संसार में जितने भी लोकसेवा के कार्य होते हैं , उनकी सार्थकता वह कार्य करने वाले की भावनाओं में निहित है l लोक कल्याण के पीछे निहित भावना व्यक्ति के अंतर्मन में होती है लेकिन वह परिवार और समाज को बड़ी गहराई से प्रभावित करती है l कलियुग में समाज सेवा , दया , करुणा का रूप कैसा है ? ---एक कथा है ----- एक सेठ धार्मिक प्रवृत्ति का और समाज सेवी था , उसने शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए एक स्कूल खोला l उसमें बच्चों को शिक्षा के साथ नियमित सद्गुणों की शिक्षा भी दी जाती थी , बच्चों को सिखाया जाता था कि सत्य बोलो , नियमित दया का कोई कार्य अवश्य करो -------, सेठ जी कभी -कभी स्कूल का निरीक्षण और बच्चों से वार्तालाप भी करते थे l इस क्रम में एक दिन उन्होंने बच्चों से पूछा कि इस महीने कुछ दया के काम किए हों तो हाथ उठायें l तीन लड़कों ने हाथ उठाए l सेठ जी बड़े प्रसन्न हुए , उन्होंने पूछा --अच्छा बताओ तुमने क्या -क्या दयालुता के कार्य किए ? पहले लड़के ने कहा --- " एक जर्जर बुढ़िया को मैंने हाथ पकड़ के सड़क पार कराई l " सेठ ने उसकी प्रशंसा की l दूसरे लड़के से पूछा , तो उसने भी कहा ---- " एक बुढ़िया को सड़क पार कराई l " उसको भी शाबाशी दी l अब तीसरे से पूछा तो उसने भी बुढ़िया को सड़क पार कराने की बात कही l अब तो सेठ को और साथ में जो शिक्षक थे उन्हें बड़ा आश्चर्य और संदेह हुआ l उन्होंने पूछा -बच्चों कहीं तुमने एक ही बुढ़िया का हाथ पकड़कर सड़क पार कराई थी l बच्चे मन के सच्चे होते हैं l उन्होंने कहा--- हाँ , ऐसा ही है l सेठ ने फिर पूछा --- एक ही बुढ़िया को सड़क पार कराने तुम तीन को क्यों जाना पड़ा l उन लड़कों ने कहा ---" हमने उस बुढ़िया से कहा , हमें दया -धर्म का पालन करना है चलो हम हाथ पकड़कर तुम्हे सड़क पार कराएँगे l बुढ़िया इसके लिए राजी नहीं हुई , उसने कहा मुझे तो पटरी के इसी किनारे पर जाना है , सड़क पार करने की आवश्यकता नहीं है l l इस पर हम तीनो ने उस जर्जर बुढ़िया को कसकर पकड़ लिया और उसका हाथ पकड़कर घसीटते ले गए और सड़क पार करा के ही माने l " सेठ ने अपना सिर पकड़ लिया , वो क्या कहता बच्चों को ! लोकसेवा की सच्चाई तो उसे बहुत अच्छे से मालूम थी l