16 September 2025

WISDOM -----

कलियुग   में  दुर्बुद्धि  ने  धर्म  को  भी   नहीं  छोड़ा  l  धर्म  के  नाम  पर  पाखंड  है  , सभी  को  अपनी  दुकान  की  चिंता  है  l  संसार  में  इतनी  अशांति  का  कारण  यही  है  कि  अब  धर्म  और  धार्मिक  कार्य  एक  व्यवसाय  बन  गया  है  l  इस  क्षेत्र  में  सच्चे  लोगों  की  संख्या   बहुत  ही  कम  है   और  असुरता  का  साम्राज्य  बहुत  विशाल  है  l   यदि  केवल  धर्म  ही  दुनियाभर  के  दिखावे  और  आडम्बर  से  मुक्त  हो  जाये   तो  संसार  का  कल्याण  हो  सकता  है  l  हमारे  पुराणों  में  सत्संग  की  महिमा  बताने  वाली  एक  कथा  है  ---- एक  बार  देवर्षि  नारद  भगवान  विष्णु  के  पास  गए  और   बोले ---- " हे  प्रभु  !कृपा  करके  मुझे  सत्संग  की  महिमा   सुनाएँ   क्योंकि  भ्रमण  के  दौरान  लोग  मुझसे  सत्संग  की  महिमा  के  विषय  में  जानना  चाहते  हैं  l  इस  महिमा  का  वर्णन  आपसे  श्रेष्ठ  कौन  कर  सकता  है  ?  "  लोक कल्याण  की  द्रष्टि  से  नारद जी  की  इस  जिज्ञासा  को  सुनकर  भगवान  विष्णु  प्रसन्न  हुए  और  बोले ---"  सत्संग  की  महिमा   इतनी  ज्यादा  है  कि   इसकी  अनुभूति  की  जा  सकती  है   इसलिए  हे  नारद  !  तुम  यहाँ  से  कुछ  दूर  जाओ  l  वहां  एक  इमली  के  वृक्ष  पर   विविध  रंगों  वाला  गिरगिट  रहता  है  l  वह  तुम्हे  सत्संग  की  महिमा  सुना  सकता  है  l  '  नारद  जी  प्रसन्न  होकर  चल  पड़े  l  उस  वृक्ष  के  पास  पहुंचकर  उन्होंने  उस  गिरगिट  को  देखा   और  अपनी  योगविद्या  से  उस  गिरगिट  से  पूछा  --- "  क्या  तुम  मुझे  सत्संग  की  महिमा  बता  सकते  हो  ? "  नारद जी  का  यह  प्रश्न  सुनते  ही  गिरगिट  वृक्ष  से  नीचे  गिरकर  मर  गया  l  नारद जी  को  बड़ा  आश्चर्य  हुआ  कि  उनका  प्रश्न  सुनते  ही  गिरगिट  ने  अपने  प्राण  क्यों  त्याग  दिए  l  वे  भारी  मन  से  पुन:  भगवान  विष्णु  के  पास  पहुंचे   और  सारी  घटना  सुनाई  l  भगवान  ने  कहा ---- "  कोई  बात  नहीं   l  अब  तुम  नगर  सेठ  के  घर  जाओ  l  वहां  पिंजरे  में  एक  तोता  है  , वह  सत्संग  की  महिमा  जानता  है  l  "   नारद जी  उस  सेठ  के  घर  पहुंचे  और  योगबल  से  उस  तोते  से  पूछा  ---- " सत्संग  की  क्या  महिमा  है  ? "  यह  सुनते  ही  तोते  ने  भी  अपने  प्राण  त्याग  दिए  l  अब  तो  नारद जी  बड़े  परेशान  हुए   और  भगवान  से  कहा  --- " हे  प्रभु  !  क्या  सत्संग  का  नाम  सुनते  ही  प्राण  त्याग  देना  ही  सत्संग  की  महिमा  है  ? "l  भगवान  बोले  ---- "  इसका  मर्म  तुम्हे  शीघ्र  ही  समझ  में  आएगा  l  तुम  इस  बार  राजा  के  दरबार  में  जाओ   और  उसके  नवजात  पुत्र  से सत्संग  की  महिमा  पूछो  l  नारद  जी  सोचने  लगे    कि  यदि  सत्संग  का  नाम  सुनते  ही   राजा  का  नवजात  पुत्र  मर  गया  तो  मैं  कहीं  का  नहीं  रहूँगा  l  राजा  के  कोप  का  सामना  करना  पड़ेगा  ,  पर  भगवान  का  आदेश  था  , सो  नारद जी   राज महल  पहुंचे   , वहां  पुत्र  जन्म  का  उत्सव  मनाया  जा  रहा  था  l  नारद जी  ने  योगबल  से  उस  पुत्र  से  पूछा  --- "  क्या  आप  मुझे  सत्संग  की  महिमा  सुना  सकते  हैं  ? "   नवजात  शिशु  बोला  ---- "  चन्दन  को  अपनी  सुगंध  और  अमृत  को  अपने  माधुर्य  का  पता  नहीं  होता  l  ऐसे  ही  आप  अपनी  महिमा  नहीं  जानते  l  वास्तव  में  आपके  क्षण मात्र  के  संग  से  मैं   गिरगिट  की  योनि  से  मुक्त  हो  गया   और  पुन:  आपके  दर्शन  से  मैं  तोते  की  योनि  से  मुक्त  होकर   मनुष्य  का  जन्म  मिला  l  ईश्वर  की  कृपा  से  मुझे  आपका  सान्निध्य  मिला  ,  इससे  मेरे  कितने  ही  कर्मबंधन  कट  गए  ,  कितनी  ही  योनियाँ  बिना  भोगे  ही  कट  गईं   और  मैं  मनुष्य  तन  पाकर  राजकुमार  बना  l  हे  देवर्षि  !  आप  मुझे  आशीर्वाद  दें  कि  मैं  मनुष्य  जन्म  में  उत्तम  कर्म  करके  मोक्ष  पा  सकूँ  l "    नारद जी  उसे  आशीर्वाद  देकर  भगवान  के  पास  पहुंचे  औए  उन्हें   सब  घटना  सुनाई  l  भगवान  ने  कहा -- "  जैसी  संगति  होती  है  , जीव को  वैसी  ही  गति  मिलती  है  l "   गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने  भी  कहा  है ---- " सत्संग  से  मनुष्य  को  उचित -अनुचित  का  ज्ञान बोध  हो  जाता  है  , विवेक  जाग  जाता  है  , मनुष्य  की  प्रकृति -प्रवृत्ति  बदल  जाती  है  l "