समर्थ रामदासजी सतारा जा रहे थे l मार्ग में उनका शिष्य भोजन लेने पास के गाँव में गया l गाँव से भोजन लाने में देर हो सकती थी इसलिए वह खेत से चार भुट्टे तोड़ लाया और उनको भूनकर स्वामीजी को दे दिया l धुंआ उठता देख खेत का मालिक भागा -भागा आया और समर्थ स्वामी के हाथ में भुट्टे देखकर उन्हें डंडे से मारने लगा l शिष्य कुछ बोलता तो उसे चुपकर स्वामी रामदासजी ने मार खा ली l दूसरे दिन वे सतारा पहुंचे , उनकी पीठ पर डंडे के निशान थे l छत्रपति शिवाजी महाराज तक विवरण पहुंचा , उन्होंने सेनानायक से पता लगवा लिया कि कहाँ की घटना है और किसके द्वारा यह अपराध हुआ है l शिवाजी महाराज स्वामीजी को प्रणाम करने आए तो खेत का मालिक भी वहां लाया गया l छत्रपति शिवाजी महाराज ने पूरे राज्य की ओर से क्षमा क्षमा मांगते हुए पूछा --- " गुरुवर ! क्या दंड दूँ ? ' वह किसान समर्थ के चरणों में गिर गया l समर्थ रामदासजी बोले ----" इसने हमारे धैर्य और सहन शक्ति की परीक्षा ली है l इसने अपना कर्तव्य निभाया है l इसे दंड न देकर चार भुट्टे की हरजाना नगद राशि के रूप में दिया जाए तथा एक कीमती वस्त्र देकर सम्मानित करना चाहिए l " न्याय का यह विलक्षण रूप देखकर छत्रपति गुरु के चरणों में गिर गए , धन्य हैं गुरुवर आप l