25 August 2025

WISDOM -----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " असीम  सत्ता  पर  गहरी  आस्था  से  हमें  ऊर्जा  मिलती  है  l  यदि  आस्था  गहरी  हो  तो   सफलता  में  उन्माद  नहीं  होता  और  असफलता  में  अवसाद  नहीं  होता  l "   जो  भी  व्यक्ति इस  सत्य  को  जानते  हैं  कि  इस  संसार  में  एक  पत्ता  भी  हिलता  है  तो  वह  ईश्वर  की  मरजी से   ही  है  ,  ऐसे  व्यक्ति  सुख   को  ईश्वर   की  देन  मानकर  उस  समय  का  सदुपयोग  करते  हैं  ,  अहंकार  नहीं  करते   और  दुःख  के  समय  को   भी  ईश्वर  की  इच्छा  मानकर  उसे  तप  बना  लेते  हैं  l  वे  इस  सत्य  को  जानते  हैं  कि  विपत्ति  का  प्रत्येक  धक्का   उन्हें  अधिक  साहसी , बुद्धिमान   और  अनुभवी  बना  देगा  l  सुख -दुःख , मान -अपमान  और  हानि -लाभ  में  अपने  मानसिक  संतुलन  को  बिगड़ने  नहीं  देते  l   महाभारत  में  पांडव  भगवान  श्रीकृष्ण  के  प्रति  समर्पित  थे  l अनेक  वर्ष  उन्हें  जंगलों  में  गुजारने  पड़े , निरंतर  दुर्योधन  के  षड्यंत्रों   और  कौरवों  से  मिले  अपमान  को  सहना  पड़ा  l  लेकिन  वे  कभी  विचलित नहीं  हुए   और  कठोर  तपस्या  कर  के  दैवी  अस्त्र -शस्त्र  प्राप्त   किए   और  अंत  में  विजयी  हुए  l  

23 August 2025

WISDOM ------

     पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " गरीब  व  गरीबी  परिस्थितियों वश  होती  है  ,  लेकिन  दरिद्रता  मन:स्थिति  है  l  दरिद्रता  इच्छाओं  की  कोख  से  पैदा  होती  है  l  जिसकी  इच्छाएं  जितनी  अधिक  हैं  , उसे  उतना  ही  अधिक  दरिद्र  होना  पड़ेगा  ,  उसे  उतना  ही  याचना  और  दासता  के  चक्रव्यूह  में  फँसना  पड़ेगा  l "   आचार्य श्री  कहते  हैं  ये  इच्छाएं  ही  दुःख  का  कारण  हैं  l  जो  जितना  अपनी  इच्छाओं  को  छोड़  पता  है  ,  वह  उतना  ही  सुखी , स्वतंत्र  और  समृद्ध   होता  है  l  जिसकी  चाहत  कुछ  भी  नहीं  है  ,  उसकी  निश्चिंतता  और  स्वतंत्रता  अनंत  हो   जाती  है  l  "   ददरिद्र  वह  नहीं  जिसके  पास  धन  का  अभाव  है ,  दरिद्र  वह  है  जिसके  पास  सब  कुछ  है  , फिर  भी  वह  दूसरों  को  लूटने , उनका  हक  छीनने  ,  उनका  हर  तरह  से  शोषण  करने  के  लिए  तत्पर  रहता  है  l  एक  सूफी  कथा  है  -----फकीर  बालशेम  ने  एक  बार  अपने  एक  शिष्य  को  कुछ  धन  देते  हुए  कहा  ---- " इसे  किसी  दरिद्र  व्यक्ति  को  दान  कर  देना  l '  शिष्य  को  गुरु  के  साथ  सत्संग  से  यह  ज्ञात  था  कि  दरिद्रता  मन:स्थितिजन्य  है  , उसने  दरिद्र  व्यक्ति  की  तलाश  करनी  शुरू  कर  दी  l  इस  तलाश  में  जब  वह  एक  राजमहल  के  पास  से  होकर  गुजरा  , तो  वहां  लोग  चर्चा  कर  रहे  थे   कि  राजा  ने  अपनी  इच्छाओं  को  पूरा  करने  के  लिए   प्रजा  पर  कितने  अधिक  कर  लगायें  हैं  और  कितनों  को  लूटा  है  ,  अब  और  अधिक  धन  के  लिए  दूसरे  देश  पर  आक्रमण  करने   को  तैयार  है  l  शिष्य  की  तलाश  पूरी  हुई  ,  उसने  राजदरबार  में  उपस्थित  होकर  सारा  धन  राजा  को  सौंप  दिया  l  एक  फ़क़ीर  द्वारा  इस  तरह  धन  दिए  जाने  से  राजा  हैरान  हो  गया   और  उसने   इसका  कारण  पूछा   तो  उस  शिष्य  ने  कहा  ----' राजन  !  इस  धरती  पर  सबसे  दरिद्र  आप  ही  हो  जो  इतना  वैभव  होते  हुए  भी  प्रजा  को  लूट  रहे  हो , दूसरे  देश  पर  आक्रमण  कर  रहे  हो  l  मेरे  गुरु  का  आदेश  था  कि  ऐसे  ही  किसी  दरिद्र  को  यह  धन  सौंप  देना  l "  राजा  को  सत्य  समझ  में  आ  गया  ,  कितना  भी  वैभव  आ  जाए  लेकिन  इच्छाओं  और  चाहतों  से  छुटकारा  पाना  कठिन  है  l  

