15 May 2020

अपनी संस्कृति की ओर लौट चलें

   मनुष्य  के  शोषण  की  सबसे  बड़ी  वजह  उसकी  मानसिक  पराधीनता  है  l   अपनी  शक्ति  को  न  पहचान  कर    दूसरे  को  अपने  से  श्रेष्ठ   समझने  से  अनेक  समस्याएं  उत्पन्न  होती  हैं  l   विश्व  के  अधिकांश  देशों  की  आज  यही  स्थिति  है  l   राजनीतिक   दृष्टि  से  पराधीनता  में    हर  तरह  के  अत्याचार  सहने  के  बावजूद  भी  हम  अपनी  नस्ल  को  बचाये  रखते  हैं   लेकिन  यदि  हम  मानसिक  रूप  से  गुलाम  हो  गए    तो  हम  मात्र  एक  कठपुतली  बन  जाते  हैं   और  आने  वाली  पीढ़ी  को  स्वस्थ  रखने  और  स्वस्थ  वातावरण  देने  में  भी  असमर्थ  हो  जाते  हैं  l
  आज  की  सबसे  बड़ी  त्रासदी  चिकित्सा  के  क्षेत्र  में  है  l   चिकित्सा  विज्ञान   ने  जो  तरक्की  की  ,  वह  प्रशंसनीय  है  ,  कितनी  भी  तारीफ   की  जाये  वह  कम  है  l    लेकिन  इतनी  तरक्की  के  बावजूद   अनेक  देशों  में  मृत्यु   इतनी  अधिक  है  ,  और  अधिक  बच्चों   की  मृत्यु  की   संभावना  व्यक्त  होती  है   ,  तो  यह    भयभीत  करने  वाली  स्थिति  है  l   आज  से  पचास - साठ   वर्ष  पहले  जब   बच्चों  के  लिए  कोई  इंजेक्शन  आदि  नहीं  थे  ,  तब  बच्चे  तीन  वर्ष  की  आयु  तक  केवल  माँ  का  दूध  पीकर  ही  पूर्ण  स्वस्थ  रहते  थे  l   एक  कहावत  ही  थी --' माँ  का  दूध  पिया  है  !    हमारे  वीर  क्रांतिकारी   सूखी   रोटी  और  चने  चबाकर   शारीरिक  और  आत्मिक  दृष्टि  से  मजबूत  थे   l   उस  समय  लोगों  में  प्रतिरोधक  शक्ति  थी    लेकिन  अब   हर  चीज  में  रसायन  घुल  गया  है  ,  जिसने   लोगों  के  अंदरूनी   अंगों  को  कमजोर  कर  दिया  है  l  पहले  व्यक्ति  घरेलु  नुस्खे  और  आयुर्वेदिक  इलाज  से  ही  बिना  किसी  इंजेक्शन  के  ही  अपनी  बीमारी  ठीक  कर  लेता  था ,  उसका  कोई  साइड  इफेक्ट  भी  नहीं  था    लेकिन  अब  विज्ञापन और  प्रचार - प्रसार  से   दवाइयां और  इंजेक्शन  लोगों  के  मन  में  ऐसे  बैठ  गए  हैं   कि   छोटी  सी  बीमारी  के  लिए  भी   कई  दवाएं , इंजेक्शन  लेते  हैं ,  एक  बीमारी  ठीक  कर  के  दूसरी  को  गले  लगाते   हैं  l
छोटे   बच्चे  को  पैदा  होते  ही  इंजेक्शन  लगने  शुरू  हो  जाते  हैं  l   एक  बीमारी  से  बचाव  होता  है  लेकिन   उनके  कोमल  मन  में  भय  बैठ  जाता  है  l   जिन    देशों  में  बच्चों  को  और  अधिक  इंजेक्शन  व  दवाएं  दी  जाती  है  ,  वहां  उन्हें  और  नई - नई  बीमारियां  हो  जाती  हैं  और  मृत्यु    दर    बढ़  जाती  है  l
हमें  स्वस्थ  रहना  है  और  आने  वाली  पीढ़ी  को  भी  स्वस्थ  और  सुरक्षित  रखना  है   तो  अपनी  संस्कृति  की  और  लौटना  होगा    जिसमे  कृषि , चिकित्सा , शिक्षा  सब  मूलरूप  से  हमारी  हो  ,  कहीं  कोई  मिलावट  न  हो  l 

