प्रसिद्ध साहित्यकार टालस्टाय ने ' तीन प्रश्न ' नमक एक कहानी लिखी है l ---- किसी समय एक राजा था l उसके मन में तीन प्रश्न उठे -----1 . सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्या है ? 2 . परामर्श लेने के लिए सबसे महत्त्व का व्यक्ति कौन है ? 3 . निश्चित कार्य को आरम्भ करने का सबसे महत्वपूर्ण समय कौन सा है ? " राजा ने सभासदों की बैठक बुलाई , पर कोई समाधान नहीं मिला l मंत्री ने परामर्श दिया कि जंगल में एक ऋषि हैं उनका सान्निध्य पाना चाहिए l राजा ने सुरक्षा दल को छोड़कर पैदल जाना ही पसंद किया l जंगल पहुंचकर राजा ने देखा कि वह ऋषि खेत में कुदाल चला रहे थे l राजा ने ऋषि से अपने तीन प्रश्न बताए l ऋषि ने राजा को कुदाल दे दी और खेत में तब तक चलाने को कहा , जब तक वह मना न करें l संध्या हो गई l इसी बीच एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया , वह खून से लथपथ था , राजा के पास भूमि पर गिर पड़ा l दोनों ने उसकी मरहमपट्टी की l अगले दिन सवेरे देखा --वह घयल व्यक्ति राजा से माफी मांग रहा है l राजा को आश्चर्य हुआ , तब उसने बताया कि वह राजा को अकेला पाकर मारने आया था क्योंकि उसके भाई को राजा ने फांसी की सजा दी थी l गुप्तचरों ने उसे देखकर हमला कर दिया l राजा ने उसनी प्राण रक्षा की , अत: वह उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने लगा l यह सब देखकर ऋषि ने राजा से कहा --- क्या आपको अभी भी अपने प्रश्नों का उत्तर नहीं मिला ? पहले प्रश्न का उत्तर है --- सबसे महत्त्व का काम वह है , जो सामने है ( मुझे देखकर मेरे श्रम में सहभागी बनना ) l दूसरे प्रश्न का उत्तर है --- महत्वपूर्ण व्यक्ति वह है , जो पास में है ( वह घायल व्यक्ति जिसे मदद की जरुरत थी l और तीसरे प्रश्न का उत्तर है --- सबसे महत्त्व का समय वर्तमान का है , जिसके सुनियोजन से आपका शत्रु भी मित्र बन गया l इस कहानी से यह शिक्षा है कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण वर्तमान है l इसका सदुपयोग किया जाए , पूर्ण मनोयोग से लगा जाए तो सर्वांगीण प्रगति संभव है l
30 June 2024
29 June 2024
WISDOM -----
एक अंधियारी रात में एक प्रौढ़ व्यक्ति नदी के तट से कूदकर आत्महत्या करने पर विचार कर रहा था l वह उस क्षेत्र का सबसे धनी व्यक्ति था , लेकिन अचानक घाटे में उसकी सारी संपदा चली गई , इसी वजह से वह आत्महत्या का निश्चय कर के वहां आया था , परन्तु वह नदी में कूदने के लिए जैसे ही चट्टान के किनारे पहुँचने को हुआ कि उसे किन्ही दो मजबूत हाथों ने थाम लिया l उसने देखा कि आचार्य रामानुज उसे पकड़े हुए थे l उन्होंने उससे इस अवसाद का कारण पूछा तो वह बोला ----- " पहले मैं बहुत सुखी था l मेरे सौभाग्य का सूर्य पूरे प्रकाश से चमक रहा था लेकिन अब सिवाय अंधियारे के मेरे जीवन में और कुछ भी बाकी नहीं है l " यह सुनकर आचार्य रामानुज बोले ----- " दिन के बाद रात्रि और रात्रि के बाद दिन l जब दिन नहीं टिका तो रात्रि कैसे टिकेगी l परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है l जब अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे l जो इस शाश्वत नियम को जान लेता है , उसका जीवन उस अडिग चट्टान की भांति हो जाता है , जो वर्षा व धूप में समान ही बनी रहती है l "
23 June 2024
WISDOM -----