21 August 2025

WISDOM -----

 मनुष्य  और  पशु -पक्षियों  में  एक  बड़ा  अंतर  यह  है  कि  मनुष्य  के  पास  बुद्धि  है  , चेतना  के  उच्च  स्तर  तक  पहुँचने  की  पूर्ण  संभावनाएं  उसके  पास  हैं  l  यह  दौलत  जानवरों  के  पास  नहीं  है  l  लेकिन  दुःख  की  बात  यह  है  कि कि  मनुष्य  बुद्धि  का  सदुपयोग  नहीं  करता  ,  चेतना  के  स्तर  को  ऊँचा  उठाने  का  कोई  प्रयास  नहीं  करता  l  बुद्धि  का  दुरूपयोग  इस  सीमा  तक  करता  है  कि  वह  दुर्बुद्धि  और  एक  मानसिक  विकृति  हो  जाती  है  l ----- एक  कथा  है  ---- एक  बिल्ली  ने   अंगूर  की  बेल  पर  बहुत  से  अंगूर  देखे  l  उसका  मन  ललचा  गया  l  उसने  सोचा  कि  मैं  इसे  खाकर  ही  रहूंगी  l  बहुत  उछल -कूद  मचाई  लेकिन  एक  भी  अंगूर  उसे  न  मिल  सका  l  यह  कहते  हुए  वह  चली  गई  कि  ' अंगूर  खट्टे  हैं  l '  उसने   उन्हें  पाने  के  लिए  कोई  साजिश  नहीं  रची , कोई  षड्यंत्र  नहीं  रचा   क्योंकि  उसके  पास  यह  सब  करने  के  लिए  बुद्धि  नहीं  है  l    मनुष्य  के  पास  बुद्धि  है  , शक्ति और  सामर्थ्य  है   लेकिन  नैतिकता  की  कमी  है   तो  वह  इन  सबका  दुरूपयोग  करता  है  l  किसी  का  धन   हड़पना , परिवारों  में   फूट  डालकर  उनका  सुख  छीनना , अपने  किसी  स्वार्थ  के  लिए  पति -पत्नी  को  अलग  करा  देना  , लोगों  का  हक  छीनना  , यहाँ  तक  कि  तंत्र  आदि  नकारात्मक  क्रियाओं  से   किसी  के  जीवन  को  कष्टमय  बनाना  ---ये  सब  बुद्धि  के  दुरूपयोग   और  मानसिक  विकृति   के  लक्षण  हैं  l  समाज  में  विशेष  रूप  से  महिलाओं के  प्रति  होने  वाले  अपराध  ऐसी  ही  मानसिक  विकृति  के  उदाहरण  हैं  l  ऐसे  लोग  समाज  में   घुल-मिलकर  रहते  हैं  , उन  पर  कोई  शक  नहीं  कर  सकता  l  भूल- चूक  से  फंस  भी  गए  तो  धन  के  बल  पर  कानून  के  दंड  से  बच  जाते  हैं  l   यदि  कोई  वास्तव  में  पागल  हो   तो  उसे  ईश्वर  अलग  से  और  क्या दंड  देंगे  ?  लेकिन  जो  लोग  अपनी  बुद्धि  का  दुरूपयोग  कर  , योजनाबद्ध  तरीके  से   अपने  अहंकार  की  पूर्ति  के  लिए  साजिश  करते  हैं   उन्हें  ईश्वर  कभी  क्षमा  नहीं  करते  l  वे  चाहे  समुद्र  में  छिप  जाएँ  या  किसी  पहाड़  पर , किसी  अन्य  देश  में  चले  जाएँ  ,  उनके  कर्म  उन्हें  ढूँढ  लेते  हैं  l  ऐसी  विकृति  का  इलाज  केवल  ईश्वरीय  दंड  है  l  यह  दंड  कब  और  कैसे   मिलेगा  यह  काल  निश्चित  करता  है  l  यदि  हम  एक  सुन्दर  और  स्वस्थ   मानव -समाज  का  निर्माण  करना  चाहते  हैं   तो   बाल्यावस्था  से  ही  नैतिक  शिक्षा  और  मानवीय  मूल्यों  का  ज्ञान  अनिवार्य  होना  चाहिए  l  बचपन  से  ही  बच्चों  को  निष्काम  कर्म  और  ध्यान  के  प्रति  जागरूक  किया  जाए   तभी  हम  एक  स्वस्थ  समाज  की  उम्मीद  कर  सकते  हैं  l  

