1 September 2025

WISDOM -----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   कहा  करते  थे  ---- "  चिंता  मनुष्य  को  वैसे  ही  खा  जाती  है  ,  जैसे  कपड़ों  को  कीड़ा  l  बहुत  चिंता  करने  वाले  व्यक्ति  अपने  जीवन  में   चिंता  करने  के  सिवा   और  कुछ  सार्थक  नहीं  कर  पाते   और  चिंता  से  अपनी  चिता  की  ओर  बढ़ते   हैं  l  चिंता   दीमक  की  तरह  है   जो  व्यक्ति  को  खोखला  बनाकर  नष्ट  कर  देती  है  , इसलिए  दीमक  रूपी  चिंता  से  हमेशा  सावधान  रहना  चाहिए  l  आचार्य श्री  कहते  हैं ----  चिंता   करने  के  बजाय   हमें  स्वयं  को  सदा  सार्थक  कार्यों  में  संलग्न   रखना  चाहिए  l  मन  को  अच्छे  विचारों  से  ओत -प्रोत  रखना  और  जीवन  के  प्रति  सकारात्मक  द्रष्टिकोण  रखना  -- ऐसे  उपाय  हैं    जिनसे  मन  को  चिंतामुक्त  किया  जा  सकता  है  l  "   एक  प्रसंग  है  ----  एक  वृद्ध  और  युवा  वैज्ञानिक  आपस  में  बात  कर  रहे  थे  l  वृद्ध  वैज्ञानिक  ने   युवा  से  कहा ---- "  चाहे  विज्ञानं  कितनी  भी  प्रगति  क्यों  न  कर  ले  ,  लेकिन  वह  अभी  तक  ऐसा  कोई  उपकरण  नहीं  ढूंढ  पाया  ,  जिससे  चिंता  पर  लगाम  कसी  जा  सके  l   "  युवक  ने  कहा  ----" चिंता  तो  बहुत  मामूली  बात  है  ,  उसके  लिए  उपकरण  ढूँढने  में  समय  क्यों  नष्ट  किया  जाए  l "   अपनी  बात  समझाने  के  लिए  वे  उस  युवक  को  एक  घने  जंगल  में  ले  गए  l   एक  विशालकाय  वृक्ष  की  ओर  संकेत  करते  हुए  वृद्ध  वैज्ञानिक  ने  कहा  --- "  इस  वृक्ष  की  उम्र  चार  सौ  वर्ष  है  l  इस  वृक्ष  पर  चौदह  बार  बिजलियाँ  गिरी  l  चार  सौ  वर्षों  से  इसने  अनेक  तूफानों  का  सामना  किया  l  यह  विशाल  वृक्ष  बिजली  और  भारी  तूफानों  से   धराशायी   नहीं  हुआ   लेकिन  अब  देखो   इसकी  जड़ों  में  दीमक  लग  गई  है  l  दीमक  ने  इसकी   छाल    को  कुतरकर  तबाह  कर  दिया  l  इसी  तरह  चिंता  भी    दीमक  की  तरह   एक  सुखी , संपन्न  और  ताकतवर  व्यक्ति  को  चट  कर  जाती  है  l  

No comments:

Post a Comment