WISDOM -----

    धूर्त  व्यक्ति  हमेशा  अपना  लाभ  देखता  है   l   वह   कमजोर  का  नित  नए  तरीके  से  शोषण  करता  है  l   यदि  वह  कमजोर  के  साथ  कोई  समझौता  करता  है  या  कोई  रहम  करता  है  ,  तो  इस  दरियादिली  की  आड़  में  वह  अपना   बहुत  बड़ा  स्वार्थ  पूरा  करता  है  ,  इसलिए  नीति   कहती  है --- धूर्त  के  साथ  सहयोग  कभी  हितकारी  नहीं  होता   l   इसी  बात  को  स्पष्ट  करती  हुई  एक  प्रेरक  कथा  है -----
   एक  शेर  ने    कुछ  सियारों  के  सहयोग  से    बारहसिंगा  मारा  l   मांस  के  बँटवारे   का  निपटारा  सिंह  को  ही  करना  था  l  उसने  शिकार  के  टुकड़े  किये   और  कहा  ---- "  एक  टुकड़ा  राजवंश  का  ' कर '  है  ,  l   दूसरा  टुकड़ा  अधिक  पुरुषार्थ  करने  से  मेरा  l    और  तीसरा  स्वयंवर  जैसा  है  ,  उसे  पाने  के  लिए   प्रतिद्वंदिता  में  जो  आना  चाहे  ,  वो  संघर्ष  के  लिए  तैयार  हो   l   सियार  बेचारे  चुपचाप  खिसक  गए  l   सिंह  ने  पूरा  बारहसिंगा  खा  डाला  l
शिक्षा    यही  है   कि   धूर्त  के  साथ  सहयोग  कभी  हितकारी  नहीं  होता   l   जहाँ  तक  हो  उससे  बचना  चाहिए   l 

14 May 2020

WISDOM ------

  गुरु  अपने  शिष्यों  के  साथ   गुरुकुल  में  बैठे  थे  ,  प्रश्न - उत्तर  का  क्रम  चल  रहा  था  l   एक  शिष्य  ने  गुरु  से  पूछा  ---- " गुरुदेव  ! सम्पति  का  सदुपयोग  न  करने  पर   मनुष्य  का  क्या  होता  है  ? "
  गुरु  ने  उत्तर  दिया  --- " वत्स  !  तुमने  रेशम  का  कीड़ा  देखा  है  ?  एक  रेशम  का  कीड़ा  रेशम  इकट्ठी  कर  के  भारी - भरकम  हो  जाता  है  l  पर  इस  प्रगति  का  क्या  लाभ  ?  वह  बेचारा  अपने  ही  बनाये  जाल  में  जकड़ कर  मर  जाता  है   l   उसके  पास  की  वह  जमा - पूंजी  ,  जिसे  वह   स्वयं  के  किसी  काम  में  नहीं  ला  सकता  ,  वह  दूसरों  का  जी  ललचाती  है   और  वो  लालची  ही   उसके  जीवन  का  नाश  करते  हैं   l   धन  का  सदुपयोग  न  करने  वाले   संपत्तिवान   भी  उस  रेशम  के  कीड़े  की  तरह  हैं  ,  जो  स्वयं  तो  आवश्यकता  से  अधिक   सम्पति  का   उपयोग  नहीं  कर  पाते  ,  परन्तु  इसके  कारण   मात्र  लालचियों   और  दुष्टों  के  भरण - पोषण    का  माध्यम  बनते  हैं   l   आवश्यकता  से  ज्यादा  एकत्रित  संपदा   स्वयं  के  लिए    एवं   परिवार  के  लिए    पतन  का  कारण  बनती  है   l  "   शिष्य  को  उसके  प्रश्न  का  उत्तर  मिल  गया  l 

