30 June 2024

WISDOM -------

  प्रसिद्ध  साहित्यकार   टालस्टाय  ने  ' तीन  प्रश्न ' नमक  एक  कहानी  लिखी  है  l  ---- किसी  समय  एक  राजा  था  l  उसके  मन  में  तीन  प्रश्न  उठे -----1 . सबसे  महत्वपूर्ण  कार्य  क्या  है  ? 2 . परामर्श  लेने  के  लिए   सबसे  महत्त्व  का  व्यक्ति  कौन  है  ?  3 . निश्चित  कार्य  को  आरम्भ  करने  का   सबसे  महत्वपूर्ण  समय   कौन  सा  है  ? "  राजा  ने  सभासदों  की  बैठक  बुलाई  ,  पर  कोई  समाधान  नहीं  मिला  l  मंत्री  ने  परामर्श  दिया  कि   जंगल  में  एक   ऋषि  हैं  उनका  सान्निध्य  पाना  चाहिए   l  राजा  ने   सुरक्षा  दल  को  छोड़कर  पैदल  जाना  ही   पसंद  किया  l   जंगल  पहुंचकर  राजा  ने  देखा  कि  वह  ऋषि   खेत  में   कुदाल  चला  रहे  थे  l   राजा  ने  ऋषि  से   अपने  तीन  प्रश्न  बताए   l  ऋषि  ने  राजा  को  कुदाल  दे  दी   और  खेत  में  तब  तक  चलाने  को  कहा  ,  जब  तक  वह  मना  न  करें  l  संध्या  हो  गई  l  इसी  बीच  एक  व्यक्ति   दौड़ता  हुआ  आया ,  वह  खून  से  लथपथ  था  ,  राजा  के  पास  भूमि  पर  गिर  पड़ा  l  दोनों  ने  उसकी  मरहमपट्टी  की   l   अगले  दिन  सवेरे  देखा  --वह  घयल  व्यक्ति  राजा  से  माफी  मांग  रहा  है  l  राजा  को  आश्चर्य  हुआ  , तब  उसने  बताया  कि   वह  राजा  को  अकेला   पाकर  मारने  आया  था   क्योंकि  उसके  भाई  को  राजा  ने  फांसी  की  सजा  दी  थी  l  गुप्तचरों  ने  उसे  देखकर  हमला  कर  दिया  l  राजा  ने  उसनी  प्राण रक्षा  की  ,  अत:  वह  उनके  प्रति  कृतज्ञता   ज्ञापित  करने  लगा  l  यह  सब  देखकर  ऋषि  ने  राजा  से  कहा  --- क्या  आपको  अभी  भी  अपने  प्रश्नों  का  उत्तर   नहीं  मिला  ?  पहले  प्रश्न  का  उत्तर  है --- सबसे  महत्त्व  का   काम  वह  है  ,  जो  सामने  है  (  मुझे  देखकर  मेरे  श्रम  में  सहभागी  बनना  )  l  दूसरे  प्रश्न  का  उत्तर  है  --- महत्वपूर्ण  व्यक्ति  वह  है  ,  जो  पास  में  है  ( वह  घायल  व्यक्ति  जिसे  मदद  की  जरुरत  थी  l  और  तीसरे  प्रश्न  का  उत्तर  है --- सबसे  महत्त्व  का  समय  वर्तमान  का  है  ,  जिसके  सुनियोजन  से   आपका  शत्रु  भी  मित्र  बन  गया  l  इस  कहानी  से  यह  शिक्षा  है  कि  सर्वाधिक  महत्वपूर्ण  वर्तमान  है  l  इसका  सदुपयोग  किया  जाए  ,  पूर्ण  मनोयोग  से  लगा  जाए   तो  सर्वांगीण  प्रगति  संभव  है  l  

29 June 2024

WISDOM -----

    एक  अंधियारी  रात  में  एक  प्रौढ़  व्यक्ति   नदी  के  तट  से  कूदकर  आत्महत्या  करने  पर  विचार  कर  रहा   था  l  वह  उस  क्षेत्र  का  सबसे  धनी  व्यक्ति  था  ,  लेकिन  अचानक  घाटे  में  उसकी  सारी  संपदा  चली  गई  ,  इसी  वजह  से   वह  आत्महत्या   का  निश्चय  कर  के  वहां  आया  था  ,  परन्तु  वह  नदी  में  कूदने  के  लिए   जैसे  ही  चट्टान  के  किनारे  पहुँचने  को  हुआ   कि   उसे  किन्ही  दो  मजबूत  हाथों  ने  थाम  लिया   l  उसने  देखा   कि  आचार्य  रामानुज  उसे  पकड़े  हुए  थे  l  उन्होंने  उससे  इस  अवसाद  का  कारण  पूछा   तो  वह  बोला  ----- "  पहले  मैं  बहुत  सुखी  था  l  मेरे  सौभाग्य  का  सूर्य   पूरे  प्रकाश   से  चमक  रहा  था   लेकिन  अब  सिवाय  अंधियारे   के  मेरे  जीवन  में   और  कुछ  भी  बाकी  नहीं  है  l "  यह  सुनकर   आचार्य  रामानुज   बोले  ----- "  दिन  के  बाद  रात्रि   और  रात्रि   के  बाद  दिन  l  जब  दिन  नहीं  टिका   तो  रात्रि   कैसे  टिकेगी  l  परिवर्तन  प्रकृति  का   शाश्वत  नियम  है  l  जब  अच्छे  दिन  नहीं  रहे  तो   बुरे  दिन  भी  नहीं  रहेंगे  l  जो  इस  शाश्वत  नियम  को  जान  लेता  है  ,  उसका  जीवन   उस  अडिग  चट्टान  की  भांति  हो  जाता  है  ,  जो  वर्षा   व  धूप  में  समान  ही  बनी  रहती  है  l  "  

