' दुर्व्यसनी , कुकर्मी अनेकों संगी साथी बना सकने में सफल हो जाते हैं लेकिन आदर्शों का , श्रेष्ठता का अनुकरण करने की क्षमता हलकी होती है । गीता पढ़कर उतने आत्मज्ञानी नहीं बने जितने कि दूषित साहित्य , अश्लील द्रश्य , अभिनय से प्रभावित होकर कामुक अनाचार अपनाने में प्रवृत हुए । कुकुरमुत्तों की फसल और मक्खी - मच्छरों का परिवार भी तेजी से बढ़ता है पर हाथी की वंश वृद्धि अत्यंत धीमी गति से होती है ।
25 November 2016
24 November 2016
प्रभावी व्यक्तित्व होता है , उपदेश नहीं
' बुराइयाँ छोड़ने का संकल्प दिलाने का यथार्थ अधिकार उन्ही को है जो मन , वाणी अंत:करण से बुराइयों से पूर्णतया मुक्त हो चुके हैं । '
एक था ' जेकस ' । वह शराब घर चलाता था । उसके शराब घरों में अधिकांश मजदूर और गरीब लोग आते थे । ग्राहकों को फंसाने के लिए पहले वह अपने आदमियों को उनसे दोस्ती करने भेज देता था , वे उनसे दोस्ती कर उनमे शराब की लत लगवा देता था । जब उनका धन ख़त्म हो जाता था तो उन्हें उधार देता था और फिर बड़ी बेरहमी से , हंटर और कोड़ों की मार से अपना पैसा वसूल करता था ।
एक बार उस गाँव में ईसा का आगमन हुआ । लोगों ने बताया कि जेकस बहुत दुराचारी है और वह ईसा के आने से बहुत क्रुद्ध है क्योंकि ईसा के उपदेशों से प्रभावित होकर कईयों ने शराब , नशा और कुमार्ग छोड़ा था । जब जेकस के नाराज होने की बात का ईसा को पता चला तो उन्होंने कहा ---- " कल मैं जेक्स के घर जाऊँगा और उसका आतिथ्य ग्रहण करूँगा । "
जेकस को जैसे ही इस बात का पता चला वह जंगल में भाग गया क्योंकि उसने ईसा के चुम्बकीय व्यक्तित्व के बारे में सुन रखा था ।
ईसा भी उसे खोजते हुए जंगल पहुंचे और कहा ----" आज मैं तुम्हारा अतिथि बनने आया हूँ । " ऐसा कहकर उसे ह्रदय से लिपटा लिया । अन्य शिष्य सोच रहे थे कि शायद अब ईसा उपदेश देंगे , सत्संकल्पों के लिए दबाव डालेंगे लेकिन वे दोनों मौन थे ।
अंत में जेकस बोला ----- " प्रभु ! मैं आपके सामने नत मस्तक हूँ , आज आपके सामने मैं संकल्प लेता हूँ की अब न तो मैं कुमार्ग पर चलूँगा और न दूसरों को प्रेरित करूँगा । अपनी सारी कमाई गरीबों की सेवा में अर्पित करूँगा । " उसने ईसा के चरणों में मस्तक झुकाया और चला गया ।
ईसा ने शिष्यों से कहा ----- " कोई व्यक्ति बुरा नहीं होता और न खतरनाक । उससे कुछ भूलें होती हैं जिनका परिमार्जन निश्चित रूप से सम्भव है । "
एक था ' जेकस ' । वह शराब घर चलाता था । उसके शराब घरों में अधिकांश मजदूर और गरीब लोग आते थे । ग्राहकों को फंसाने के लिए पहले वह अपने आदमियों को उनसे दोस्ती करने भेज देता था , वे उनसे दोस्ती कर उनमे शराब की लत लगवा देता था । जब उनका धन ख़त्म हो जाता था तो उन्हें उधार देता था और फिर बड़ी बेरहमी से , हंटर और कोड़ों की मार से अपना पैसा वसूल करता था ।
एक बार उस गाँव में ईसा का आगमन हुआ । लोगों ने बताया कि जेकस बहुत दुराचारी है और वह ईसा के आने से बहुत क्रुद्ध है क्योंकि ईसा के उपदेशों से प्रभावित होकर कईयों ने शराब , नशा और कुमार्ग छोड़ा था । जब जेकस के नाराज होने की बात का ईसा को पता चला तो उन्होंने कहा ---- " कल मैं जेक्स के घर जाऊँगा और उसका आतिथ्य ग्रहण करूँगा । "
