कर्मफल का नियम अकाट्य है , यदि बबूल का पेड़ बोया है तो काँटे ही मिलेंगे , आम नहीं l यदि कोई अपनी चालाकी से किसी की ऊर्जा चुरा ले , किसी का आशीर्वाद लेकर कुछ समय के लिए अपने कुकर्मों के दंड से बच भी जाए , तो यह भी ईश्वर का विधान ही है l प्रत्येक व्यक्ति पर जन्म -जन्मांतर के कर्मों का लेन -देन होता है , यह हिसाब किस तरह चुकता होगा यह सब काल निश्चित करता है l मनुष्य ने जो भी अच्छे -बुरे कर्म किए हैं , उनके परिणाम से वह बच नहीं सकता l चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में चला जाए , उसके कर्म उसे ढूंढ ही लेते हैं , जैसे बछड़ा हजारों गायों के बीच अपनी माँ को ढूंढ लेता है l मनुष्य अपनी ओछी बुद्धि से सोचता है कि सिद्ध महात्माओं का आशीर्वाद लेकर , गंगा स्नान कर के उसे अपने पापकर्मों से छुटकारा मिल जायेगा l दंड संभवतः कुछ समय के लिए स्थगित भले ही हो जाए लेकिन टल नहीं सकता l ' ईश्वर के घर देर है , अंधेर नहीं l ' दुर्योधन ने पांडवों का हक छीनने , उन्हें कष्ट देने के लिए जीवन भर छल , कपट , षड्यंत्र किए l वह तो एक से बढ़कर एक धर्मात्माओं गंगापुत्र भीष्म , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य और विदुर की छत्रछाया में था , सूर्यपुत्र कर्ण उसका मित्र था लेकिन अधर्मी और अन्यायी का साथ देने के कारण उनका कोई ज्ञान , धर्म कुछ काम न आया l उन सबका अंत हुआ और दुर्योधन तो समूचे कौरव वंश को ही ले डूबा l