29 September 2025

WISDOM ------

   हमारे  पुराणों  की कथाएं   मात्र  मनोरंजन  नहीं  हैं  , उनमें  गूढ़  अर्थ  छिपा  रहता  है  l  उस  अर्थ  को  समझ  कर  ,  उसके  अनुसार  आचरण  कर  पारिवारिक , सामाजिक , राजनीतिक  सभी  क्षेत्रों  में  सुधार  संभव  है  ----  एक  कथा  है  ----- पांडवों  ने    अभिमन्यु  के  पुत्र  परीक्षित  को  राजगद्दी  सौंपकर  वनगमन  किया  l  महाराज  परीक्षित  के  काल  में  ही  धरती  पर  कलियुग  का  आगमन  हुआ  l  एक  बार  महाराज  परीक्षित  शिकार  खेलने  वन  में  गए  , राह  भटक  गए  ,  उन्हें  बहुत  प्यास  लगी  l   वहां  एक  आश्रम  था  l  राजा  बड़ी  तेजी  से  आश्रम  गए  और  ऋषि  ने  पानी  माँगा  l  ऋषि  समाधि  में  थे  , उन्होंने  सुना  नहीं  l  कलियुग  के  प्रभाव  के  कारण  राजा  की  भी  बुद्धि  भ्रष्ट  हो  गई   और  उन्होंने  ऋषि  के  गले  में  एक  मृत  सांप  डाल  दिया  ,  और  महल  वापस  लौट  आए  l  ऋषि  का  पुत्र  जब  आश्रम   में  आया  तो  उसने  अपने  पिता  के  गले  में  मृत  सांप  देखा  तो  उसे  बहुत  क्रोध  आया  l  कलियुग  सभी  की  बुद्धि  भ्रष्ट  कर  देता  है  ,  ऋषि  पुत्र  ने  बिना  सोचे -समझे   हाथ  में  जल  लेकर   यह  श्राप  दिया  कि  जिसने  भी  मेरे  पिता  के  गले  में  मृत  सर्प  डाला  है  , उसे  आज  से  सांतवें  दिन  तक्षक  नाग  डस   लेगा  l  श्राप  कभी  विफल  नहीं  होता  समाधि  से  जागने  पर  ऋषि  ने  ही  राजा  को  सलाह  दी  कि  वे  शुकदेव  मुनि   से  भागवत  कथा  सुने  , इससे  उन्हें  मोक्ष  प्राप्त  होगा  l  ऐसा  ही  हुआ  और  सांतवे  दिन   महाराज  परीक्षित  को  मोक्ष  मिलने  के  बाद  उनके  पुत्र  जनमेजय  सिंहासन  पर  बैठे  l  उन्हें  जब  यह  सब  मालूम  हुआ  कि  तक्षक  नाग  के  डसने  से  उनके  पिता  की  मृत्यु  हुई  है  , तो  उन्हें  बहुत  क्रोध  आया  और  उन्होंने   ऋषि -मुनियों  की  मदद  से  ' सर्पयज्ञ  '  का  आयोजन  किया  , जिससे  उस  यज्ञ  में  सब  सर्पों  की  आहुति  दी  जाए  ,  और  इस  तरह  से  संसार  से  यह  प्रजाति  ही  समाप्त  हो  जाए  l  यज्ञ  शुरू  हुआ   और  मन्त्रों  के  साथ   आहुती  में  दूर -दूर  से  सर्प  आकर  उस  हवन  कुंड  में  गिरने  लगे  l  चारों  ओर  हाहाकार  मच  गया  ,  जब  तक्षक  को  पता  चला   तब  वह  भाग  कर  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  की  शरण  में  गया ,  इंद्र  ने  उसको  शरण  दी   और  वह  उनके  सिंहासन  से  लिपट  गया  l  इधर  जब  तक्षक  के  नाम  से  आहुति  के  लिए  मन्त्र  उच्चारण  किया  गया  तब  वह  मन्त्र  इतना  शक्तिशाली  था  कि  इंद्र  के  साथ  ही   सिंहासन  समेत  तक्षक  नाग  यज्ञ  मंडप  की  ओर  जाने  लगा  l  सारे  देवता  वहां  एकत्रित  हो  गए  , जन्मेजय  को  बहुत  समझाया  कि  जो  हुआ  वह  विधि  का  विधान था  ,  यह  यज्ञ  बंद  करो  ,  देवराज  इंद्र  ने  उसे  शरण  दी  है  l  इस  तरह  इंद्र  की  शरण  लेने  से  तक्षक  नाग  की  रक्षा  हुई  l   ------यह  कथा  स्पष्ट  रूप  से  इस  बात  का  संकेत  करती  है   कि  परिवार  और  समाज  के  जहरीले  ,  अपराधी   इसी  तरह  किसी  शक्तिशाली   का   संरक्षण  पाकर   पलते  हैं  और   अपने  जहर  से  परिवार  को  समाज  को  दूषित  करते  हैं   और   अपने  को  संरक्षण  देने  वाले  का  जीवन  भी  संकट  में  डाल  देते  हैं   l  शक्तिशाली  और  पद -प्रतिष्ठा  वालों  के  लिए  भी  संकेत  है   कि  अपनी  गलत  इच्छाओं  के  लिए  ऐसे  जहरीले  लोगों  से  मित्रता  न  करें  ,  वे  तो  डूबेंगे  ही  साथ  में  उन्हें  भी  ले  डूबेंगे ,  अब  देवता  नहीं  आएंगे  बचाने  के  लिए   l