23 June 2024

WISDOM -----

 उत्तराखंड  के  एक  प्राचीन  नगर  में  सुबोध  नामक  राजा  राज्य  करते  थे  l  महाराज  का  नियम  था  कि   राजकीय  कार्य  प्रारम्भ  करने  से  पूर्व   वे  आए  हुए  याचकों  को  दान  दिया  करते  थे  l  इस  नियम  में   उन्होंने  कभी  भूल  नहीं  की  l  एक  दिन  जब  सब  लोग  दान  पा  चुके   तो तो  एक  विचित्र  स्थिति  आ  गई   l  एक  व्यक्ति  ऐसा  आया  जो  दान  के  लिए  हाथ  तो  फैलाए  था  ,  पर  मुँह  से   कुछ  न  कहता  था  l  सब  हैरान  हुए  कि  इसे  क्या  दिया  जाए   ?  बुद्धिमान  व्यक्तियों  की  एक  समिति  बैठाई  गई  l  किसी  ने  कहा  वस्त्र  देना  चाहिए  ,  किसी  ने  कहा  अन्न  देना  चाहिए  l  कोई  स्वर्ण  देने  को  कहता  था  l  समस्या  का  यथार्थ  हल  नहीं  निकला  l  राजा  की  कन्या  भी  वहां  उपस्थित  थी  ,  उसने  कहा ---- "  राजन  !  जो  व्यक्ति  न  बोल  सकता  है  , न  व्यक्त  कर  सकता  है   l  उसके  लिए  आभूषण  आदि  व्यर्थ  हैं  l  ऐसे  लोगों  के  लिए  सर्वश्रेष्ठ  दान  ' ज्ञान दान  है   l  ज्ञान  से  मनुष्य   अपनी  सब  इच्छाएं  ,  आकांक्षाएं   स्वयं  ही  पूर्ण  कर  सकता  है   और  दूसरों  को  भी  सहारा  दे  सकता  है  l  इसलिए  इसे  ज्ञान दान  दीजिए   l '  राजकन्या  की  बात  सभी  को  पसंद  आई   l  उस  व्यक्ति  के  लिए  शिक्षा  की  व्यवस्था  की  गई   l  यही  व्यक्ति  आगे  चलकर   उस  राज्य  का  विद्वान  मंत्री  नियुक्त  हुआ   l  ऋषि  कहते  हैं ---- अज्ञान  का  निवारण  ही  सच्चा  पुण्य -परमार्थ  है   l  यह  स्वाध्याय  से  और  ज्ञानार्जन  से  ही  संभव  है   l  

22 June 2024

WISDOM -----

   स्वामी  विवेकानंद  अपने  शिष्यों  के  साथ  पैदल  भ्रमण  को  निकले  l   निर्माणाधीन  मंदिर  के  पास  उनकी  द्रष्टि   तीन  मजदूरों  पर  पड़ी  l  उन्होंने  उत्सुकतापूर्वक   पहले  मजदूर  से  पूछा ---- " क्यों  भाई , क्या  कर  रहे  हो  ? " उसने  उत्तर  दिया ---- "  गधे  की  तरह  जुटे  हुए  हैं  , देख  नहीं  रहे  हो  l  दिन  भर  काम  करने   पर  थोड़ा -बहुत  मिल  जाता  है  , पर  इतने  के  लिए  ठेकेदार  मानो  जान  निकाल  लेता  है  l "  यही  प्रश्न  दूसरे  से  करने  पर   वह  बोला  ---- "  मंदिर  बन  रहा  है  , हमारी  तो  किस्मत  में  यही  था  कि  मजदूरी  करें  , सो  कर  रहे  हैं  l "   तीसरे  ने  भाव  भरे  ह्रदय  से   उत्तर  दिया  ----- "  भगवान  का  घर  बन  रहा  है  l मुझे  तो  प्रसन्नता  है  कि   मेरी  पसीने  की  कुछ  बूंदे  भी   इसमें  लग  रही  हैं  l  जो  भी  मुझे  मिलता  है  , उसी  में  मुझे  ख़ुशी  है  l    गुजारा   भी  चल  जाता  है   और  प्रभु  का  काम  भी  हुआ  जा  रहा  है  l  "  स्वामी जी  ने  शिष्यों  से  कहा --- "  "  यह  अंतर  है  तीनों  के  काम  करने  के  ढंग  में  l  मंदिर  तीनों  बना बना  रहे  हैं  लेकिन  एक  गधे  की  तरह  मज़बूरी  में  , दूसरा  यंत्रवत   भाग्य  के  नाम  पर  दुहाई  देता  हुआ   और  तीसरा   समर्पण  भाव  से  काम  में  जुटा  हुआ  है  l  यही  अंतर  इनके  काम  की  गुणवत्ता  में  भी  देखा  जा  सकता  है  l  क्या  कार्य  किया  जा  रहा  है  , यह  महत्वपूर्ण  नहीं  है  ,  उसे  किस  उदेश्य  से  , किस  भावना   से  किया  जा  रहा  है  , यह  मायने  रखता  है  l  "   

WISDOM -------

   गोपियों  ने  एक  बार  बाँसुरी  से  पूछा  ---- " तुम्हे  कृष्ण  स्वयं  हर  समय   होठों  से  लगाए  रहते  हैं   और  हम   सब  उनकी  कृपा   पाने  के  लिए   बहुत  प्रयत्न  करते  हैं  , परन्तु  सफल  नहीं  होते  ,  जबकि  तुम  बिना  प्रयत्न  किए  ही   उनके  अधरों  पर   रहती  हो  l  "  बाँसुरी  बोली  ---- " बिना  प्रयत्न  किए   नहीं  गोपियों  l  मैंने  भी  प्रयत्न  किया  है  l  जानती  हो  मुझे   मुरली  बनने  के  लिए   अपना  मूल  अस्तित्व  ही  खो  देना  पड़ा  है  l  "  गोपियों  को  तब  समझ  में  आया  l  बाँसुरी  अपने  आप  में  खाली  थी  l  उसमे  स्वयं  का  कोई  स्वर  नहीं   गूँजता  था  , बजाने  वाले  के  ही  स्वर  बोलते  थे   l  बाँसुरी  को  देखकर  कोई  यह  नहीं  कह  सकता  कि   वह  कभी  बाँस  रह  चुकी  है   क्योंकि  न  तो  उसके  कोई  गाँठ  थी   और  न  कोई  अवरोध  l  गोपियों  को  भगवान  का  प्यार  पाने  का   अनूठा  सूत्र  मिल  गया  l  

