पं , श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----" अंदर से अच्छा बनना ही वास्तव में कुछ बनना है l मनुष्य जीवन की बाह्य बनावट उसे कब तक साथ देगी ? जो कपड़े अथवा प्रसाधन यौवन में सुन्दर लगते हैं , यौवन ढलने पर वे ही उपहास्यपद दीखने लगते हैं l मनुष्य के जीवन का श्रंगार ऐसे उपादानों से करना चाहिए ताकि आदि से अंत तक सुन्दर और आकर्षक बने रहें l मनुष्य जीवन का अक्षय श्रंगार है --- आंतरिक विकास l ह्रदय की पवित्रता एक ऐसा प्रसाधन है , जो मनुष्य को बाहर -भीतर से एक ऐसी सुन्दरता से ओत -प्रोत कर देता है , जिसका आकर्षण न केवल जीवन पर्यन्त अपितु जन्म -जन्मान्तरों तक सदा एक सा बना रहता है l "
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