3 October 2025

WISDOM ----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- "  स्वार्थ  के  वशीभूत  मनुष्य  इतना  लालची  हो  जाता  है   कि  उसे  घ्रणित  कर्म  करने  में  भी  लज्जा   नहीं आती  l  तृष्णा  के  वशीभूत  हो  कर   लोग  अनीति  का  आचरण  करते  हैं   और  वह  अनीति  ही   अंततः  उनके  पतन  एवं  सर्वनाश  का  कारण  बनती  है  l   कोई  कितना  ही  शक्तिशाली  , बलवान  क्यों  न  हो  ,   स्वार्थपरता  एवं  दुष्टता  का  जीवन  बिताने  पर   उसे  नष्ट   होना   ही  पड़ता  है  l "         रावण  के  बराबर  पंडित , वैज्ञानिक , कुशल  प्रशासक , कूटनीतिज्ञ   कोई  भी  नहीं  था  ,  लेकिन  पर-स्त्री  अपहरण  , राक्षसी  आचार -विचार   एवं   दुष्टता  के  कारण  कुल  सहित  नष्ट  हो  गया  l  कंस  ने  अपने  राज्य  में     हा -हाकार  मचवा  दिया  l  अपनी  बहन  और  बहनोई  को  जेल  में  बंद  कर  दिया  ,  उनके  नवजात  शिशुओं   को  शिला  पर  पटक -पटक  मार  दिया  l  अपने  राज्य  में   छोटे -छोटे  बालकों  को  कत्ल  करा  दिया  l  लोगों  में  भय  और  आतंक  का  वातावरण  पैदा  किया  ,  लेकिन  वही  कंस   भगवान  कृष्ण   द्वारा  बड़ी  दुर्गति  से  मार  दिया  गया  l  दुष्ट  व्यक्ति  अपने  ही  दुष्कर्मों  द्वारा   मारा  जाता  है  l    -------  रावण  का  मृत  शरीर पड़ा  था   l   उसमें  सौ  स्थानों  पर  छिद्र  थे  l  सभी  से  लहु  बह  रहा  था  l  लक्ष्मण जी  ने   राम  से  पूछा  --- 'आपने  तो  एक  ही  बाण  मारा  था  l  फिर  इतने  छिद्र  कैसे  हुए  ? ' भगवान  श्रीराम  ने  कहा ---  मेरे  बाण  से  तो  एक  ही  छिद्र  हुआ  l  पर  इसके  कुकर्म   घाव  बनकर   अपने  आप  फूट  रहे  हैं  और  अपना  रक्त  स्वयं  बहा  रहे  हैं  l