अत्याचार और अन्याय से मनुष्य का पुराना नाता है l युग चाहे कोई भी हो , जब भी मनुष्य के पास धन-वैभव , शक्ति और बुद्धि है और इन सबका अहंकार होने के कारण वह विवेकहीन हो जाता है तब वह अत्याचार और अन्याय करने , लोगों को पीड़ित करने में ही गर्व महसूस करता है l यही उसका आनंद और उसकी दिनचर्या होती है l सबसे बड़ा आश्चर्य यही है कि ऐसे अत्याचारियों का साथ देने वाले , उनके पाप और दुष्कर्मों को सही कहकर उनका समर्थन करने वाले असंख्य होते हैं l रावण की विशाल सेना थी लेकिन भगवान राम के साथ केवल रीछ , वानर थे l इसी तरह महाभारत में दुर्योधन के पास विशाल सेना थी और उस समय के हिंदुस्तान के लगभग सभी शक्तिशाली राजा दुर्योधन के पक्ष में खड़े थे l जब महाभारत का महायुद्ध आरम्भ होना था तब अर्जुन ने अपने सारथी श्रीकृष्ण से निवेदन किया ---- " हे वासुदेव ! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के मध्य स्थित कर दीजिए l मैं देखूं तो सही कि मनुष्य , मनुष्यता और उसका जीवन कितना निम्न कोटि का हो गया है l द्रोपदी के चीरहरण का पक्ष लेने कौन -कौन लोग हैं जो दुर्योधन के पक्ष में खड़े हैं l दुर्योधन के कुकर्मों , लाक्षाग्रह , शकुनि और दु:शासन के कुकर्मों को जानते हुए भी ऐसे कौन लोग हैं जो दुर्योधन के पक्ष में खड़े हैं l भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य जिन्हें धर्म , अधर्म का ज्ञान था , जब वे सब दुर्योधन के पक्ष में थे तब औरों की क्या कहे ! यह सत्य है कि सत्य और न्याय के पथ पर चलने वालों के साथ ईश्वर होते हैं , यह संसार तो स्वार्थ से , अपनी लाभ -हानि की गणित से चलता है लेकिन इन सबका परिणाम वही होता है जो त्रेतायुग और द्वापरयुग में अत्याचारियों का और उनका समर्थन करने वालों का हुआ l एक लाख पूत और सवा लाख नातियों समेत रावण का अंत हुआ और इधर कौरव वंश का भी नामोनिशान मिट गया l सत्य तो यही है कि मनुष्य स्वयं महाविनाश को आमंत्रित करता है l इसके लिए चाहें ईश्वर अवतार लें या प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाकर मनुष्य को सबक सिखाए l लेकिन मनुष्य की चेतना सुप्त हो गई है , वह कुछ सीखना , सुधरना नहीं चाहता है , , मुसीबतें आती हैं तो आती रहें , उनकी जान बची तो दूनी गति से पापकर्म में लिप्त हो जाते हैं l अब राम-रावण और महाभारत जैसे युद्ध नहीं होते , वे तो धर्म और अधर्म की लड़ाई थी l अब आजकल के युद्ध और दंगों में महिलाओं की सबसे ज्यादा दुर्गति होती है l प्रकृति ' माँ ' हैं , उनके लिए यह सब देखना असहनीय है , इसलिए अब प्रकृति माँ अपना रौद्र रूप दिखाकर सामूहिक दंड देतीं हैं l पापकर्म करने वाले , उसे चुपचाप देखने वाले , देखकर मौन रहने वाले , बहती दरिया में हाथ धोने वाले , स्वयं को अनजान कहने वाले सभी पाप के भागीदार हैं l प्रकृति का न्याय किस रूप में किसके सामने आए , यह कोई नहीं जानता l