4 September 2025

WISDOM ----

  अत्याचार  और  अन्याय  से  मनुष्य  का  पुराना  नाता  है  l   युग  चाहे  कोई  भी  हो  , जब  भी  मनुष्य  के  पास  धन-वैभव  , शक्ति  और  बुद्धि  है   और  इन  सबका  अहंकार  होने  के  कारण  वह  विवेकहीन  हो  जाता  है   तब  वह  अत्याचार  और  अन्याय  करने  ,  लोगों  को  पीड़ित  करने  में  ही   गर्व  महसूस  करता  है  l  यही  उसका  आनंद  और  उसकी  दिनचर्या  होती  है   l  सबसे  बड़ा  आश्चर्य  यही  है  कि  ऐसे  अत्याचारियों  का  साथ  देने  वाले , उनके  पाप  और  दुष्कर्मों  को  सही  कहकर  उनका  समर्थन  करने  वाले  असंख्य  होते  हैं  l   रावण  की  विशाल  सेना  थी   लेकिन  भगवान  राम  के  साथ  केवल  रीछ , वानर  थे  l  इसी  तरह  महाभारत  में   दुर्योधन  के  पास  विशाल  सेना  थी   और  उस  समय  के   हिंदुस्तान  के  लगभग  सभी  शक्तिशाली  राजा  दुर्योधन  के  पक्ष  में  खड़े  थे  l  जब  महाभारत  का  महायुद्ध   आरम्भ  होना  था  तब  अर्जुन  ने   अपने  सारथी  श्रीकृष्ण  से  निवेदन  किया  ---- " हे  वासुदेव  !  मेरे  रथ  को  दोनों  सेनाओं  के  मध्य  स्थित  कर  दीजिए  l  मैं  देखूं  तो  सही  कि  मनुष्य , मनुष्यता   और  उसका  जीवन  कितना  निम्न  कोटि  का  हो  गया  है  l  द्रोपदी  के  चीरहरण  का  पक्ष  लेने   कौन -कौन  लोग  हैं  जो  दुर्योधन  के  पक्ष  में  खड़े  हैं  l  दुर्योधन  के  कुकर्मों , लाक्षाग्रह   , शकुनि  और  दु:शासन  के  कुकर्मों   को  जानते  हुए  भी   ऐसे  कौन  लोग  हैं  जो  दुर्योधन  के  पक्ष  में  खड़े  हैं  l  भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य   जिन्हें  धर्म , अधर्म  का  ज्ञान  था  , जब  वे  सब  दुर्योधन  के  पक्ष  में  थे  तब  औरों  की   क्या  कहे  !   यह  सत्य  है  कि  सत्य  और  न्याय  के  पथ  पर  चलने  वालों  के  साथ  ईश्वर  होते  हैं  ,  यह  संसार  तो  स्वार्थ  से  , अपनी  लाभ -हानि  की  गणित  से  चलता  है   लेकिन  इन  सबका  परिणाम  वही  होता  है   जो  त्रेतायुग  और  द्वापरयुग  में  अत्याचारियों  का  और  उनका  समर्थन  करने  वालों  का  हुआ  l  एक  लाख  पूत  और  सवा  लाख  नातियों  समेत    रावण  का  अंत  हुआ   और  इधर  कौरव  वंश  का  भी  नामोनिशान  मिट  गया  l  सत्य  तो  यही  है  कि  मनुष्य  स्वयं  महाविनाश  को  आमंत्रित  करता  है  l  इसके  लिए  चाहें  ईश्वर  अवतार  लें  या  प्रकृति  अपना  रौद्र  रूप  दिखाकर   मनुष्य  को  सबक  सिखाए  l   लेकिन  मनुष्य  की  चेतना  सुप्त  हो  गई  है   , वह  कुछ  सीखना , सुधरना  नहीं  चाहता  है  ,  ,  मुसीबतें  आती  हैं  तो  आती  रहें  ,  उनकी  जान  बची  तो  दूनी  गति  से  पापकर्म  में  लिप्त  हो  जाते  हैं  l  अब  राम-रावण  और  महाभारत  जैसे  युद्ध  नहीं  होते  , वे  तो  धर्म  और  अधर्म  की  लड़ाई  थी  l  अब  आजकल  के  युद्ध  और  दंगों  में  महिलाओं  की  सबसे  ज्यादा  दुर्गति  होती  है  l  प्रकृति   ' माँ  '  हैं  , उनके  लिए  यह  सब  देखना  असहनीय  है  , इसलिए  अब  प्रकृति  माँ  अपना  रौद्र रूप  दिखाकर   सामूहिक  दंड  देतीं  हैं   l  पापकर्म  करने  वाले , उसे  चुपचाप  देखने  वाले  , देखकर  मौन  रहने  वाले  ,  बहती  दरिया  में  हाथ  धोने  वाले  ,  स्वयं  को   अनजान  कहने  वाले  सभी  पाप  के  भागीदार  हैं  l   प्रकृति  का  न्याय  किस  रूप  में  किसके  सामने  आए , यह  कोई  नहीं  जानता  l  

