भावनाओं तथा विचारों को जाग्रति और प्रसारित करने वाले साधनों में साहित्य का प्रमुख स्थान है । बन्दूक लेकर शत्रुओं को पीछे खदेड़ने वाला तो सैनिक होता है पर सैनिकों में जान फूंक कर , आगे बढ़ाने की प्रेरणा देने वाला , कलम रूपी अस्त्र से पौरुष की आग बरसाने वाला साहित्यकार भी किसी प्रकार सैनिक से कम महत्व का नहीं होता l
4 November 2016
3 November 2016
WISDOM
लेनिन ने कहा था ----- " हमको ऐसे कार्यकर्ता तैयार करने चाहिए जो आन्दोलन सम्बन्धी कार्य में सिर्फ छुट्टी के समय ही भाग न लें वरन अपना सम्पूर्ण जीवन उसी में लगा दें । हमको एक ऐसे विशाल संगठन का निर्माण करना है जिसमे सब प्रकार के कार्य अलग - अलग व्यवस्था पूर्वक विभाजित कर दिए गये हों ।
उनका कहना था ---- " योग्य नेता सैकड़ों की संख्या में उत्पन्न नहीं हुआ करते । दस योग्य मनुष्यों को पकड़ सकना जितना कठिन है उतना कठिन सौ मूर्खों को पकड़ना नहीं । '
उनका कहना था ---- " योग्य नेता सैकड़ों की संख्या में उत्पन्न नहीं हुआ करते । दस योग्य मनुष्यों को पकड़ सकना जितना कठिन है उतना कठिन सौ मूर्खों को पकड़ना नहीं । '
2 November 2016
WISDOM
कष्टों , यातनाओं और आपत्तियों को सह सकने और अपने पथ से विचलित न होने का साहस दिखला सकने वाले वीर के लिए संसार का कोई कार्य असंभव नहीं है , यदि उसके ह्रदय में अदम्य इच्छा शक्ति हो |
1 November 2016
भारत माता के निर्भय सेनानी ------- सरदार पटेल
जिस महान कार्य के फलस्वरूप श्री पटेल को सरदार की उपाधि दी गई और जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अपने अमित पदचिन्ह छोड़ने का गौरव प्राप्त किया , वह था -----
' बारदौली का अहिंसक संग्राम । '
बारदौली सूरत जिले का एक छोटा सा भूभाग है यहाँ के किसानों ने अपने परिश्रम से खेतों को खूब हरा - भरा और उपजाऊ बना रखा था , यह देख सरकारी अधिकारियों को लालच लगता और वे भूमि का लगान क्रमशः बढ़ाते जाते । जब 1927 में सरकार ने बारदौली तालुका पर पुन: लगान बढ़ाने की घोषणा की तो किसानों में असंतोष की भावना उत्पन्न हो गई और उन्होंने सरदार पटेल को अपनी विपत्ति की कथा कह सुनाई ।
सरदार पटेल ने देखा कि बारदौली की जमीन उत्तम है और किसान भी परिश्रमी है फिर भी उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है , किसान अशिक्षित और असंगठित हैं इस कारण सरकारी नौकरों , व्यापारियों तथा साहूकारों द्वारा तरह - तरह से लूटे जाते हैं । उन्होंने किसानों को सरकार से संघर्ष करने के लिए उत्साहित करते हुए कहा ---- " किसान क्यों डरे ? वह भूमि को जोतकर धन कमाता है , वह अन्नदाता है । जो किसान वर्षा में भीगकर , कीचड़ में सनकर, शीत - घाम को सहन करते हुए मरखने बैलों तक से काम ले सकता है , उसे डर किसका ? सरकार भले ही बड़ी साहूकार हो , पर किसान उसका किरायेदार कब से हुआ ? क्या सरकार इस जमीन को विलायत से लाई है ?"
