1 . पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " शुभ भाव , पवित्र भाव और सबके प्रति प्रेम का भाव सघन हो तो किसी को भी बदला जा सकता है l सच्चे साधक हमेशा अन्दर से अहिंसा के भाव से , प्रेम से भरे होते हैं l हिंसक पशु भी उनके सामने अपनी हिंसक वृत्ति छोड़ देते हैं l " ----- हरिहर बाबा बनारस के प्रसिद्ध योगी हुए हैं l एक हाथी पागल हो गया था l उसी गली में भागा जिसमे हरिहर बाबा जा रहे थे l लोगों ने चिल्लाकर कहा ---- " बाबा ! हट जाइए l हाथी थोड़े ही समझेगा कि आपकी किसी से दुश्मनी नहीं है , हट जाएँ l " पर बाबा खड़े रहे l हाथी आया बाबा के पास आकर खड़ा हो गया l बाबा ने सूँड़ पर हाथ फेरा l हाथी आँसू बहता रहा , फिर बैठ गया l थोड़ी देर वे उसे प्यार करते रहे , फिर वह उठकर चला गया l उसका पागलपन ठीक हो गया l
31 July 2024
30 July 2024
WISDOM ------
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----' अपने जीवन में चाहे जितने भी रिश्ते हों , लेकिन एक रिश्ता भगवान से भी रखना चाहिए l और अपने मन की हर बात को उनसे बताना चाहिए l यह संवाद भले ही एकतरफा होता है , लेकिन जिन्दगी की बहुत सारी उलझनों को सुलझाता है l इससे हमारी भावनाओं को संबल मिलता है कि कहीं कोई है , जो हमारा ध्यान रखता है और मुसीबत के समय में हमें गिरने नहीं देता है , संभाल लेता है l ' आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- ' इसके साथ अपने कर्तव्य का पालन और प्रबल पुरुषार्थ करने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए l जिन्दगी स्वयं में एक शिक्षक की तरह है , जो हर कदम पर शिक्षण देती है और देर -सबेर हमें भावनाओं के स्वस्थ विकास में मदद करती है l '
28 July 2024
WISDOM -----
मनुष्य जीवन क्या है ? यदि सरल शब्दों में कहें तो यह 'कर्मों का लेन -देन ' है l इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों का हिसाब चुकाने आता है l मनुष्य के जितने भी रिश्ते हैं चाहें वह परिवार से हों , जानवरों से , पशु -पक्षियों से , भूमि से हो ----इन सबका व्यक्ति पर ऋण होता है जिसे किसी न किसी रूप में चुकाना होता है l मनुष्य ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर के रिश्तों को विभिन्न नाम दिए , विभिन्न श्रेणियां बना दीं लेकिन वास्तविकता यही है कि जन्म -जन्मान्तर का कोई ऋण होता है जिसे चुकाना पड़ता है l जो इस सत्य से परिचित हैं वे जीवन में आने वाली कठिनाइयों , अपमान , दुःख , तकलीफ में अपने मन को समझा लेते हैं कि किसी जन्म का कोई ऋण था , कोई जाने -अनजाने पाप हुआ था , वह कट गया l जो समझदार हैं वे अपना जीवन ही इस ढंग से जीते हैं कि उन पर किसी का कोई ऋण बकाया न रहे l एक कथा है -------- एक सेठ जी थे वे दिल्ली से अपना व्यापार , हवेली आदि छोड़कर अग्रोहा नामक स्थान पर आकर रहने लगे l उन्होंने यह घोषणा करा दी कि जो भी अग्रोहा में आकर बसेगा उसे सब सुख - सुविधा दी जाएगी l लखी नामक एक बंजारा अग्रोहा पहुंचा और उसने सेठ से व्यापार करने के लिए रूपये उधार मांगे l सेठ ने पूछा ---- " किस जन्म में यह कर्ज चुकाओगे ? " बंजारा कुछ समझा नहीं l तब सेठ ने कहा --- " भाई ! इस जन्म में चुकाने का वायदा करते हो तो हिसाब करके रोकडिया से रूपये ले लो l लेकिन यदि अगले जन्म में चुकाना हो तो ऊपर वाले खंड में चले जाओ और जितना चाहे ले लो l हम उस रूपये की कोई लिखा -पढ़ी नहीं करते l लखी ने सोचा सेठ कैसा मूर्ख है , अगले जन्म को किसने देखा l इसलिए उसने सेठ से कहा कि वह अगले जन्म में चुकाएगा और हवेली के ऊपर वाले खंड में जाकर एक लाख रूपये ले लिए l लखी अपने डेरे पर पहुंचकर बहुत खुश था l उसी समय एक संत वहां से निकले l लखी ने उन्हें प्रणाम किया और अपने यहाँ विश्राम करने को कहा l भोजन , विश्राम के बाद लखी ने उन्हें कर्ज लेने का पूरा वर्णन सुनाया और पूछा कि क्या अगले जन्म में चुकाना होगा , कौन किसे पहचानेगा l तब महात्मा जी ने उसे पुनर्जन्म का विधान बताया और कहा कि कर्म अविनाशी होते हैं , कभी नष्ट नहीं होते जन्म -जन्मान्तर तक अच्छी -बुरी परिस्थितियों के रूप में इन्हें भुगतना पड़ता है l उन्होंने पुराण का प्रसंग सुनकर कहा कि तुम्हे बैल बनकर यह कर्ज चुकाना पड़ेगा l महात्मा की बात सुनकर लखी बहुत डर गया और सारा रुपया लेकर सेठ के पास पहुंचा और बोला ---- ये रूपये आप वापस ले लो , अगले जन्म में चुकाने की क्षमता मुझ में नहीं है l ' लेकिन अब सेठ ने रूपये लेने से इनकार कर दिया , लखी ने बहुत विनती की लेकिन सेठ ने रूपये लेने से मना के दिया क्योंकि वे तो बिना किसी लिखा -पढ़ीं के दिए गए थे l अब लखी पुन: महात्मा जी के पास गया , बहुत परेशान था कि क्या करें ? महात्मा जी ने सलाह दी कि अग्रोहा में कोई सरोवर नहीं है , तुम इन रुपयों से यहाँ एक सरोवर बनवा दो l सरोवर बनकर तैयार हो गया , सब नगरवासी बहुत प्रसन्न थे l लखी ने कहा कि यह सरोवर सेठ का है l जब सेठ जी तक यह बात पहुंची तो वे तुरंत लखी के यहाँ गए और कहा कि यह सरोवर तुम्हारा है , तुमने इसे जनता के कल्याण के लिए बनवाया है l तब लखी ने कहा ---- आपसे अगले जन्म में चुकाने का कहकर जो एक लाख रूपये उधार लिए थे , उस से यह सरोवर बनवाया , आप ही इसके स्वामी हैं l सेठजी सारी बात समझ गए , सरोवर निर्माण में जो अतिरिक्त खर्च हुआ था , उसकी उन्होंने तुरंत भरपाई की और उस सरोवर का नाम ' लखी सरोवर ' रख दिया l लखी का जीवन लोगों के लिए प्रेरणा है और कर्मफल विधान स्रष्टि का अनिवार्य सच है l