उत्तराखंड के एक प्राचीन नगर में सुबोध नामक राजा राज्य करते थे l महाराज का नियम था कि राजकीय कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व वे आए हुए याचकों को दान दिया करते थे l इस नियम में उन्होंने कभी भूल नहीं की l एक दिन जब सब लोग दान पा चुके तो तो एक विचित्र स्थिति आ गई l एक व्यक्ति ऐसा आया जो दान के लिए हाथ तो फैलाए था , पर मुँह से कुछ न कहता था l सब हैरान हुए कि इसे क्या दिया जाए ? बुद्धिमान व्यक्तियों की एक समिति बैठाई गई l किसी ने कहा वस्त्र देना चाहिए , किसी ने कहा अन्न देना चाहिए l कोई स्वर्ण देने को कहता था l समस्या का यथार्थ हल नहीं निकला l राजा की कन्या भी वहां उपस्थित थी , उसने कहा ---- " राजन ! जो व्यक्ति न बोल सकता है , न व्यक्त कर सकता है l उसके लिए आभूषण आदि व्यर्थ हैं l ऐसे लोगों के लिए सर्वश्रेष्ठ दान ' ज्ञान दान है l ज्ञान से मनुष्य अपनी सब इच्छाएं , आकांक्षाएं स्वयं ही पूर्ण कर सकता है और दूसरों को भी सहारा दे सकता है l इसलिए इसे ज्ञान दान दीजिए l ' राजकन्या की बात सभी को पसंद आई l उस व्यक्ति के लिए शिक्षा की व्यवस्था की गई l यही व्यक्ति आगे चलकर उस राज्य का विद्वान मंत्री नियुक्त हुआ l ऋषि कहते हैं ---- अज्ञान का निवारण ही सच्चा पुण्य -परमार्थ है l यह स्वाध्याय से और ज्ञानार्जन से ही संभव है l
22 June 2024
WISDOM -----
स्वामी विवेकानंद अपने शिष्यों के साथ पैदल भ्रमण को निकले l निर्माणाधीन मंदिर के पास उनकी द्रष्टि तीन मजदूरों पर पड़ी l उन्होंने उत्सुकतापूर्वक पहले मजदूर से पूछा ---- " क्यों भाई , क्या कर रहे हो ? " उसने उत्तर दिया ---- " गधे की तरह जुटे हुए हैं , देख नहीं रहे हो l दिन भर काम करने पर थोड़ा -बहुत मिल जाता है , पर इतने के लिए ठेकेदार मानो जान निकाल लेता है l " यही प्रश्न दूसरे से करने पर वह बोला ---- " मंदिर बन रहा है , हमारी तो किस्मत में यही था कि मजदूरी करें , सो कर रहे हैं l " तीसरे ने भाव भरे ह्रदय से उत्तर दिया ----- " भगवान का घर बन रहा है l मुझे तो प्रसन्नता है कि मेरी पसीने की कुछ बूंदे भी इसमें लग रही हैं l जो भी मुझे मिलता है , उसी में मुझे ख़ुशी है l गुजारा भी चल जाता है और प्रभु का काम भी हुआ जा रहा है l " स्वामी जी ने शिष्यों से कहा --- " " यह अंतर है तीनों के काम करने के ढंग में l मंदिर तीनों बना बना रहे हैं लेकिन एक गधे की तरह मज़बूरी में , दूसरा यंत्रवत भाग्य के नाम पर दुहाई देता हुआ और तीसरा समर्पण भाव से काम में जुटा हुआ है l यही अंतर इनके काम की गुणवत्ता में भी देखा जा सकता है l क्या कार्य किया जा रहा है , यह महत्वपूर्ण नहीं है , उसे किस उदेश्य से , किस भावना से किया जा रहा है , यह मायने रखता है l "
WISDOM -------
गोपियों ने एक बार बाँसुरी से पूछा ---- " तुम्हे कृष्ण स्वयं हर समय होठों से लगाए रहते हैं और हम सब उनकी कृपा पाने के लिए बहुत प्रयत्न करते हैं , परन्तु सफल नहीं होते , जबकि तुम बिना प्रयत्न किए ही उनके अधरों पर रहती हो l " बाँसुरी बोली ---- " बिना प्रयत्न किए नहीं गोपियों l मैंने भी प्रयत्न किया है l जानती हो मुझे मुरली बनने के लिए अपना मूल अस्तित्व ही खो देना पड़ा है l " गोपियों को तब समझ में आया l बाँसुरी अपने आप में खाली थी l उसमे स्वयं का कोई स्वर नहीं गूँजता था , बजाने वाले के ही स्वर बोलते थे l बाँसुरी को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि वह कभी बाँस रह चुकी है क्योंकि न तो उसके कोई गाँठ थी और न कोई अवरोध l गोपियों को भगवान का प्यार पाने का अनूठा सूत्र मिल गया l
