मनुष्य जीवन क्या है ? यदि सरल शब्दों में कहें तो यह 'कर्मों का लेन -देन ' है l इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों का हिसाब चुकाने आता है l मनुष्य के जितने भी रिश्ते हैं चाहें वह परिवार से हों , जानवरों से , पशु -पक्षियों से , भूमि से हो ----इन सबका व्यक्ति पर ऋण होता है जिसे किसी न किसी रूप में चुकाना होता है l मनुष्य ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर के रिश्तों को विभिन्न नाम दिए , विभिन्न श्रेणियां बना दीं लेकिन वास्तविकता यही है कि जन्म -जन्मान्तर का कोई ऋण होता है जिसे चुकाना पड़ता है l जो इस सत्य से परिचित हैं वे जीवन में आने वाली कठिनाइयों , अपमान , दुःख , तकलीफ में अपने मन को समझा लेते हैं कि किसी जन्म का कोई ऋण था , कोई जाने -अनजाने पाप हुआ था , वह कट गया l जो समझदार हैं वे अपना जीवन ही इस ढंग से जीते हैं कि उन पर किसी का कोई ऋण बकाया न रहे l एक कथा है -------- एक सेठ जी थे वे दिल्ली से अपना व्यापार , हवेली आदि छोड़कर अग्रोहा नामक स्थान पर आकर रहने लगे l उन्होंने यह घोषणा करा दी कि जो भी अग्रोहा में आकर बसेगा उसे सब सुख - सुविधा दी जाएगी l लखी नामक एक बंजारा अग्रोहा पहुंचा और उसने सेठ से व्यापार करने के लिए रूपये उधार मांगे l सेठ ने पूछा ---- " किस जन्म में यह कर्ज चुकाओगे ? " बंजारा कुछ समझा नहीं l तब सेठ ने कहा --- " भाई ! इस जन्म में चुकाने का वायदा करते हो तो हिसाब करके रोकडिया से रूपये ले लो l लेकिन यदि अगले जन्म में चुकाना हो तो ऊपर वाले खंड में चले जाओ और जितना चाहे ले लो l हम उस रूपये की कोई लिखा -पढ़ी नहीं करते l लखी ने सोचा सेठ कैसा मूर्ख है , अगले जन्म को किसने देखा l इसलिए उसने सेठ से कहा कि वह अगले जन्म में चुकाएगा और हवेली के ऊपर वाले खंड में जाकर एक लाख रूपये ले लिए l लखी अपने डेरे पर पहुंचकर बहुत खुश था l उसी समय एक संत वहां से निकले l लखी ने उन्हें प्रणाम किया और अपने यहाँ विश्राम करने को कहा l भोजन , विश्राम के बाद लखी ने उन्हें कर्ज लेने का पूरा वर्णन सुनाया और पूछा कि क्या अगले जन्म में चुकाना होगा , कौन किसे पहचानेगा l तब महात्मा जी ने उसे पुनर्जन्म का विधान बताया और कहा कि कर्म अविनाशी होते हैं , कभी नष्ट नहीं होते जन्म -जन्मान्तर तक अच्छी -बुरी परिस्थितियों के रूप में इन्हें भुगतना पड़ता है l उन्होंने पुराण का प्रसंग सुनकर कहा कि तुम्हे बैल बनकर यह कर्ज चुकाना पड़ेगा l महात्मा की बात सुनकर लखी बहुत डर गया और सारा रुपया लेकर सेठ के पास पहुंचा और बोला ---- ये रूपये आप वापस ले लो , अगले जन्म में चुकाने की क्षमता मुझ में नहीं है l ' लेकिन अब सेठ ने रूपये लेने से इनकार कर दिया , लखी ने बहुत विनती की लेकिन सेठ ने रूपये लेने से मना के दिया क्योंकि वे तो बिना किसी लिखा -पढ़ीं के दिए गए थे l अब लखी पुन: महात्मा जी के पास गया , बहुत परेशान था कि क्या करें ? महात्मा जी ने सलाह दी कि अग्रोहा में कोई सरोवर नहीं है , तुम इन रुपयों से यहाँ एक सरोवर बनवा दो l सरोवर बनकर तैयार हो गया , सब नगरवासी बहुत प्रसन्न थे l लखी ने कहा कि यह सरोवर सेठ का है l जब सेठ जी तक यह बात पहुंची तो वे तुरंत लखी के यहाँ गए और कहा कि यह सरोवर तुम्हारा है , तुमने इसे जनता के कल्याण के लिए बनवाया है l तब लखी ने कहा ---- आपसे अगले जन्म में चुकाने का कहकर जो एक लाख रूपये उधार लिए थे , उस से यह सरोवर बनवाया , आप ही इसके स्वामी हैं l सेठजी सारी बात समझ गए , सरोवर निर्माण में जो अतिरिक्त खर्च हुआ था , उसकी उन्होंने तुरंत भरपाई की और उस सरोवर का नाम ' लखी सरोवर ' रख दिया l लखी का जीवन लोगों के लिए प्रेरणा है और कर्मफल विधान स्रष्टि का अनिवार्य सच है l
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