जेकस को जैसे ही इस बात का पता चला वह जंगल में भाग गया क्योंकि उसने ईसा के चुम्बकीय व्यक्तित्व के बारे में सुन रखा था ।
ईसा भी उसे खोजते हुए जंगल पहुंचे और कहा ----" आज मैं तुम्हारा अतिथि बनने आया हूँ । " ऐसा कहकर उसे ह्रदय से लिपटा लिया । अन्य शिष्य सोच रहे थे कि शायद अब ईसा उपदेश देंगे , सत्संकल्पों के लिए दबाव डालेंगे लेकिन वे दोनों मौन थे ।
अंत में जेकस बोला ----- " प्रभु ! मैं आपके सामने नत मस्तक हूँ , आज आपके सामने मैं संकल्प लेता हूँ की अब न तो मैं कुमार्ग पर चलूँगा और न दूसरों को प्रेरित करूँगा । अपनी सारी कमाई गरीबों की सेवा में अर्पित करूँगा । " उसने ईसा के चरणों में मस्तक झुकाया और चला गया ।
ईसा ने शिष्यों से कहा ----- " कोई व्यक्ति बुरा नहीं होता और न खतरनाक । उससे कुछ भूलें होती हैं जिनका परिमार्जन निश्चित रूप से सम्भव है । "
23 November 2016
महानता -------- स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानन्द किसी को धर्म के नाम पर अन्याय , अत्याचार का समर्थन करते देखकर आवेश में आकर उसको कठोर उत्तर दे डालते थे , पर कभी यदि अपनी भूल मालूम पड़ती तो उसे स्वीकार करने में भी कोई आनाकानी नहीं करते । ऐसी एक मद्रास की घटना है -----
बंगाल के प्रसिद्ध नेता तथा परमहंसदेव के भक्त श्री अश्विनीकुमार दत्त छ: वर्षों बाद स्वामी जी से मिले तो विभिन्न विषयों पर बातचीत करते हुए पूछ बैठे ----- " क्या यह ठीक है कि मद्रास में कुछ ब्राह्मणों ने आपसे कहा था कि तुम शूद्र हो और तुम्हे वेद का उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं । इस पर आपने उत्तर दिया ---- जो मैं शूद्र हूँ तो तुम मद्रास के ब्राह्मण भंगियों के भी भंगी हो । "
स्वामी जी ---- " हाँ , ऐसा ही हुआ था । "
अश्विनी बाबू ---- " आप जैसे धर्मोपदेशक और आत्म निग्रह वाले संत के लिए ऐसा उत्तर देना ठीक था ? "
स्वामी जी ----- " कौन कहता है वह ठीक था ? उन लोगों की उद्दंडता देखकर मेरा क्रोध अकस्मात भड़क उठा और ऐसे शब्द निकल गये , पर मैं उस कार्य का कभी समर्थन नहीं करता । "
यह सुनकर अश्विनी बाबू ने उन्हें ह्रदय से लगा लिया और कहा आज तुम मेरी द्रष्टि में पहले से बहुत महान हो गए । अब मुझे मालूम हो गया कि तुम विश्व विजेता कैसे बन गए । "
जब 1898 में बेलूर मठ की स्थापना की गई तो उन्होंने श्रीरामकृष्ण के अवशेष वाले ताम्र कलश को स्वयं कंधे पर उठाया और बड़े जुलुस के साथ उसे मठ के नए मकान में ले गये ।
रास्ते में उन्होंने कहा ---- " देखो ठाकुर ने मुझसे कहा था कि अपने कंधे पर बैठाकर तू मुझे जहाँ ले जायेगा वहीँ पर मैं रहूँगा । इसलिए यह निश्चित समझ लेना जब तक गुरुदेव के नाम पर उनके अनुयायी सच्चरित्रता , पवित्रता और सब मनुष्यों के प्रति उदार भाव का व्यवहार करते रहेंगे , तब तक गुरु महाराज यहीं विराजेंगे । "