18 June 2024
WISDOM ----
एक बार महाराजा पुरंजय ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया l इसमें उन्होंने दूर -दूर से ऋषि -मुनियों को आमंत्रित किया l प्रजा के सुख के उदेश्य से आयोजित यज्ञ में विधि -विधान से आहुतियाँ दी जाने लगीं l यज्ञ की पूर्णाहुति का दिन आया l महाराज , महारानी , राजकुमार सभी यज्ञ मंडप में विराजमान थे l वेड मन्त्रों की ध्वनि से वातावरण गुंजित हो रहा था l अचानक एक किसान के रोने की आवाज सुनाई दी l वह रोते हुए कह रहा था ---- " डाकुओं ने मेरी संपत्ति लूट ली l मेरी गाय छीनकर ले गए l डाकू अभी थोड़ी ही दूर गए होंगे l राजा तुरंत उनको पकड़कर मेरी संपत्ति दिलाएं l " पंडितों ने कहा ---- " इस व्यक्ति को दूर ले जाओ l यदि राजा इस पर दया करके पूर्णाहुति किए बिना उठ गए तो देवता कुपित हो जाएंगे l " लेकिन किसान का रुदन सुनकर राजा के ह्रदय में करुणा जाग उठी , वे बोले ---- " मेरा पहला कर्तव्य प्रजा का संकट दूर करना है l मैंने अनेक यज्ञ पूर्ण किए हैं l आज मैं पहली बार यज्ञ पूर्ण किए बिना अपने राज्य के किसान का संकट दूर करने जा रहा हूँ l " राजा के यह कहने पर साक्षात् यज्ञ भगवान प्रकट हुए और बोले ---- " राजन ! तुम्हे कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है l यह तुम्हारी परीक्षा थी कि तुम अपनी प्रजा के प्रति कर्तव्यपालन करते हो या नहीं l अब आपको सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलेगा l "
15 June 2024
WISDOM --------
आज की सबसे बड़ी समस्या है कि लोगों के मन में शांति नहीं है l अशांत मन का व्यक्ति अपने आसपास अशांति फैलाता है और इस तरह अशांत मन के लोगों की श्रंखला बढ़ती जाती है और धीरे -धीरे विकृत रूप ले लेती है l इस अशांति की शुरुआत परिवारों से ही होती है l यह आदिकाल से चला आ रहा है l भगवान श्रीराम को वनवास माता कैकेयी की जिद्द और पिता दशरथ के आदेश से हुआ l कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं था l इसी तरह महाभारत में पांडवों के विरुद्ध जितने भी षड्यंत्र रचे गए , उन्हें वर्षों तक जितना भी उत्पीड़ित किया गया वह उन्ही के चचेरे भाइयों --दुर्योधन आदि कौरवों द्वारा किया गया l हमारे धर्मग्रन्थ रामायण और महाभारत हमें जागरूक करने के लिए है l इन महाकाव्यों के रचनाकार को पता था कि कलियुग में जब स्वार्थ , लालच , ईर्ष्या , द्वेष , महत्वाकांक्षा और दुर्बुद्धि का प्रतिशत बहुत बढ़ जायेगा तब ये पारिवारिक मतभेद और वीभत्स रूप ले लेंगे l ये महाकाव्य हमारे लिए प्रकाश स्तम्भ हैं l कलियुग में लोगों के पास बुद्धि तो बहुत है लेकिन विवेक नहीं है इसलिए वे अपनी बुद्धि का दुरूपयोग करते हैं l परिवार में , समाज में स्वयं को अग्रणी और अन्यों को गिरा -पड़ा बनाने के लिए ताकि लोग मदद के लिए हमेशा उनका मुँह ताकते रहें , इसके लिए लोग तंत्र , मन्त्र , ब्लैक मैजिक , नकारात्मक क्रियाएं आदि का सहारा लेते हैं l इन कार्यों का सबूत तो केवल ईश्वर के पास होता है , कानून के पास नहीं l अपराध चाहे कैसा भी हो , यह सत्य है कि उसकी शुरुआत परिवार से ही होती है l परिवार में ही छोटी -छोटी चोरी कर के व्यक्ति बड़ा चोर बन जाता है l धन -संपत्ति चुराने से भी बड़ा एनर्जी वैम्पायर भी बन जाता है l ऐसे लोग रावण की तरह कई चेहरे वाले होते हैं l इन्हें पहचानना कठिन है क्योंकि समाज में इनकी बड़ी प्रतिष्ठा होती है , परिवार में भी यही दिखाते हैं कि वे ही सब के हितेषी हैं l ईश्वर की कृपा से जब ऐसे लोगों की असलियत समझ में आ जाये तो हमारे आचार्य , ऋषियों का मत है कि दुष्टों से न तो मित्रता करो और न ही वैर रखो l इन्हें त्याग दो जैसे विभीषण ने रावण को त्याग दिया और भगवान श्रीराम की शरण में आ गया l पांडव भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आ गए l जो ईश्वर का शरणागत हुआ वह सफल हुआ और अत्याचारी का अंत तो सुनिश्चित है l
14 June 2024
WISDOM --------
1. बात उन दिनों की है , जब बुद्ध के प्रथम शिष्य आनंद श्रावस्ती पहुंचे l नगर के श्रेष्ठियों ने उनसे पूछा ----- " बुद्धं शरणं गच्छामि ' का अर्थ महात्मा बुद्ध की शरण में जाना होता है क्या ? यदि ऐसा है तो यह क्या महात्मा बुद्ध के अहंकार का द्योतक नहीं ? " आनंद बोले ---- " श्रेष्ठि ! क्या आपको पता है कि जब श्रमण समूह चलता है तो यह सूत्र सभी बोलते हैं , स्वयं भगवान बुद्ध भी l व्यक्ति की शरण में जाने का भाव इसमें होता तो वे स्वयं न दोहराते l " आनंद ने स्पष्ट किया ----- " तथागत का नाम तो सिद्धार्थ था l ज्ञान के प्रकाश का बोध होने पर वे बुद्ध कहलाए l जिस प्रकाश ने उन्हें बुद्ध बनाया , उसी दिव्य -दूरदर्शी विवेक की शरण में जाने का संकेत इस सूत्र में है l "
12 June 2024
WISDOM -----
1 . हित चाहने वाला पराया भी अपना है और अहित करने वाला अपना भी पराया है l रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है और औषधि वन में पैदा होकर भी हमारा लाभ ही करती है l
2 . जिस प्रकार बछड़ा हजार गायों में भी अपनी माँ को ढूंढ लेता है , उसी प्रकार किया गया कर्म भी अपने कर्ता को ढूंढ निकालता है l
11 June 2024
WISDOM ------
1 . एक जमींदार ने विधवा बुढ़िया का खेत बलपूर्वक छीन लिया l बुढ़िया ने गाँव के सभी लोगों से इस अत्याचार से बचाने की पुकार की , पर किसी की हम्मत जमींदार के सामने मुँह खोलने की नहीं हुई l तब बुढ़िया ने स्वयं ही साहस समेटा और जमींदार के पास यह कहने पहुंची कि खेत नहीं लौटाते तो उसमें से एक टोकरा मिटटी खोद लेने दो , ताकि उसे कुछ तो मिलने का संतोष हो जाए l जमींदार राजी हो गया और बुढ़िया को साथ लेकर खेत पर पहुंचा l बुढ़िया ने रोते -धोते एक बड़ी टोकरी मिटटी से भर ली और कहा --- उसे उठवाकर मेरे सिर पर रखवा दे l टोकरी बहुत भारी हो गई थी l जमींदार ने अकड़कर कहा ---- बुढ़िया ! इतनी सारी मिटटी सिर पर रखेगी तो दबकर मर जाएगी l बुढ़िया ने पलटकर पूछा ---- यदि इतनी सी मिटटी से मैं दबकर मर जाऊँगी तो तू पूरे खेत की मिटटी लेकर जीवित कैसे रहेगा ? जमींदार सोच में पड़ गया , उसका सिर लज्जा से झुक गया और उसने बुढ़िया का खेत लौटा दिया l
2 . नदी के किनारे शमी का वृक्ष था l वह जब -तब पास ही पानी में खड़े बेंत का उपहास उड़ाया करता था और कहता था ---" क्या छोटी -छोटी लहरों के थपेड़े लगते ही झुक जाते हो l मुझे देख मैं किस शान से सिर ऊँचा किए हुए खड़ा हूँ l " बेंत बेचारा इतना ही कहता ---- " वृक्षराज ! मैं तो विनम्रता में विश्वास करता हूँ , अहंकार में नहीं l " शमी वृक्ष उसकी बात सुनकर देर तक हँसता रहता l एक दिन नदी में भीषण बाढ़ आई l लोगों ने देखा कि शमी का अभिमानी वृक्ष जड़ से उखड़ कर तूफ़ान में बह गया लेकिन जो बेंत प्रवाह से लचककर जमीन में मिल गया था , वह बाढ़ उतर जाने पर फिर सीधा खड़ा हो गया l बेंत शमी वृक्ष का अंत देखकर हँसा नहीं , बल्कि उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उसने उसे ऐंठ से अकड़ा हुआ अहंकारी न बनाकर नतमस्तक विनम्र बनाया l
