प्रसिद्ध संत श्री किंकर जी महाराज गुजरात के एक गाँव में पहुंचे l वहां अनेक लोग उन्हें अपने घर चलने की जिद करने लगे l कई सेठ -सहकर उन्हें अपने साथ ले जाना चाहते थे , परन्तु उन्हें छोड़कर श्री किंकर जी महाराज ने एक कुम्भकार के घर जाना स्वीकार किया l वह भक्त कुम्भकार उन्हें बड़े आदर के साथ अपने घर ले गया और उनको भोजन परोसने लगा l उसकी पत्नी संत के पास बैठकर उन्हें पंखा झलने लगी l संत की द्रष्टि महिला के पैरों पर पड़ी तो वे समझ गए कि कुम्भकार की गृहिणी अपंग है l उन्होंने प्रेम से पूछा --- " बेटी ! अपंगता के कारण घर के कार्यों को करने में कठिनाई होती होगी ? " वह बोलो ---- " नहीं महाराज ! मैं बैठे -बैठे भोजन बनाती हूँ , बरतन मांजती हूँ , घर का आंगन लीपती हूँ और भगवान की पूजा करती हूँ l इन्हें केवल पानी भरना होता है l " संत किंकर जी महाराज ने उसके पति से पूछा ---- " तुमने इससे क्यों विवाह किया था ? " वह बोला ---- " महाराज ! मैंने सोचा कि जीवन सेवा में लगाना चाहिए तो मैंने इससे विवाह करने का निश्चय किया l मैंने इसे कभी दुःख नहीं दिया , हमेशा हर कार्य में सहयोग देता हूँ l मैंने इसे तीर्थयात्रा कराई है नल पालीताना के मंदिरों में दर्शन कराने ले गया तो कंधे पर बिठाकर पहाड़ी तक पहुँचाया l हम दोनों एक दूसरे के सहयोग से जीविकोपार्जन व भगवान की भक्ति में लगे हैं l " संत श्री किंकर जी महाराज उन दोनों आदर्श पति -पत्नी को देखकर उनके सम्मुख नत मस्तक हो गए और बोले ---- " जहाँ तुम दोनों जैसे पति -पत्नी होते हैं , वहां गृहस्थी सदा सुखमय होती है l "
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