श्री पटेल के जोशीले भाषणों और निर्भीक वाणी को सुनकर किसान सोते से जाग पड़े । उन्होंने अंत तक संघर्ष करने और उसके मध्य जितनी भी आपतियां आयें उन सबको द्रढ़ता पूर्वक सहन करने की प्रतिज्ञा । यह देखकर पहले तो श्री पटेल ने बम्बई के गवर्नर को लगान बढ़ाने का हुक्म रद्द करने के लिए एक तर्कयुक्त और विनम्र पत्र लिखा , पर जब उसने उसे अस्वीकार कर दिया , तो उन्होंने सरकार के विरुद्ध ' कर बन्दी ' आन्दोलन की घोषणा कर दी । उन्होंने किसानों का जैसा सुद्रढ़ संगठन किया उसे देखकर बम्बई की एक सर्वजनिक सभा में किसी भाषण कर्ता ने उनको ' सरदार ' नाम से पुकारा । गांधीजी को यह नाम पसंद आ गया और तब से पटेल जनता के सच्चे ' सरदार ' ही बन गए ।
उन्होंने किसानों को समझाया --- " चाहे कितनी आपत्तियां आयें , कितने ही कष्ट झेलने पड़ें , अब तो ऐसी लड़ाई लड़नी चाहिए जिसमे सम्मान की रक्षा हो । सरकार के पास निर्दयी आदमी , भाले, तोपें , बन्दूक सब कुछ है । तुम्हारे पास केवल तुम्हारा ह्रदय है , अपनी छाती पर इन प्रहारों को सहने का साहस तुममे हो तो आगे बढ़ने की बात सोचो । यह प्रश्न स्वाभिमान का है ।
उन्होंने कहा --- सरकारी अधिकारी तो लंगड़े होते हैं उनका काम तो गाँव में पटेल , मुखिया आदि की सहायता से चलता है । पर अब ये कोई उनकी सहायता न करें । प्रत्येक व्यक्ति के मुख पर सरकार के साथ लड़ने का दृढ़ निश्चय हो । "
एक तो सत्य वैसे ही तेजवान होता है किन्तु जब वह किसी चरित्रवान की वाणी से निसृत होता है तो वह अपना असाधारण प्रभाव छोड़ता है ।
बारदौली के किसान जाग गए । जब उनके गाय, बैल गृहस्थी के सामान को कुर्क करने की धमकी दी जाती तो वह जरा भी न घबराता , न भयभीत होता । किसान कहते ---- " अब तो वल्लभभाई हमारे सरदार हैं , उनकी जैसी आज्ञा होगी हम वही करेंगे । "
बम्बई के पारसी नेता श्री नरीमैन ने अपने एक भाषण में कहा --- " बारदौली में आज अंग्रेजों को पूछता कौन है । लोगों की सच्ची कचहरी तो ' स्वराज्य आश्रम ' है और उनकी सच्ची सरकार सरदार वल्लभ भाई । पर वल्लभ भाई के पास न तो तोप है और न भाले , बन्दूक । वह तो केवल प्रेम और सत्य के सहारे बारदौली में राज कर रहे हैं । "
जब सरकार जब्ती , कुर्की , नीलामी , मार - पीट आदि सब उपाय करके थक गयी और किसान टस से मस न हुए तो उसने अपनी हार स्वीकार कर ली । और बम्बई के गवर्नर ने सरदार पटेल को समझौते के सम्बन्ध में बात करने को बुलाया । सभी मांगे स्वीकार कर ली गयीं । बारदौली की विजय का सम्पूर्ण देश में बड़ी धूमधाम से स्वागत किया गया ।
' बारदौली का अहिंसक संग्राम । '
बारदौली सूरत जिले का एक छोटा सा भूभाग है यहाँ के किसानों ने अपने परिश्रम से खेतों को खूब हरा - भरा और उपजाऊ बना रखा था , यह देख सरकारी अधिकारियों को लालच लगता और वे भूमि का लगान क्रमशः बढ़ाते जाते । जब 1927 में सरकार ने बारदौली तालुका पर पुन: लगान बढ़ाने की घोषणा की तो किसानों में असंतोष की भावना उत्पन्न हो गई और उन्होंने सरदार पटेल को अपनी विपत्ति की कथा कह सुनाई ।
सरदार पटेल ने देखा कि बारदौली की जमीन उत्तम है और किसान भी परिश्रमी है फिर भी उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है , किसान अशिक्षित और असंगठित हैं इस कारण सरकारी नौकरों , व्यापारियों तथा साहूकारों द्वारा तरह - तरह से लूटे जाते हैं । उन्होंने किसानों को सरकार से संघर्ष करने के लिए उत्साहित करते हुए कहा ---- " किसान क्यों डरे ? वह भूमि को जोतकर धन कमाता है , वह अन्नदाता है । जो किसान वर्षा में भीगकर , कीचड़ में सनकर, शीत - घाम को सहन करते हुए मरखने बैलों तक से काम ले सकता है , उसे डर किसका ? सरकार भले ही बड़ी साहूकार हो , पर किसान उसका किरायेदार कब से हुआ ? क्या सरकार इस जमीन को विलायत से लाई है ?"