WISDOM ---------
श्रीमद् भगवद्गीता का ज्ञान हमें जीवन जीने की कला सिखाता है l सामान्य द्रष्टि से हम नहीं समझ पाते कि परिवार , समाज में हम जिन लोगों के बीच रहते हैं उनमे कौन देवता है और कौन असुर है ? लेकिन गीता का ज्ञान हमें यह समझ देता है कि हमारे आसपास कौन असुर है , हम उन्हें पहचान लें और उनसे दूरी बना कर रखें l पं . श्रीराम शर्मा जी ने लिखा है --- 'दुर्जन से न वैर करो न प्रीति 'l दुष्ट के काटने और चाटने दोनों में दुःख ही दुःख है l गोस्वामी तुलसीदासजी लिखते हैं ---- बरु भल बास नरक कर ताता l दुष्ट संग जनि देइ विधाता l अर्थात विधाता हमें नरक का वास दे दें पर दुष्टों का संग कभी न दें क्योंकि नरक के वास से तो कर्मों की शुद्धि होती है , पाप नष्ट होते हैं लेकिन दुष्टों के संग से तो नए पापों का निर्माण होता है और ऐसे कर्मों के परिणामों की श्रंखला शुरू होती है , जो अनंत काल तक चलती है l ' कलियुग में तो चारों ओर असुरता का ही साम्राज्य है l हम कम से कम अपने ही आसपास देखें और समझें फिर आसुरी प्रवृत्ति के लोगों से दूरी बना कर रखें l आसुरी प्रवृत्ति को पहचाने कैसे ? श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं ---- " आसुरी मनुष्य अकारण ही सबसे बैर रखते हैं और बिना किसी प्रयोजन के दूसरों के अनिष्ट का भाव मन में बैठाये रखते हैं और वे केवल भाव ही नहीं रखते , बल्कि वे अनिष्ट करने पर तुल ही जाते हैं , इसलिए उनके कर्म क्रूर , नृशंस , निर्दयतापूर्ण और हिंसक होते हैं l ऐसे मनुष्यों को भगवान ' नराधम ' कहते हैं l श्री भगवान कहते हैं ---- मनुष्यों की आसुरी वृत्ति उनके भीतर अहंकार के भाव को सघन कर देती है l इस अहंकार के कारण वे अपने बल का प्रयोग दूसरों को परेशान करने , मारने -पीटने , धमकाने , सताने में करते है l काम का आश्रय लेकर दुराचार करते हैं और क्रोध के कारण वे कहते हैं कि जो भी हमारे प्रतिकूल चलेगा हम उसका अनिष्ट करेंगे l ऐसे मनुष्य फिर अपनी समस्त ऊर्जा दूसरों के दोष देखने में , उनकी निंदा करने में , उनके प्रति द्वेष रखने में लगा देते हैं l ऐसी प्रकृति वाले मनुष्य भगवान से भी द्वेष रखते हैं , स्वयं को ही श्रेष्ठतम मानते हैं l कामना , वासना और महत्वाकांक्षा के आधिक्य के कारण ऐसे लोगों में आसुरी वृत्ति की बहुलता हो जाती है , धन बढ़ने के साथ यह भाव उनमें पनपने लगता है दूसरों को धन न मिले l वे दूसरों का धन भी हड़प लेने के लिए क्रूर कर्म करते हैं l धीरे -धीरे उनका स्वभाव राक्षसी होता चला जाता है l यह राह पतन की ओर जाती है और अंततः वे . नराधम ' बन जाते हैं l ऐसे लोग ईश्वर से द्वेष रखते हैं , लेकिन भगवान किसी से भी द्वेष नहीं रखते , वे उन्हें सुधरने का बार बार मौका देते हैं और वे उन्हें ऐसी योनियों में जन्म देते हैं ताकि वे अपने पापों को शुद्ध कर के स्वयं को निर्मल बना सकें l
7 June 2024