18 June 2024

WISDOM ----

    एक  बार  महाराजा  पुरंजय  ने  राजसूय  यज्ञ   का  आयोजन  किया  l  इसमें  उन्होंने  दूर -दूर  से   ऋषि -मुनियों  को  आमंत्रित  किया  l  प्रजा   के  सुख  के  उदेश्य  से   आयोजित  यज्ञ  में   विधि -विधान  से   आहुतियाँ  दी  जाने  लगीं  l  यज्ञ  की  पूर्णाहुति  का  दिन  आया  l महाराज , महारानी , राजकुमार   सभी  यज्ञ  मंडप  में  विराजमान  थे  l  वेड मन्त्रों  की  ध्वनि  से  वातावरण  गुंजित  हो  रहा  था  l  अचानक  एक  किसान  के  रोने  की  आवाज  सुनाई  दी  l  वह  रोते  हुए  कह  रहा  था  ---- " डाकुओं  ने  मेरी   संपत्ति  लूट  ली  l  मेरी  गाय   छीनकर    ले  गए  l  डाकू  अभी  थोड़ी  ही  दूर  गए  होंगे   l  राजा  तुरंत  उनको  पकड़कर   मेरी  संपत्ति  दिलाएं   l "    पंडितों  ने  कहा ---- "  इस  व्यक्ति  को  दूर  ले  जाओ   l  यदि  राजा  इस  पर  दया  करके   पूर्णाहुति   किए  बिना   उठ  गए   तो  देवता  कुपित   हो  जाएंगे  l  "  लेकिन  किसान  का  रुदन  सुनकर  राजा  के  ह्रदय  में  करुणा   जाग  उठी   , वे  बोले  ---- " मेरा  पहला  कर्तव्य   प्रजा  का  संकट  दूर  करना  है  l  मैंने  अनेक  यज्ञ  पूर्ण  किए  हैं  l  आज  मैं  पहली  बार  यज्ञ  पूर्ण  किए  बिना   अपने  राज्य  के  किसान  का   संकट  दूर  करने  जा  रहा  हूँ  l  "  राजा  के  यह  कहने  पर  साक्षात्  यज्ञ  भगवान  प्रकट  हुए   और  बोले  ---- "  राजन  !  तुम्हे  कहीं  जाने  की  आवश्यकता  नहीं   है  l   यह  तुम्हारी  परीक्षा  थी  कि  तुम   अपनी  प्रजा  के  प्रति  कर्तव्यपालन   करते  हो  या  नहीं   l  अब  आपको  सौ   राजसूय  यज्ञ  का  फल  मिलेगा   l  " 

15 June 2024

WISDOM --------

 आज  की  सबसे  बड़ी  समस्या  है  कि  लोगों  के  मन  में  शांति  नहीं  है   l  अशांत  मन  का  व्यक्ति  अपने  आसपास  अशांति  फैलाता  है  और  इस  तरह   अशांत  मन  के  लोगों  की  श्रंखला  बढ़ती  जाती  है   और  धीरे -धीरे  विकृत  रूप  ले  लेती  है  l  इस  अशांति  की  शुरुआत  परिवारों  से  ही  होती  है  l  यह  आदिकाल  से  चला  आ  रहा  है  l  भगवान  श्रीराम  को  वनवास  माता  कैकेयी  की  जिद्द  और  पिता  दशरथ  के  आदेश  से  हुआ  l  कोई  बाहरी  हस्तक्षेप  नहीं  था  l  इसी  तरह  महाभारत  में   पांडवों  के  विरुद्ध  जितने  भी  षड्यंत्र  रचे  गए  ,  उन्हें  वर्षों  तक  जितना  भी  उत्पीड़ित  किया  गया  वह  उन्ही  के  चचेरे  भाइयों  --दुर्योधन  आदि  कौरवों  द्वारा  किया  गया  l  हमारे  धर्मग्रन्थ   रामायण  और  महाभारत   हमें  जागरूक  करने  के  लिए  है  l  इन  महाकाव्यों  के  रचनाकार  को  पता  था  कि  कलियुग  में  जब  स्वार्थ , लालच , ईर्ष्या , द्वेष , महत्वाकांक्षा   और  दुर्बुद्धि  का  प्रतिशत  बहुत  बढ़  जायेगा   तब  ये  पारिवारिक  मतभेद  और  वीभत्स  रूप  ले  लेंगे  l  ये  महाकाव्य  हमारे  लिए  प्रकाश  स्तम्भ  हैं  l  कलियुग  में  लोगों  के  पास  बुद्धि  तो  बहुत  है  लेकिन  विवेक  नहीं  है  इसलिए  वे  अपनी  बुद्धि  का  दुरूपयोग  करते  हैं   l  परिवार  में , समाज  में  स्वयं  को  अग्रणी   और  अन्यों  को  गिरा -पड़ा   बनाने  के  लिए   ताकि  लोग  मदद  के  लिए  हमेशा  उनका  मुँह  ताकते  रहें  ,  इसके  लिए  लोग  तंत्र , मन्त्र , ब्लैक मैजिक  , नकारात्मक  क्रियाएं  आदि  का  सहारा  लेते  हैं  l  इन  कार्यों   का  सबूत  तो  केवल  ईश्वर  के  पास  होता  है  , कानून  के  पास  नहीं  l  अपराध  चाहे  कैसा  भी  हो  , यह  सत्य  है  कि  उसकी  शुरुआत  परिवार  से  ही  होती  है  l  परिवार  में  ही  छोटी -छोटी  चोरी  कर  के   व्यक्ति  बड़ा  चोर  बन  जाता  है  l  धन -संपत्ति  चुराने  से  भी  बड़ा   एनर्जी  वैम्पायर  भी  बन  जाता  है  l  ऐसे  लोग  रावण  की  तरह  कई  चेहरे  वाले  होते  हैं  l  इन्हें  पहचानना  कठिन  है  क्योंकि  समाज  में  इनकी  बड़ी  प्रतिष्ठा  होती  है  , परिवार  में  भी  यही  दिखाते  हैं  कि  वे  ही  सब  के  हितेषी  हैं  l  ईश्वर  की  कृपा  से    जब  ऐसे  लोगों  की  असलियत  समझ  में  आ  जाये   तो  हमारे  आचार्य , ऋषियों  का  मत  है  कि    दुष्टों  से  न    तो  मित्रता   करो  और  न  ही  वैर  रखो  l  इन्हें  त्याग  दो   जैसे  विभीषण  ने  रावण  को  त्याग  दिया  और  भगवान  श्रीराम  की  शरण  में  आ  गया  l  पांडव  भगवान  श्रीकृष्ण  की  शरण  में  आ  गए  l  जो  ईश्वर  का  शरणागत  हुआ  वह  सफल  हुआ   और  अत्याचारी  का  अंत  तो  सुनिश्चित  है  l  

