गोपियों ने एक बार बाँसुरी से पूछा ---- " तुम्हे कृष्ण स्वयं हर समय होठों से लगाए रहते हैं और हम सब उनकी कृपा पाने के लिए बहुत प्रयत्न करते हैं , परन्तु सफल नहीं होते , जबकि तुम बिना प्रयत्न किए ही उनके अधरों पर रहती हो l " बाँसुरी बोली ---- " बिना प्रयत्न किए नहीं गोपियों l मैंने भी प्रयत्न किया है l जानती हो मुझे मुरली बनने के लिए अपना मूल अस्तित्व ही खो देना पड़ा है l " गोपियों को तब समझ में आया l बाँसुरी अपने आप में खाली थी l उसमे स्वयं का कोई स्वर नहीं गूँजता था , बजाने वाले के ही स्वर बोलते थे l बाँसुरी को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि वह कभी बाँस रह चुकी है क्योंकि न तो उसके कोई गाँठ थी और न कोई अवरोध l गोपियों को भगवान का प्यार पाने का अनूठा सूत्र मिल गया l
No comments:
Post a Comment