पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " गरीब व गरीबी परिस्थितियों वश होती है , लेकिन दरिद्रता मन:स्थिति है l दरिद्रता इच्छाओं की कोख से पैदा होती है l जिसकी इच्छाएं जितनी अधिक हैं , उसे उतना ही अधिक दरिद्र होना पड़ेगा , उसे उतना ही याचना और दासता के चक्रव्यूह में फँसना पड़ेगा l " आचार्य श्री कहते हैं ये इच्छाएं ही दुःख का कारण हैं l जो जितना अपनी इच्छाओं को छोड़ पता है , वह उतना ही सुखी , स्वतंत्र और समृद्ध होता है l जिसकी चाहत कुछ भी नहीं है , उसकी निश्चिंतता और स्वतंत्रता अनंत हो जाती है l " ददरिद्र वह नहीं जिसके पास धन का अभाव है , दरिद्र वह है जिसके पास सब कुछ है , फिर भी वह दूसरों को लूटने , उनका हक छीनने , उनका हर तरह से शोषण करने के लिए तत्पर रहता है l एक सूफी कथा है -----फकीर बालशेम ने एक बार अपने एक शिष्य को कुछ धन देते हुए कहा ---- " इसे किसी दरिद्र व्यक्ति को दान कर देना l ' शिष्य को गुरु के साथ सत्संग से यह ज्ञात था कि दरिद्रता मन:स्थितिजन्य है , उसने दरिद्र व्यक्ति की तलाश करनी शुरू कर दी l इस तलाश में जब वह एक राजमहल के पास से होकर गुजरा , तो वहां लोग चर्चा कर रहे थे कि राजा ने अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रजा पर कितने अधिक कर लगायें हैं और कितनों को लूटा है , अब और अधिक धन के लिए दूसरे देश पर आक्रमण करने को तैयार है l शिष्य की तलाश पूरी हुई , उसने राजदरबार में उपस्थित होकर सारा धन राजा को सौंप दिया l एक फ़क़ीर द्वारा इस तरह धन दिए जाने से राजा हैरान हो गया और उसने इसका कारण पूछा तो उस शिष्य ने कहा ----' राजन ! इस धरती पर सबसे दरिद्र आप ही हो जो इतना वैभव होते हुए भी प्रजा को लूट रहे हो , दूसरे देश पर आक्रमण कर रहे हो l मेरे गुरु का आदेश था कि ऐसे ही किसी दरिद्र को यह धन सौंप देना l " राजा को सत्य समझ में आ गया , कितना भी वैभव आ जाए लेकिन इच्छाओं और चाहतों से छुटकारा पाना कठिन है l