14 June 2024

WISDOM --------

   1. बात  उन  दिनों  की  है  , जब  बुद्ध  के प्रथम  शिष्य   आनंद  श्रावस्ती   पहुंचे  l  नगर  के  श्रेष्ठियों   ने  उनसे  पूछा  ----- " बुद्धं  शरणं  गच्छामि '  का  अर्थ   महात्मा   बुद्ध  की  शरण  में  जाना   होता  है  क्या  ?    यदि  ऐसा  है   तो   यह  क्या  महात्मा   बुद्ध  के  अहंकार  का  द्योतक  नहीं  ? "   आनंद  बोले ---- " श्रेष्ठि  !  क्या  आपको  पता  है   कि  जब  श्रमण  समूह   चलता  है   तो  यह  सूत्र  सभी  बोलते  हैं  ,  स्वयं  भगवान  बुद्ध  भी  l   व्यक्ति  की  शरण  में   जाने  का  भाव  इसमें  होता   तो  वे  स्वयं   न  दोहराते  l "   आनंद  ने  स्पष्ट  किया  ----- " तथागत  का  नाम   तो  सिद्धार्थ  था  l   ज्ञान  के  प्रकाश  का  बोध   होने  पर  वे  बुद्ध  कहलाए   l  जिस  प्रकाश  ने  उन्हें   बुद्ध  बनाया  ,  उसी  दिव्य  -दूरदर्शी   विवेक  की  शरण  में  जाने  का  संकेत  इस  सूत्र  में  है  l "  

12 June 2024

WISDOM -----

  1 . हित  चाहने  वाला  पराया  भी  अपना  है   और  अहित  करने  वाला   अपना  भी  पराया  है  l   रोग  अपनी  देह  में  पैदा  होकर   भी  हानि  पहुंचाता  है   और  औषधि   वन  में  पैदा  होकर  भी  हमारा  लाभ  ही  करती  है  l  

2 . जिस  प्रकार  बछड़ा  हजार  गायों  में  भी   अपनी  माँ  को  ढूंढ  लेता  है  ,  उसी  प्रकार  किया  गया  कर्म  भी   अपने  कर्ता  को  ढूंढ  निकालता  है  l  

11 June 2024

WISDOM ------

  1 . एक  जमींदार  ने  विधवा  बुढ़िया  का  खेत   बलपूर्वक  छीन  लिया  l  बुढ़िया  ने  गाँव  के  सभी  लोगों  से  इस  अत्याचार  से  बचाने  की   पुकार  की ,  पर  किसी  की  हम्मत   जमींदार  के  सामने  मुँह  खोलने  की  नहीं  हुई  l   तब  बुढ़िया  ने  स्वयं  ही  साहस  समेटा   और  जमींदार  के  पास  यह  कहने  पहुंची  कि   खेत  नहीं  लौटाते  तो   उसमें  से  एक  टोकरा  मिटटी  खोद  लेने  दो  ,  ताकि  उसे  कुछ  तो  मिलने  का  संतोष  हो  जाए  l  जमींदार  राजी  हो  गया  और  बुढ़िया  को   साथ  लेकर  खेत  पर  पहुंचा  l   बुढ़िया  ने  रोते -धोते  एक  बड़ी  टोकरी  मिटटी  से  भर  ली   और  कहा --- उसे  उठवाकर  मेरे  सिर  पर  रखवा  दे  l   टोकरी  बहुत  भारी  हो  गई  थी  l  जमींदार  ने   अकड़कर  कहा ---- बुढ़िया  !  इतनी  सारी  मिटटी  सिर  पर  रखेगी   तो  दबकर  मर  जाएगी  l    बुढ़िया  ने  पलटकर  पूछा ---- यदि  इतनी  सी  मिटटी  से  मैं  दबकर  मर  जाऊँगी  तो   तू   पूरे  खेत  की  मिटटी  लेकर   जीवित  कैसे  रहेगा  ?  जमींदार   सोच  में  पड़  गया  , उसका  सिर  लज्जा  से  झुक  गया   और  उसने  बुढ़िया  का  खेत  लौटा  दिया  l 