1 September 2025

WISDOM -----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   कहा  करते  थे  ---- "  चिंता  मनुष्य  को  वैसे  ही  खा  जाती  है  ,  जैसे  कपड़ों  को  कीड़ा  l  बहुत  चिंता  करने  वाले  व्यक्ति  अपने  जीवन  में   चिंता  करने  के  सिवा   और  कुछ  सार्थक  नहीं  कर  पाते   और  चिंता  से  अपनी  चिता  की  ओर  बढ़ते   हैं  l  चिंता   दीमक  की  तरह  है   जो  व्यक्ति  को  खोखला  बनाकर  नष्ट  कर  देती  है  , इसलिए  दीमक  रूपी  चिंता  से  हमेशा  सावधान  रहना  चाहिए  l  आचार्य श्री  कहते  हैं ----  चिंता   करने  के  बजाय   हमें  स्वयं  को  सदा  सार्थक  कार्यों  में  संलग्न   रखना  चाहिए  l  मन  को  अच्छे  विचारों  से  ओत -प्रोत  रखना  और  जीवन  के  प्रति  सकारात्मक  द्रष्टिकोण  रखना  -- ऐसे  उपाय  हैं    जिनसे  मन  को  चिंतामुक्त  किया  जा  सकता  है  l  "   एक  प्रसंग  है  ----  एक  वृद्ध  और  युवा  वैज्ञानिक  आपस  में  बात  कर  रहे  थे  l  वृद्ध  वैज्ञानिक  ने   युवा  से  कहा ---- "  चाहे  विज्ञानं  कितनी  भी  प्रगति  क्यों  न  कर  ले  ,  लेकिन  वह  अभी  तक  ऐसा  कोई  उपकरण  नहीं  ढूंढ  पाया  ,  जिससे  चिंता  पर  लगाम  कसी  जा  सके  l   "  युवक  ने  कहा  ----" चिंता  तो  बहुत  मामूली  बात  है  ,  उसके  लिए  उपकरण  ढूँढने  में  समय  क्यों  नष्ट  किया  जाए  l "   अपनी  बात  समझाने  के  लिए  वे  उस  युवक  को  एक  घने  जंगल  में  ले  गए  l   एक  विशालकाय  वृक्ष  की  ओर  संकेत  करते  हुए  वृद्ध  वैज्ञानिक  ने  कहा  --- "  इस  वृक्ष  की  उम्र  चार  सौ  वर्ष  है  l  इस  वृक्ष  पर  चौदह  बार  बिजलियाँ  गिरी  l  चार  सौ  वर्षों  से  इसने  अनेक  तूफानों  का  सामना  किया  l  यह  विशाल  वृक्ष  बिजली  और  भारी  तूफानों  से   धराशायी   नहीं  हुआ   लेकिन  अब  देखो   इसकी  जड़ों  में  दीमक  लग  गई  है  l  दीमक  ने  इसकी   छाल    को  कुतरकर  तबाह  कर  दिया  l  इसी  तरह  चिंता  भी    दीमक  की  तरह   एक  सुखी , संपन्न  और  ताकतवर  व्यक्ति  को  चट  कर  जाती  है  l  

