पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " स्वार्थ के वशीभूत मनुष्य इतना लालची हो जाता है कि उसे घ्रणित कर्म करने में भी लज्जा नहीं आती l तृष्णा के वशीभूत हो कर लोग अनीति का आचरण करते हैं और वह अनीति ही अंततः उनके पतन एवं सर्वनाश का कारण बनती है l कोई कितना ही शक्तिशाली , बलवान क्यों न हो , स्वार्थपरता एवं दुष्टता का जीवन बिताने पर उसे नष्ट होना ही पड़ता है l " रावण के बराबर पंडित , वैज्ञानिक , कुशल प्रशासक , कूटनीतिज्ञ कोई भी नहीं था , लेकिन पर-स्त्री अपहरण , राक्षसी आचार -विचार एवं दुष्टता के कारण कुल सहित नष्ट हो गया l कंस ने अपने राज्य में हा -हाकार मचवा दिया l अपनी बहन और बहनोई को जेल में बंद कर दिया , उनके नवजात शिशुओं को शिला पर पटक -पटक मार दिया l अपने राज्य में छोटे -छोटे बालकों को कत्ल करा दिया l लोगों में भय और आतंक का वातावरण पैदा किया , लेकिन वही कंस भगवान कृष्ण द्वारा बड़ी दुर्गति से मार दिया गया l दुष्ट व्यक्ति अपने ही दुष्कर्मों द्वारा मारा जाता है l ------- रावण का मृत शरीर पड़ा था l उसमें सौ स्थानों पर छिद्र थे l सभी से लहु बह रहा था l लक्ष्मण जी ने राम से पूछा --- 'आपने तो एक ही बाण मारा था l फिर इतने छिद्र कैसे हुए ? ' भगवान श्रीराम ने कहा --- मेरे बाण से तो एक ही छिद्र हुआ l पर इसके कुकर्म घाव बनकर अपने आप फूट रहे हैं और अपना रक्त स्वयं बहा रहे हैं l