बंगाल के प्रसिद्ध नेता तथा परमहंसदेव के भक्त श्री अश्विनीकुमार दत्त छ: वर्षों बाद स्वामी जी से मिले तो विभिन्न विषयों पर बातचीत करते हुए पूछ बैठे ----- " क्या यह ठीक है कि मद्रास में कुछ ब्राह्मणों ने आपसे कहा था कि तुम शूद्र हो और तुम्हे वेद का उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं । इस पर आपने उत्तर दिया ---- जो मैं शूद्र हूँ तो तुम मद्रास के ब्राह्मण भंगियों के भी भंगी हो । "
स्वामी जी ---- " हाँ , ऐसा ही हुआ था । "
अश्विनी बाबू ---- " आप जैसे धर्मोपदेशक और आत्म निग्रह वाले संत के लिए ऐसा उत्तर देना ठीक था ? "
स्वामी जी ----- " कौन कहता है वह ठीक था ? उन लोगों की उद्दंडता देखकर मेरा क्रोध अकस्मात भड़क उठा और ऐसे शब्द निकल गये , पर मैं उस कार्य का कभी समर्थन नहीं करता । "
यह सुनकर अश्विनी बाबू ने उन्हें ह्रदय से लगा लिया और कहा आज तुम मेरी द्रष्टि में पहले से बहुत महान हो गए । अब मुझे मालूम हो गया कि तुम विश्व विजेता कैसे बन गए । "
जब 1898 में बेलूर मठ की स्थापना की गई तो उन्होंने श्रीरामकृष्ण के अवशेष वाले ताम्र कलश को स्वयं कंधे पर उठाया और बड़े जुलुस के साथ उसे मठ के नए मकान में ले गये ।
रास्ते में उन्होंने कहा ---- " देखो ठाकुर ने मुझसे कहा था कि अपने कंधे पर बैठाकर तू मुझे जहाँ ले जायेगा वहीँ पर मैं रहूँगा । इसलिए यह निश्चित समझ लेना जब तक गुरुदेव के नाम पर उनके अनुयायी सच्चरित्रता , पवित्रता और सब मनुष्यों के प्रति उदार भाव का व्यवहार करते रहेंगे , तब तक गुरु महाराज यहीं विराजेंगे । "
21 November 2016
कन्फ्यूशियस ------ अपने विचारों के रूप में आज भी अमर हैं
कन्फ्यूशियस ( कुंग फुत्ज़ ) ने एक पुस्तक लिखी है ' बसंत और पतझड़ ' । इस पुस्तक में लिखा है ---- ' व्यक्ति कोई अच्छा कार्य करता है तो उसका स्वयं पर और समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है और बुरा काम करता है तो वह समाज में दुःख फैलाने के साथ स्वयं अपना कितना अहित करता है । ' चीन के लोग इसे बड़ा पवित्र मानते हैं और आज भी करोड़ों लोगों की उस पर श्रद्धा है । '
उनका कहना था --- सद्विचार ही मनुष्य को सत्कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं और सत्कर्म ही मनुष्य का मनुष्यत्व सिद्ध करते हैं । मनुष्य के विचार ही उसका वास्तविक स्वरुप होते हैं ।
ये विचार ही नये - नये मस्तिष्कों में घुसकर ह्रदय में प्रभाव जमाकर मनुष्य को देवता बना देते हैं और राक्षस भी । जैसे विचार होंगे मनुष्य वैसा ही बनता जायेगा ।
उनका कहना था --- सद्विचार ही मनुष्य को सत्कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं और सत्कर्म ही मनुष्य का मनुष्यत्व सिद्ध करते हैं । मनुष्य के विचार ही उसका वास्तविक स्वरुप होते हैं ।
ये विचार ही नये - नये मस्तिष्कों में घुसकर ह्रदय में प्रभाव जमाकर मनुष्य को देवता बना देते हैं और राक्षस भी । जैसे विचार होंगे मनुष्य वैसा ही बनता जायेगा ।
19 November 2016
राजनीति में सच्चाई का व्यवहार ------ अब्राहम लिंकन
राजनीतिक क्षेत्र में दाव - पेचों की आवश्यकता होने पर भी लिंकन अपने भाषणों में सच्चाई की ओर बहुत अधिक ध्यान रखते थे l राजनीतिक जीवन में सत्य का यह व्यवहार महात्मा गाँधी में भी पाया जाता था और इसी के कारण वे पच्चीस वर्ष तक इस हलचल पूर्ण क्षेत्र में टिके रहे और अपने नाम को अमर कर गये ।