13 May 2020

WISDOM ------ स्वस्थ रहना है , तो ' स्वदेशी ' को अपनाना होगा

  संसार  के  सारे  सुख  हमें  इसी  शरीर  से  मिल  सकते  हैं  ,  लेकिन  यदि  शरीर  ही  अस्वस्थ  है , रोग  से  घिरा  हुआ  है    तो   सारे  सुख  उपलब्ध  होते  हुए  भी  हम  उनका  उपभोग  नहीं  कर  पाएंगे  l
आयुर्वेद   के  अनुसार  वात  , पित्त  और  कफ   के  कुपित  होने  के   परिणाम    को  ही   रोग  कहते  हैं  ,  किन्तु  इनमे  से  किसी   का  प्रकोप  तब  होता  है  जब  व्यक्ति    विषम  तथा  अनुचित  ,     अन्नपान ,  अनुपान ,  अशास्त्रीय  आचार  एवं   जीवन  की  गतिविधियों  में  असावधानी  बरतता  है   l 
  मनुष्य   का  शरीर  पांच  तत्वों  से  मिलकर  बना  है ---- भूमि , जल , अग्नि , वायु  और  आकाश  l   जिस  देश  में  हमारा  जन्म  हुआ  है  ,  हमारा  शरीर  उसी  की  प्रकृति  के  अनुकूल  है   l  जैसे  हमारा  जन्म  भारत  में  हुआ  है   तो  यहीं  के  खाद , बीज  से   तैयार  अन्न , फल , सब्जी  हमें  फायदा  करेगी ,  इसी  भूमि  में  प्राप्त  कच्चे  माल  से  तैयार   दवाइयाँ  आदि  विभिन्न  पदार्थ  हमारे  शरीर  के  अनुकूल  होंगे  लेकिन  यदि  हम   दूसरे  देशों   के  खाद , बीज  से   उगी  हुई  सब्जी , फल , अन्न  आदि  का  उपयोग  करेंगे  ,  दूसरे  देशों  की  दवा ,  आदि  सामग्री  का  उपयोग  करेंगे  तो  शरीर  पर  उनका  साइड  इफेक्ट  अवश्य  होगा  l   यही  कारण  है   कि   देश  में  ऐसे  असंख्य  लोग  मिलेंगे  जो  नशा  नहीं  करते ,  गुटका  नहीं  खाते ,  संयम  से  रहते  हैं  ,  उनके   आचार  - विचार  सही  हैं ,  सेवा - परोपकार  भी  करते  हैं   फिर  भी  कैंसर   आदि  किसी  न  किसी  भयानक  रोग  से  ग्रस्त  हैं  l
  इसका  कारण  है  --  विषमता  या  अनुचित   l   हमारा  शरीर  जिस  प्रकृति  का  बना  हुआ  है  ,  उसमे  हमने  अन्य  देशों  के  ऐसे  पदार्थों  को  डाल   दिया  जो  हमारी  प्रकृति  से  मेल  नहीं   खाते  l   इसलिए  हम  कभी  भी  पूर्ण  स्वस्थ  नहीं  हो  पाते  l   एक  न  एक  बीमारी  बनी    रहती  है   l 
संसार  के  प्रत्येक  देश  के  लोगों  को   यदि  स्वस्थ  रहना  है  ,  ईश्वर  ने  हमें  जो  सुख - सुविधाएँ  दी  हैं ,  उनका     उपभोग  करना  है   तो    जागरूक  होना  होगा   l  प्रत्येक  देश  की  अपनी  संस्कृति  है  ,  अपने  चिकित्सा  के  तरीके  हैं  ,  अपनी  ही   प्रकृति  की  ओर   लौटना  होगा  l  आपस  का  मेलजोल  अच्छा  है  लेकिन    जो  आधार  है  , नींव  है  , वह   वही  हो   जहाँ  हम  पैदा  हुए  हैं   l 

WISDOM -----

    महाभारत  एक  दूसरे  को  सम्मान  न  दे  पाने  की  भीषण  प्रतिक्रिया  के  रूप  में  ही   उभरा  था   l   बचपन  में  दुर्योधन  राजमद  में   पांडवों  को  सम्मान  न  दे  सका   l   भीम  सहज  प्रतिक्रिया  के  रूप  में   अपने  बल  का  उपयोग  कर  के   उन्हें  अपमानित - तिरस्कृत  करने  लगे   l
द्रोपदी  सहज  परिहास  में  भूल  गई   कि   दुर्योधन  को   '  अंधों  के  अंधे  '  सम्बोधन  से  अपमान  का  अनुभव  हो  सकता  है   l   दुर्योधन  द्वेषवश  नारी  के  शील  का  महत्व   ही  भूल  गया   और  द्रोपदी  को  भरी  सभा  में  अपमानित  करने  पर  उतारू  हो  गया   l   यही  सब  कारण  जुड़ते  गए   तथा  छोटी - छोटी   शिष्टाचार  की  त्रुटियों   की  चिनगारियाँ   भीषण  ज्वाला  बन  गईं   l
यदि  परस्पर  सम्मान  का  ध्यान  रखा  जा  सका  होता  ,  अशिष्टता  पर  अंकुश  रखा  जाता  ,  तो  स्नेह  बनाये  रखने  में  कोई  कठिनाई  नहीं  होती   l  भीष्म  पितामह  और  वासुदेव  जैसे  युग - पुरुषों  का  लाभ  मिल  जाता   l   वह  पूरा  काल - खंड   छल - छद्द्म ,  षड्यंत्र  और   भाई - भाई  के  आपसी  झगड़ों  में  ही  व्यतीत  हो  गया   l
महाभारत  के  विभिन्न  प्रसंग  हमें  शिक्षा  देते  हैं  कि  हम  आपस  में  झगड़कर  अपना  ही  नुकसान  करते  हैं   l  अनमोल  जीवन  को  व्यर्थ  में  गँवा  देते  हैं   l 