श्री पटेल के जोशीले भाषणों और निर्भीक वाणी को सुनकर किसान सोते से जाग पड़े । उन्होंने अंत तक संघर्ष करने और उसके मध्य जितनी भी आपतियां आयें उन सबको द्रढ़ता पूर्वक सहन करने की प्रतिज्ञा । यह देखकर पहले तो श्री पटेल ने बम्बई के गवर्नर को लगान बढ़ाने का हुक्म रद्द करने के लिए एक तर्कयुक्त और विनम्र पत्र लिखा , पर जब उसने उसे अस्वीकार कर दिया , तो उन्होंने सरकार के विरुद्ध ' कर बन्दी ' आन्दोलन की घोषणा कर दी । उन्होंने किसानों का जैसा सुद्रढ़ संगठन किया उसे देखकर बम्बई की एक सर्वजनिक सभा में किसी भाषण कर्ता ने उनको ' सरदार ' नाम से पुकारा । गांधीजी को यह नाम पसंद आ गया और तब से पटेल जनता के सच्चे ' सरदार ' ही बन गए ।
उन्होंने किसानों को समझाया --- " चाहे कितनी आपत्तियां आयें , कितने ही कष्ट झेलने पड़ें , अब तो ऐसी लड़ाई लड़नी चाहिए जिसमे सम्मान की रक्षा हो । सरकार के पास निर्दयी आदमी , भाले, तोपें , बन्दूक सब कुछ है । तुम्हारे पास केवल तुम्हारा ह्रदय है , अपनी छाती पर इन प्रहारों को सहने का साहस तुममे हो तो आगे बढ़ने की बात सोचो । यह प्रश्न स्वाभिमान का है ।
उन्होंने कहा --- सरकारी अधिकारी तो लंगड़े होते हैं उनका काम तो गाँव में पटेल , मुखिया आदि की सहायता से चलता है । पर अब ये कोई उनकी सहायता न करें । प्रत्येक व्यक्ति के मुख पर सरकार के साथ लड़ने का दृढ़ निश्चय हो । "
एक तो सत्य वैसे ही तेजवान होता है किन्तु जब वह किसी चरित्रवान की वाणी से निसृत होता है तो वह अपना असाधारण प्रभाव छोड़ता है ।
बारदौली के किसान जाग गए । जब उनके गाय, बैल गृहस्थी के सामान को कुर्क करने की धमकी दी जाती तो वह जरा भी न घबराता , न भयभीत होता । किसान कहते ---- " अब तो वल्लभभाई हमारे सरदार हैं , उनकी जैसी आज्ञा होगी हम वही करेंगे । "
बम्बई के पारसी नेता श्री नरीमैन ने अपने एक भाषण में कहा --- " बारदौली में आज अंग्रेजों को पूछता कौन है । लोगों की सच्ची कचहरी तो ' स्वराज्य आश्रम ' है और उनकी सच्ची सरकार सरदार वल्लभ भाई । पर वल्लभ भाई के पास न तो तोप है और न भाले , बन्दूक । वह तो केवल प्रेम और सत्य के सहारे बारदौली में राज कर रहे हैं । "
जब सरकार जब्ती , कुर्की , नीलामी , मार - पीट आदि सब उपाय करके थक गयी और किसान टस से मस न हुए तो उसने अपनी हार स्वीकार कर ली । और बम्बई के गवर्नर ने सरदार पटेल को समझौते के सम्बन्ध में बात करने को बुलाया । सभी मांगे स्वीकार कर ली गयीं । बारदौली की विजय का सम्पूर्ण देश में बड़ी धूमधाम से स्वागत किया गया ।
30 October 2016
धर्म
महिलाओं , बच्चों और कमजोर वर्ग पर अत्याचार होते देखते रहना और केवल एकांत में बैठकर पूजा - पाठ कर अपने धार्मिक कर्तव्य की पूर्ति समझ लेना वास्तव में भ्रम है l
धर्म के अनेक स्वरुप होते हैं । इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्य , न्याय , दया परोपकार , पवित्रता आदि धर्म के अमिट सिद्धांत है और इनका व्यक्तिगत रूप से पालन किये बिना कोई व्यक्ति धर्मात्मा कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता । इसके सिवाय और भी बहुत सी बातें हैं जो सामुदायिक द्रष्टि से मनुष्य का कर्तव्य मानी जाती हैं और उनसे विमुख होने पर मनुष्य अपने कर्तव्य से पतित माना जाता है ।
देश भक्ति भी ऐसा ही पवित्र कर्तव्य है । जिस देश में मनुष्य ने जन्म लिया और जिसके अन्न जल से उसकी देह पुष्ट हुई उसकी रक्षा और भलाई का ध्यान रखना भी मनुष्य के बहुत बड़े धर्मों में से एक है ।
