29 October 2025

WISDOM ------

  इस  संसार  में  तंत्र -मन्त्र , ब्लैक मैजिक , भूत =प्रेत , पिशाच आदि  को  सिद्ध  कर  उनका  अपने  स्वार्थ  के  लिए  इस्तेमाल  करना , मनुष्य  आदि  प्राणियों  की  ऊर्जा  का  नकारात्मक  प्रयोग   अर्थात  एक  शब्द  में  कहें  तो  मायावी  विद्याओं  का  प्रयोग   अति  प्राचीन  काल  से  हो  रहा  है  l  रावण  मायावी  विद्याओं    का  जानकार  था , वेश  बदल   लेता  था  l  महाभारत  में  घटोत्कच   ने  अपनी  मायावी  विद्या  से  कौरव  सेना  में  हाहाकार  मचा  दिया  , तब  कर्ण  को  देवराज  इंद्र  द्वारा  प्रदत्त  शक्ति  से  उसका  वध  करना  पड़ा  l  घटोत्कच  भीम  का  पुत्र  था   और  रावण  के  बराबर  ज्ञानी  तो  इस  संसार  में  दूसरा  नहीं  है  लेकिन    तंत्र  आदि  नकारात्मक  शक्तियों  के  प्रयोग  से  प्रकृति  को  कष्ट  होता  है ,  प्रकृति  का   कुपोषण  होता  है   इसलिए ईश्वर  इनका  अंत  कर  देते  हैं  l  इस  विद्या  का  सकारात्मक  प्रयोग  भी संभव  है   लेकिन  इस  कलियुग  में  कायरता  बढ़  जाने  के कारण  अब  लोग  अपने  स्वार्थ  और  महत्वाकांक्षा  की  पूर्ति  के  लिए   और  ईर्ष्यावश  दूसरों  को  कष्ट  पहुँचाने  के  लिए   ऐसी  नकारात्मक  शक्तियों  का  प्रयोग  बड़े  पैमाने  पर  करते  हैं  l  ऐसे  कार्यों  का  कोई  सबूत  नहीं  होता  ,  इसलिए  कानून  भी  इसे   मान्यता  नहीं  देता  l  इसका  सबसे  बड़ा  फायदा  यह  होता  है  कि   बड़े -बड़े  , समर्थ  लोगों  की  कायरता  पर  परदा  पड़ा  रहता  है  लेकिन ईश्वर से  बड़ा  कोई  नहीं  है  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- "  तंत्र  चाहे  कितना  ही  बड़ा  क्यों  न  हो  ,  वह  भक्ति  और  भक्त  से  सदैव  कमजोर  होता  है  l  भक्त की  रक्षा  स्वयं  भगवान  करते  हैं   और  तंत्र  भगवान  से  श्रेष्ठ  कभी  नहीं  हो  सकता  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  ----' तांत्रिक  अपनी  ही  विद्या  के  अपराधी  होते  हैं  ,  यही  वजह  है  कि  अधिकतर  तांत्रिकों  का  अंत  बड़ा  भयानक  होता  है  l  "    तांत्रिकों  को  अपनी  विद्या  का  बड़ा  अहंकार  होता  है  ,   वे  किसी भक्त  पर  इसका  प्रयोग  कर  ईश्वर  से  भी  प्रत्यक्ष  लड़ाई  मोल  ले  लेते हैं  l  इस  संबंध  में  आचार्य श्री  का  कहना  है  कि   तंत्र  का  प्रयोग  भक्त  पर  लगता  तो  है  , परन्तु  वह  विधान  के  अनुरूप  ही  l  "   इसे  हम  सरल  शब्दों  में  ऐसे  भी  कह  सकते  हैं  कि  तंत्र  मन्त्र  आदि  नकारात्मक  शक्तियों  के  भी  देवी  -देवता  होते  हैं  ,  जिन्होंने  बड़ी  तपस्या  कर  उन्हें  सिद्ध  किया  है  ,  उन्हें  उस  तांत्रिक  का  भी  मान  रखना  पड़ता  है  , इसलिए  भक्त  को  विधान  के  अनुरूप थोडा -बहुत  कष्ट  हो  ही  जाता  है  l  लेकिन  ईश्वर  उन्हें  कभी  क्षमा  नहीं  करते  , जन्म -जन्मांतर  तक  उन्हें  इसका  परिणाम  भोगना  पड़ता  है  l  इस  संदर्भ  में  एक  घटना  है  ------जगद्गुरु  शंकराचार्य  पर  एक  कापालिक  ने  भीषण  तंत्र  का  प्रयोग  किया  l  इसके  प्रभाव  से   उनको  भगंदर  हो  गया   और अंत  में  उन्हें  अपनी  देह  को  त्यागना  पड़ा  l  कापालिक  के  इस  पापकर्म  से  उसकी  आराध्या  एवं  इष्ट  भगवती  उससे  अति  क्रुद्ध  हुईं   और  कहा  कि  तूने  शिव  के  अंशावतार   मेरे  ही  पुत्र  पर   अत्याचार  किया  है  l  इसके  प्रायश्चित  के  लिए  तुझे   अपनी  भैरवी  की  बलि  देनी  पड़ेगी  l '  कापालिक  अपनी  भैरवी  से  अति  प्रेम  करता  था  ,  परन्तु  उसे  उसको  मारना  पड़ा  l   उसको  मारने  के  बाद  वह  विक्षिप्त  हो  गया   और  अपना  ही  गला  काट  दिया  l  इस  प्रकार  उस  तांत्रिक  का  अंत  बड़ा  भयानक  हुआ  l     प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  है   l  ईश्वर  ऐसे  पापियों  को  भी  अनेकों  बार  संकेत  भी  देते   हैं  कि  इस  पाप  के  रास्ते  को  छोड़  दो  , सन्मार्ग  पर  चलो  l  परन्तु  अपने  अहंकार  के  आगे  वे  विवश  होते  हैं  ,  जिसने   उनका  जितना  भी  साथ  दिया  है   उसे ईश्वर  के  तराजू  में  तोलकर  उतना  परिणाम  भुगतना  ही  पड़ता  है  l