यदि मनुष्य की चेतना परिष्कृत नहीं हुई तो इस वैज्ञानिक प्रगति का कोई अर्थ नहीं है l ऐसी प्रगति केवल तबाही ही ला सकती है l मनुष्य अभी भी जाति , धर्म , ऊँच -नीच की बेड़ियों में उलझा है l इस भेदभाव ने लोगों के मन में इतना जहर भर दिया है कि वे अपने जीवन का उदेश्य ही भूल गए हैं l उन्हें यह सब सोचने की फुर्सत ही नहीं है कि वे इस धरती पर क्यों आए हैं l मन में यदि जहर भरा है तो वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए घातक है l मनुष्य यदि सच्चे अर्थों में ईश्वर को माने और ईश्वर ने धरती पर जन्म लेकर अपने आचरण से मनुष्यों को जो शिक्षा दी , वैसा ही मनुष्य आचरण करे तभी संसार में सुख -शांति आ सकती है l भगवान श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर खाए l वनवास में उनके सर्वप्रथम सहायक निषादराजगुह थे l उनकी गणना नीची जाति के शूद्रों में की जाती थी लेकिन भगवान श्रीराम ने उन्हें अपना मित्र बनाया l भगवान श्रीराम ने तो बन्दर , भालू , पशु -पक्षी , गिलहरी और सम्पूर्ण प्रकृति से प्रेम किया l प्रत्येक मनुष्य खाली हाथ आया है और खाली हाथ ही जाना है l फिर इस बीच के समय में इतना लड़ाई झगड़े , भेदभाव से क्या हासिल हुआ ? , कोई सिंहासन मिला क्या ? केवल अपनी ऊर्जा और अनमोल जिन्दगी गँवा दी l लोग जब जागरूक होंगे तभी संसार में सुख -शांति होगी l