27 July 2024
WISDOM -----
आज मनुष्यों के जीवन में सबसे बड़ी समस्या तनाव की है l यह तनाव ही अनेक समस्याओं और बीमारियों को जन्म देता है l यह तनाव कहीं बाहर से नहीं आया है , यह व्यक्ति की स्वयं के जीवन की गलत शैली के कारण उत्पन्न होता है l लोगों की इच्छाएं , आवश्यकताएं और महत्वाकांक्षा अनंत है , स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दिखाने की अंधी दौड़ है l ये सब यदि मर्यादित हों तो व्यक्ति के , समाज के विकास में सहायक होती हैं लेकिन अनंत हो जाने पर सर्वप्रथम व्यक्ति को ही ' तनाव ' उपहार में देती हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " व्यक्ति की इच्छाएं जब बहुत बढ़ जाती हैं तो उन्हें पूरा करने के लिए वह उन्ही के अनुरूप भाग -दौड़ करता है l चिंता करते हुए तनाव में रहता है l दुनिया में कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें चाहे जितना मिल जाए वो उससे कभी संतुष्ट नहीं होते और इस तरह अपनी इच्छाओं को बढ़ाने के साथ अपनी असंतुष्टि का दायरा भी वो बढ़ाते ही रहते हैं l आचार्य श्री लिखते हैं --- ' सादगी का अर्थ केवल खान-पान या सरल जीवन शैली नहीं है बल्कि यह वास्तव में एक सोच है , क्योंकि इस सोच के कारण हमारा जीवन को देखने का नजरिया बदल जाता है l यदि यह नजरिया सीधा -सादा होगा तो फिर ज्यादा झूठ बोलने की जरुरत नहीं होगी , झगड़ा नहीं होगा , कुछ चुराने , छिपाने की जरुरत नहीं होगी , फिर जीवन में दूसरों से आगे निकलने या महत्वाकांक्षा वश कुछ पा लेने की होड़ में शामिल होने की जरुरत भी महसूस नहीं होगी l संसार में बाहरी आकर्षण का प्रभाव इतना अधिक है कि लोग सादगी को जीवन में उतार ही नहीं पाते l आचार्य श्री कहते हैं --- सादगी से भरा जीवन जीने वाले लोग अपनी जरूरतें नहीं बढ़ाते और वही खरीदते हैं जिसकी उन्हें जरुरत होती है l वे भविष्य की परवाह तो करते हैं लेकिन अपने वर्तमान को भरपूर आनंद के साथ जीते हैं l ऐसे लोग सच्चाई के करीब होते हैं और उनके निर्णय भी समझदारी पूर्ण होते हैं l स्वयं पर महत्वाकांक्षाओं को हावी नहीं होने देते l इस तरह सादा जीवन व्यक्ति को मानसिक शांति और स्वास्थ्य की अमूल्य संपदा प्रदान करता है l
26 July 2024
WISDOM ------
लघु कथा ------- 1 . मानसून का समय आया तो एक साल भर से सुखी नदी उफान के साथ बहने लगी l गर्व से उन्मत होकर वह समीप बसे गाँव के कुएं से बोली ---- " कुएं भाई ! जरा मेरी चौड़ाई तो देखो l मैं एक नहीं दसियों गाँव को अपने अन्दर समा सकती हूँ l तुम तो सहज ही मेरे अन्दर समा जाओगे l " कुएं ने नदी की बात का कोई उत्तर नहीं दिया l मौसम बदला तो बरसाती नदी सूखकर पतली सी धारा में बदल गई l कुआं उसे संबोधित करते हुए बोला ---- " बहन ! जीवन में मात्र विस्तार ही सब कुछ नहीं होता , गुणवत्ता भी आवश्यक है l बिना उदेश्य के बहुत बढ़ जाने से भी कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं होता l जीवन में सफलता तो व्यक्तित्व में गहराई लाने से ही प्राप्त होती है l "
2 . एक व्यापारी रेगिस्तान के रास्ते से व्यापार कर के लौट रहा था l उसने अपनी झोली में कई कीमती हीरे , जवाहरात आदि भर रखे थे l उसके मित्रों ने समझाया कि कुछ जवाहरात छोड़ दे और उनके बदले पानी की चिश्तियां बाँध ले , पर उसने उनकी सलाह को दरकिनार कर अपनी यात्रा जारी रखी l रास्ते में उसकी भोजन सामग्री और पानी समाप्त होने पर जब वह निढाल हो गया , तब उसे एहसास हुआ कि हीरे -जवाहरातों से पेट नहीं भरा जा सकता l मनुष्य अपनी कभी न समाप्त होने वाली तृष्णा के कारण धन- दौलत के पीछे अंधाधुंध भागकर अपना जीवन बरबाद कर देता है l
25 July 2024
WISDOM ------
एक साहूकार भगवान बिट्ठलनाथ का भक्त था l उसे पुत्र हुआ तो उसने भगवान बिट्ठलनाथ के विग्रह के लिए सोने का एक कमरबंद बनाने का संकल्प किया l नगर का श्रेष्ठतम सुनार नरहरि था , सो साहूकार ने नरहरि सुनार से संपर्क किया l नरहरि सुनार भगवान शिव का अनन्य भक्त था और वह कभी भगवान बिट्ठलनाथ जी के मंदिर नहीं गया था इसलिए सुनार ने साहूकार से भगवान की कमर का नाप लाने को कहा l साहूकार द्वारा दिए गए नाप के आधार पर नरहरि ने कमरबंद बना दिया , पर वह कुछ छोटा रह गया l तब साहूकार के कहने पर नरहरि सुनार ने उसे कुछ बड़ा कर दिया l इस बार वो कुछ ढीला हो गया l ऐसी स्थिति में साहूकार ने नरहरि से स्वयं मंदिर चलकर नाप लेने को कहा l नरहरि सुनार ने साहूकार से कहा कि वह चलने को तैयार है , लेकिन वह केवल शिवजी के मंदिर ही जाता है इसलिए उसकी आँखों पर पट्टी बाँधकर उसे ले जाया जाए l साहूकार ने उसकी बात मान ली l जब नरहरि सुनार मंदिर में भगवान बिट्ठलनाथ की मूर्ति का नाप लेते समय उनके पैरों में झुका तो उसे लगा कि वहां भगवान शिव नृत्य कर रहे हैं और जब उसने कमर को छुआ तो उसे लगा कि मूर्ति की कमर में सांप लिपट रहे हैं l उसे लगा कि यह तो भगवान शिव की पूर्ति है यह सोचकर उसने आँखों की पट्टी हटाई तो वहां भगवान बिट्ठलनाथ खड़े थे l उसने फिर पट्टी बांधकर नाप लेने का प्रयास किया तो उसे भगवान शिव की उपस्थिति प्रतीत हुई l तभी आकाशवाणी हुई कि --- सभी भगवान एक हैं नरहरि , तू भेद क्यों करता है ? नरहरि के मन का भ्रम दूर हो गया और उसने भगवान बिट्ठलनाथ के लिए एक सुन्दर सा कमरबंद तैयार कर दिया l
24 July 2024
WISDOM -----
