संत एकनाथ जिस रास्ते स्नान को जाया करते थे , एक उद्दंड व्यक्ति का घर उधर ही था l वह छत पर खड़ा ताकता रहता , जैसे ही संत एकनाथ उधर से गुजरते , वह व्यक्ति ऊपर से कूड़ा पटककर उन्हें गन्दा कर देता l उन्हें दुबारा नहाने के लिए विवश करने में उसे बहुत मजा आता था l बहुत दिन ऐसे ही बीत गए l संत बहुत सहनशील थे , उन्होंने कभी क्रोध नहीं किया l इसके बाद अचानक परिवर्तन आया , कूड़ा गिरना बंद हो गया l संत को चिंता हुई l उन्होंने इधर -उधर पूछताछ की तो मालूम हुआ कि वह व्यक्ति बीमार पड़ा है l संत ने कहा ---- 'मित्र ! तुम मेरा रोज ध्यान रखते थे l तुम्हारे प्रयास से मुझे दिन में कई बार नहाने का मौका मिला l अब मेरी बारी है कि इस कठिन समय में मैं तुम्हारा ध्यान रखूं l ' जब तक वह व्यक्ति बीमार रहा , संत उसकी सहायता करते और आवश्यक साधन जुटाते l जब वह व्यक्ति बीमारी से उठा तो उसका स्वभाव बिलकुल बदल गया l