मनुष्य और पशु -पक्षियों में एक बड़ा अंतर यह है कि मनुष्य के पास बुद्धि है , चेतना के उच्च स्तर तक पहुँचने की पूर्ण संभावनाएं उसके पास हैं l यह दौलत जानवरों के पास नहीं है l लेकिन दुःख की बात यह है कि कि मनुष्य बुद्धि का सदुपयोग नहीं करता , चेतना के स्तर को ऊँचा उठाने का कोई प्रयास नहीं करता l बुद्धि का दुरूपयोग इस सीमा तक करता है कि वह दुर्बुद्धि और एक मानसिक विकृति हो जाती है l ----- एक कथा है ---- एक बिल्ली ने अंगूर की बेल पर बहुत से अंगूर देखे l उसका मन ललचा गया l उसने सोचा कि मैं इसे खाकर ही रहूंगी l बहुत उछल -कूद मचाई लेकिन एक भी अंगूर उसे न मिल सका l यह कहते हुए वह चली गई कि ' अंगूर खट्टे हैं l ' उसने उन्हें पाने के लिए कोई साजिश नहीं रची , कोई षड्यंत्र नहीं रचा क्योंकि उसके पास यह सब करने के लिए बुद्धि नहीं है l मनुष्य के पास बुद्धि है , शक्ति और सामर्थ्य है लेकिन नैतिकता की कमी है तो वह इन सबका दुरूपयोग करता है l किसी का धन हड़पना , परिवारों में फूट डालकर उनका सुख छीनना , अपने किसी स्वार्थ के लिए पति -पत्नी को अलग करा देना , लोगों का हक छीनना , यहाँ तक कि तंत्र आदि नकारात्मक क्रियाओं से किसी के जीवन को कष्टमय बनाना ---ये सब बुद्धि के दुरूपयोग और मानसिक विकृति के लक्षण हैं l समाज में विशेष रूप से महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध ऐसी ही मानसिक विकृति के उदाहरण हैं l ऐसे लोग समाज में घुल-मिलकर रहते हैं , उन पर कोई शक नहीं कर सकता l भूल- चूक से फंस भी गए तो धन के बल पर कानून के दंड से बच जाते हैं l यदि कोई वास्तव में पागल हो तो उसे ईश्वर अलग से और क्या दंड देंगे ? लेकिन जो लोग अपनी बुद्धि का दुरूपयोग कर , योजनाबद्ध तरीके से अपने अहंकार की पूर्ति के लिए साजिश करते हैं उन्हें ईश्वर कभी क्षमा नहीं करते l वे चाहे समुद्र में छिप जाएँ या किसी पहाड़ पर , किसी अन्य देश में चले जाएँ , उनके कर्म उन्हें ढूँढ लेते हैं l ऐसी विकृति का इलाज केवल ईश्वरीय दंड है l यह दंड कब और कैसे मिलेगा यह काल निश्चित करता है l यदि हम एक सुन्दर और स्वस्थ मानव -समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो बाल्यावस्था से ही नैतिक शिक्षा और मानवीय मूल्यों का ज्ञान अनिवार्य होना चाहिए l बचपन से ही बच्चों को निष्काम कर्म और ध्यान के प्रति जागरूक किया जाए तभी हम एक स्वस्थ समाज की उम्मीद कर सकते हैं l