कहते हैं जो धर्म की रक्षा करता है , धर्म भी उसकी रक्षा करता है l महाभारत में अर्जुन के चरित्र से इस सत्य को बताया गया है l ---अर्जुन महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक थे l अपनी निश्छल भक्ति और विनम्रता के कारण वे श्रीकृष्ण को प्रिय थे l अर्जुन के जीवन में संयम और इन्द्रिय संयम अपने चरम शिखर पर थे l जुए में हार जाने के कारण जब पांडवों को वनवास हुआ तब महर्षि व्यास की आज्ञा से दिव्यास्त्रों को प्राप्त करने के लिए अर्जुन ने कठोर तप किया और भगवन शिवजी को प्रसन्न कर ' पाशुपत अस्त्र ' प्राप्त किया l अन्य देवताओं ने भी उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें दिव्य अस्त्र प्रदान किए l देवराज इंद्र अर्जुन के पिता थे उन्होंने प्रसन्न होकर उन्हें कुछ समय के लिए स्वर्ग में रहने के लिए अपने सारथि मातलि को रथ लेकर भेजा l अर्जुन उसके साथ रथ पर बैठकर स्वर्ग पहुंचे l वहां पहुंचकर वे स्वर्ग के वैभव में खोए नहीं , उन्होंने वहां चित्रसेन गन्धर्व से नृत्य -गान -वाद्य आदि का ज्ञान प्राप्त किया l एक दिन अर्जुन भी इंद्र की सभा में बैठे थे l उस सभा में उर्वशी , रम्भा आदि अप्सराएँ बड़ा सुन्दर नृत्य कर रहीं थीं l देवराज ने देखा कि उर्वशी की द्रष्टि अर्जुन पर टिकी है l उन्होंने अर्जुन के इन्द्रिय संयम की परीक्षा लेनी चाही और चित्रसेन गन्धर्व के द्वारा उर्वशी को रात्रि में अर्जुन के शयन कक्ष में भेजा l तपस्वियों के तप को भंग करने के लिए वे उर्वशी , मेनका आदि अप्सराओं को भेजते थे और वे अपने उदेश्य में सफल भी होती थीं l उर्वशी बहुत प्रसन्न थी l कहते हैं अप्सराएँ इतनी खूबसूरत हैं कि उनके कटाक्ष से ही बड़े -बड़े तपस्वी , धर्म धुरंधर ध्वस्त हो जाते हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- सभाओं में ज्ञान -विज्ञानं , धर्म , अध्यात्म , संयम की चर्चा करना , बड़ी -बड़ी बातें करना बहुत सरल है , पर उन्हें अपने जीवन से , आचरण से प्रस्तुत करना और बात है l ऐसे समय में ही साधकों के संयम की परीक्षा होती है l आज अर्जुन की अग्नि परीक्षा थी l उर्वशी को अपने शयन कक्ष में देखकर अर्जुन तुरंत अपने बिस्तर से उठ खड़े हुए और बोले ---- " माते ! आपने यहाँ आने का कष्ट क्यों किया ? " उर्वशी ने अपनी कामना अर्जुन के सामने प्रकट की और अपने पक्ष में अनेक दलीलें दीं , निवेदन किया किन्तु अर्जुन अविचलित , अविकारी रहे , उन्होंने कहा ---मेरी द्रष्टि में कुंती , माद्री और शची का जो स्थान है , वही आपका भी है l आप मेरी माता के समान हैं , पूजनीय हैं , आप लौट जाएँ l गीता में भगवान ने कहा है , कामना पूर्ति में बाधा आने से क्रोध उत्पन्न होता है l अपनी कामना पूर्ति में विफल होने से उर्वशी बहुत क्रोधित हुई और उसने अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक होने का शाप दे दिया l अर्जुन ने उर्वशी से शापित होना स्वीकार किया लेकिन अपने दृढ संयम को नहीं तोड़ा l l जब इंद्र को यह बात ज्ञात हुई तो उन्होंने अर्जुन से कहा ---- " पुत्र ! तुमने तो इन्द्रिय संयम के द्वारा ऋषियों को भी पराजित कर दिया l उर्वशी का यह शाप तुम्हारे लिए वरदान बन जायेगा l वनवास के तेरहवें वर्ष में जब तुम्हे अज्ञातवास में रहना होगा , उस समय यह शाप तुम्हारे लिए सहायक होगा , वरदान सिद्ध होगा l " अज्ञातवास के समय अर्जुन ने ब्रह्न्ल्ला नम्म से नर्तक वेश में रहकर विरत की राजकुमारी उत्तरा को संगीत और नृत्य की विद्या सिखाई और एक वर्ष बाद वे शापमुक्त हो गए l
22 July 2024
WISDOM -------
सम्राट अशोक मृत्युशय्या पर थे l अपनी समस्त संपदा दान देने के बाद भी उनके मन में असंतोष का भाव बना हुआ था l करोड़ों मुद्राएँ दान देने के बाद भी वे बीमार व असंतुष्ट थे l एक दिन उनके पास संघ से एक भिक्षु आया l उस दिन सम्राट के पास दान देने हेतु कोई निज की वस्तु भी नहीं थी , वे सब पहले ही दान कर चुके थे l क्षुब्ध ह्रदय से उन्होंने पास रखा आंवला उठाया और उसे भिक्षु को दे दिया और उससे बोले --- " बंधु ! अब मेरे पास दान देने को ज्यादा कुछ नहीं है , आप इसी फल को स्वीकार करें l " भिक्षु ने आंवले का चूर्ण बनाकर प्रसाद में मिलाया और वह प्रसाद संघ के समस्त भिक्षुओं को बँट गया l हजारों भिक्षुओं की तृप्ति का समाचार सम्राट अशोक को मिला l उसे सुनकर उनके अंतर्मन में तृप्ति का वह भाव जागा , जो सहस्त्रों स्वर्ण मुद्राएँ दान देकर भी नहीं प्राप्त हुआ था l उन्हें अनुभव हुआ कि दिए गए दान का संतोष उसमें निहित परिस्थितियों के आधार पर मिलता है , न कि उसकी विशालता के आधार पर l
21 July 2024
WISDOM -----
' सच्चे गुरु के लिए सैकड़ों जन्म समर्पित किए जा सकते हैं l सच्चा गुरु वहां पहुंचा देता है जहाँ शिष्य अपने पुरुषार्थ से कभी नहीं पहुँच सकता है l " -------- गुरु -कृपा से असंभव भी संभव है l श्रद्धा और विश्वास जरुरी है l कोई तर्क नहीं , कोई संशय नहीं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने गायत्री मन्त्र के माध्यम से हमें जीवन में सफलता की राह को बताया l उन्होंने बताया कि अनेक देवी -देवता हैं , अनेक विधियाँ हैं जिनसे हम मन चाही मुराद पूरी कर सकते हैं , लेकिन वह स्थायी नहीं होगी , भाग्य को बदला नहीं जा सकता लेकिन ' गायत्री मन्त्र ' में वह शक्ति है जो प्रारब्ध को बदल दे l ' गायत्री महाविज्ञान ' में उन्होंने इसे विस्तार से समझाया है l वे कहते हैं कि श्रद्धा और विश्वास से आप गायत्री मन्त्र की शुरुआत तो करो , शेष सब ' माँ ' स्वयं करा लेंगी l आचार्य जी ने अपने विचारों