19 August 2025

WISDOM -----

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 आचार्य  ज्योतिपाद  संध्या  के  बाद  उठे  ही  थे  कि  एक  ब्राह्मण  , जिसका  नाम  आत्मदेव  था  , उसने  उनके  चरण  पकड़  लिए  l  वह  बोला  --- " आप  सर्वसमर्थ  हैं  , एक  संतान  दे  दीजिए  l  आपका  जीवन  भर  ऋणी  रहूँगा  l "  आचार्य  बोले  ---" संतान  से  सुख  पाने  की  कामना  व्यर्थ  है  l  तुम्हारे  भाग्य  में  संतान  नहीं  है  l   जिसने   पूर्व जन्म  में  अपनी  संपत्ति  को  लोकहित  में  नहीं  लगाया  , वह  अगले  जन्म  में  संतानहीन  होता  है  l  संतान  दैवयोग  से  मिल  भी  गई   तो  उसका  कोई  औचित्य  नहीं  है  l  "   लेकिन  आत्मदेव  ने  उनके  चरण  नहीं  छोड़े   और  बोला  ---- " या तो  पुत्र  लेकर  लौटूंगा   या  आत्मदाह  कर  लूँगा  l "  आचार्य  ने  कहा  --- " श्रेष्ठ  आत्माएं  ऐसे  ही    नहीं  आतीं  l  यदि  विधाता  की  ऐसी  ही  इच्छा  है   तो  यह  फल  तुम  अपनी  पत्नी  को  खिलाना   और  धर्मपत्नी  से  कहना   कि  वह   एक  वर्ष  तक  नितांत  पवित्र  रहकर   दान -पुण्य  करे  l "  आत्मदेव  प्रसन्न  भाव  से  लौटा   और  फल  अपनी  पत्नी  धुंधली  को   दे  दिया   और  जैसा  आचार्य ने  कहा  था  उसे  पवित्र  आचरण  करने  को  कहा  l   पत्नी  धुंधली  ने  सोचा  --पवित्रता  का  आचरण  और  दान  , और  वह  भी  वर्षभर  , मैं  न  कर  सकुंगी  l  उसने  वह  फल  गाय  को  खिला  दिया  l  समय  पर  बहन  का  पुत्र  गोद  ले  लिया  , घोषणा  कर  दी  कि  पुत्र  हुआ  , उसका  नाम  धुंधकारी  रखा  l  बाल्यावस्था  से  ही   वह  दुराचारी , जुआ  खेलने  वाला  , भोगी , दुराचारी  निकला  l  माता -पिता  कुढ़कर  , दुःख  में  मर  गए  , वह  भी  अकालमृत्यु  को  प्राप्त  हुआ  l  जीवन  में  किए  गए  पापों  के  कारण   वह  प्रेत योनि  को  प्राप्त  हुआ  l  धुंधली  ने  जिस  गाय  को  वह  फल  खिलाया  था   उस  गोमाता  ने  गोकर्ण  नामक  पुत्र  को  जन्म  दिया  l   वह  परम  विद्वान  और  धर्मात्मा  था  , उसने  प्रेत योनि  में  पड़े   धुंधकारी  को  भागवत  कथा   सुनाकर   मुक्त  कराया  l   









