23 August 2025

WISDOM ------

     पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " गरीब  व  गरीबी  परिस्थितियों वश  होती  है  ,  लेकिन  दरिद्रता  मन:स्थिति  है  l  दरिद्रता  इच्छाओं  की  कोख  से  पैदा  होती  है  l  जिसकी  इच्छाएं  जितनी  अधिक  हैं  , उसे  उतना  ही  अधिक  दरिद्र  होना  पड़ेगा  ,  उसे  उतना  ही  याचना  और  दासता  के  चक्रव्यूह  में  फँसना  पड़ेगा  l "   आचार्य श्री  कहते  हैं  ये  इच्छाएं  ही  दुःख  का  कारण  हैं  l  जो  जितना  अपनी  इच्छाओं  को  छोड़  पता  है  ,  वह  उतना  ही  सुखी , स्वतंत्र  और  समृद्ध   होता  है  l  जिसकी  चाहत  कुछ  भी  नहीं  है  ,  उसकी  निश्चिंतता  और  स्वतंत्रता  अनंत  हो   जाती  है  l  "   ददरिद्र  वह  नहीं  जिसके  पास  धन  का  अभाव  है ,  दरिद्र  वह  है  जिसके  पास  सब  कुछ  है  , फिर  भी  वह  दूसरों  को  लूटने , उनका  हक  छीनने  ,  उनका  हर  तरह  से  शोषण  करने  के  लिए  तत्पर  रहता  है  l  एक  सूफी  कथा  है  -----फकीर  बालशेम  ने  एक  बार  अपने  एक  शिष्य  को  कुछ  धन  देते  हुए  कहा  ---- " इसे  किसी  दरिद्र  व्यक्ति  को  दान  कर  देना  l '  शिष्य  को  गुरु  के  साथ  सत्संग  से  यह  ज्ञात  था  कि  दरिद्रता  मन:स्थितिजन्य  है  , उसने  दरिद्र  व्यक्ति  की  तलाश  करनी  शुरू  कर  दी  l  इस  तलाश  में  जब  वह  एक  राजमहल  के  पास  से  होकर  गुजरा  , तो  वहां  लोग  चर्चा  कर  रहे  थे   कि  राजा  ने  अपनी  इच्छाओं  को  पूरा  करने  के  लिए   प्रजा  पर  कितने  अधिक  कर  लगायें  हैं  और  कितनों  को  लूटा  है  ,  अब  और  अधिक  धन  के  लिए  दूसरे  देश  पर  आक्रमण  करने   को  तैयार  है  l  शिष्य  की  तलाश  पूरी  हुई  ,  उसने  राजदरबार  में  उपस्थित  होकर  सारा  धन  राजा  को  सौंप  दिया  l  एक  फ़क़ीर  द्वारा  इस  तरह  धन  दिए  जाने  से  राजा  हैरान  हो  गया   और  उसने   इसका  कारण  पूछा   तो  उस  शिष्य  ने  कहा  ----' राजन  !  इस  धरती  पर  सबसे  दरिद्र  आप  ही  हो  जो  इतना  वैभव  होते  हुए  भी  प्रजा  को  लूट  रहे  हो , दूसरे  देश  पर  आक्रमण  कर  रहे  हो  l  मेरे  गुरु  का  आदेश  था  कि  ऐसे  ही  किसी  दरिद्र  को  यह  धन  सौंप  देना  l "  राजा  को  सत्य  समझ  में  आ  गया  ,  कितना  भी  वैभव  आ  जाए  लेकिन  इच्छाओं  और  चाहतों  से  छुटकारा  पाना  कठिन  है  l