12 May 2020

WISDOM ------ श्रद्धा और विश्वास से रोगों का नाश

 बाबा  नीम  करौली   हनुमानजी  की  भक्ति  कर  के    हनुमान मय   हो  गए  थे  l   उन्होंने  देश  में  अनेक  स्थानों   पर    हनुमान  मंदिर  बनाए   हैं  l   वे  कहते  थे  हनुमान जी   इस  युग  के  जीवंत   देव  हैं   l   उन्हें  भाव  भरे  हृदय  से  पुकारें  ,  तो  प्रत्यक्ष  खड़े  हो  जाते  हैं   l   इनसान   हृदय  से  पुकारे   तो  कुछ  भी  असंभव  नहीं  रह  जाता   है  ,  परन्तु  पुकार  ही  तो  नहीं  पाता   है  l   व्यर्थ  की  उलझनों  में   उलझ  कर    अपना  जीवन  नष्ट  करता   रहता  है   l 
  कहते  हैं  बाबा  नीम  करौली  की  कृपा  से  सारे  रोग  मिट  जाते   हैं   l   एक  प्रसंग  है  -----  डॉक्टर  ब्रह्मस्वरूप  सक्सेना  इलाहबाद  में    होमियोपैथिक  डॉक्टर  थे   l   मकान  के  एक  हिस्से  में  ही  उन्होंने  क्लीनिक  बना  दिया  था  ,  जहाँ  वे  रोगियों  का   निरीक्षण - परीक्षण   करते  थे   l   सामान्य  जीवन  का  गुजारा   हो  जाता  था   l   एक  दिन  उनके  पास  एक  ऐसा  रोगी  आया  जिसकी  दोनों  आँखें  चेहरे  से  बाहर  निकल  आई  थीं  l   डॉक्टर  सक्सेना  ने  उससे  कहा  --- ' आप  किसी  सर्जन  के  पास  चलें  जाएँ   l   मेरे  पास  इसका  कोई  समाधान  नहीं  है  l  '  तब  रोगी  ने  कहा  --- मैं  आपसे  ही  दवा  लूंगा   और  मुझे  पूर्ण  विश्वास  है  कि   दवा  खाने  के  बाद  पूर्ण  स्वस्थ  हो  जाऊँगा  l  क्योंकि  हमारे  इष्ट  एवं   आराध्य  बाबा  नीम  करौली  ने  कहा  है   कि   आपकी  दवा  से  हम  स्वस्थ  एवं   प्रसन्न  हो  जायेंगे  l  "
 सक्सेना जी  बड़े  असमंजस  में  थे  ,  उन्होंने  उसे  दर्द निवारक  अर्निका  की  गोलियां  दीं  l   रोगी  ने  जैसे  ही  उसे   खाया  ,  उसकी  आँखें  सही  स्थित  हो  गईं  और  उसका  भयानक  चेहरा  शांत  व  सौम्य  हो  गया  l   इस  घटना  के  बाद  तो  अनेक  असाध्य  रोगी  आने  लगे  l   वे  सभी  कहते  कि   बाबा  नीम  करौली  ने  उन्हें  भेजा  है   l   सक्सेना जी  ने  बाबा  को  देखा  नहीं  था  ,  लेकिन  उनके  हृदय  में  उनके  लिए  श्रद्धा  - विश्वास  उत्पन्न  हो  गया  l
एक  दिन  बाबा  स्वयं  उनकी  क्लीनिक   आये   और  कहने  लगे----'  हाथों  में   कुछ  गर्मी  महसूस  कर  रहा  हूँ , जल्दी  से  कुछ  दवा  दे  दो  l   कुछ  अधिक  मात्रा  में  देना ,  फिर  हम  दोबारा  नहीं  आएंगे  l  '
जब  वे  बाहर  निकले  तो  मरीजों  ने  उनके  चरण स्पर्श  किए l   सक्सेना  जी  हैरान  थे  कि  इतना  धवल  व्यक्तित्व  ये  कौन  है  ?   तब  एक  मरीज  ने  कहा  --- आप  पहचानते  नहीं  ,  ये  ही  बाबा  नीम  करौली  हैं  ,  जिनकी  अलौकिक  शक्तियां   भारत  ही  नहीं  विश्व  में  प्रकाशित  हैं  l   सक्सेना  जी  को   बहुत  पश्चाताप  हुआ  कि   वे  जिसे  खोजते  रहे  ,  वे  जब  सामने  आये  तो  पहचान  न  सके  l   उन्हें  इस  बात  का  भी  दुःख  हुआ  कि   बाबा  अपनी  बारी  की  प्रतीक्षा  में  बाहर  दो  घंटे  तक  बैठे  रहे  और   बाहर  बैठे  लोगों  के  साथ  सत्संग  करते  रहे  l  इसके  बाद  सक्सेना  जी  का  जीवन  बदल  गया  , वे  सेवाभावी  हो  गए   l 

