पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ---- 'अहंकार सारी अच्छाइयों के द्वार बंद कर देता है l " अहंकार एक ऐसा दुर्गुण है जिसके पीछे अन्य बुराइयाँ अपने आप खिंची चली आती हैं l यहाँ कोई भी अमर होकर नहीं आया , इसलिए अहंकार व्यर्थ है l एक कथा है ---- एक फकीर ने किसी बादशाह से कहा --- " खुद को बादशाह कहते हो और जीते हो दंभ और अहंकार में l सच्चा बादशाह तो वही होता है , जो जीवन के सब रहस्यों को समझकर इसके आनंद को अनुभव करे l " बादशाह को फकीर का कहा सच अप्रिय लगा , सो उसने फकीर को कैद कर लिया l फकीर के एक मित्र ने उससे कहा --- " आखिर यह बैठे बैठाए मुसीबत क्यों मोल ले ली ? न कहते वे सब बातें , तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाता l " मित्र की बात सुनकर फकीर हँस पड़ा और बोला ---- " मैं करूँ भी तो क्या करूँ ? जब से खुदा का दीदार हुआ है , झूठ तो बोला ही नहीं जाता l " मित्र ने कहा --- " यह कैद कितनी कष्टप्रद है ! जाने कब तक ऐसे ही रहना पड़े ? " फकीर ने अपने जीवन को परमात्मा के चरणों में समर्पित कर दिया था , उसने बड़ी निश्चिंतता से कहा --- " इस कैद का क्या ? यह कैद तो बस घड़ी भर की है l " फकीर की बात एक सिपाही ने सुन ली और बादशाह को भी बता दिया l सिपाही की बात सुनकर बादशाह ने कहा ---" उस पागल और फक्कड़ फकीर से कहना कि यह कैद घड़ी भर की नहीं , बल्कि जीवन भर की है l उसे जीवन भर इसी कालकोठरी में सड़ते हुए मरना है l जीवन भर उसे उसी कैद में रहते हुए यह याद रखना होगा कि मैं भविष्य को अपनी मुट्ठी में भर सकता हूँ l " फकीर ने जब बादशाह के इस कथन को सुना तो हँसने लगा l फकीर ने कहा --- " ओ भाई ! उस नादान बादशाह से कहना कि उस पागल फकीर ने कहा है कि क्या जिन्दगी उसकी मुट्ठी में कैद है ? क्या उसकी सामर्थ्य समय के पहिए को थामने की ताकत रखती है ? क्या उसे पता है कि पल भर के बाद क्या घटने वाला है ? फकीर की बात बादशाह तक पहुंचे , तब तक अचानक क्या हो गया ?------- नए बादशाह ने फकीर को आजाद कर दिया और फकीर के उपदेशों को आत्मसात किया l