धर्म के अनेक स्वरुप होते हैं । इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्य , न्याय , दया परोपकार , पवित्रता आदि धर्म के अमिट सिद्धांत है और इनका व्यक्तिगत रूप से पालन किये बिना कोई व्यक्ति धर्मात्मा कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता । इसके सिवाय और भी बहुत सी बातें हैं जो सामुदायिक द्रष्टि से मनुष्य का कर्तव्य मानी जाती हैं और उनसे विमुख होने पर मनुष्य अपने कर्तव्य से पतित माना जाता है ।
देश भक्ति भी ऐसा ही पवित्र कर्तव्य है । जिस देश में मनुष्य ने जन्म लिया और जिसके अन्न जल से उसकी देह पुष्ट हुई उसकी रक्षा और भलाई का ध्यान रखना भी मनुष्य के बहुत बड़े धर्मों में से एक है ।
सद्ज्ञान और सद्बुद्धि के साथ समृद्धि का समन्वय ही इस पर्व की प्रेरणा है
' लक्ष्मी कमल पर आसीन हैं । कमल विवेक का प्रतीक है । सद्बुद्धि का उजाला ही समृद्धि को सुरक्षित और विकसित करने का आधार है । '
अमेरिका के सुप्रसिद्ध धन कुबेर --- हेनरी फोर्ड ने एक बार कहा था ----- " धन कुबेर होने पर भी मुझे जीवन में सुख नहीं है । जब मैं अपने लम्बे - चौड़े कारखाने में मजदूरों को रुखा - सूखा और बिना स्वाद का भोजन बड़ी उत्सुकता और प्रसन्नता के साथ करते हुए देखता हूँ तो उन पर मुझे ईर्ष्या होती है , तब मेरा जी चाहता है कि काश ! मैं धन कुबेर होने की अपेक्षा एक साधारण मजदूर होता । "
स्वास्थ्य की स्थिरता और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए ही सब प्रकार की सम्पतियाँ उपार्जित करने का प्रयत्न करना चाहिए ।
' संसार में जिन्हें जीवन के अनेक आनन्दों का उपभोग करने की इच्छा है उन्हें शक्तियों के अनुचित अपव्यय से बचने का प्रयत्न करना चाहिए । किसी प्रलोभन के आकर्षण में पड़कर जो लोग अपनी शारीरिक और मानसिक शक्तियों को अपव्यय करके गँवा देते हैं वे अंत में पछताते हैं , तब सारी सम्पतियाँ मिलकर भी उन्हें वह आनंद नहीं दे सकतीं जो स्वस्थ रहने पर अनायास ही मिल सकती हैं ।
अमेरिका के सुप्रसिद्ध धन कुबेर --- हेनरी फोर्ड ने एक बार कहा था ----- " धन कुबेर होने पर भी मुझे जीवन में सुख नहीं है । जब मैं अपने लम्बे - चौड़े कारखाने में मजदूरों को रुखा - सूखा और बिना स्वाद का भोजन बड़ी उत्सुकता और प्रसन्नता के साथ करते हुए देखता हूँ तो उन पर मुझे ईर्ष्या होती है , तब मेरा जी चाहता है कि काश ! मैं धन कुबेर होने की अपेक्षा एक साधारण मजदूर होता । "
स्वास्थ्य की स्थिरता और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए ही सब प्रकार की सम्पतियाँ उपार्जित करने का प्रयत्न करना चाहिए ।
' संसार में जिन्हें जीवन के अनेक आनन्दों का उपभोग करने की इच्छा है उन्हें शक्तियों के अनुचित अपव्यय से बचने का प्रयत्न करना चाहिए । किसी प्रलोभन के आकर्षण में पड़कर जो लोग अपनी शारीरिक और मानसिक शक्तियों को अपव्यय करके गँवा देते हैं वे अंत में पछताते हैं , तब सारी सम्पतियाँ मिलकर भी उन्हें वह आनंद नहीं दे सकतीं जो स्वस्थ रहने पर अनायास ही मिल सकती हैं ।
27 October 2016
WISDOM
' अन्याय तभी तक फलता - फूलता है जब तक उससे संघर्ष , विरोध करने कोई खड़ा नहीं होता l पर जब कोई छोटा सा संगठन भी सम्पूर्ण मनोयोग व तन , मन व धन से इसके विरोध में खड़ा हो जाता है तो अन्याय चल नहीं सकता । अन्यायी कितना ही बड़ा और शक्तिवान क्यों न हो ईश्वर उसके साथ नहीं होता , अत: उसे हारना ही पड़ता है l
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