4 May 2013

LUCK

'सतत सेवा एवं पुण्य -परमार्थ करते रहने से जीवन में सौभाग्य के सुअवसर आते हैं और दुर्भाग्य का जाल कटता रहता है | '
सौभाग्य चुपके से दबे पाँव आता है और जीवन के दरवाजे पर दस्तक देकर चला जाता है | सौभाग्य के सुअवसर की पहचान बुद्धि एवं विवेक के द्वारा ही संभव है ,जो ऐसा कर पाता है ,उसके जीवन में सौभाग्य विविध रूपों में आता है | सौभाग्य सम्मान एवं आदर की अपेक्षा करता है | जो सुख -सौभाग्य को जितना आदर -मान देता है ,उसके जीवन में वह उतना ही गहराई से अपना प्रभाव दिखाता है | यदि जीवन में सौभाग्य का उदय पद एवं प्रतिष्ठा के रूप में हुआ है तो उसे बनाये रखने के लिये इस सौभाग्य के समय को पुण्य -परमार्थ ,सेवा -कार्यों में नियोजित करना चाहिये ,तो यह सौ गुना ,हजार गुना होकर वापस लौट आता है |
जो लोग वैभव ,संपदा प्राप्त होने पर अहंकारी हो जाते हैं ,इसका दुरूपयोग करते हैं ,उनके जीवन में यह समय से पूर्व ही विदा हो सकता है | सुख -सौभाग्य के समय का दुरूपयोग करने वाले समय से पूर्व ही संचित कोश को रिक्त कर देते हैं और फिर दुर्भाग्य का रोना रोते हैं |

        सौभाग्य कई रूपों में आता है | श्री जुगल किशोर बिड़ला के जीवन में एक अवसर आया .जब उनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी | इतने अभाव में भी वे एक महात्मा को नित्य दो बार अपने हाथों से भोजन कराते थे | ऐसा एक भी दिन नहीं आया कि उन साधु को भोजन कराये बिना स्वयं अन्न ग्रहण किया हो
       एक बार बिड़ला जी थके -हारे काम से आये थे ,आँधी -तूफान के साथ तेज वर्षा हो रही थी | भूख भी लग रही थी | खाना परोसा गया ,जैसे ही वे रोटी का टुकड़ा अपने मुँह में लेने लगे तो उन्हें उस साधु की याद आई ,जिसको खिलाये बिना वे अन्न के एक दाने को हाथ भी नहीं लगाते थे | आज यह कैसे अनर्थ हो गया ,वे खाना छोड़कर और साधु का भोजन लेकर बेसब्री से दौड़ पड़े | साधु सारी स्थिति से अवगत थे | साधु ने कहा -"तू आज अपना खाना छोड़कर मुझे खिलाने आया है इसलिये आज मैं तुझे आशीर्वाद देता हूँ कि तेरे पास संपदा एवं संपति की कोई कमी नहीं होगी | "बिड़ला जी ने इस दिव्य अवसर को हाथ से जाने नहीं दिया और महात्मा की कृपा से अथाह चल -अचल संपदा के स्वामी बने | सौभाग्य कृपा के रूप में भी बरस पड़ता है ,परंतु उसके लायक स्वयं को बनाना पड़ता है | 

ART OF LIVING

'मन शुद्ध ,पवित्र और संकल्पवान बन जाये तो जीवन की दिशा धारा ही बदल जाये | जिसने मन को जीत लिया ,उसने सारा संसार जीत लिया | '
विपरीत परिस्थितियों में ,अभाव की दशा में ,बुरे स्वभाव के लोगों के बीच रहते हुए भी जिस कला द्वारा जीवन को आनंदमय ,उन्नत और संतोषजनक बनाया जा सकता है उसे 'जीवन जीने की कला 'कहते हैं | मनुष्य को सुखी होना सिखाया जा सकता है | यह कोई जटिल या असाध्य प्रक्रिया नहीं है | बहुत से लोग यह समझते हैं कि धन -संपन्न होने से सभी प्रकार के दुखों और अभावों से छुटकारा पाया जा सकता है | वस्तुत:बात ऐसी नहीं है | दुःख एक आंतरिक अभावात्मक धारणा है | वह अंतस से संबंधित एक रिक्त अनुभूति है | उस रिक्तता को बाहरी उपादानो से नहीं भरा जा सकता | यही कारण है कि जो लोग स्वस्थ -संपन्न देखे जाते हैं ,वे भी दुःख और पीड़ाओं से ग्रस्त रहते हैं |
साधन -सम्पन्नता सुख नहीं है तो सुख आखिर है क्या ?
   