2 .     नदी  के  किनारे  शमी  का  वृक्ष  था  l  वह  जब -तब  पास  ही  पानी  में  खड़े   बेंत  का  उपहास  उड़ाया  करता  था   और  कहता  था ---" क्या  छोटी -छोटी  लहरों  के  थपेड़े  लगते  ही  झुक  जाते  हो  l  मुझे  देख  मैं  किस  शान  से   सिर  ऊँचा  किए  हुए  खड़ा   हूँ  l "   बेंत  बेचारा  इतना  ही  कहता  ---- " वृक्षराज  !  मैं  तो  विनम्रता  में  विश्वास  करता  हूँ  , अहंकार  में  नहीं  l "  शमी  वृक्ष  उसकी  बात  सुनकर  देर  तक  हँसता  रहता  l    एक  दिन  नदी  में  भीषण  बाढ़  आई   l  लोगों  ने  देखा  कि  शमी  का  अभिमानी  वृक्ष   जड़  से  उखड़ कर   तूफ़ान  में  बह  गया   लेकिन   जो  बेंत  प्रवाह  से  लचककर  जमीन  में   मिल  गया  था  ,  वह  बाढ़  उतर  जाने  पर   फिर  सीधा  खड़ा  हो  गया  l  बेंत  शमी  वृक्ष  का  अंत  देखकर  हँसा  नहीं  ,  बल्कि  उसने  ईश्वर  को  धन्यवाद  दिया   कि  उसने  उसे  ऐंठ  से  अकड़ा  हुआ  अहंकारी  न  बनाकर   नतमस्तक  विनम्र  बनाया  l  

WISDOM ---------

   श्रीमद् भगवद्गीता  का  ज्ञान  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाता  है  l  सामान्य  द्रष्टि  से  हम  नहीं  समझ   पाते  कि  परिवार , समाज  में  हम  जिन  लोगों  के  बीच  रहते  हैं   उनमे  कौन  देवता  है  और  कौन  असुर  है  ?  लेकिन  गीता  का  ज्ञान  हमें   यह  समझ  देता  है  कि  हमारे  आसपास  कौन  असुर  है  ,  हम  उन्हें  पहचान  लें  और  उनसे  दूरी  बना  कर  रखें  l  पं . श्रीराम  शर्मा जी  ने  लिखा  है --- 'दुर्जन  से  न  वैर करो  न  प्रीति  'l  दुष्ट  के  काटने  और   चाटने  दोनों  में  दुःख  ही  दुःख  है  l  गोस्वामी  तुलसीदासजी  लिखते  हैं ---- बरु  भल  बास  नरक  कर  ताता  l  दुष्ट  संग   जनि  देइ  विधाता  l  अर्थात  विधाता  हमें  नरक  का  वास  दे  दें   पर  दुष्टों  का  संग  कभी  न  दें   क्योंकि  नरक  के   वास  से  तो  कर्मों  की  शुद्धि  होती  है  , पाप  नष्ट  होते  हैं   लेकिन  दुष्टों  के  संग  से  तो  नए  पापों  का   निर्माण  होता  है   और  ऐसे  कर्मों  के  परिणामों  की   श्रंखला  शुरू  होती  है  ,  जो  अनंत  काल  तक  चलती  है  l  '      कलियुग  में  तो   चारों  ओर  असुरता  का  ही  साम्राज्य  है  l  हम  कम  से  कम  अपने  ही  आसपास   देखें  और  समझें     फिर  आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोगों  से  दूरी  बना  कर  रखें  l  आसुरी  प्रवृत्ति  को  पहचाने  कैसे  ?    श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  श्रीकृष्ण  अर्जुन  से  कहते  हैं ---- "    आसुरी  मनुष्य  अकारण  ही  सबसे  बैर  रखते  हैं   और  बिना  किसी  प्रयोजन  के  दूसरों   के  अनिष्ट  का  भाव   मन  में  बैठाये  रखते  हैं   और  वे  केवल  भाव  ही  नहीं  रखते   , बल्कि  वे  अनिष्ट  करने  पर  तुल  ही  जाते  हैं  ,  इसलिए  उनके  कर्म  क्रूर , नृशंस ,  निर्दयतापूर्ण  और  हिंसक  होते  हैं  l  ऐसे  मनुष्यों  को  भगवान  ' नराधम '  कहते  हैं  l    श्री  भगवान  कहते  हैं ---- मनुष्यों   की  आसुरी  वृत्ति   उनके  भीतर  अहंकार  के  भाव  को  सघन  कर  देती  है  l  इस  अहंकार  के  कारण   वे  अपने  बल  का  प्रयोग  दूसरों  को  परेशान  करने  , मारने -पीटने , धमकाने  , सताने  में  करते  है  l  काम  का  आश्रय  लेकर  दुराचार  करते  हैं   और  क्रोध  के  कारण   वे  कहते  हैं   कि  जो  भी  हमारे  प्रतिकूल  चलेगा  हम  उसका  अनिष्ट  करेंगे  l  ऐसे  मनुष्य  फिर   अपनी  समस्त  ऊर्जा   दूसरों  के  दोष  देखने   में , उनकी  निंदा  करने  में  ,  उनके  प्रति  द्वेष  रखने  में   लगा  देते  हैं  l   ऐसी  प्रकृति  वाले  मनुष्य  भगवान  से  भी  द्वेष  रखते  हैं  , स्वयं  को  ही  श्रेष्ठतम   मानते  हैं  l  कामना , वासना  और  महत्वाकांक्षा  के   आधिक्य  के  कारण  ऐसे  लोगों  में  आसुरी  वृत्ति  की  बहुलता   हो   जाती  है , धन  बढ़ने  के  साथ   यह  भाव  उनमें  पनपने  लगता  है   दूसरों  को  धन  न  मिले  l  वे  दूसरों  का  धन  भी  हड़प  लेने  के  लिए  क्रूर  कर्म  करते  हैं  l  धीरे -धीरे  उनका  स्वभाव  राक्षसी  होता  चला  जाता  है  l  यह  राह  पतन  की  ओर  जाती  है   और  अंततः  वे  . नराधम '  बन  जाते  हैं  l  ऐसे  लोग  ईश्वर  से  द्वेष  रखते  हैं , लेकिन  भगवान  किसी  से  भी  द्वेष  नहीं  रखते  , वे  उन्हें  सुधरने  का  बार बार  मौका  देते  हैं   और  वे  उन्हें  ऐसी  योनियों  में  जन्म  देते  हैं   ताकि   वे  अपने  पापों  को  शुद्ध  कर  के   स्वयं  को  निर्मल  बना  सकें  l  