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17 August 2025

WISDOM ------

  अपनी  शक्ति  के  बल  पर  किसी  भूभाग  को  जीतना  ,  लोगों  को  अपना  गुलाम  बनाना  बहुत  सरल  है   लेकिन  अपने  ही  मन  को   काबू  में  रखना  , उसकी  लगाम  अपने  हाथ  में  रखना  सबसे  कठिन  कार्य  है  l   कोई  कितना  भी  शक्तिशाली  क्यों  न  हो  यदि  उसका  अपनी  कामना , वासना  , तृष्णा , महत्वाकांक्षा, अहंकार     जैसे  विकारों  पर  नियंत्रण  नहीं  है   तो  वह  इन  विकारों  के  वशीभूत  होकर  किसी  न  किसी  की  गुलामी  अवश्य  करेगा  l  जैसे  रावण  कितना  शक्तिशाली  और  ज्ञानी  था   लेकिन  उसका  अपने  मन  पर  नियंत्रण  नहीं  था  l  सीताजी  को  पाने  के  लिए  अपनी  लंका  छोड़कर  , भिखारी  बनकर   , सबसे  छुपते -छिपाते   कटोरा  लेकर   पर्णकुटीर  आ  गया  l  अपनी  धूर्तता  के  बल  पर  वह  उन्हें  लंका  ले  भी  गया  , बहुत  प्रलोभन  दिए  --तुम  मेरी  पटरानी  बनो , मंदोदरी  तुम्हारी  सेवा  करेगी  l  सीताजी  के  आगे  वह  कितना  झुका  !  सीताजी  ने  उसे  देखा  तक  नहीं  l  लंकापति  रावण  उनकी  एक  नजर  के  लिए  भी  तरस  गया  l  ऐसी  शक्ति  किस  काम  की  !     हमारे  ऋषियों  का   आचार्य का  कहना   है कि  मन  को  जबरन  और  डंडे  के  बल  पर  नियंत्रण  में  नहीं  रखा  जा  सकता  l  जबरन  नियंत्रित  किए  गए  मन  में  विस्फोट  की  संभावना  बनी  रहती  है  l  स्वयं  के  अनुभव  से   अर्थात  अब  तक  जो  अनुपयुक्त  किया  उसके  दुष्परिणामों  को  समझकर   और  दूसरों  की  दुर्गति  से  शिक्षा  लेकर  भी   अपने  मन  को  साधा  जा  सकता  है  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  मन  की  चंचलता  पर  नियंत्रण  रखने  का  सबसे  सरल  उपाय  बताया , उन्होंने  कहा  कि  निष्काम  कर्म  से , नि: स्वार्थ  सेवा  से   मन  पर  जमी   मैल   की  परतें  हटती  जाती  हैं   और  मन  निर्मल  हो  जाता  है  l  हमारे  मन  पर  जन्म -जन्मान्तर  का  मैल  चढ़ा  हुआ  है  ,  इसकी  धुलाई -सफाई  इतनी  सरल  नहीं  है  l  जब  भी  कोई   इस  दिशा  में  आगे  बढ़ने  का  प्रयास  करता  है   तो  मन  की  गहराई  में  छुपी  हुई  गंदगी , नकारात्मकता  उछलकर  और  बाहर  आती  है  ,  मन  को  विचलित  करने  का  हर  संभव  प्रयास  होता  है  ,  इसे  ईश्वर  द्वारा  ली  जाने  वाली  परीक्षाएं  भी  कह  सकते   हैं  l  ईश्वर  के  प्रति    समर्पण  और  उनके  शब्दों  पर  श्रद्धा  और  विश्वास  से  ही   इस  बेलगाम  मन  को  नियंत्रित  किया  जा  सकता  है  l  