       'सुख व्यक्ति के मानसिक चैन का एक स्तर है ,जिससे वह कुल मिलाकर अपने जीवन से संतुष्ट रहता है | "संतुष्टि ---एक भावनात्मक अनुभूति है ,जो उपलब्ध को पर्याप्त मानने से जन्मती है और अभीष्ट को प्राप्त करने के लिये प्रचुर सामर्थ्य और साहस प्रदान करती है |
         सुख एक भावनात्मक उपलब्धि है ,इस उपलब्धि को अर्जित करने के लिये भावनाओं का संतुलन ,परिष्कार ,परिमार्जन ही सफल और कारगर तरीका है |
         जीवन की इस आंतरिक नीरसता और खोखलेपन को दूर करने के लिये भावनाओं को परिष्कृत करने हेतु सेवा -परमार्थ निष्काम कर्म को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करना होगा ,इसी से जीवन का खालीपन दूर होगा और जीवन में आंतरिक ख़ुशी .और संतुष्टि महसूस होगी | 

2 May 2013

CONSCIENCE ! MAN'S MOST FAITHFUL FRIEND

'गंगा यमुना का जल श्वेत हो या श्याम उनमे से किसी में भी स्नान करने पर राजहंसो की धवलता यथावत बनी रहती है | वे जल के रंग से प्रभावित नहीं होते |
              परिष्कृत व्यक्तित्व और आध्यात्मिक द्रष्टिकोण वाले व्यक्ति सांसारिक सुख -दुःख को चलती -फिरती छाया से अधिक महत्व नहीं देते | वे उसकी उसी प्रकार उपेक्षा कर देते हैं जिस प्रकार खेत के काम में तल्लीन किसान आकाश में धूप छाँह के खेल की ओर ध्यान नहीं देते | वे इस वास्तविकता से अनभिज्ञ नहीं होते कि सुख -दुःख ,अनुकूलता -प्रतिकूलता की घनात्मक एवं ऋणात्मक परिस्थितियों में तप कर ही मानव जीवन पुष्ट होता है | जीवन की हर परिस्थिति को ईश्वर का वरदान मानकर वे सदैव प्रसन्न एवं संतुष्ट ही बने रहते हैं |

             फिनलैंड के विश्व प्रसिद्ध संगीतकार सिबिलियास से एक नवयुवक संगीतकार मिलने आया और कहने लगा कि आलोचक मेरी कई बार इतनी कड़ी आलोचना करते हैं कि मैं बेहद निराश हो जाता हूँ | कृपया इससे उबरने का कोई उपाय बताएं | सिबिलियास  ने कहा -"कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है | बस !उन नासमझों की बातों पर ध्यान न दो | यदि तुम्हारा उद्देश्य पवित्र है और नियत साफ है तो किसी निंदक और आलोचक से मत डरो | यह भी जान लो कि किसी भी निंदक या आलोचक के सम्मान में कोई मूर्ति या स्मारक आज तक दुनिया में नहीं बनाई गई है | "