7 June 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' मनुष्य  मोह -माया , कामना , वासना  और  तृष्णा  के  जाल  में , इसकी  दलदल  में  ऐसा   फँसा  है  कि  उसका  विवेक  जाग्रत  ही  नहीं  हो  पाता  l   जिस  तरह  मक्खी  या  चींटी   गुड़  की  चाशनी  में   एक  बार  चली  जाए   तो  फिर  वहां  से  वह  निकल  नहीं  पाती   और  अंततः  उसकी  वहीँ  मृत्यु  हो  जाती  है  l  "    उम्र  चाहे  ढल  जाए  लेकिन   विवेक  न  होने  के  कारण  मनुष्य  इन  एषणा  के दलदल  के  बाहर  नहीं  निकल  पाता  , इच्छाओं  का  अंत  नहीं  है  l  इसी  संबंध  में  श्रीरामकृष्ण  परमहंस जी  एक  कथा    कहते  हैं ------  एक  व्यक्ति  घने  जंगल  में  भागा  जा  रहा  था  l  घना   अँधेरा  था  l   अँधेरे  के  कारण  रास्ते  में  कुआँ   उसे  दिखाई  नहीं  दिया   और  वह  उसमें  गिर  गया  l  गिरते -गिरते  उसके  हाथ  में   कुएं   पर  झुके  हुए  वृक्ष  की  डाल  आ  गई  l  उसने  नीचे  झाँका  तो  देखा   कुएं  में  चार  विशाल  अजगर  ऊपर  की  ओर   मुँह   फाड़े  देख  रहे  हैं  l  उसने  ऊपर  देखा  तो  दो  चूहे  उस  डाल  को  कुतर  रहे  थे  जिसे  वह  पकड़े  था  l  इतने  में  एक  हाथी  कहीं  से  आया   और  वृक्ष  के  तने  को   हिलाने  लगा  l  उस  वृक्ष  के  ठीक  ऊपर  की  शाखा  पर  मधुमक्खी  का  छत्ता  था  l  हाथी  के   हिलाने  से  मक्खियाँ  उड़ने  लगीं   और  छत्ते  से  शहद  की   बूँदे    टपकने  लगीं  l  एक  बूँद  शहद  उसके   ओठों  पर  गिरा  l  उसकी  जीभ  तो  प्यास  से  सूख  रही  थी  , उसने   जीभ  को  ओठों  पर  फेरा  ,  शहद  की  उस  बूँद  में  अद्भुत  मिठास  थी  l  उसने  मुँह  ऊपर  किया  तो  कुछ  क्षण  बाद   फिर  शहद  की  बूँद  मुँह  में  टपकी  l  वह  उसकी  मिठास  में  इतना  मगन  हो  गया  कि  आसपास  की   विपत्तियों  को  भूल  गया  l  उसी  समय  शिव -पार्वती  जंगल  से  भ्रमण  करते  हुए  निकले  l  पार्वतीजी  ने  भगवान  शिव  से  उसे  बचा  लेने  का  अनुरोध  किया  l  शिवजी  ने  उसके  निकट  जाकर  कहा --- " आओ , मैं  तुम्हे  बाहर  निकालता  हूँ  ,  मेरा  हाथ  पकड़  लो  l "   उस  व्यक्ति  ने  कहा ---- " बस ,  एक  बूँद  शहद  और  चाट  लूँ   फिर  मुझे  निकाल  लेना  l "  हर  बूँद  के  बाद  अगली  बूँद  की  प्रतीक्षा  चलती  रही  l  अंत  में  भगवान  शिव  उसे  छोड़कर  चले  गए   और  वह  व्यक्ति  वहीँ  फँसकर  रह  गया  l  इस  कथा  में  प्रतीकात्मक  अर्थ  हैं ---- अजगर  मृत्यु  का  प्रतीक  है  l  दो  चूहे  दिन और  रात   का  l  हर  पल  बीतने  के  साथ  व्यक्ति  मृत्यु  की  ओर  बढ़ता   है  l  शहद  की  बूँदे  सांसारिक  सुख  हैं  ,  वह  इस  सुख  में  इतना  डूबा  हुआ  ही  कि  उसे  आसपास  के  खतरे  भी  दिखाई  नहीं  देते  l  सुख  की  माया  में  डूबे  हुए  व्यक्ति  को   फिर  भगवान  भी  नहीं  बचा  पाते  l  

6 June 2024

WISDOM -----

 कहते  हैं  इस  संसार  में  एक  पत्ता  भी  हिलता  है  तो  वह  ईश्वर  की  मरजी  से  l  जो  भी  घटनाएँ  घटती  हैं  , वह  सब  ईश्वर  का  विधान  है   और  यह  विधान  कर्म -फल   पर  आधारित  है    मनुष्य  के  व्यक्तिगत  जीवन  में  जो  भी  अच्छा  -बुरा  घटता  है   वह  उसके   अपने  ही  कर्म   हैं  , वे  चाहे  इस  जन्म  के  हों  या  पिछले  किसी  जन्म  के  l   मन  को  शांत  रखने  का , तनाव रहित   रहने  का   प्रथम  सूत्र  यही  है  कि   जीवन  में  कष्ट , दुःख , कठिनाइयाँ  आएं  तो  हम  यह  स्वीकार  करें  कि  ये  हमारे  ही  जाने -अनजाने  में  किए  गए  कर्मों  का  परिणाम  है  l  मनुष्य  स्वयं  कर्म  कर  के  भूल  जाता  है   और  पिछले  जन्मों  का  तो  याद  भी  नहीं  रहता   लेकिन  ईश्वर  के  पास  एक -एक  व्यक्ति  का  लेखा -जोखा  है  l  अतीत  में  जो  कर्म  किए  ,  अब   उन  पर  हमारा   कोई  वश नहीं  है   उन्हों  कर्मों  के  आधार  पर  हमारा  वर्तमान  जीवन  है   इसलिए   आचार्य श्री  कहते  हैं ----- यदि  जीवन  में  कष्ट  का  समय  आता  है  तो  निष्काम  कर्म  की  गति  बढ़ा  दो  , पुण्य  का  कोई  भी  मौका  हाथ  से  न  जाने  दो  l   सत्कर्मों  से  ही  प्रारब्ध  के   कष्टों  का  बोझ  हल्का  होता  है   और  सुन्दर  भविष्य  का  निर्माण  होता  है  