30 August 2025

WISDOM -----

  पं , श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----"  अंदर  से  अच्छा  बनना  ही  वास्तव  में  कुछ  बनना  है  l  मनुष्य  जीवन  की  बाह्य  बनावट   उसे   कब  तक  साथ  देगी  ?  जो   कपड़े   अथवा  प्रसाधन   यौवन  में  सुन्दर  लगते  हैं  ,  यौवन  ढलने  पर  वे  ही  उपहास्यपद   दीखने  लगते  हैं  l  मनुष्य  के  जीवन  का  श्रंगार   ऐसे  उपादानों  से  करना  चाहिए  ताकि  आदि  से  अंत  तक  सुन्दर  और  आकर्षक  बने  रहें  l  मनुष्य  जीवन  का  अक्षय  श्रंगार  है  --- आंतरिक  विकास  l  ह्रदय  की  पवित्रता  एक  ऐसा  प्रसाधन  है  ,  जो  मनुष्य  को  बाहर -भीतर  से   एक  ऐसी  सुन्दरता  से  ओत -प्रोत  कर  देता  है  ,  जिसका  आकर्षण   न  केवल  जीवन पर्यन्त  अपितु  जन्म -जन्मान्तरों   तक  सदा  एक  सा  बना  रहता  है  l  "

29 August 2025

WISDOM -----

संसार  में  जितने  भी  लोकसेवा  के  कार्य  होते  हैं  , उनकी  सार्थकता   वह  कार्य  करने  वाले  की  भावनाओं  में  निहित  है  l   लोक  कल्याण  के  पीछे  निहित  भावना   व्यक्ति  के  अंतर्मन  में  होती  है   लेकिन  वह   परिवार  और  समाज  को   बड़ी  गहराई  से  प्रभावित  करती  है  l   कलियुग  में  समाज  सेवा  , दया , करुणा  का  रूप  कैसा  है  ?  ---एक  कथा  है  ----- एक  सेठ  धार्मिक  प्रवृत्ति  का   और  समाज  सेवी  था  ,  उसने  शिक्षा  के  साथ  संस्कार  देने  के  लिए  एक  स्कूल  खोला  l  उसमें  बच्चों  को  शिक्षा  के  साथ  नियमित  सद्गुणों  की  शिक्षा  भी  दी  जाती  थी  ,  बच्चों  को  सिखाया  जाता  था  कि  सत्य  बोलो , नियमित  दया  का  कोई  कार्य  अवश्य  करो  -------,  सेठ जी  कभी -कभी  स्कूल  का  निरीक्षण  और  बच्चों  से  वार्तालाप  भी  करते  थे  l  इस  क्रम  में  एक  दिन  उन्होंने  बच्चों  से  पूछा   कि  इस  महीने  कुछ  दया  के  काम  किए  हों  तो  हाथ  उठायें  l  तीन  लड़कों  ने  हाथ  उठाए  l  सेठ जी  बड़े  प्रसन्न  हुए  ,  उन्होंने  पूछा  --अच्छा  बताओ  तुमने  क्या -क्या  दयालुता  के  कार्य  किए  ?  पहले  लड़के  ने  कहा  --- " एक  जर्जर  बुढ़िया  को  मैंने  हाथ  पकड़  के  सड़क  पार  कराई  l "  सेठ  ने  उसकी  प्रशंसा  की  l  दूसरे  लड़के  से  पूछा  ,  तो  उसने  भी  कहा  ---- "  एक  बुढ़िया  को  सड़क  पार  कराई  l "  उसको  भी  शाबाशी  दी  l  अब  तीसरे  से  पूछा  तो  उसने  भी  बुढ़िया  को  सड़क  पार  कराने  की  बात  कही  l  अब  तो  सेठ  को  और  साथ  में  जो  शिक्षक  थे  उन्हें  बड़ा  आश्चर्य  और  संदेह  हुआ  l   उन्होंने  पूछा  -बच्चों  कहीं  तुमने  एक  ही  बुढ़िया  का  हाथ  पकड़कर  सड़क  पार   कराई  थी  l  बच्चे  मन  के  सच्चे  होते  हैं  l  उन्होंने  कहा--- हाँ  ,  ऐसा  ही  है  l   सेठ  ने  फिर  पूछा  --- एक  ही  बुढ़िया  को  सड़क  पार  कराने  तुम  तीन  को  क्यों  जाना  पड़ा  l  उन  लड़कों  ने  कहा  ---"  हमने  उस  बुढ़िया  से  कहा  ,  हमें  दया -धर्म  का  पालन  करना  है   चलो  हम  हाथ  पकड़कर  तुम्हे    सड़क  पार  कराएँगे  l   बुढ़िया  इसके  लिए  राजी  नहीं  हुई  , उसने  कहा  मुझे  तो   पटरी  के  इसी   किनारे  पर  जाना  है  , सड़क  पार  करने  की  आवश्यकता  नहीं  है  l  l  इस  पर  हम  तीनो  ने  उस  जर्जर  बुढ़िया  को  कसकर  पकड़  लिया   और  उसका  हाथ  पकड़कर  घसीटते  ले  गए   और  सड़क  पार  करा  के  ही  माने  l "   सेठ  ने  अपना  सिर  पकड़  लिया  ,  वो  क्या  कहता  बच्चों  को   !  लोकसेवा  की  सच्चाई  तो  उसे  बहुत  अच्छे  से  मालूम  थी  l  