से हमें जीवन जीने की कला सिखाई है जिसकी आज के युग में सबसे ज्यादा जरुरत है l आचार्य जी के अनमोल वचन ---------------------1 . l भगवत कार्य में कोई भी कर्ता नहीं मात्र निमित्त ही होता है l अपने से कितना भी बड़ा एवं विशिष्ट कार्य संपन्न हो जाने पर भी यदि स्वयं को निमित्त मात्र ही माना जाये तो अहंकार नहीं होता l " 2 असीम सत्ता पर गहरी आस्था और विश्वास से हमें ऊर्जा मिलती है , यदि आस्था गहरी हो तो सफलता में उन्माद नहीं होता और असफलता में अवसाद नहीं होता l 3 ' अपने चिन्तन , चरित्र एवं व्यवहार के हर कोने के परिष्कार के लिए जुट जाएँ l हर घड़ी हर पल स्वयं को इतना धो डालें कि जन्म जन्मान्तर के दाग भी छूट जाएँ l हमारी जीवन साधना ऐसी हो जो विचारों को ही नहीं , संस्कारों को भी धो डालें l '
19 July 2024
WISDOM ----
प्रसिद्ध संत श्री किंकर जी महाराज गुजरात के एक गाँव में पहुंचे l वहां अनेक लोग उन्हें अपने घर चलने की जिद करने लगे l कई सेठ -सहकर उन्हें अपने साथ ले जाना चाहते थे , परन्तु उन्हें छोड़कर श्री किंकर जी महाराज ने एक कुम्भकार के घर जाना स्वीकार किया l वह भक्त कुम्भकार उन्हें बड़े आदर के साथ अपने घर ले गया और उनको भोजन परोसने लगा l उसकी पत्नी संत के पास बैठकर उन्हें पंखा झलने लगी l संत की द्रष्टि महिला के पैरों पर पड़ी तो वे समझ गए कि कुम्भकार की गृहिणी अपंग है l उन्होंने प्रेम से पूछा --- " बेटी ! अपंगता के कारण घर के कार्यों को करने में कठिनाई होती होगी ? " वह बोलो ---- " नहीं महाराज ! मैं बैठे -बैठे भोजन बनाती हूँ , बरतन मांजती हूँ , घर का आंगन लीपती हूँ और भगवान की पूजा करती हूँ l इन्हें केवल पानी भरना होता है l " संत किंकर जी महाराज ने उसके पति से पूछा ---- " तुमने इससे क्यों विवाह किया था ? " वह बोला ---- " महाराज ! मैंने सोचा कि जीवन सेवा में लगाना चाहिए तो मैंने इससे विवाह करने का निश्चय किया l मैंने इसे कभी दुःख नहीं दिया , हमेशा हर कार्य में सहयोग देता हूँ l मैंने इसे तीर्थयात्रा कराई है नल पालीताना के मंदिरों में दर्शन कराने ले गया तो कंधे पर बिठाकर पहाड़ी तक पहुँचाया l हम दोनों एक दूसरे के सहयोग से जीविकोपार्जन व भगवान की भक्ति में लगे हैं l " संत श्री किंकर जी महाराज उन दोनों आदर्श पति -पत्नी को देखकर उनके सम्मुख नत मस्तक हो गए और बोले ---- " जहाँ तुम दोनों जैसे पति -पत्नी होते हैं , वहां गृहस्थी सदा सुखमय होती है l "
18 July 2024
WISDOM -------
सुंदरवन में एक कौआ रहा करता था l उसने पहले कभी बगुले को नहीं देखा था l बरसात का मौसम आया तो दूर देश से एक बगुला उड़कर वन में आया l उसे देखकर कौए को बड़ा दुःख हुआ l उसे लगा कि उसका रंग कितना काला है जबकि बगुला कितना गोरा है l उसने जाकर बगुले से कहा ---- " बगुले भाई ! आप तो बहुत गोर हो l यह देखकर आपको बहुत सुख मिलता होगा l " बगुला बोला ---- " मैं तो पहले से ही बहुत दुःखी हूँ , जरा तोते को देखो वो कितने सुन्दर दो रंगों से रंगा है , मुझ पर तो एक ही रंग है l " अब दोनों मिलकर तोते के पास पहुंचे तो तोता बोला --- " अरे , मैं तो तुम दोनों से भी ज्यादा दुःखी हूँ , जरा मोर को देखो वो कितने सुन्दर रंगों से रंगा हुआ है l " अब सब मिलकर मोर के पास पहुंचे तो देखा कि मोर को मारने उसके पीछे शिकारी लगा हुआ है l मोर के सुरक्षित होने पर उन्होंने मोर से अपनी बात कही तो मोर बोला ---- " भाइयों ! मेरा जीवन तो मेरे रंगों के कारण ही असुरक्षित हो गया है l ये रंग न होते तो आज मैं तुम लोगों की तरह चैन की बंसी बजा रहा होता l " अब सबकी समझ में आया कि भगवान ने हर प्राणी को मौलिक बनाया है l किसी को छोटा , किसी को बड़ा नहीं बनाया है l यदि हम असंतुष्ट रहना चाहें तो हर परिस्थिति में असंतुष्ट रहने के कारण ढूंढ लेंगे, लेकिन यदि संतुष्ट रहना चाहें तो हर परिस्थिति में संतोष के कारण उपलब्ध हैं l
17 July 2024
WISDOM -------
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' इन्द्रिय संयम ही आध्यात्मिक जीवन का आधार है l संयम ही शक्ति का स्रोत है l संयम न सिर्फ आध्यात्मिक जीवन , वरन भौतिक जीवन में भी सफलता का स्रोत है l ' ----- स्वामी दयानंद के जीवन की घटना है l स्वामी दयानंद ने दो बैलों को आपस में लड़ते देखा l वे हटाये नहीं हट रहे थे l स्वामी जी ने दोनों के सींगों को दोनों हाथों से पकड़ा और मरोड़कर दो दिशाओं में फेंक दिया l डरकर वे दोनों भाग गए l ऐसी ही एक और घटना है l स्वामी दयानंद शाहपुरा में निवास कर रहे थे l जहाँ वे ठहरे थे , उसी मकान के निकट एक नई कोठी बन रही थी l एक दिन अचानक निर्माणाधीन भवन की छत टूट गई और कई पुरुष उस खंडहर में बुरी तरह फँस गए l निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था l केवल चिल्लाकर अपने जीवित होने की सुचना भर बाहर वालों को दे रहे थे l मलबे की स्थिति ऐसी खतरनाक थी कि दर्शकों में से किसी की हिम्मत निकट जाने की नहीं हो रही थी l राहत के लिए पहुंचे लोग भी परेशान थे कि थोड़ी चूक से बचाने वालों के साथ भीतर घिरे लोग भी भारी -भरकम दीवारों में पिस सकते हैं l तभी स्वामीजी भीड़ देखकर कुतूहलवश उस स्थान पर जा पहुंचे और वस्तुस्थिति की जानकारी होते ही वे आगे बढ़े और और अपने एकाकी भुजबल से उस विशाल शिला को हटा दिया l शिला के पीछे फँसे लोग सुरक्षित बाहर आ गए l वहां आसपास एकत्रित लोग स्वामी जी शारीरिक शक्ति का परिचय पाकर उनकी जय -जयकार करने लगे l स्वामीजी ने लोगों को समझाया कि यह कोई चमत्कार नहीं है , संयम की साधना करने वाला हर मनुष्य अपने में इससे भी विलक्षण शक्तियों का विकास कर सकता है l