5 June 2024

WISDOM -----

 पं .श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "इस  संसार  से  हमने  जो  कुछ  भी  पाया  है  , जिनका  भी  संग्रह  किया  है  , जितना  कुछ  भी  बनाया ----- वे  सभी  चीजें  शरीर  का  अंत  होने  पर  यहीं  रह  जाएँगी  ,  एकमात्र  कर्म  ही  ऐसे  हैं  ,  जो  हमारे  साथ  जाएंगे  l  हमारे  कर्मों  की  श्रेष्ठता  या  निकृष्टता  को   संसार  भले  ही   न  जाने  या  न  पहचाने  ,  लेकिन  हमारे  ह्रदय  में   विराजमान  परमात्मा   हमारे  कर्मों  को   और  उन  कर्मों  के  पीछे  छिपी  भावनाओं  को  अच्छी  तरह  जानते  हैं  l  इस  शरीर  के  माध्यम  से  ऐसे  कर्म  किए  जा  सकते  हैं  ,  जो  इस  शरीर  की  अभिव्यक्ति  को  निखार  सकते  हैं   l  हमारे  अच्छे  कर्म  ही  हमारी  कुरूपता  को   छिपाते  और  सुन्दरता  को   निखारते  हैं  l  कर्म  की  महिमा   अमिट , अनंत  व  अपार  है  l "-------- एक  बार  की  बात  है  विश्व प्रसिद्ध  दार्शनिक  सुकरात   दर्पण  में  अपना  चेहरा  देख  रहे  थे  l  उसी  समय  उनका  शिष्य  उनके  कमरे  में  आया   और    गुरु  को  इस  तरह  दर्पण  देखते  हुए  देखकर   मुस्कराने  लगा  l  सुकरात  ने  शिष्य  को   मुस्कराते  देखा  तो   उसकी  दुविधा  को  भाँप  गए   और  शिष्य  से  बोले ---- " मैं  जान  गया  कि  तुम  क्यों  हँस  रहे  हो  ?  शायद  तुम  सोच  रहे  हो  कि   मुझ  जैसा  कुरूप  व्यक्ति  दर्पण  में   अपना  मुंह  क्यों  देख  रहा  है  ? "  शिष्य  अपनी  गलती  पकड़ी  जाने  से  लज्जित  हुआ  l  सुकरात  ने  उसे  यह  रहस्य  बताया  और  कहा --- "  मैं  कुरूप  हूँ  इसलिए   रोज  शीशा  देखता  हूँ  l  ताकि  इसे  देखकर  मुझे   अपनी  कुरूपता  का  एहसास  रहे   इसलिए  मैं  हर  रोज  कोशिश  करता  हूँ   कि  ऐसे  अच्छे  कर्म  करूँ  ,  जिनके  नीचे  मेरी  यह  कुरूपता   ढक  जाए  l  मेरे  कर्म  मुझसे   बड़े  बन  जाएँ  l "     इस  पर  शिष्य  ने  जिज्ञासा  प्रकट  की  ---- " तो  क्या  सुन्दर  लोगों  को  कभी   दर्पण  नहीं  देखना  चाहिए  ?  "   सुकरात  ने  समझाया ---- "   सुन्दर  लोगों  को  भी  दर्पण  अवश्य  देखना  चाहिए  ,  ताकि  उन्हें   ध्यान  रहे  कि  जितने  वे  सुन्दर  हैं  ,  उतने  ही  सुन्दर  काम  भी  करें    वरना  उनके  बुरे  काम   उनकी  सुन्दरता  कम  कर  देंगे   l "  

3 June 2024

WISDOM -----

 सिकंदर  एक  ऐसा  व्यक्ति  था  ,  जिसके  पास  किसी  चीज  की  कमी  नहीं  थी  ,  लेकिन  वह  हीनता  की  ग्रंथि  का  शिकार  था   और  इसी  मनोग्रंथि  के  कारण   पूरे  विश्व  को  जीतने  की   महत्वाकांक्षा   मन  में  संजोये  था  l  अपनी  इस  विश्व विजय  यात्रा  पर  निकलने  से  पहले  वह   डायोजिनीस  नामक  फ़क़ीर  से  मिलने  गया  ,  जो  हमेशा  परमानन्द  की  अवस्था  में  रहते  थे  l  सिकंदर  को  देखते  ही  डायोजिनीस  ने  पूछा ---- " तुम  कहाँ  जा  रहे  हो  ? "  सिकंदर  ने  कहा --- "मुझे  पूरा  एशिया  महाद्वीप   जीतना  है  l "  डायो जिनीस  ने  पूछा ---उसके  बाद  क्या  करोगे  ? "   सिकंदर ---- " उसके  बाद  भारत   जीतना  है   l "   डायोजिनीस  ने  पूछा  --- " उसके  बाद  ? "    जवाब  मिला ---"  शेष  दुनिया  को  जीतूँगा  l "   प्रश्न ---- "  उसके  बाद  ? " सिकंदर  ने  खिसियाते  हुए  उत्तर  दिया  "  उसके  बाद  मैं  आराम  करूँगा  l "  डायोजिनीस  हँसने  लगे   और  बोले  ---- " जो  तुम  इतने  दिनों  बाद  करोगे  ,  वह  तो  मैं  अभी  भी  कर  रहा  हूँ  l  यदि  तुम  आख़िरकार  आराम  ही  करना  चाहते  हो  ,  तो  इतना  कष्ट  उठाने  की  क्या  आवश्यकता  क्या  है  ? मैं  इस  समय  नदी  के  तट  पर  आराम  कर  रहा  हूँ  l  तुम  भी  यहाँ  आराम  कर  सकते  हो  l "    यह  सुनकर  सिकंदर  सोचने  पर  विवश  हुआ  कि   उसके  पास  सब  कुछ  है  ,  पर  शांति  नहीं  है   और  डायोजिनीस  के  पास  कुछ  भी  नहीं  है   पर  उसका  मन  शांति  और  आनंद  से  भरा  हुआ  है  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- "  जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से  मुक्त  होता  है  ,  वे  कहीं  भागते  नहीं  ,  किसी  को  जीतते  नहीं  ,  वह   स्थिर  होते  हैं  ,  स्वयं  को  जीतते  हैं   और  धीरे -धीरे  उनका  मन   शांति  और  आनंद  से  भर  जाता  है  l  लेकिन   जिनका   मन   मनोग्रंथियों    से  घिरा  होता  है  ,  वे  बेचैन , अशांत   और  परेशान  रहते  हैं  l  ऐसे  व्यक्ति  चाहे   पूरे  विश्व  का  भ्रमण  कर  लें,,  लेकिन  फिर  भी  वे   अपने  मन  के  अंधरों अंधेरों  को  दूर  नहीं  कर  पाते   हैं   l  