9 August 2025

WISDOM -----

   मानव  जीवन  में  आज  जितनी  भी  समस्याएं  हैं  ,  वे  कोई  नई  समस्या  नहीं  है  ,  ये  सब  युगों  से  चली  आ  रहीं  हैं  l   मानसिक   विकृतियां   जन्म -जन्मान्तर  के  संस्कार  हैं   जो  पीछा  नहीं  छोड़ते  l  समाज  में  , परिवार  में  जो  भी  अपराध  होते  हैं  ,  यदि  निष्पक्ष  भाव  से   सर्वे  किया  जाए  तो  यह  सत्य  सामने  आएगा  कि  उनकी   पूर्व  की  6 -7   पीढ़ियों  में  भी  लोग  इसी  तरह  के  अपराधों  में  संलग्न  रहे  हैं  l  बुरी  आदतें   संस्कार  बनकर  पीढ़ी -दर -पीढ़ी  आ   जाती   हैं  l  जब  तक  मनुष्य    संकल्प  लेकर   स्वयं  को  सुधारने  का  प्रयत्न  न  करे  सुधार  संभव  नहीं  है   ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , स्वार्थ , लालच , महत्वाकांक्षा   जैसे  विकारों  के  कारण  ही  अशांति  है  l  सबसे  बड़ी  समस्या  यह  है  कि  आज  मनुष्य  किसी  को  खुश  नहीं  देख  सकता  l  त्रेतायुग  में  भी   यही  था  , मंथरा  को  ईर्ष्या  थी   वह  श्रीराम  को  राजगद्दी  पर   और  सीताजी  को  महारानी  के  रूप  में  नहीं  देख  सकती  थी   इसलिए  उसने  कैकयी  के  कान  भरे   कि  राम  के  लिए  राजा  दशरथ  से  वनवास  मांगो   और  भारत  के  लिए  राजगद्दी  l    अपनी  बातों  से  किसी  के  माइंड  को  वाश  कर  देना   यह  तकनीक  युगों  से  चली  आ  रही  है  l  महाभारत  में  शकुनि  ने  भी  इसी  तरह  दुर्योधन  के  मन  में  पांडवों   के  लिए  ईर्ष्या , द्वेष  भर  दिया  था  l  इसी  तकनीक  का  प्रयोग  कर  के   ईर्ष्यालु  लोग  किसी  का  घर  तोड़ते  हैं  ,  पति -पत्नी  में  झगड़े   और  परिवारों  में  क्लेश   कराते    हैं  l  हर  किसी  का  मन  इतना  मजबूत  नहीं  होता  ,  अधिकांश  लोग  कान  के  कच्चे  होते  हैं  और  बड़ी  जल्दी  दूसरों  की  बातों  में  आकर  अपना  ही  नुकसान  करा  लेते  हैं   l   जब  तक  मनुष्य  को  ईश्वर  का  और  अपने  कर्मों  के  परिणाम  का  भय  नहीं  होगा   स्थिति  में  सुधार  संभव  नहीं  है  ,  मनुष्य  इतिहास  से  शिक्षा  नहीं  लेता  ,  गलतियों  को  बार -बार  दोहराता  है  l  

8 August 2025

WISDOM -----

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  ' प्रेरणाप्रद  द्रष्टान्त  ' में   छोटी -छोटी  कथाओं  और  प्रसंगों  के  माध्यम  से    हम  सभी  को  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई  है  l  उनके  विचार  हमें  पलायन  करना  नहीं  सिखाते  l  उन्होंने  अपने  साहित्य  के  माध्यम  से  यही  सिखाया  कि  कैसे  संसार  में  रहते  हुए  , गृहस्थ  जीवन   जीते  हुए  एक  योगी  की  भांति  जीवन  जिया  जा  सकता  है  l  यदि  मनुष्य  का  मन  संसार  में  है  , ऐसे  में  उसका  एकांत  में  रहना , हिमालय  पर  जाना  व्यर्थ  है  l  मन  पर  नियंत्रण  जरुरी  है  और  वह  भी  स्वेच्छा  से  , जबरन  नहीं  l ----------- सम्राट   पुष्यमित्र  का  अश्वमेध  यज्ञ   संपन्न  हुआ  l  दूसरी   रात  अतिथियों  की  विदाई  के  उपलक्ष्य  में    नृत्य -उत्सव    रखा  गया  l  महर्षि  पतंजलि  भी  उस  उत्सव  में  सम्मिलित  हुए  l  महर्षि  के  शिष्य  चैत्र  को   उस  आयोजन  में  महर्षि  की  उपस्थिति   अखर    रही  थी  l  उसके  मन  में  लगातार  यह  विचार  आ  रहे  थे  कि  महर्षि   तो  संयम , यम नियम    ----- योग  की  शिक्षा  देते  हैं   और  स्वयं   नृत्य -संगीत    देख  रहे  हैं  l  उस  समय  तो  चैत्र  ने   कुछ  नहीं  कहा  ,  पर  एक  दिन  जब  महर्षि  ' योग दर्शन  '  पढ़ा  रहे  थे   तब  चैत्र  ने   उनसे  कहा ---- "  गुरुवर  !  क्या  नृत्य -गीत  के  रास -रंग  चितवृत्तियों   के  निरोध  में  सहायक  होते  हैं   ?  "  महर्षि  ने  शिष्य  का  अभिप्राय  समझा   और  कहा  --- " सौम्य  !   आत्मा  का  स्वरुप  रसमय  है  l  उसमें  उसे  आनंद  मिलता  है  और  तृप्ति  भी   l  वह  रस  विकृत  न  होने  पाए   और  अपने  शुद्ध  स्वरूप  में  बना  रहे  ,  इसी  सावधानी  का  नाम  संयम  है   l   विकार  की  आशंका  से  रस  का  परित्याग   कर  देना  उचित  नहीं   l  क्या  कोई  किसान  पशुओं  द्वारा  खेत  चर   लिए  जाने  के  भय  से   कृषि  करना  छोड़  देता  है  ?   रस  को  नहीं  उसकी  विकृति  को  हेय    माना  जाता  है  l "