WISDOM ----- जो ईश्वर पर विश्वास रखता है उसे मृत्यु का भय नहीं होता

  ईश्वर  सत्य  है '   जिसने  भी  इस  धरती  पर  जन्म  लिया  उसकी  मृत्यु  निश्चित  है   l   लेकिन  मृत्यु  का  भय   व्यक्ति   को  जीवित  रहते  हुए  भी  मृत्यु तुल्य  बना  देता  है  l   वह  मृत्यु  के  भय  से  इधर - उधर  भागता  है  या  छिपता  फिरता  है  ,  जीवन  का  आनंद  नहीं  ले  पाता  l   निडर  होकर  जीवन  जीने  में  ही  जीवन  जीने  का  आनंद  है   l  जो  ईश्वर  विश्वासी  हैं   वे  जानते  हैं  कि   ईश्वर  ने  उन्हें  धरती  पर  रहने  का  जितना  वक्त  दिया  है ,  उसमें   एक  पल  का  भी  हेरफेर  संभव  नहीं  है  ,  इसलिए  वे  निडर  होकर  जीवन  जीते  हैं   l 
 महाभारत  का  प्रसंग  है ---- दुर्योधन  ने  भीष्म पितामह  पर  आक्षेप  किया  कि     वे  अर्जुन  के  प्रति  मोह  रखते  हैं  ,  इसलिए  पूरा  शौर्य  प्रकट  नहीं  करते  हैं   l   इस  पर  भीष्म  ने  प्रतिज्ञा  की  ---- कल  के  युद्ध  में   मैं  या  अर्जुन  - में  से  एक  की  मृत्यु  होगी   l   भीष्म  की  प्रतिज्ञा  से  पांडवों  में  खलबली  मच  गई  l   स्वयं  कृष्ण  चिंतित  हो  उठे  l   नींद  नहीं  आई  l  अर्जुन  की  क्या  स्थिति  है  यह  देखने   उनके  डेरे  में   जा  पहुंचे  l   वहां  जाने  पर  देखा  कि   अर्जुन  निश्चिन्त  होकर  स्वाभाविक  स्थिति  में  सो  रहे  हैं   l 
  कृष्ण  ने  उन्हें  जगाया   और  पूछा  --- " पार्थ  !  तुमने  भीष्म  की  प्रतिज्ञा  सुनी  ?  "
  उत्तर  मिला  --- " हाँ ,  सुनी  l  "  कृष्ण  बोले --- " फिर  भी  निश्चिन्त  कैसे  सो  रहे  हो  ? "
  अर्जुन  बोले ---- " जो  मेरे  करने  का  है  ,  सो  तो  मैं  करूँगा  ही  ,  उसके  लिए  ठीक - ठाक   विश्राम  भी  जरुरी  है  l   इसके  अतिरिक्त  क्या  करना  है  ,  यह  मेरा  रक्षक  सोचता  है   l   उसकी  जागरूकता  पर  भरोसा  है  ,  इसलिए  निश्चिन्त  सोता  हूँ  l  "