सिकंदर एक ऐसा व्यक्ति था , जिसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी , लेकिन वह हीनता की ग्रंथि का शिकार था और इसी मनोग्रंथि के कारण पूरे विश्व को जीतने की महत्वाकांक्षा मन में संजोये था l अपनी इस विश्व विजय यात्रा पर निकलने से पहले वह डायोजिनीस नामक फ़क़ीर से मिलने गया , जो हमेशा परमानन्द की अवस्था में रहते थे l सिकंदर को देखते ही डायोजिनीस ने पूछा ---- " तुम कहाँ जा रहे हो ? " सिकंदर ने कहा --- "मुझे पूरा एशिया महाद्वीप जीतना है l " डायो जिनीस ने पूछा ---उसके बाद क्या करोगे ? " सिकंदर ---- " उसके बाद भारत जीतना है l " डायोजिनीस ने पूछा --- " उसके बाद ? " जवाब मिला ---" शेष दुनिया को जीतूँगा l " प्रश्न ---- " उसके बाद ? " सिकंदर ने खिसियाते हुए उत्तर दिया " उसके बाद मैं आराम करूँगा l " डायोजिनीस हँसने लगे और बोले ---- " जो तुम इतने दिनों बाद करोगे , वह तो मैं अभी भी कर रहा हूँ l यदि तुम आख़िरकार आराम ही करना चाहते हो , तो इतना कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता क्या है ? मैं इस समय नदी के तट पर आराम कर रहा हूँ l तुम भी यहाँ आराम कर सकते हो l " यह सुनकर सिकंदर सोचने पर विवश हुआ कि उसके पास सब कुछ है , पर शांति नहीं है और डायोजिनीस के पास कुछ भी नहीं है पर उसका मन शांति और आनंद से भरा हुआ है l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " जिनका मन मनोग्रंथियों से मुक्त होता है , वे कहीं भागते नहीं , किसी को जीतते नहीं , वह स्थिर होते हैं , स्वयं को जीतते हैं और धीरे -धीरे उनका मन शांति और आनंद से भर जाता है l लेकिन जिनका मन मनोग्रंथियों से घिरा होता है , वे बेचैन , अशांत और परेशान रहते हैं l ऐसे व्यक्ति चाहे पूरे विश्व का भ्रमण कर लें,, लेकिन फिर भी वे अपने मन के अंधरों अंधेरों को दूर नहीं कर पाते हैं l
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