2 June 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "  हर  काम  में  समझदारी  जरुरी  है  l  कभी  किसी  की  नक़ल  नहीं  करनी  चाहिए  l    हमेशा  विवेक  से  काम  करना  चाहिए  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  --- योग  में  भी  विवेक  और  समझदारी  को  अपनाया  जाना  चाहिए   l  योग  की  अनेक  विधियाँ  हैं   लेकिन  हमें  उनकी  अंधी  नक़ल  नहीं  करनी  चाहिए   जैसे  योग  में  सुखपूर्वक  स्थिर  बैठने  का  नाम  आसन  है   l  इसलिए  आसन  का  चयन  अपनी  शारीरिक  और  मानसिक  स्थिति  के  अनुसार  विवेकपूर्ण  ढंग  से    करना  चाहिए  l  आसन  ऐसा  हो  जिसमें  सुखपूर्वक  बैठा  जा  सके  , शरीर  को  कष्ट  न  हो  , शरीर  सरल  अवस्था  में  रह  सके  l  क्योंकि  यदि  शरीर  को  कष्ट  होगा   तो   मन  शरीर  में  ही  अटका  रहेगा   तो  ध्यान  कैसे  होगा  l "   आचार्य श्री  ने  योग     और  गायत्री  मन्त्र  का  जप    इतनी  सरल  ढंग  से  समझाया  कि  यह  सामान्य  जन  के  लिए  भी  संभव  हो  सका  l                                एक  कथा  कहते  हैं ----  एक  गाँव  में  एक  हकीम  था  , उसकी  बड़ी  ख्याति  थी  l  वृद्ध  हो  गया  , दूर  लोगों  के  बुलाने  पर  जाने  में  परेशानी  होती  थी  इसलिए  उन्होंने   एक  युवक  को  अपना  शागिर्द  बनाया  l  उस  युवक  को  प्रसिद्ध     होने  की  बहुत  जल्दी  थी   इसलिए  कुछ  बातें  तो  सीखता   लेकिन   कुछ  की  हुबहू  नक़ल  कर  लेता  l  हकीम  साहब  उसे  समझाते  भी  कि  चिकित्सा  में  नक़ल  नहीं  करनी  चाहिए  लेकिन  वह  नहीं  समझता  l  एक  बार  वह  हकीम  साहब  के  साथ  एक  मरीज  के  पास  गया  l  हकीम  साहब  ने  मरीज  का  रोग  जानने  के  लिए  उसकी  नब्ज  पकड़ी  और  उससे  कहा --- "  ये  सरदी  के  दिन  हैं   और  तुम  अमरुद  बहुत  खाते  हो   l  यही  वजह  है  कि  तुम्हारी  बीमारी  ठीक  नहीं  हो  रही  l "   वह  युवक  हकीम  साहब  के  इस  निदान  से  चमत्कृत  रह  गया    , उसने  पूछा  ---- "  आपने  नब्ज  देखकर  कैसे  बता  दिया  कि  वह  व्यक्ति  अमरुद  खाता  है  l "  वृद्ध  हकीम  ने  कहा --- "  यह  तो  साधारण  सी  बात  है   l  उस  मरीज  की  चारपाई  के  नीचे   कुछ  खाए  हुए  और  कुछ  साबुत  अमरुद  रखे  थे  l "  वह  युवक  नक़ल  तो  करता  ही  था  ,  अब  उसे  एक  नई  विधि  मिल  गई  l   अगले  ही  दिन  एक  मरीज  को  देखने  दूर  गाँव  जाना  था  , वृद्ध  हकीम  ने  उस  युवक  को  भेज  दिया  l  युवक  ने  मरीज  के  घर  पहुंचकर   उसकी  नब्ज   देखी  और  साथ  ही  चारपाई  के  नीचे  भी  देखा   जहाँ  घोड़े  की  जीन , काठी  और   घोड़े  के  पांव  की  नाल  पड़ी  थी  l  ये  सब  देखकर  उसने  कहा --- " लगता  है  तुमने  घोड़े  बहुत  खाए  हैं , इस  वजह  से  तुम  बीमार  हो  l  यदि  तुम  घोड़े  खाना  छोड़  दो  तो  तुम  ठीक  हो  जाओगे  l "  मरीज  यह  सुनकर  हैरान  रह  गया  और  बोला , " तुम  हकीमों  जैसी  नहीं  , पागलों  जैसी  बात  कर  रहे  हो  l "   मरीज  ने  उसे  भगा  दिया  l    युवक   ने  वापस  पहुंचकर  अपना  यह  अनुभव   वृद्ध  हकीम  को  बताया  तो  वे  भी  हैरान  हो  गए   और  कहने  लगे  --- "  इसीलिए  मैं  तुमसे  कहता  हूँ  कि  सीखने  की  कोशिश  करो  , नक़ल  करने  की  कोशिश  मत  करो  l "