30 August 2025

WISDOM -----

  पं , श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----"  अंदर  से  अच्छा  बनना  ही  वास्तव  में  कुछ  बनना  है  l  मनुष्य  जीवन  की  बाह्य  बनावट   उसे   कब  तक  साथ  देगी  ?  जो   कपड़े   अथवा  प्रसाधन   यौवन  में  सुन्दर  लगते  हैं  ,  यौवन  ढलने  पर  वे  ही  उपहास्यपद   दीखने  लगते  हैं  l  मनुष्य  के  जीवन  का  श्रंगार   ऐसे  उपादानों  से  करना  चाहिए  ताकि  आदि  से  अंत  तक  सुन्दर  और  आकर्षक  बने  रहें  l  मनुष्य  जीवन  का  अक्षय  श्रंगार  है  --- आंतरिक  विकास  l  ह्रदय  की  पवित्रता  एक  ऐसा  प्रसाधन  है  ,  जो  मनुष्य  को  बाहर -भीतर  से   एक  ऐसी  सुन्दरता  से  ओत -प्रोत  कर  देता  है  ,  जिसका  आकर्षण   न  केवल  जीवन पर्यन्त  अपितु  जन्म -जन्मान्तरों   तक  सदा  एक  सा  बना  रहता  है  l  "

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