पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " द्रष्टिकोण में बसते हैं स्वर्ग -नरक l स्वर्ग और नरक किसी स्थान या जिले का नाम नहीं है , यह हमारी आँखों से देखने का एक तरीका है l जब हम अपने से पिछड़े और गुजरे हुए लोगों की ओर देखते हैं तो मालूम होता है कि हम हजारों , लाखों करोड़ों मनुष्यों की अपेक्षा ज्यादा सुखी हैं l लेकिन यदि हम आसमान की ओर देखेंगे , अपने से अधिक संपन्न लोगों को देखेंगे तो हमें बड़ा क्लेश , ईर्ष्या , द्वेष और जलन होगी कि अमुक के पास कितना सुख -वैभव है और हमारा जीवन दुःख में डूबा हुआ है l आचार्य श्री कहते हैं --सुख वस्तुओं में नहीं , यह मनुष्य की सोच है जो मनुष्य को सुखी और दुखी बनाती है l अपने से ऊपर देखने की महत्वाकांक्षा रखने वाले दिन रात जलते रहते हैं l कामनाएं असीम और अपार हैं , ऐसे लोगों को शांति नहीं है , वे निरंतर अशांति की आग में जलते रहते हैं l आचार्य श्री कहते हैं --मनुष्य का जीवन प्रगतिशील एवं उन्नतिशील होना चाहिए , लेकिन अशांत और विक्षुब्ध नहीं l एक कथा है ------- एक मल्लाह था , वे एक बड़ी भारी नाव को खेते हुए चले आ रहे थे l थोड़ी देर बाद भयंकर तूफान आया और जहाज डगमगाने लगा l मल्लाह ने अपने बेटे से कहा ---- " ऊपर जाओ और अपने पाल को ऊपर ठीक से बाँध आओ l पाल को और पतवार को ठीक से बाँध दिया जाए तो हवा के रुख में कमी हो जाएगी और हमारी नाव डगमगाने से बच जाएगी l " बेटा रस्सी के सहारे बांस पर चढ़ता हुआ ऊपर गया और पाल को पतवार से ठीक तरह से बाँध दिया l उसने देखा कि चारों ओर समुद्र में ऊँची -ऊँची लहरें उठ हैं , तूफान आ रहा है , जोर की हवा से सांय -सांय हो रही है और अँधेरा बढ़ता जा रहा है l मल्लाह का बेटा ऊपर से चिल्लाया ----' पिताजी ! मेरी मौत आ गई , दुनिया में प्रलय आने वाली है l देखिए ! समुद्र में लहरें कितनी जोर से उठती हुई चली आ रही हैं l ये लहरें हमारे जहाज को निगल जाएँगी l " बूढ़ा बाप हुक्का पी रहा था l उसने कहा ---" बेटे ! नजर नीचे की ओर रख और चुपचाप उतरता हुआ चला आ l " लड़के ने न आसमान को देखा , न बादलों को देखा l उसने न नाव को देखा और न आदमियों को l उसने बस नीचे की ओर नजर रखी और चुपचाप नीचे आ गया l यही शिक्षा है कि इधर -उधर न देखकर निरंतर अपने जीवन को सही दिशा में निरंतर प्रगतिशील बनाने का प्रयास करें l