27 August 2025

WISDOM -----

  लघु -कथा ----1 -  एक  राजा  नास्तिक  था   l  अहंकारी  था  , ईश्वर  को  नहीं  मानता  था  l  एक  साधु  की  प्रशंसा  सुनकर  वह  उससे  मिलने  गया  l  साधु  ने  उसकी  ओर  ध्यान  नहीं  दिया  और  अपने  कुत्ते  पर  हाथ  फेरता  रहा  l  राजा  ने  क्रोध  में  आकर  कहा -- " तू  बड़ा  या  तेरा  कुत्ता  ? "  साधू  ने  उत्तर  दिया  ---- "  यह  हम  और  तुम  दोनों  से  बड़ा  है  ,  जो  अपने  एक  टुकड़ा  देने  वाले  मालिक  के   दरवाजे  पर  पड़ा  रहता  है    और  एक  तुम  और  हम  हैं   जो  भगवान  द्वारा  सभी  प्रकार  का  आनंद  मिलने  पर  भी   उसका  नाम  तक  नहीं  लेते  l "    

2 .    राहगीर  ने  एक  पत्थर  मारा  ,  आम  के  वृक्ष  से  कई  पके  आम  गिरे  l  राहगीर  ने  उठाए  और  खाता  हुआ   वहां  से  चल  दिया  l   यह  द्रश्य देख  रहे  आसमान  ने   पूछा  ---- " वृक्ष  !   मनुष्य  प्रतिदिन  आते  हैं  और  तुम्हे  पत्थर  मारते  हैं  ,  फिर  भी  तुम  इन्हें  फल  क्यों  देते  हो  ?  "   वृक्ष  हँसा  और  बोला  ---- "  भाई  !  मनुष्य  अपने  लक्ष्य  से  भ्रष्ट  हो  जाए  ,  तो  क्या  हमें  भी   वैसा  ही  पागलपन  करना  चाहिए  l "  

