15 June 2024

WISDOM --------

 आज  की  सबसे  बड़ी  समस्या  है  कि  लोगों  के  मन  में  शांति  नहीं  है   l  अशांत  मन  का  व्यक्ति  अपने  आसपास  अशांति  फैलाता  है  और  इस  तरह   अशांत  मन  के  लोगों  की  श्रंखला  बढ़ती  जाती  है   और  धीरे -धीरे  विकृत  रूप  ले  लेती  है  l  इस  अशांति  की  शुरुआत  परिवारों  से  ही  होती  है  l  यह  आदिकाल  से  चला  आ  रहा  है  l  भगवान  श्रीराम  को  वनवास  माता  कैकेयी  की  जिद्द  और  पिता  दशरथ  के  आदेश  से  हुआ  l  कोई  बाहरी  हस्तक्षेप  नहीं  था  l  इसी  तरह  महाभारत  में   पांडवों  के  विरुद्ध  जितने  भी  षड्यंत्र  रचे  गए  ,  उन्हें  वर्षों  तक  जितना  भी  उत्पीड़ित  किया  गया  वह  उन्ही  के  चचेरे  भाइयों  --दुर्योधन  आदि  कौरवों  द्वारा  किया  गया  l  हमारे  धर्मग्रन्थ   रामायण  और  महाभारत   हमें  जागरूक  करने  के  लिए  है  l  इन  महाकाव्यों  के  रचनाकार  को  पता  था  कि  कलियुग  में  जब  स्वार्थ , लालच , ईर्ष्या , द्वेष , महत्वाकांक्षा   और  दुर्बुद्धि  का  प्रतिशत  बहुत  बढ़  जायेगा   तब  ये  पारिवारिक  मतभेद  और  वीभत्स  रूप  ले  लेंगे  l  ये  महाकाव्य  हमारे  लिए  प्रकाश  स्तम्भ  हैं  l  कलियुग  में  लोगों  के  पास  बुद्धि  तो  बहुत  है  लेकिन  विवेक  नहीं  है  इसलिए  वे  अपनी  बुद्धि  का  दुरूपयोग  करते  हैं   l  परिवार  में , समाज  में  स्वयं  को  अग्रणी   और  अन्यों  को  गिरा -पड़ा   बनाने  के  लिए   ताकि  लोग  मदद  के  लिए  हमेशा  उनका  मुँह  ताकते  रहें  ,  इसके  लिए  लोग  तंत्र , मन्त्र , ब्लैक मैजिक  , नकारात्मक  क्रियाएं  आदि  का  सहारा  लेते  हैं  l  इन  कार्यों   का  सबूत  तो  केवल  ईश्वर  के  पास  होता  है  , कानून  के  पास  नहीं  l  अपराध  चाहे  कैसा  भी  हो  , यह  सत्य  है  कि  उसकी  शुरुआत  परिवार  से  ही  होती  है  l  परिवार  में  ही  छोटी -छोटी  चोरी  कर  के   व्यक्ति  बड़ा  चोर  बन  जाता  है  l  धन -संपत्ति  चुराने  से  भी  बड़ा   एनर्जी  वैम्पायर  भी  बन  जाता  है  l  ऐसे  लोग  रावण  की  तरह  कई  चेहरे  वाले  होते  हैं  l  इन्हें  पहचानना  कठिन  है  क्योंकि  समाज  में  इनकी  बड़ी  प्रतिष्ठा  होती  है  , परिवार  में  भी  यही  दिखाते  हैं  कि  वे  ही  सब  के  हितेषी  हैं  l  ईश्वर  की  कृपा  से    जब  ऐसे  लोगों  की  असलियत  समझ  में  आ  जाये   तो  हमारे  आचार्य , ऋषियों  का  मत  है  कि    दुष्टों  से  न    तो  मित्रता   करो  और  न  ही  वैर  रखो  l  इन्हें  त्याग  दो   जैसे  विभीषण  ने  रावण  को  त्याग  दिया  और  भगवान  श्रीराम  की  शरण  में  आ  गया  l  पांडव  भगवान  श्रीकृष्ण  की  शरण  में  आ  गए  l  जो  ईश्वर  का  शरणागत  हुआ  वह  सफल  हुआ   और  अत्याचारी  का  अंत  तो  सुनिश्चित  है  l  

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