लिए  उसने  दिन - रात  भरपूर   कोशिश  की  ,  लेकिन   वह कभी  भी  धनवान  न  हो  सका  l   वह  भिखारी  की  तरह  ही  जिया  और   भिखारी  की  तरह  मरा  l   जब  वह  मरा   तो  कफ़न  के  लायक  भी   पूरे   पैसे  उसके  पास  नहीं  थे  l  उसके  मर  जाने   के बाद   आस - पास  के  लोगों  ने उसका  झोंपड़ा   तोड़  दिया  l   फिर  सबने  मिलकर  वहां  की  जमीन   साफ   की  l   सफाई  करने  वाले   इन  सभी  को  तब     भारी   अचरज   हुआ  जब   उन्हें  उस  जगह  पर  बड़ा  भारी   खजाना  गड़ा   हुआ  मिला   l   यह  ठीक  वही  जगह  थी  ,  जिस  जगह  पर   बैठकर    वह  भिखारी  भीख  माँगा  करता  था   l   जहाँ  पर  वह  बैठता  था  ,  उसके  ठीक  नीचे  यह  भारी  खजाना  गड़ा   हुआ  था  l   ---- जो  खुशियों  की  तलाश  में  बाहर  भटकते  हैं  ,  उनकी  हालत  भी  कुछ  ऐसी  ही  है  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- बड़े  से  बड़े   खोजियों  ने , यात्रियों  ने   सारी   दुनिया  में  ,  सारी   उम्र  भटक  कर   अंतत:   यह  खुशियों  का  खजाना   अपने  ही  अन्तस्   में  पाया  है   l  

7 November 2020

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   राजा  भोज  ने  युद्ध  में  विजय  के  उपलक्ष्य  में   सारे  नगर  को  भोज  दिया  l   नाना  प्रकार  के  व्यंजन  इसमें  बनाए   और  परोसे  गए   l  खाने  वालों  ने  राजा  भोज  की  उदारता  की  भरपूर  प्रशंसा  की  ,  जिसे  सुनकर  राजा  भोज  का  सिर   अहंकार  से   ऊपर  उठ  गया  l  और  अधिक  प्रशंसा  सुनने  के  उद्देश्य  से   वे  वेश  बदल  कर   नगर  भ्रमण   को  निकले  l   मार्ग  में  एक  लकड़हारा  मिला  ,  जो  अपने  कंधे  पर   लकड़ियों  का   एक  बड़ा  गट्ठर   लिए  चला  जा  रहा  था  l   राजा  भोज  उसे  रोककर  बोले  --- " क्यों  भाई  !  आज  के  दिन  तो  राजा   ने   बड़ा  भोज  दिया   था ,  फिर  इतनी  ज्यादा  मेहनत   किसलिए  कर  रहे  हो  ?  क्या  तुम्हे  भोज  का  आमंत्रण  नहीं  मिला   था  ? "  सुनकर  लकड़हारा  बोला  ------- " नहीं  भाई  !  निमंत्रण  तो  मिला  था  ,  पर  मैंने  सोचा  कि  यदि  बिना  परिश्रम  के  खाने  की  आदत  पड़   गई   तो  जीवन  भर  ऐसे  ही  निमंत्रणों  की   प्रतीक्षा  करता  रहूँगा   और  परिश्रम  करने  की  प्रवृति  गँवा  बैठूंगा  l   आत्मगौरव  अपने  परिश्रम  का  खाने   में  ही  है  ,  दूसरों  की  प्रदत्त  सहायता  में  नहीं   l "  राजा  भोज   का अहंकार  लकड़हारे  की  बात  सुनकर  विगलित  हो  गया  ,  पर  साथ  ही  उन्हें   इस  बात  का  गर्व  भी  हुआ  कि   उनके  राज्य  में  इतने  नैष्ठिक   नागरिक  भी  निवास  करते  हैं  l