5 July 2024

WISDOM -------

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " यदि  ईश्वर निष्ठा  अटूट  एवं  प्रगाढ़  हो   तो  किसी  भी  तरह  का  सांसारिक  कष्ट  सच्चे  भक्त  की  भक्ति  को  विचलित  नहीं  कर  पाता  l  भक्त  को  मन  में  सतत  एक  विश्वास   होता  है  कि  जब  प्रभु  साथ  हैं  तो  कुछ  भी  अन्यथा  नहीं  होगा   l  हाँ , कठिन  परीक्षाएं  हो  सकती  हैं , कठिनाइयाँ  आ  सकती  हैं  , पर  उन्हें  धैर्यपूर्वक  सहन  कर  जाना  है   क्योंकि  प्रभु  ने  कहा  है      ---- मेरे  भक्त  का  कभी  नाश  नहीं  होता  , किसी  भी  स्थिति  में  उसका  कोई  अहित  नहीं  होता  ,  मैं  सदा  उसके  साथ  रहता  हूँ   l  "  ----------- आचार्य   श्वेताक्ष  की  युवा  पत्नी  अपने  नवजात  शिशु  को  छोड़कर  परलोक  सिधार  गईं   l  उन्होंने  उसके  सभी  अंतिम  संस्कार  पूर्ण  किए    और  आनंद पूर्वक  अपने  शिशु  का  पालन -पोषण  करते  हुए   अपने  नित्य , नियमित  कर्तव्यों  में  लग  गए   l   उनके  मुख  की  प्रसन्नता  और  कांति  यथावत  बनी  रही   परन्तु  काल  का  प्रकोप  अभी  थमा  नहीं  था  l  उनकी  संपत्ति  , वैभव  का  धीरे -धीरे  क्षय  होने  लगा   और  वे  कंगाल  हो  गए  , रोज  का  भोजन  मिलना  भी  कठिन   हो  गया   l  एक  दिन  अनायास  ही  उनकी  इकलौती  संतान  भी  मृत्यु  को  प्राप्त  हो  गई  , रोग  उन्हें  घेरने  लगे  l  इन  दारुण  यातनाओं  में  भी  वे  अविचलित  थे  ,  उनका  मन  शांत  था  l  उनके  एक  घनिष्ठ  मित्र  ने  उनसे  प्रश्न  किया  ---- " हे  विप्र  !  आप  इन  विपन्नताओं  और  विषमताओं  के  बीच  किस  तरह  प्रसन्न  रहते  हैं  l "   अपने  उत्तर  में  वे  कहने  लगे --- " मित्र  !  इस  सब  का  रहस्य   मेरी  प्रभु  में  भक्ति  है  l  मैं  अपने  आराध्य  से  -- उन  सर्वेश्वर  से  इतना  प्रगाढ़  प्रेम  करता  हूँ  कि  किसी  तरह  की  घटनाएँ   मुझे  विचलित  कर  ही  नहीं  पातीं  l  "  यह  सत्य  है  ,  इस  संसार  में  एक  पत्ता  भी  हिलता  है  तो  वह  ईश्वर  की  इच्छा  से  ,  हमें  ईश्वरीय  विधान  पर  विश्वास  रखना  चाहिए   l  हर  रात  के  बाद  सुबह  अवश्य  होती  है  l  हमारे  कर्मों  के  हिसाब  से  रात  लम्बी  अवश्य  हो  सकती  है   लेकिन  सूर्योदय  अवश्य  होगा  l  ईश्वर  अपनी  प्रत्येक  संतान  से  प्रेम  करते  हैं  ,  लेकिन  कर्म  के  विधान  से  वे  स्वयं  बंधे  हैं  l  

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