1 May 2013

CHANGE YOUR PERCEPTION

द्रष्टिकोण के परिवर्तन से जहान बदल सकता है |
आशावादी व्यक्ति सर्वत्र परमात्मा की सत्ता विराजमान देखता है | उसे सर्वत्र परमात्मा की मंगलदायक कृपा बरसती दिखाई देती है |  सच्ची शांति ,सुख और संतोष मनुष्य की अपने ऊपर ,अपनी शक्ति पर विश्वास करने से प्राप्त होता है |
        दुनिया में बुरे लोग हैं ठीक है पर यदि हम अपनी मनोभूमि को सहनशील ,धैर्यवान और उदार बना लें तो अपनी जीवन यात्रा आनंद पूर्वक तय कर सकते हैं |
        जो उपलब्ध है उसे कम या घटिया मानकर अनेक लोग दुखी रहते हैं | यदि हम इन लालसाओं पर नियंत्रण कर लें ,अपना स्वभाव संतोषी बना लें तो अपनी परिस्थितियों में शांतिपूर्वक रह सकते हैं |
        अपने से अधिक सुखी ,अधिक साधन -संपन्न लोगों के साथ अपनी तुलना की जाये तो प्रतीत होगा कि सारा अभाव और दरिद्रता हमारे ही हिस्से में आया है परंतु यदि हम अपने से अधिक समस्याग्रस्त और दुखी लोगों से अपनी तुलना करें तो हमारा असंतोष ,संतोष में परिणत हो जायेगा और अपने सौभाग्य की  सराहना करने को जी चाहेगा |
             सूर्य प्रतिदिन अपने उसी क्रम से निकलता है उसके प्रति हमारा द्रष्टिकोण प्रतिदिन उगते रहने वाले सूर्य जैसा ही होता है ,किंतु यदि हम अपना द्रष्टिकोण बदलें और विराट जगत के महान क्रियाशील शक्तितत्व के रूप में उस सूर्य का चिंतन करें तथा सूर्योदय के समय गायत्री मंत्र के जप के साथ प्रकाश का सम्मान करें तो वह महाप्राण हमारे शरीर को प्राण शक्ति से भरपूर और हमारे सम्पूर्ण जीवन को प्रकाशित कर देगा | 

THOUGHT IS THE SOUL OF ACT

मनुष्य का जीवन उसके विचारों का प्रतिबिम्ब है | सफलता -असफलता ,उन्नति -अवनति ,तुच्छता -महानता ,.सुख -दुःख ,शांति -अशांति आदि सभी पहलू मनुष्य के विचारों पर निर्भर करते हैं | विचारों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है | विचारों की शक्ति से बढ़कर इस संसार में कोई शक्ति नहीं है | इसी के सहारे मनुष्य जो बनना चाहता है ,बन सकता | यदि सोचने का सही तरीका जान लिया जाये ,तो समझना चाहिये कि संतोष ,सहयोग और सफलता प्राप्त करने की कुंजी हाथ लग गई |
कितने ही व्यक्ति विकलांगता को अभिशाप मान कर रोते हैं ,भाग्य और विधाता पर दोषारोपणकरते रहते हैं ,किंतु महाकवि मिल्टन अंधे थे ,उनके विचार ऐसे लोगों से भिन्न थे | वे कहते थे -65 इंच लंबे - चौड़े शरीर में आँखों की 2 इंच की कमी से पूरे शरीर को अनुपयोगी ठहराना कहां की बुद्धिमानी है | वे पूरे जीवन ज्ञान -साधना में लगे रहे | ऐसे परिपक्व विचारों के  कारण ही विश्व विख्यात कवियों की श्रेणी मे उनका नाम आज भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है |
व्यक्ति अजस्त्र शक्तियों का भण्डागार है ,उसमे प्रचुर सामर्थ्य है | यदि वह अपने विचारों में दूरदर्शी विवेकशीलता का समावेश कर ले ,तो दुर्बल और दुर्भाग्यग्रस्त रहने वाला व्यक्ति भी अपने जीवन में सौभाग्य की स्थिति का आनंद उठा सकने में समर्थ हो सकता है |   