लिंकन राजनीति में अपनी आत्मा के आदेश का ध्यान रखकर सच्चाई के सिद्धांत का पालन करते थे । अमरीका में आज तक जितने भी राष्ट्रपति हुए उनमे सबसे अधिक सम्मान लिंकन का ही है । जिस तरह भारत की राजधानी में आने वाला बड़े से बड़ा विदेशी महात्मा गाँधी की समाधि पर फूल चढ़ाने राजघाट जाता है उसी प्रकार वाशिंगटन में सभी श्रेणी के लोग लिंकन की समाधि पर पहुँचते हैं ।
इन दोनों महामानवों में सत्य और आत्मशक्ति का ही प्रभाव था यही कारण है कि वे मर कर भी अमर हो गये ।
लिंकन राजनीति में अपनी आत्मा के आदेश का ध्यान रखकर सच्चाई के सिद्धांत का पालन करते थे । अमरीका में आज तक जितने भी राष्ट्रपति हुए उनमे सबसे अधिक सम्मान लिंकन का ही है । जिस तरह भारत की राजधानी में आने वाला बड़े से बड़ा विदेशी महात्मा गाँधी की समाधि पर फूल चढ़ाने राजघाट जाता है उसी प्रकार वाशिंगटन में सभी श्रेणी के लोग लिंकन की समाधि पर पहुँचते हैं ।
इन दोनों महामानवों में सत्य और आत्मशक्ति का ही प्रभाव था यही कारण है कि वे मर कर भी अमर हो गये ।
18 November 2016
महात्मा गाँधी के आन्दोलन ने जिनके जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन किया ------- अवन्तिकाबाई गोखले
यद्दपि महात्मा गाँधी के आन्दोलन ने लाखों व्यक्तियों के जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिए थे , पर स्त्रियों में अवन्तिकाबाई जैसे उदाहरण थोड़े ही थे । महात्मा गाँधी में मनुष्य के अन्त:करण को पहिचानने की विलक्षण शक्ति थी । इसी के बल पर उन्होंने उस ' अंग्रेजियत ' के युग में ऐसे व्यक्तियों को ढूंढ कर निकाल लिया , जिन्होंने बिना किसी आनाकानी के तुरंत अपने वैभवशाली जीवन क्रम का त्याग कर दिया और रेशम के स्थान पर मोटा खद्दर पहिन कर जन सेवा के कार्य में संलग्न महो गये । '
अवन्तिकाबाई इस कसौटी पर खरी उतरी । उनका जीवन उद्देश्य जन सेवा ही था । जब उन्होंने गाँधी जी सिद्धांतों की वास्तविकता को समझ लिया तो स्वयं तदनुसार परिवर्तित होने में देर न लगाई ।
अवन्तिकाबाई बम्बई की रहने वाली सुशिक्षित और सुसभ्य महिला थीं , जो विदेश जाकर अंग्रेजों की सामाजिक प्रथाओं का अच्छा अनुभव प्राप्त कर चुकी थीं । उज्नके पति श्री बबनराव ने इंग्लैंड में पांच वर्ष रहकर अध्ययन किया था । बम्बई में वे एक अच्छे मकान में सुख - सुविधाओं में रहते थे । महात्मा गाँधी ने चम्पारन के ' किसान सत्याग्रह ' के लिए गुजरात और महाराष्ट्र प्रान्तों से ऐसे चुने हुए कार्यकर्ताओं को बुलाया था जो केवल सेवा भाव से बिहार के पिछड़े गांवों में रहकर , वहां की समस्त असुविधाएं सहन करके , साथ ही गोरों की धमकियों की परवाह न करके किसानों में सुधार का कार्य करते रहें । इन्ही कार्यकर्ताओं में से एक अवन्तिकाबाई गोखले थीं ।
बिहार के जिन गावों में उनको कई महीने रहना था , उनमे एक अच्छी लालटैन का मिल सकना भी कठिन था ।
गाँधी जी का आदेश मिलते ही दोनों पति पत्नी चम्पारन के लिए चल पड़े । अब तक वे सदैव सेकण्ड क्लास में सफर किया करते थे , पर इस बार गाँधी जी के बुलाने पर जा रहे थे , इस लिए थर्ड क्लास में ही सवार हुए ।