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' मनुष्य मोह -माया , कामना , वासना और तृष्णा के जाल में , इसकी दलदल में ऐसा फँसा है कि उसका विवेक जाग्रत ही नहीं हो पाता l जिस तरह मक्खी या चींटी गुड़ की चाशनी में एक बार चली जाए तो फिर वहां से वह निकल नहीं पाती और अंततः उसकी वहीँ मृत्यु हो जाती है l " उम्र चाहे ढल जाए लेकिन विवेक न होने के कारण मनुष्य इन एषणा के दलदल के बाहर नहीं निकल पाता , इच्छाओं का अंत नहीं है l इसी संबंध में श्रीरामकृष्ण परमहंस जी एक कथा कहते हैं ------ एक व्यक्ति घने जंगल में भागा जा रहा था l घना अँधेरा था l अँधेरे के कारण रास्ते में कुआँ उसे दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया l गिरते -गिरते उसके हाथ में कुएं पर झुके हुए वृक्ष की डाल आ गई l उसने नीचे झाँका तो देखा कुएं में चार विशाल अजगर ऊपर की ओर मुँह फाड़े देख रहे हैं l उसने ऊपर देखा तो दो चूहे उस डाल को कुतर रहे थे जिसे वह पकड़े था l इतने में एक हाथी कहीं से आया और वृक्ष के तने को हिलाने लगा l उस वृक्ष के ठीक ऊपर की शाखा पर मधुमक्खी का छत्ता था l हाथी के हिलाने से मक्खियाँ उड़ने लगीं और छत्ते से शहद की बूँदे टपकने लगीं l एक बूँद शहद उसके ओठों पर गिरा l उसकी जीभ तो प्यास से सूख रही थी , उसने जीभ को ओठों पर फेरा , शहद की उस बूँद में अद्भुत मिठास थी l उसने मुँह ऊपर किया तो कुछ क्षण बाद फिर शहद की बूँद मुँह में टपकी l वह उसकी मिठास में इतना मगन हो गया कि आसपास की विपत्तियों को भूल गया l उसी समय शिव -पार्वती जंगल से भ्रमण करते हुए निकले l पार्वतीजी ने भगवान शिव से उसे बचा लेने का अनुरोध किया l शिवजी ने उसके निकट जाकर कहा --- " आओ , मैं तुम्हे बाहर निकालता हूँ , मेरा हाथ पकड़ लो l " उस व्यक्ति ने कहा ---- " बस , एक बूँद शहद और चाट लूँ फिर मुझे निकाल लेना l " हर बूँद के बाद अगली बूँद की प्रतीक्षा चलती रही l अंत में भगवान शिव उसे छोड़कर चले गए और वह व्यक्ति वहीँ फँसकर रह गया l इस कथा में प्रतीकात्मक अर्थ हैं ---- अजगर मृत्यु का प्रतीक है l दो चूहे दिन और रात का l हर पल बीतने के साथ व्यक्ति मृत्यु की ओर बढ़ता है l शहद की बूँदे सांसारिक सुख हैं , वह इस सुख में इतना डूबा हुआ ही कि उसे आसपास के खतरे भी दिखाई नहीं देते l सुख की माया में डूबे हुए व्यक्ति को फिर भगवान भी नहीं बचा पाते l
6 June 2024
WISDOM -----
कहते हैं इस संसार में एक पत्ता भी हिलता है तो वह ईश्वर की मरजी से l जो भी घटनाएँ घटती हैं , वह सब ईश्वर का विधान है और यह विधान कर्म -फल पर आधारित है मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन में जो भी अच्छा -बुरा घटता है वह उसके अपने ही कर्म हैं , वे चाहे इस जन्म के हों या पिछले किसी जन्म के l मन को शांत रखने का , तनाव रहित रहने का प्रथम सूत्र यही है कि जीवन में कष्ट , दुःख , कठिनाइयाँ आएं तो हम यह स्वीकार करें कि ये हमारे ही जाने -अनजाने में किए गए कर्मों का परिणाम है l मनुष्य स्वयं कर्म कर के भूल जाता है और पिछले जन्मों का तो याद भी नहीं रहता लेकिन ईश्वर के पास एक -एक व्यक्ति का लेखा -जोखा है l अतीत में जो कर्म किए , अब उन पर हमारा कोई वश नहीं है उन्हों कर्मों के आधार पर हमारा वर्तमान जीवन है इसलिए आचार्य श्री कहते हैं ----- यदि जीवन में कष्ट का समय आता है तो निष्काम कर्म की गति बढ़ा दो , पुण्य का कोई भी मौका हाथ से न जाने दो l सत्कर्मों से ही प्रारब्ध के कष्टों का बोझ हल्का होता है और सुन्दर भविष्य का निर्माण होता है