15 July 2024
WISDOM ------
लुकमान से किसी ने प्रश्न किया कि आपने इतनी शिष्टता कहाँ से सीखी ? लुकमान ने उत्तर दिया --- " भाई ! मैंने यह शिष्ट व्यवहार अशिष्ट लोगों के बीच रहकर ही सीखा है l " लुकमान का उत्तर सुनकर लोग अचरज में पड़ गए l लुकमान ने और आगे स्पष्ट करते हुए कहा कि अशिष्ट लोगों के बीच रहकर ही मैंने जाना कि अशिष्ट व्यवहार क्या है l मैंने पहले उनकी बुराइयों को देखा l फिर देखा कि कहीं ये बुराइयाँ मुझ में तो नहीं हैं l इस तरह आत्म निरीक्षण से मैं बुराइयों से दूर होता गया और आत्म सुधार के फलस्वरूप लोग मुझे लुकमान से हजरत लुकमान कहने लगे l
2 . खलीफा अली जंग के मैदान में थे l एक मौका आया , जब उन्होंने दुश्मन राजा को उसके घोड़े से गिरा दिया और उसकी छाती पर बैठ गए l खलीफा ने अपनी तलवार तिरछी की और वो उसे दुश्मन राजा की छाती में भौंकने वाले ही थे कि अचानक दुश्मन राजा ने उनके मुँह पर थूक दिया l खलीफा तुरंत एक तरफ हट गए और बोले ---- " आज की जंग यहीं ख़तम l हम कल फिर लड़ेंगे l " दुश्मन राजा बोला --- " लगता है आप घबरा गए l आज आपके पास मौका है जंग जीतने का , हो सकता है कल ऐसा न हो पाए l " l खलीफा ने उत्तर दिया ---- " मजहब का उसूल है कि कभी जोश में होश खोकर कोई काम न करो l जब तुमने मुझ पर थूका तो मुझे गुस्सा आ गया l गुस्से में किया गया वार हिंसा होती है , इसलिए मैंने कहा कि आज नहीं कल लड़ेंगे l " दुश्मन के अचरज का ठिकाना न रहा l वह तुरंत खलीफा के पैरों में झुक गया और बोला ---- " जो इन्सान जंग भी उसूलों से लड़ता है , उसे मैं क्या दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत भी नहीं हरा सकती l मैं यह जंग आज ही ख़तम करता हूँ l " यह प्रसंग वर्तमान में हो रहे युद्धों के लिए प्रेरणा है l आज युद्ध भी व्यापार है , व्यापर भी ऐसा जिसमे कहीं कोई नैतिकता , जीवन मूल्य नहीं है , निर्दोष प्रजा को , बच्चों को मारना , उन्हें अनाथ बना देना , नारी जाति को अपमानित करना , प्रकृति को प्रदूषित करना ------ यह युद्ध है कि क्या है ?
14 July 2024
WISDOM -----
सुप्रसिद्ध दार्शनिक जानजे से उनके एक मित्र ने पूछा ---- " मित्र ! दुनिया में इतनी अराजकता फैली हुई है l यदि यह दुनिया भगवान की बनाई हुई है तो वह दुनिया की व्यवस्था ठीक क्यों नहीं करता ? " जानजे ने उत्तर दिया ----- " मित्र ! हमारा कार्य अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करना है और भगवान का कार्य संसार की व्यवस्था देखना है l हमें हमारा कार्य ईमानदारी से करना चाहिए और भगवान का कार्य भगवान पर छोड़ देना चाहिए l " यदि हर व्यक्ति ईमानदारी से उसको दिए गए दायित्वों की पूर्ति सही ढंग से करता रहे तो संसार में सुव्यवस्था स्वत: आ जाएगी l आज संसार में इतनी अव्यवस्था , असंतोष , तनाव , अशांति है , इसका एकमात्र कारण यही है कि हर व्यक्ति बड़ी तेजी से अमीर और अमीर ---- होना चाहता है और अति की संपदा , अमीरी , ईमानदारी से तो आ नहीं सकती l अपनी महत्वाकांक्षाओं और असीमित इच्छाओं को पूरा करने के लिए वह उचित -अनुचित सभी तरीके अपनाता है l इसके लिए वह केवल दूसरों का ही नहीं , अपनों का भी शोषण करने से नहीं चूकता l ईश्वर ने मनुष्य को अपनी राह चुनने की स्वतंत्रता दी है l जैसी सही या गलत जो भी राह व्यक्ति चुनेगा वैसी ही परिणाम उसको मिलेगा l यह मनुष्य का दुर्भाग्य है कि दुर्बुद्धि के कारण वह अनीति की राह चुनता है और जब उसका फल भोगता है तो दूसरों को और ईश्वर को कोसता है l
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " आकर्षक व्यक्तित्व का निर्माण शक्ति और संवेदना के सम्मिश्रण से होता है l इन दोनों तत्वों का समन्वय जहाँ -जहाँ जितनी भी मात्र में होगा , वहां पर उसी के अनुरूप व्यक्तित्व आकर्षक और चुंबकीय होता चला जायेगा l संवेदना विहीन अकेली शक्ति व्यक्ति को अहंकारी और निष्ठुर बना देती है और व्यक्ति यदि केवल संवेदनशील है उसमें द्रढ़ता व शक्ति नहीं है तो लोग उसे 'बेचारा और दया का पात्र ' समझते हैं l इसलिए अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के लिए अपनी शक्ति व क्षमताओं को संवेदनाओं से युक्त कीजिए l ' आचार्य श्री आगे लिखते हैं --- 'सद्गुणों से और श्रेष्ठ विचारों से व्यक्ति मानसिक स्तर पर क्षमतावान बनता है l दुर्गुणी जनों को भी आकर्षक बनने के लिए सद्गुणों की कलई चढ़ानी पड़ती है लेकिन यह कलई उतरते ही उनकी बड़ी फजीहत होती है l "
13 July 2024
WISDOM ------
आज संसार में सबसे ज्यादा अशांति इसलिए है क्योंकि लोगों में आत्मबल की कमी है l वे अपने ऊपर होने वाले शारीरिक , मानसिक , प्रत्यक्ष , अप्रत्यक्ष अत्याचार को भी चुपचाप सहते हैं और दूसरों पर होने वाले अत्याचार को भी जानते -समझते हुए अनदेखा करते हुए हमेशा अत्याचारी , अन्यायी का ही साथ देते हैं l उन्हें अपने परिवार की सुरक्षा का , अपनी प्रतिष्ठा का , व्यवसाय का , अत्याचारी के साथ से मिलने वाले विभिन्न लाभों के खो जाने का डर है और इन सबसे बढ़कर एक डर यह भी सताता है कि कहीं अत्याचारी का विरोध करने से उनके चेहरे का एक दूसरा छिपा हुआ पक्ष समाज के सामने न आ जाए l अपनी आत्मा की आवाज को न सुनना और डर में जीने से व्यक्ति तनाव और उससे जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' हम में ' न ' कहने की हिम्मत होनी चाहिए l गलत का समर्थन नहीं करूँगा , उसमें सहयोग नहीं दूंगा l जिसमें इतना भी साहस न हो उसे मनुष्य नहीं माना जा सकता l " ------- एक राक्षस था , उसने एक आदमी को पकड़ा l उसको खाया नहीं , डराया भर और बोला --- " मेरी मरजी के कामों में निरंतर लगा रह , यदि ढील की तो खा जाउँगा l " वह आदमी जब तक उससे संभव था काम करता रहा l जब थककर चूर -चूर हो गया और जब काम सामर्थ्य से बाहर हो गया तो उसने सोचा कि तिल -तिलकर मरने से तो एक दिन पूरी तरह मरना अच्छा है l उसने राक्षस से कह दिया ---- " जो मरजी हो सो करे l मैं इस तरह अब और नहीं कर सकता l " अब राक्षस ने भी सोचा कि काम का आदमी है l थोड़ा -थोड़ा काम बहुत दिन करता रहे तो क्या बुरा है ? एक दिन खा जाने पर तो उस लाभ से भी हाथ धोना पड़ेगा , जो उसके द्वारा मिलता रहता है l राक्षस ने उसे खाया नहीं , उससे समझौता कर लिया , थोड़ा -थोड़ा काम करते रहने की बात मान ली l
12 July 2024
WISDOM ------
एक बार एक व्यक्ति भगवान से प्रार्थना करने के लिए बैठा और बोला ---- " प्रभु ! आप मुझसे वार्तालाप कीजिए l " वह प्रार्थना कर ही रहा था कि समीप के पेड़ पर बैठी चिड़िया चहचहाने लगीं l वह व्यक्ति चिड़ियों को चुप कराकर फिर प्रार्थना करने के लिए बैठ गया l इतनी देर में बदल गरजने लगे और आसमान में बिजली कौंध उठी l उस व्यक्ति ने मौसम ठीक होने का इंतजार किया और फिर प्रार्थना के लिए बैठ गया l इसी समय एक तितली आकर उसकी बांह पर बैठ गई l उसने तितली को झटककर दूर किया और फिर प्रार्थना करने के लिए बैठ गया l वह व्यक्ति दिन भर इसी तरह प्रार्थना करता रहा , उसे लगा कि भगवान उसकी प्रार्थना पर ध्यान नहीं दे रहे हैं l रात होने पर उसने अपनी प्रार्थना पुन: आरम्भ की , उसी समय एक सितारा चमक उठा l उस व्यक्ति ने उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया और निराश होकर सो गया l स्वप्न में उसे भगवान दिखाई पड़े और बोले ---- " पुत्र ! चहचहाती चिड़ियों , चमकते सितारे , इठलाती तितलियों और गरजती बिजलियों के माध्यम से मैं ही तुमसे वार्तालाप कर रहा था l यदि तुम मुझे प्रकृति के कण -कण में महसूस करोगे तो अलग से वार्तालाप करने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाएगी l " उस व्यक्ति को कण -कण में प्रभु की उपस्थिति का सन्देश मिल गया l
10 July 2024
WISDOM -------
महात्मा बुद्ध अक्सर अपने अनुयायियों और आम लोगों के बीच उपदेश दिया करते थे l एक बार एक युवक ने उनसे कहा ---- " प्रभु ! आपके उपदेश सुनने के बाद मैं उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में पालन करने का प्रयास तो करता हूँ , पर मैं वैसा सदाचरण नहीं कर पाता , जैसा आपके सत्संग में सुनकर जाता हूँ l फिर इसमें मेरा क्या दोष है ? बताइए मैं क्या करूँ ? " भगवान बुद्ध मुस्कराते हुए बोले ---- " वत्स ! यदि प्रयास सच्चा हो और सही दिशा में हो तो उसमें सफलता अवश्य मिलती है l आधे -अधूरे मन से किए गए प्रयास निष्फल ही होते हैं l " भगवान बुद्ध ने उसे एक बाँस की टोकरी दी और उसमें पास की नदी से जल भरकर लाने को कहा l युवक नदी में जाकर टोकरी में जल भरता , पर उसे बाहर निकालते ही पूरा जल टोकरी से बाहर निकल जाता l भगवान बुद्ध ने कहा --- " भले ही उसमें जल नहीं रहा हो , पर तुम अपना प्रयास जारी रखो l " युवक ने वैसा ही किया l युवक प्रतिदिन टोकरी में जल भरने का प्रयास करता , पर हर बार असफल रहता l भगवान बुद्ध की प्रेरणा से युवक ने हार नहीं मानी निरंतर प्रयास करता रहा और आखिर वह दिन आ गया जब टोकरी के छिद्र फूलकर पूरी तरह बंद हो गए और उस टोकरी में में जल भी भर आया l युवक ने जल भरी टोकरी भगवान बुद्ध को दिखाते हुए कहा --- ' प्रभु ! आपने सच ही कहा था , आज इस टोकरी में पूरा जल भर आया l " भगवान बुद्ध बोले ---- "वत्स ! जो इसी प्रकार सत्संग करते हैं और सत्संग में मिले ज्ञान के सूत्र को अपने जीवन में उतारने का सच्चा प्रयास करते हैं , वे एक दिन उसमें अवश्य ही सफल होते हैं l लगातार सत्संग में शामिल होने से व्यक्ति का मन निर्मल होने लगता है और उन उपदेशों को अपने जीवन में उतारने से इस टोकरी के छिद्रों की तरह उसके अवगुण के छिद्र भरने लगते हैं और उसमें गुणों का जल भरने लगता है जिससे उसका जीवन सुख और शांति से भर जाता है l "
WISDOM -----
संसार में अनेक प्राणी हैं , भूख , प्यास , निद्रा -------- आदि की जरुरत सभी प्राणियों को है लेकिन मनुष्य को यह विशेषाधिकार बुद्धि के रूप में केवल मनुष्य को ही प्राप्त है कि वह अपनी चेतना को विकसित करे , परिष्कृत करे और इनसान बने l मनुष्य के पास बुद्धि है ज्ञान है लेकिन ज्ञान के साथ यदि विवेक नहीं है , चेतना शून्य है तो वह अपनी बुद्धि का दुरूपयोग करता है और बुद्धि का दुरूपयोग करते -करते वह नर -पशु और मनुष्य शरीर में पिशाच की श्रेणी में आ जाता है जो केवल ध्वंस और उत्पीड़न का ही कार्य करते हैं , उनमें संवेदना नहीं होती l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " विज्ञानं ने असीमित शक्तियां मानव के हाथ में दे दीं हैं , पर उस शक्ति से कुछ भी शुभ नहीं हुआ l शक्ति आई है पर शांति नहीं आई है l मानव चेतना को सही ढंग से जाने बिना विज्ञान को जानना अधूरा ज्ञान है और ऐसे अधूरे ज्ञान से , अपनी ही चेतना को न जानने से जीवन दुःख में परिणत हो जाता है l " इतना विकास और भौतिक सुख -सुविधाओं में इतनी वृद्धि के बावजूद मनुष्य तनाव से और नई -नई बीमारियों से पीड़ित है l विवेकहीन विकास कुछ ऐसा होता है जिसमें मनुष्य स्वयं अपने ही हाथों से स्वयं को और समूची मानव सभ्यता को मिटाने की दिशा में आगे बढ़ता जाता है l राजकुमार शालिवाहन गुरु आश्रम में अध्ययन कर रहे थे l आश्रम में अन्य प्राणियों के जीवनक्रम को देखने -समझने का अवसर मिला तथा मानवोचित मर्यादाओं के पालन की कड़ाई से भी गुजरना पड़ा l उन्हें लगा कि पशुओं पर मनुष्य जैसे अनुशासन -नियंत्रण नहीं लगते , वे इस द्रष्टि से अधिक स्वतंत्र हैं l मनुष्य को तो कदम -कदम पर प्रतिबंधों को ध्यान में रखना पड़ता है l एक दिन उन्होंने अपने विचार गुरुदेव के सामने रख दिए l गुरुदेव ने स्नेहपूर्वक उनका समाधान किया ----- " वत्स ! पशु जीवन में चेतना कुएं या गड्ढे के पानी की तरह रहती है l उसे अपनी सीमा में रहना पड़ता है , इसलिए उस पर बाँध या किनारा बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती l लेकिन मनुष्य जीवन में चेतना प्रवाहित जल की तरह रहती है , उसे अपने गंतव्य तक पहुंचना होता है , इसलिए उसे मार्ग निर्धारण , बिखराव और भटकाव से रोक आदि की आवश्यकता पड़ती है l कर्तव्य -अकर्तव्य के बाँध बनाकर ही उसे मानवोचित लक्ष्य तक पहुँचाया जा सकता हैं l अन्य प्राणी अपने तक सीमित हैं , लेकिन मनुष्य को यह उत्तरदायित्व सौंपा गया है कि वह अनेकों का हित करते हुए आगे बढ़े l इसलिए उसे प्रवाह की क्षमता भी मिली है और कर्तव्यों का बंधन भी आवश्यक है l
8 July 2024
WISDOM ----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' निष्काम कर्म से आप अपने लिए सुन्दर दुनिया बना सकते हैं l व्यक्ति के श्रेष्ठ कर्म ढाल के समान उसकी रक्षा करते हैं l श्रेष्ठ कर्मों से भगवान भी प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा द्रष्टि बनी रहती है l ईश्वर की कृपा हो तो असंभव भी संभव है l " ---- ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य के शिष्य कृष्ण बोधाश्रम 120 वर्ष जीवित रहे l एक बार वे प्रवास पर थे l उस इलाके में लगातार चार साल से पानी नहीं गिरा था l कुएं तालाबों का पानी सूख गया था l सभी आए , कहा ---- " महाराज जी ! उपाय बताएं ! " वे मंद -मंद मुस्कान के साथ बोले ---- " पुण्य होंगे तो प्रसन्न होगा भगवान l " लोगों ने पूछा ---- " क्या पुण्य करें ? " तो वे बोले ---- " सामने तालाब है , थोड़ा ही पानी है उसमें l मछलियाँ इसमें मर रही हैं l इसमें पानी डालो l " लोग बोले ---- " हमारे लिए पानी नहीं है , मछलियों को पानी कहाँ से दें ? " कृष्ण बोधाश्रम ने कहा ---- " कहीं से भी लाओ , कुओं से भर -भरकर लाओ, तालाब में डालो l " सभी ने पानी तालाब में डालना शुरू किया l तीसरे दिन बादल आए l घटाएं भरकर महीने भर बरसीं l सारा दुर्भिक्ष --पानी का अभाव दूर हो गया l ' परहित सरिस धर्म नहिं भाई l "
7 July 2024
WISDOM ------
एक राज्य में एक राजा अपनी न्याय प्रियता के लिए विख्यात था l एक बार उसके पास एक जटिल मामला आया l यह मामला एक भिखारी का था l भिखारी को एक बटुआ मार्ग पर पड़ा मिला , जिसमें सौ मोहरें थीं l वह उन्हें सरकारी विभाग में जमा कराने चल दिया , परन्तु रास्ते में उसे एक सौदागर मिला , जो उससे बोला ---- " यह बटुआ उसका है और वह उसकी ईमानदारी के लिए उसे आधी मोहरें देगा l " भिखारी ने बटुआ सौदागर को सौंप दिया , पर पैसे मिलते ही सौदागर के मन में बदनीयती आ गई l उसी भाव से वह भिखारी से बोला ---- " अरे , इसमें तो दो सौ मोहरें थीं , तुमने आधी रख लीं हैं l " भिखारी ईमानदार था , वह झूठा इल्जाम सहन न कर सका और न्याय मांगने राजदरबार पहुंचा l राजा बात सुनते ही समझ गया कि सौदागर बेईमान है l राजा ने कहा --- " सौदागर ! भिखारी यह बटुआ सरकारी कोष में जमा कर रहा था , इससे यह तय है कि वह पैसे नहीं रखना चाहता था l तुम कहते हो कि बटुए में दो सौ मोहरें थीं लेकिन इसमें सौ निकली l इसका अर्थ हुआ कि बटुआ तुम्हारा नहीं है , भिखारी को किसी और का बटुआ मिला है l भिखारी को मिले बटुए का आधा हिस्सा राजकोष में जमा कर लिया जाए और आधा उसे पुरस्कार स्वरुप दे दिया जाए l जहाँ तक तुम्हारे बटुए का प्रश्न है तो वह जब मिलेगा , तुम्हे वापस कर दिया जायेगा l " लालची सौदागर हाथ मलता रह गया क्योंकि बटुआ उसी का था , पर ज्यादा पाने के लालच में वह अपनी ही दौलत गँवा बैठा था l
6 July 2024
WISDOM------
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " सार्थकता स्व -सृजन में है , परचर्चा , परनिंदा में नहीं l दूसरों की निंदा में खर्च किया जाने वाला समय अपने दोष ढूँढने में लगाओ l दूसरों को सुधारने के लिए प्रयत्न करने का पहला चरण अपने सुधार से आरम्भ करो l " गोस्वामी जी कहते हैं ----पर निंदा से बढ़कर कोई पाप नहीं l वे कहते हैं कि निंदा हिंसा से भी बढ़कर है l जिसके भी दोषों का हम चिन्तन करते हैं , हमारा मन उससे तदाकार हो जाता है l उसके दोष भी हमारे अन्दर आ जाते हैं l चित्त में विकृति का अंधकार बढ़ता चला जाता है l ' ----- संत गंगा किनारे बैठकर ध्यान कर रहे थे l आरती में अभी समय था l दो -चार शिष्य बैठकर प्रपंच करने लगे l प्रपंच अर्थात व्यर्थ की बकवास --- इसकी निंदा , उसकी हँसी उड़ाना l जैसे ही वे गुरु के पास आए तो गुरु ने कहा ---- " तुम हमें छूना मत ! तुम लोग चांडाल हो गए हो l अभी -अभी तो तुम बुराई कर रहे थे l संन्यासी होकर प्रपंच में उलझना ठीक नहीं है l संसारी लोगों की तरह मत रहो l जाओ , गंगा में नहाओ l गंगाजल हाथ में लेकर संकल्प लो , फिर हमें प्रणाम करना और आरती में भाग लेना l "
5 July 2024
WISDOM -------
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " यदि ईश्वर निष्ठा अटूट एवं प्रगाढ़ हो तो किसी भी तरह का सांसारिक कष्ट सच्चे भक्त की भक्ति को विचलित नहीं कर पाता l भक्त को मन में सतत एक विश्वास होता है कि जब प्रभु साथ हैं तो कुछ भी अन्यथा नहीं होगा l हाँ , कठिन परीक्षाएं हो सकती हैं , कठिनाइयाँ आ सकती हैं , पर उन्हें धैर्यपूर्वक सहन कर जाना है क्योंकि प्रभु ने कहा है ---- मेरे भक्त का कभी नाश नहीं होता , किसी भी स्थिति में उसका कोई अहित नहीं होता , मैं सदा उसके साथ रहता हूँ l " ----------- आचार्य श्वेताक्ष की युवा पत्नी अपने नवजात शिशु को छोड़कर परलोक सिधार गईं l उन्होंने उसके सभी अंतिम संस्कार पूर्ण किए और आनंद पूर्वक अपने शिशु का पालन -पोषण करते हुए अपने नित्य , नियमित कर्तव्यों में लग गए l उनके मुख की प्रसन्नता और कांति यथावत बनी रही परन्तु काल का प्रकोप अभी थमा नहीं था l उनकी संपत्ति , वैभव का धीरे -धीरे क्षय होने लगा और वे कंगाल हो गए , रोज का भोजन मिलना भी कठिन हो गया l एक दिन अनायास ही उनकी इकलौती संतान भी मृत्यु को प्राप्त हो गई , रोग उन्हें घेरने लगे l इन दारुण यातनाओं में भी वे अविचलित थे , उनका मन शांत था l उनके एक घनिष्ठ मित्र ने उनसे प्रश्न किया ---- " हे विप्र ! आप इन विपन्नताओं और विषमताओं के बीच किस तरह प्रसन्न रहते हैं l " अपने उत्तर में वे कहने लगे --- " मित्र ! इस सब का रहस्य मेरी प्रभु में भक्ति है l मैं अपने आराध्य से -- उन सर्वेश्वर से इतना प्रगाढ़ प्रेम करता हूँ कि किसी तरह की घटनाएँ मुझे विचलित कर ही नहीं पातीं l " यह सत्य है , इस संसार में एक पत्ता भी हिलता है तो वह ईश्वर की इच्छा से , हमें ईश्वरीय विधान पर विश्वास रखना चाहिए l हर रात के बाद सुबह अवश्य होती है l हमारे कर्मों के हिसाब से रात लम्बी अवश्य हो सकती है लेकिन सूर्योदय अवश्य होगा l ईश्वर अपनी प्रत्येक संतान से प्रेम करते हैं , लेकिन कर्म के विधान से वे स्वयं बंधे हैं l
4 July 2024
WISDOM -----
ऋषि भूरिश्रवा के गुरुकुल में तपोधन नामक शिष्य रहा करता था l वह अत्यंत मेधावी था और ज्ञान के कारण प्राप्त प्रसिद्धि से उसे बहुत अहंकार हो गया था l एक दिन वह नदी के किनारे भ्रमण के लिए निकला तो उसने देखा कि उसके गुरु ऋषि भूरिश्रवा नदी पर चलते हुए आ रहे हैं l उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिर ऐसी कौन सी विद्या है , जिसके बल पर ऋषिवर नदी पर चल सकते हैं और उन्होंने उसे यह विद्या नहीं सिखाई l इसी उधेड़बुन में वह ऋषि के पास पहुंचा और उनसे यह प्रश्न किया l ऋषि भूरिश्रवा बोले ---- " पुत्र ! यह विद्या का बल नहीं , भक्ति की सामर्थ्य है l तुम भी सच्ची भावना से प्रभु का नाम लो तो नदी पार पहुँच जाओगे l " तपोधन ने भी नदी के किनारे खड़े होकर प्रभु का नाम लिया , पर जैसे ही वह नदी पर चला , पानी में गिर पड़ा l क्षुब्ध होकर वह ऋषिवर के पास गया और उनसे शिकायत की कि उनका दिया मन्त्र प्रभावहीन रहा l ऋषि ने प्रश्न किया ---- " वत्स ! तुमने कितनी बार भगवान का नाम लिया था ? " तपोधन बोला ---- " गुरुदेव ! मैंने कम -से -कम 24000 बार तो उनका नाम जपा होगा l " यह सुनकर ऋषि भूरिश्रवा बोले ----- " पुत्र ! यहीं तुमसे गलती हो गई l भक्ति भावना का बल मांगती है , संख्या का नहीं l इस बार भावनाओं को अर्पित करो , जप करने के अहंकार को नहीं l गिनतियों का अहंकार डूबेगा , तभी अंतर्मन में भक्ति का उदय होगा l " तपोधन उसी दिन से सच्चे भाव से परमात्मा की भक्ति में जुट गया और एक दिन अपने गुरु की तरह महान भक्तों की श्रेणी में सम्मिलित हुआ l
3 July 2024
WISDOM ------
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- -यह कहना गलत है कि गृहस्थ आश्रम साधना में किसी तरह बाधक है l प्राचीन काल में बहुसंख्यक ऋषि सपत्नीक रहकर गुरुकुल में वास कर साधना करते , शिक्षण , शोध -प्रक्रिया चलाते थे l ' ----एक बार महर्षि अत्रि अपने आश्रम से चलकर एक गाँव में पहुंचे l आगे का मार्ग बहुत बीहड़ और हिंसक जीव -जंतुओं से भरा हुआ था इसलिए वे रात को उसी गाँव में एक गृहस्थ के घर टिक गए l गृहस्थ ने उन्हें ब्रह्मचारी वेष में देखकर उनकी आवभगत की और भोजन के लिए आमंत्रित किया l महर्षि अत्रि ने जब समझ लिया कि परिवार के सभी सदस्य ब्रह्मसंध्या का पालन करते हैं , किसी में कोई दोष -दुर्गुण नहीं है तो उन्होंने आमंत्रण स्वीकार कर लिया l भोजन के उपरांत अत्रि ने गृहस्थ से प्रार्थना की कि अपनी कन्या मुझे दीजिए , जिससे मैं अपना घर बसा सकूँ l उन दिनों वर ही सुकन्या ढूँढने जाते थे , कन्याओं को वर तलाश नहीं करने पड़ते थे l गृहस्थ ने अपनी पत्नी से परामर्श किया l अत्रि के प्रमाण पात्र देखे और वंश की श्रेष्ठता पूछी l वे जब इस पर संतुष्ट हो गए कि वर सब प्रकार से योग्य है तो उन्होंने पवित्र अग्नि की साक्षी में अपनी कन्या का संबंध अत्रि के साथ कर दिया l अत्रि के पास तो कुछ था नहीं , इसलिए गृहस्थी सञ्चालन के लिए आरंभिक सहयोग के रूप में अन्न , बिस्तर , बस्तर , थोडा धन और गाय भी दी l छोटी किन्तु सब आवश्यक वस्तुओं से पूर्ण गृहस्थी लेकर अत्रि अपने घर पधारे और सुख पूर्वक रहने लगे l इन्ही अत्रि और अनसूया से दत्तात्रेय जैसी तेजस्वी संतान को जन्म मिला l भगवान को भी एक दिन इनके सामने खुकना पड़ा था l