29 April 2013

HUMANITY

'उस परिमित और संकुचित स्वार्थ को त्याग देना,जो सम्पूर्ण वस्तुओं को अपने ही लाभ के लिये चाहता है | सच्चा स्वार्थ परमार्थ में ही निहित है | स्वार्थ इनसान को संवेदनहीन कर देता है | आज जीवन इतना यांत्रिकीय हुआ है कि सेवा ,सहयोग ,भाव - संवेदना से व्यक्ति का नाता ही टूट गया है | 'स्व 'कीपरिधि में सिमटा लोगों का जीवन  संवेदनहीन हो गया है | इस संकीर्ण एवं क्षुद्र दायरे को तोड़कर ही जीवन की व्यापकता का आनंद उठाया जा सकता है |
स्वार्थ हमें बांधता है जबकि परमार्थ ,सेवा ,त्याग ,सहयोग ,सहायता आदि हमें असीम बनाते हैं ,जीवन का सही स्वरुप दिखाते हैं | जीवन भावना ,संवेदना ,करुणा ,सेवा ,व्यवहार एवं पुरुषार्थ का अदभुत समुच्चय है | इन दिव्य विशेषताओं को विकसित करने के लिये आवश्यक है कि हम अपने संकीर्ण स्वार्थ की मोटी दीवार को ढहा दें और अंतरात्मा की कोठरी के वातायनों को खोल दें ,त्याग ,सेवा ,सहायता रूपी प्रेरणाप्रद प्रकाश को अंदर  आने दें तथा इंसानियत की सुगंधित बयार से इसे महकने दें |

                     'भक्ति 'का अर्थ है -भावनाओं की पराकाष्ठा और परमात्मा एवं उसके असंख्य रूपों के प्रति प्रेम | यदि पीड़ित को देख अंतर में करुणा जाग उठे ,भूखे को देख अपना भोजन उसे देने की चाह मन में आये और भूले -बिसरों को देख उन्हें सन्मार्ग पर ले चलने की इच्छा हो ,तो ऐसे ह्रदय में भक्ति का संगीत बजते देर नहीं लगती | सच्चे भक्त की पहचान भगवान के चित्र के आगे ढोल -मंजीरा बजाने से नहीं ,बल्कि गए -गुजरों और दीन -दुखियों को उसी परम सत्ता का अंश मान कर ,उनकी सेवा करने से होती है | 

28 April 2013

AIMS AND OBJECTS

'सच्ची लगन और एक निष्ठा के साथ विवेकपूर्ण प्रयत्न करने से ही सफलता प्राप्त होती है |
                   एक लड़के ने बहुत धनी आदमी देखकर धनवान बनने का निश्चय किया | कई दिन तक वह कमाई में लगा रहा | इसी बीच उसकी भेंट एक विद्वान् से हो गई ,अब उसने विद्वान् बनने का निश्चय किया और कमाई छोड़कर पढ़ने में लग गया | अभी कुछ ही पढ़ पाया था कि उसकी भेंट एक संगीतज्ञ से हुई | उसे संगीत में आकर्षण दिखा तो पढ़ाई बंद कर संगीत सीखने लगा |
          बहुत उम्र बीत गई ,न वह धनी हो सका न विद्वान् और न ही संगीत सीख पाया | तब उसे बड़ा दुःख हुआ | एक दिन उसकी एक महात्मा से भेंट हुई ,उसने अपने दुःख का कारण बताया |
महात्मा बोले -"बेटा !दुनिया बड़ी चिकनी है ,जहां जाओगे कोई न कोई आकर्षण दिखाई देगा | एक निश्चय कर लो और फिर जीते -जी उसी पर अमल करते रहो तो तुम्हारी उन्नति अवश्य हो जायेगी | बार -बार रूचि बदलते रहने से कोई भी उन्नति न कर पाओगे | "युवक समझ गया और अपना एक उद्देश्य निश्चित कर उसी का अभ्यास करने लगा |
मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण तभी होता है जब उसकी स्वाभाविक प्रवृतियाँ एक लक्ष्य को द्रष्टि में रखकर व्यवस्थित की जाती हैं |