26 August 2025

WISDOM ------

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " प्रत्येक  मनुष्य  , यहाँ  तक  कि  प्रत्येक  जीवधारी   अपनी  प्रकृति  के  अनुसार  आचरण  करता  है  l  जैसे  सर्प  की  प्रकृति  क्रोध  है  l  इस  क्रोध  के कारण  ही  वह  फुफकारते  हुए  डसता  है   और  अपने  अन्दर  का  जहर  उड़ेल  देता  है  l  कोई  उसे  कितना  ही  दूध  पिलाए  , उसकी  प्रकृति  को  परिवर्तित  नहीं  किया  जा  सकता  l  इसी  तरह  नागफनी  और  बबूल   को  काँटों  से  विहीन  नहीं  किया  जा  सकता  है  l  जो  भी  इनसे  उलझेगा   उसे  ये  काँटे  चुभेंगे  ही  l  "   इसी  तरह   यदि  कोई  व्यक्ति  अहंकारी , षड्यंत्रकारी , छल , कपट , धोखा  करने  वाला ,  अपनों  से  ही  विश्वासघात  करने  वाला , अपनों  की  ही  पीठ  में  छुरा  भोंकने  वाला  है   तो  उसे  आप  सुधार  नहीं  सकते  l    उसका  परिवार , समाज  यहाँ  तक  कि  स्वयं   ईश्वर  भी  उसे  समझाने  आएं  , तब  भी  वह  सुधर  नहीं  सकता  l  उसकी  गलतियों  के  लिए   ईश्वर   उसे  दंड  भी  देते  हैं   जैसे  कोई  नुकसान  हुआ  ,  कोई  बीमारी  हो  गई  लेकिन  वह  जैसे  ही  कुछ  ठीक  हुआ  फिर  से  पापकर्म  में  उलझ  जाता  है  l  इसलिए  ऐसे  लोगों  से  कभी  उलझना  नहीं  चाहिए  l  वे  जो  कर  रहे  हैं  , उन्हें  करने  दो  l  उनका  जन्म  ही  ऐसे  कार्यों  के  लिए  हुआ  है  l  बुद्धिमानी  इसी  में  है  कि  ऐसे  लोगों  से  दूर  रहे  l   समस्या  सबसे  बड़ी  यह  है  कि   आप  उनसे  दूरी  बना  लें   लेकिन  ऐसे  जिद्दी  और  अहंकारी  लोग  आपका  पीछा  नहीं  छोड़ते   क्योंकि  उनके  पास  दूसरों  को  सताने  के  अतिरिक्त  और  कोई  विकल्प  ही  नहीं  है  l  वे  पत्थर  फेंकते  ही  रहेंगे  l  जो  विवेकवान  हैं  वे  उन  पत्थरों  से  सीढ़ी  बनाकर  ऊपर  चढ़  जाएंगे  ,  अपनी  जीवन  यात्रा  में   निरंतर  सकारात्मक  ढंग  से  आगे  बढ़ते  जाएंगे  l    आचार्य श्री  कहते  हैं  ---- "  जो  विवेकवान  हैं  , जिनका  द्रष्टिकोण  परिष्कृत  है   वे  प्रत्येक  घटनाक्रम  का   जीवन  के  लिए  सार्थक  उपयोग   कर  लेते  हैं  l उदाहरण  के  लिए   अमृत  की  मधुरता  तो   उपयोगी  है  ही  , परन्तु  यदि  विष  को  औषधि   में  परिवर्तित  कर  लिया  जाए   तो  वह  भी  अमृत  की  भांति   जीवनदाता  हो  जाता  है  l  "  

25 August 2025

WISDOM -----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " असीम  सत्ता  पर  गहरी  आस्था  से  हमें  ऊर्जा  मिलती  है  l  यदि  आस्था  गहरी  हो  तो   सफलता  में  उन्माद  नहीं  होता  और  असफलता  में  अवसाद  नहीं  होता  l "   जो  भी  व्यक्ति इस  सत्य  को  जानते  हैं  कि  इस  संसार  में  एक  पत्ता  भी  हिलता  है  तो  वह  ईश्वर  की  मरजी से   ही  है  ,  ऐसे  व्यक्ति  सुख   को  ईश्वर   की  देन  मानकर  उस  समय  का  सदुपयोग  करते  हैं  ,  अहंकार  नहीं  करते   और  दुःख  के  समय  को   भी  ईश्वर  की  इच्छा  मानकर  उसे  तप  बना  लेते  हैं  l  वे  इस  सत्य  को  जानते  हैं  कि  विपत्ति  का  प्रत्येक  धक्का   उन्हें  अधिक  साहसी , बुद्धिमान   और  अनुभवी  बना  देगा  l  सुख -दुःख , मान -अपमान  और  हानि -लाभ  में  अपने  मानसिक  संतुलन  को  बिगड़ने  नहीं  देते  l   महाभारत  में  पांडव  भगवान  श्रीकृष्ण  के  प्रति  समर्पित  थे  l अनेक  वर्ष  उन्हें  जंगलों  में  गुजारने  पड़े , निरंतर  दुर्योधन  के  षड्यंत्रों   और  कौरवों  से  मिले  अपमान  को  सहना  पड़ा  l  लेकिन  वे  कभी  विचलित नहीं  हुए   और  कठोर  तपस्या  कर  के  दैवी  अस्त्र -शस्त्र  प्राप्त   किए   और  अंत  में  विजयी  हुए  l