महात्मा जी के पास पहले से ही खबर पहुँच गई थी , इसलिए उन्होंने कुछ लोगों को उनको लाने के लिए भेजा , जिनमे उनके पुत्र देवदास गाँधी भी थे । वे कहने लगे कि अवन्तिकाबाई तो दूसरे दर्जे में आएँगी । गाँधी जी ने कहा ---- " अगर वे तीसरे दर्जे में आयेंगी तभी उन्हें यंहां रखूँगा , वरना बम्बई को ही वापस भेज दूंगा । " देवदास ने उनको दूसरे दर्जे के डिब्बे में ही ढूंढा लेकिन वो अपने पति के साथ तीसरे दर्जे के डिब्बे से उतर कर गाँधी जी के पास पहुँच गईं ।
अवन्तिकाबाई इस कसौटी पर खरी उतरी । उनका जीवन उद्देश्य जन सेवा ही था । जब उन्होंने गाँधी जी सिद्धांतों की वास्तविकता को समझ लिया तो स्वयं तदनुसार परिवर्तित होने में देर न लगाई ।
अवन्तिकाबाई बम्बई की रहने वाली सुशिक्षित और सुसभ्य महिला थीं , जो विदेश जाकर अंग्रेजों की सामाजिक प्रथाओं का अच्छा अनुभव प्राप्त कर चुकी थीं । उज्नके पति श्री बबनराव ने इंग्लैंड में पांच वर्ष रहकर अध्ययन किया था । बम्बई में वे एक अच्छे मकान में सुख - सुविधाओं में रहते थे । महात्मा गाँधी ने चम्पारन के ' किसान सत्याग्रह ' के लिए गुजरात और महाराष्ट्र प्रान्तों से ऐसे चुने हुए कार्यकर्ताओं को बुलाया था जो केवल सेवा भाव से बिहार के पिछड़े गांवों में रहकर , वहां की समस्त असुविधाएं सहन करके , साथ ही गोरों की धमकियों की परवाह न करके किसानों में सुधार का कार्य करते रहें । इन्ही कार्यकर्ताओं में से एक अवन्तिकाबाई गोखले थीं ।
बिहार के जिन गावों में उनको कई महीने रहना था , उनमे एक अच्छी लालटैन का मिल सकना भी कठिन था ।
गाँधी जी का आदेश मिलते ही दोनों पति पत्नी चम्पारन के लिए चल पड़े । अब तक वे सदैव सेकण्ड क्लास में सफर किया करते थे , पर इस बार गाँधी जी के बुलाने पर जा रहे थे , इस लिए थर्ड क्लास में ही सवार हुए ।
महात्मा जी के पास पहले से ही खबर पहुँच गई थी , इसलिए उन्होंने कुछ लोगों को उनको लाने के लिए भेजा , जिनमे उनके पुत्र देवदास गाँधी भी थे । वे कहने लगे कि अवन्तिकाबाई तो दूसरे दर्जे में आएँगी । गाँधी जी ने कहा ---- " अगर वे तीसरे दर्जे में आयेंगी तभी उन्हें यंहां रखूँगा , वरना बम्बई को ही वापस भेज दूंगा । " देवदास ने उनको दूसरे दर्जे के डिब्बे में ही ढूंढा लेकिन वो अपने पति के साथ तीसरे दर्जे के डिब्बे से उतर कर गाँधी जी के पास पहुँच गईं ।
17 November 2016
WISDOM
' संसार में सच्चाई का बहुत महत्त्व है । वह ऐसी चीज है जो चीथड़ों में लिपटी रहने पर भी दूर - दूर तक सम्मान की पात्र समझी जाती है जबकि किसी बेईमान को धन होने पर भी दूसरों से निगाह चुरानी पड़ती है वहां ' सच्चाई का धनी ' सदैव मस्तक ऊँचा करके चलता है ।
इस समय संसार में धन की कितनी ही पूजा क्यों न होती हो पर उससे शान्ति और संतोष की प्राप्ति नहीं हो सकती । ये ' महान सम्पदाएँ ' पराई वस्तु को हराम समझने वाले को ही प्राप्त होती हैं ।
इस समय संसार में धन की कितनी ही पूजा क्यों न होती हो पर उससे शान्ति और संतोष की प्राप्ति नहीं हो सकती । ये ' महान सम्पदाएँ ' पराई वस्तु को हराम समझने वाले को ही प्राप्त होती हैं ।
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