1 . एक जमींदार ने विधवा बुढ़िया का खेत बलपूर्वक छीन लिया l बुढ़िया ने गाँव के सभी लोगों से इस अत्याचार से बचाने की पुकार की , पर किसी की हम्मत जमींदार के सामने मुँह खोलने की नहीं हुई l तब बुढ़िया ने स्वयं ही साहस समेटा और जमींदार के पास यह कहने पहुंची कि खेत नहीं लौटाते तो उसमें से एक टोकरा मिटटी खोद लेने दो , ताकि उसे कुछ तो मिलने का संतोष हो जाए l जमींदार राजी हो गया और बुढ़िया को साथ लेकर खेत पर पहुंचा l बुढ़िया ने रोते -धोते एक बड़ी टोकरी मिटटी से भर ली और कहा --- उसे उठवाकर मेरे सिर पर रखवा दे l टोकरी बहुत भारी हो गई थी l जमींदार ने अकड़कर कहा ---- बुढ़िया ! इतनी सारी मिटटी सिर पर रखेगी तो दबकर मर जाएगी l बुढ़िया ने पलटकर पूछा ---- यदि इतनी सी मिटटी से मैं दबकर मर जाऊँगी तो तू पूरे खेत की मिटटी लेकर जीवित कैसे रहेगा ? जमींदार सोच में पड़ गया , उसका सिर लज्जा से झुक गया और उसने बुढ़िया का खेत लौटा दिया l
2 . नदी के किनारे शमी का वृक्ष था l वह जब -तब पास ही पानी में खड़े बेंत का उपहास उड़ाया करता था और कहता था ---" क्या छोटी -छोटी लहरों के थपेड़े लगते ही झुक जाते हो l मुझे देख मैं किस शान से सिर ऊँचा किए हुए खड़ा हूँ l " बेंत बेचारा इतना ही कहता ---- " वृक्षराज ! मैं तो विनम्रता में विश्वास करता हूँ , अहंकार में नहीं l " शमी वृक्ष उसकी बात सुनकर देर तक हँसता रहता l एक दिन नदी में भीषण बाढ़ आई l लोगों ने देखा कि शमी का अभिमानी वृक्ष जड़ से उखड़ कर तूफ़ान में बह गया लेकिन जो बेंत प्रवाह से लचककर जमीन में मिल गया था , वह बाढ़ उतर जाने पर फिर सीधा खड़ा हो गया l बेंत शमी वृक्ष का अंत देखकर हँसा नहीं , बल्कि उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उसने उसे ऐंठ से अकड़ा हुआ अहंकारी न बनाकर नतमस्तक विनम्र बनाया l
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