5 June 2024
WISDOM -----
पं .श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- "इस संसार से हमने जो कुछ भी पाया है , जिनका भी संग्रह किया है , जितना कुछ भी बनाया ----- वे सभी चीजें शरीर का अंत होने पर यहीं रह जाएँगी , एकमात्र कर्म ही ऐसे हैं , जो हमारे साथ जाएंगे l हमारे कर्मों की श्रेष्ठता या निकृष्टता को संसार भले ही न जाने या न पहचाने , लेकिन हमारे ह्रदय में विराजमान परमात्मा हमारे कर्मों को और उन कर्मों के पीछे छिपी भावनाओं को अच्छी तरह जानते हैं l इस शरीर के माध्यम से ऐसे कर्म किए जा सकते हैं , जो इस शरीर की अभिव्यक्ति को निखार सकते हैं l हमारे अच्छे कर्म ही हमारी कुरूपता को छिपाते और सुन्दरता को निखारते हैं l कर्म की महिमा अमिट , अनंत व अपार है l "-------- एक बार की बात है विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात दर्पण में अपना चेहरा देख रहे थे l उसी समय उनका शिष्य उनके कमरे में आया और गुरु को इस तरह दर्पण देखते हुए देखकर मुस्कराने लगा l सुकरात ने शिष्य को मुस्कराते देखा तो उसकी दुविधा को भाँप गए और शिष्य से बोले ---- " मैं जान गया कि तुम क्यों हँस रहे हो ? शायद तुम सोच रहे हो कि मुझ जैसा कुरूप व्यक्ति दर्पण में अपना मुंह क्यों देख रहा है ? " शिष्य अपनी गलती पकड़ी जाने से लज्जित हुआ l सुकरात ने उसे यह रहस्य बताया और कहा --- " मैं कुरूप हूँ इसलिए रोज शीशा देखता हूँ l ताकि इसे देखकर मुझे अपनी कुरूपता का एहसास रहे इसलिए मैं हर रोज कोशिश करता हूँ कि ऐसे अच्छे कर्म करूँ , जिनके नीचे मेरी यह कुरूपता ढक जाए l मेरे कर्म मुझसे बड़े बन जाएँ l " इस पर शिष्य ने जिज्ञासा प्रकट की ---- " तो क्या सुन्दर लोगों को कभी दर्पण नहीं देखना चाहिए ? " सुकरात ने समझाया ---- " सुन्दर लोगों को भी दर्पण अवश्य देखना चाहिए , ताकि उन्हें ध्यान रहे कि जितने वे सुन्दर हैं , उतने ही सुन्दर काम भी करें वरना उनके बुरे काम उनकी सुन्दरता कम कर देंगे l "
3 June 2024
WISDOM -----
सिकंदर एक ऐसा व्यक्ति था , जिसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी , लेकिन वह हीनता की ग्रंथि का शिकार था और इसी मनोग्रंथि के कारण पूरे विश्व को जीतने की महत्वाकांक्षा मन में संजोये था l अपनी इस विश्व विजय यात्रा पर निकलने से पहले वह डायोजिनीस नामक फ़क़ीर से मिलने गया , जो हमेशा परमानन्द की अवस्था में रहते थे l सिकंदर को देखते ही डायोजिनीस ने पूछा ---- " तुम कहाँ जा रहे हो ? " सिकंदर ने कहा --- "मुझे पूरा एशिया महाद्वीप जीतना है l " डायो जिनीस ने पूछा ---उसके बाद क्या करोगे ? " सिकंदर ---- " उसके बाद भारत जीतना है l " डायोजिनीस ने पूछा --- " उसके बाद ? " जवाब मिला ---" शेष दुनिया को जीतूँगा l " प्रश्न ---- " उसके बाद ? " सिकंदर ने खिसियाते हुए उत्तर दिया " उसके बाद मैं आराम करूँगा l " डायोजिनीस हँसने लगे और बोले ---- " जो तुम इतने दिनों बाद करोगे , वह तो मैं अभी भी कर रहा हूँ l यदि तुम आख़िरकार आराम ही करना चाहते हो , तो इतना कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता क्या है ? मैं इस समय नदी के तट पर आराम कर रहा हूँ l तुम भी यहाँ आराम कर सकते हो l " यह सुनकर सिकंदर सोचने पर विवश हुआ कि उसके पास सब कुछ है , पर शांति नहीं है और डायोजिनीस के पास कुछ भी नहीं है पर उसका मन शांति और आनंद से भरा हुआ है l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " जिनका मन मनोग्रंथियों से मुक्त होता है , वे कहीं भागते नहीं , किसी को जीतते नहीं , वह स्थिर होते हैं , स्वयं को जीतते हैं और धीरे -धीरे उनका मन शांति और आनंद से भर जाता है l लेकिन जिनका मन मनोग्रंथियों से घिरा होता है , वे बेचैन , अशांत और परेशान रहते हैं l ऐसे व्यक्ति चाहे पूरे विश्व का भ्रमण कर लें,, लेकिन फिर भी वे अपने मन के अंधरों अंधेरों को दूर नहीं कर पाते हैं l
2 June 2024
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " हर काम में समझदारी जरुरी है l कभी किसी की नक़ल नहीं करनी चाहिए l हमेशा विवेक से काम करना चाहिए l आचार्य श्री कहते हैं --- योग में भी विवेक और समझदारी को अपनाया जाना चाहिए l योग की अनेक विधियाँ हैं लेकिन हमें उनकी अंधी नक़ल नहीं करनी चाहिए जैसे योग में सुखपूर्वक स्थिर बैठने का नाम आसन है l इसलिए आसन का चयन अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति के अनुसार विवेकपूर्ण ढंग से करना चाहिए l आसन ऐसा हो जिसमें सुखपूर्वक बैठा जा सके , शरीर को कष्ट न हो , शरीर सरल अवस्था में रह सके l क्योंकि यदि शरीर को कष्ट होगा तो मन शरीर में ही अटका रहेगा तो ध्यान कैसे होगा l " आचार्य श्री ने योग और गायत्री मन्त्र का जप इतनी सरल ढंग से समझाया कि यह सामान्य जन के लिए भी संभव हो सका l एक कथा कहते हैं ---- एक गाँव में एक हकीम था , उसकी बड़ी ख्याति थी l वृद्ध हो गया , दूर लोगों के बुलाने पर जाने में परेशानी होती थी इसलिए उन्होंने एक युवक को अपना शागिर्द बनाया l उस युवक को प्रसिद्ध होने की बहुत जल्दी थी इसलिए कुछ बातें तो सीखता लेकिन कुछ की हुबहू नक़ल कर लेता l हकीम साहब उसे समझाते भी कि चिकित्सा में नक़ल नहीं करनी चाहिए लेकिन वह नहीं समझता l एक बार वह हकीम साहब के साथ एक मरीज के पास गया l हकीम साहब ने मरीज का रोग जानने के लिए उसकी नब्ज पकड़ी और उससे कहा --- " ये सरदी के दिन हैं और तुम अमरुद बहुत खाते हो l यही वजह है कि तुम्हारी बीमारी ठीक नहीं हो रही l " वह युवक हकीम साहब के इस निदान से चमत्कृत रह गया , उसने पूछा ---- " आपने नब्ज देखकर कैसे बता दिया कि वह व्यक्ति अमरुद खाता है l " वृद्ध हकीम ने कहा --- " यह तो साधारण सी बात है l उस मरीज की चारपाई के नीचे कुछ खाए हुए और कुछ साबुत अमरुद रखे थे l " वह युवक नक़ल तो करता ही था , अब उसे एक नई विधि मिल गई l अगले ही दिन एक मरीज को देखने दूर गाँव जाना था , वृद्ध हकीम ने उस युवक को भेज दिया l युवक ने मरीज के घर पहुंचकर उसकी नब्ज देखी और साथ ही चारपाई के नीचे भी देखा जहाँ घोड़े की जीन , काठी और घोड़े के पांव की नाल पड़ी थी l ये सब देखकर उसने कहा --- " लगता है तुमने घोड़े बहुत खाए हैं , इस वजह से तुम बीमार हो l यदि तुम घोड़े खाना छोड़ दो तो तुम ठीक हो जाओगे l " मरीज यह सुनकर हैरान रह गया और बोला , " तुम हकीमों जैसी नहीं , पागलों जैसी बात कर रहे हो l " मरीज ने उसे भगा दिया l युवक ने वापस पहुंचकर अपना यह अनुभव वृद्ध हकीम को बताया तो वे भी हैरान हो गए और कहने लगे --- " इसीलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि सीखने की कोशिश करो , नक़ल करने की कोशिश मत करो l "